Saturday 31 December 2011

पिंडर का भविष्य 28-7-2010



गंगा की महत्वपूर्ण सहायक पिंडर नदी उत्तराखंड के चमोली जिले में आती है। पिंडर घाटी उत्तराखंड के दोनो कुमांउ और गढवाल क्षेत्रो को जोड़ती है। इसमें देवाल ब्लाक सुंदरता की दृष्टि से बहुत आगे है। पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडर से जुड़ी कथायें भी गंगा की अन्य नदियों की कथाओं की तरह प्राचीन और महत्व की है। पिंडर का सौंदर्य भी अनूठा है। कर्णप्रयाग में अलकनंदा को मिलने तक यह शंात सकुचायी सी बालिका लगती है। देवाल में गहरी आस्था का प्रतीक कैल और पिंडर का संगम भी विस्तृत और मनोहारी है। कर्णप्रयाग से देवाल जाते-जाते पूरे रास्ते में हरियाली झूमती नजर आती है। नदी रास्ते के बहुत करीब है। बीच में नारायणबगड़ व अन्य स्थानों पर मिलने वाली सुंदर छोटी पहाड़ी नदिया भी मस्त गीत गाती प्रतीत होती है। पूरी घाटी अभी हिमालय के आंगन में वसंती कोना है।

इसी वसंती कोने पिंडर नदी पर देवसारी (252 मेवा), बगोली (72 मेवा), पडली (27 मेवा) जलविद्युत परियोजनाये प्रस्तावित है। बगोली और पडली जलाशय वाली और देवसारी जलाशय व सुरंग परियोजना है। इन परियोजनाओ के बाद पिंडर पूरी तरह जलाशयों में या फिर सुंरगों में होगी। ये पिंडर की मौत होगी। एक और नदी की हत्या होगी।

देवसारी जविप पर उत्तराखंड सरकार का अनुबंध हिमाचल प्रदेश की सतलुज जलविद्युत निगम के साथ हुआ है। इस जविप पर शुरु से ही विरोध संघर्ष चालू है। सर्वे रोकने से लेकर धरने, प्रर्दशन, और हर स्तर पर पत्र-व्यवहार भी हो रहा है।ये पहले 90 मीटर ऊंचा बांध व 7 किलोमीटर सुरंग की परियोजना थी। पर लोगो के कड़े विरोध को देखते हुये इसे निगम ने 35 मीटर का किया गया। पर सुरंग की लम्बाई 18 किलोमीटर कर दी गई है। यानि देवाल ब्लॅाक जहंा बांध प्रस्तावित है अब वो नही डूबेगा पर सुरंग की लम्बाई 10 किलोमीटर बड़ाने से सुरंग के ऊपर के गांवो पर बुरे असर आयेंगे। इस जानकारी को छुपाया गया। इन गांववालो को परियोजना के असरो के बारे में नही मालूम था।

13 अक्तूबर 2009 को परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई इसीलिये रदद् करनी पड़ी थी कि प्रभावित क्षेत्र में जनसुनवाई की कोई जानकारी नही थी व जनसुनवाई का आयोजन स्थल काफी दूर था। देवाल संघर्ष समिति-माटू जनसंगठन-नवयुवक मंगलदल, देवसारी आदि के बैनरो के साथ और दूसरे क्षेत्रो से भी लोग पहुंचे थे। कुछ लोगो ने पंडाल की सारी कुर्सियंा हटा दी और मंच भी अव्यवस्थित किया। लोगो से बात करने के बजाय सभी अधिकारी वहंा से चले गये। संगठनों के लोग पंडाल के बाहर आकर बैठ गये। अपनी सभा चालू करके क्षेत्र के सारे जनप्रतिनिधियों व जनसंगठनों के लोगो ने एक स्वर में कहा की हमे बांध नही चाहिये।

वो जनसुनवाई निरस्त हुई। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का यह निर्णय इतिहास में पहली बार लिया गया था। इसके बाद सतलुज निगम ने माटू जनसंगठन के विमलभाई समेत 11 लोगो पर नामजद व 60 अन्यों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 148, 332, 427, 435, 504 के अंर्तगत शिकायत दर्ज थी।

देवाल में धरना चालू रहा। लोगो द्वारा सतलुज कंपनी के कामो को रोका गया। पर चालाक कं0 ने पैसा बांटना चालू किया। साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई। गांवों में जाकर प्रधानों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की कोशिश की। इस अनापत्ति प्रमाण पत्र को लेने के बाद आजतक का अनुभव है कि बांध कंपनी फिर कुछ नही सुनती। बांध के विरोध को खत्म करने का ये एक तरीका है। फिर कंपनी कहेगी कि हमने तो पहले ही अनापत्ति प्रमाण पत्र ले लिया था। पर इसके बावजूद भी 22 जुलाई 2010 को पुनः पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन हुआ।

दूसरी जनसुनवाई में भी कही कोई जानकारी नही दी गई थी। लोगो के विरोध को नजरअंदाज करके जनसुनवाई का फिर आयोजन हुआ था। पैठाणी गांव के लोग जन सुनवाई रद्द करो, पिंडर को अविरल बहने दो आदि के नारों के साथ जब पंडाल में घुसे, बहुत सारे लोग शांति से बैठे थे, कार्यवाही चालू हो चुकी थी। मंच की ओर बढे़ लोगों ने बैनर थाम रखा था। कैलगांव के मदन मिश्रा जी ने आगे आकर लोगों को बैठने का इशारा किया। पर लोग शांति से बैठने सुनने का समय नही था। जनसुनवाई हो जाये यही तो कंपनी का लक्ष्य है। विमलभाई ने आगे बढ़ कर विकास अधिकारी जो जनसुनवाई की अध्यक्षता कर रहे थे, कहा कि जन सुनवाई गलत हो रही है। कानूनों का उलंघन हो रहा है। थोड़ा चिढ़ कर विकास अधिकारी ने मुझसे पूछा आप कौन हैं। उनके बगल में बैठे ब्लाक प्रमुख श्री कुनियाल ने उन्हे मेरे बारे में कहा कि ये बाहर का आदमी है। तभी थराली के सबइंस्पैक्टर श्री शंकर ने दो अन्य पुलिस कर्मियों के साथ आकर उन्हे गिरफ्तार करके टैन्ट के बाहर ले गये और एक जीप में बैठाया और थराली थाने भेज दिया।

इस गिरफतारी के बाद जन सुनवाई में खूब हल्ला हुआ। कंपनी की कोशिश थी कि किसी तरह जन सुनवाई का काम निबट जाये। पर माटू जनसंगठन ने तो अपना काम पहले ही कर दिया था। गांवो मे सभा जनसुनवाई का कानून और बांधों के देशव्यापी असरों को बताया जा चुका था। मेरे अकेले को हटाकर उन्हे सफलता नही मिली। भू-स्वामी संगठन ने भी बहिष्कार की घोषणा पहले ही कर रखी थी। दिनेश मिश्रा जी जिन्हे सब गुरू जी कहते है पहुंचे और उन्होंने मंच से लम्बा भाषण दिया। मदन मिश्रा जी ने भी जानकारी ना होने की बात की। तब जाकर मुख्य विकास अधिकारी को सुनवाई रद्द घोषणा करनी पड़ी उन्होंने कहा की कंपनी गांव-2 जाकर ग्राम सभा करके लोगों को जानकारी देगी, उनसे अनापत्ति लेगी, उसकी रिपोर्ट मेरे पास आयेगी उसे मैं देखूंगा। उसके बाद ही जन सुनवाई होगी। यह जन सुनवाई स्थागित की जाती है। उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हुआ था। जब कोई पर्यावरणीय जनसुनवाई दूसरी बार स्थगित हुई हो। मुख्य विकास अधिकारी जी का तबादला कर दिया गया है। इस बार की जनसुनवाई में टैन्ट, भोजन, विडियोंग्राफी आदि के सारे काम प्रभावित गंाव वालों को दिये गये थे। ताकि यदि हंगामा हो नुकसान हो तो उनका ही हो। साथ इस तरह थोड़ा लालच भी देने की कोशिश भी हुई।

तीसरे दिन विमलभाई को दिनेश मिश्रा जी व उर्वारुक दत्त मिश्रा जी के द्वारा जमानत के बाद छोड़ा गया। अगले दिन साथियों के साथ देवाल में बैठक हुई और बांध विरोध के संकल्प को दोहराया गया। देवाल बाजार में विजय रैली निकाली। जिसमें विकास चाहिये विनाश नहीं, बांध नहीं बनने संस्कृति को बचायेंगे जैसे नारे दिये गये। रैली की समाप्ति पर देवाल बाजार में आम सभा में हुई। जनता के दिये प्यार के प्रति आभार जताते हुये हमने सतलुज क0 हो हर गांव में जवाब देने का निर्णय लिया।

दुबारा हुई जनसुनवाई में भी कानूनी प्रक्रियों को ताक पर रखा गया था जो बताता है कि जनसुनवाई मात्र एक कागजी कार्यवाही होती है। स्थानीय अखबारों में पर्यावरणीय जनसुनवाई की सूचना नही निकली थी है। सभी प्रभावित ग्राम प्रधानों को सूचना पत्र नहीं पहुंचा। कुछ प्रभावित ग्राम प्रधानों को सूचना पत्र मात्र 23 दिन पहले ही मिला। इन जनसुनवाई सूचना पत्रों में इआईए व इएमपी कहंा पर उपलब्ध होगीं इसका उल्लेख नहीं है बल्कि इआईए और इएमपी का जिक्रतक नहीं है। इआईए और इएमपी का जो सार संक्षेप पत्र के साथ दिया गया है उसमें दुष्प्रभावों को नहीं बताया गया व संलग्न नक्शा भी अपूर्ण था। जहां सुरंग के रास्ते बनने है वे भी नहीं दर्शायें गये। सुरंग प्रभावित क्षेत्र व उसके प्रभावों को भी सार संक्षेप में नहीं बताया गया। जनसुनवाई में भौगोलिक परिस्थितियों को पूरी तरह नकारा गया। जनसुनवाई का समय मात्र 3 घंटे बताया गया 11 बजे से 2 बजे तक।

बिना ग्राम सभा की सहमति से जनसुनवाई से पहले ही बांध प्रायोक्ता ने कुछ प्रभावित गांवों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेने शुरु कियें। जबकि उन्हें परियोजना प्रभावों की कोई जानकारी नहीं दी गई है। जनसुनवाई के दौरान पुलिस का प्रयोग करके लोगो में भय पैदा करने की कोशिश की गई। पैनल में जो बैठे थे उनका कोई परिचय का नाम टेबुल पर नही लिखा गया था। मंच पर पुलिस अधिकारी, ब्लाक प्रमुख और सतलुज जल-विद्युत निगम के अधिकारी भी बैठे थे। सतलुज जल-विद्युत निगम के अधिकारी ही जनसुनवाई का संचालन कर रहे थे। बोलने वालो की लिस्ट पहले ही बनी हुई थी जोकि बांध के हक में थे। जबकि जनसुनवाई में सभी को बोलने का हक होता है। तो बांध का विरोघ हुआ और बांध का विरोध चालू है।

पिंडर एक शंात सीधी बहती नही है। अभी बांधों की गिरफ्त में नही है। उसे बहते रहने देने से गंगा की एक उपत्यका को अभी सुरक्षित रखा जा सकता है।

विमलभाई
समंवयक
माटू जनसंगठन

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