Saturday 31 December 2011

प्रैस विज्ञप्तिः- देवसारी जल-विद्युत परियोजना की दूसरी जनसुनवाई बड़ा धोखा 18.7.2010

प्रैस विज्ञप्तिः- 18.7.2010

प्र्र्रस्तावित देवसारी जल-विद्युत परियोजना की दूसरी जनसुनवाई बड़ा धोखा

उत्तराखंड के चमोली जिले में पिंडर नदी पर प्र्र्रस्तावित देवसारी जल-विद्युत परियोजना (252 मेगावाट) पर उत्तराखण्ड राज्य पर्यावरण संरक्षण एंवम् प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 22 जुलाई 2010 को पुनः पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन हो रहा है।

लोगों के विरोध के कारण 13 अक्तूबर 2009 को आयोजित पहली पर्यावरणीय जनसुनवाई स्थगित कर दी गई थी। जिसके बाद सतलुज जल विद्युत निगम ने तोड़-फोड़ आगजनी आदि के झूठे आरोप लगाकर 11 लोगो के खिलाफ नामजद व 60 अन्य लोगो के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। ये वे लोग थे जो उस समय बांध विरोध में प्रमुख रुप से सामने दिख रहे थे। बाद में स्थानीय विधायक के माध्यम से एक समझौता निगम के देहरादून स्थित गेस्ट हाउस में किया गया कि लोगो को विश्वास में लेकर बांध का काम किया जायेगा और मामले वापिस लिये जायेगें। यह मात्र लोगो को फंसाने की कोशिश थी ताकि बांध के सर्वे पूरे किये जा सके। माटू जनसंगठन इस समझौते में शामिल नही था। हम इसका विरोध करते है। स्थानीय स्तर पर भी बांध का विरोध जारी है।

निगम इस तरह के हथकण्डे अपनी सभी परियोजनाओं में अपनाता है। ताकि लोगो पर दवाब देकर बांध काम किया जा सके। हिमाचल के किन्नौर जिले में सतलुज नदी पर प्रस्तावित खाबो-श्यासो जलविद्युत परियोजना में भी एस.जे.वी.एन.एल. ने बीसियों लोगों पर मुकद्दमें डाल कर बांध विरोध को रोकने की कोशिश की थी। किन्तु वहां पर विरोध जारी है लोग जेल भी गये पर वे डटे हैं और वहंा बांध विरोध जारी है। हम लोगांे पर मुकद्दमें डाल कर बांध काम चालू करने के इस प्रयास की निंदा करते हैं। हम किसी भी तरह की हिंसा का विरोध करते है। ये एस.जे.वी.एन.एल. की हिंसा है।

22 जुलाई को प्रस्तावित पर्यावरणीय जनसुनवाई भी जनता के साथ एक धोखा है। उत्तराखंड में परियोजनाओं की जनसुनवाई मात्र एक औपचारिकता बन गई है। ना लोगो को इसकी प्रक्रिया की कोई समझ होती ना ही परियोजना या सरकार लोगो को इसकी प्रक्रिया बताने की कोशिश करते है। जिसका फायदा मात्र परियोजना की पर्यावरणीय स्वीकृति लेने के लिये किया जाता है। 22 जुलाई 2010 की प्रस्तावित पर्यावरणीय जनसुनवाई का नोटिस नैनीताल के दैनिक जागरण में निकाला गया है। जबकि बांध चमोली जिले के देवाल ब्लॅाक में प्रस्तावित है। प्रभावित गांवो के प्रधानों को निगम ने 28 जून को पत्र भेजा है। सभी प्रभावित ग्रामों के प्रधानों को यह पत्र भी नहीं मिला है। यह पूरी तरह पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2006 का उंलघन है। जिसमंे स्पष्ट लिखा गया है कि प्रभावित क्षेत्र में प्रचलित किसी स्थानीय भाषा के अखबार में जनसुनवाई से 30 दिन पहले नोटिस प्रकाशित होना चाहिये।

माटू जनसंगठन ने इस नोटिस की जानकारी स्थानीय लोगों को दी। इस नोटिस में लिखा है कि पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट कार्यालय जिलाधीश, कार्यालय जिला पंचायत, कार्यालय उद्योग केन्द्र चमोली व पर्यावरण विभाग आदि में रखे हैं जो ख्कि गोपेश्वर में है। प्रश्न यह है कि बांध प्रभावित क्षेत्र से 90 किमी. दूर गोपेश्वर में, लगभग 300-400 पन्नों मे बनाये गये अंग्रेजी के कागजात, बांध प्रभावित क्यों पढ़ने जाये? लोगो को क्यों नही हिन्दी में पूरी जानकारी दी जाती?

ये सब तरीके लोगों को अंधेरे में रखकर बांध बनाने की साजिश है। पिंडर नदी के सुंदर पर्यावरण को बर्बाद करने की कोशिश है। 7 जुलाई को माटू जनसंगठन व भू-स्वामी संघर्ष समिति के साथ प्रभावित ग्रामीणों ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को पत्र भेज कर इन मामलों को उठाया है। उनसे मांग की है किः--

1- 22 जुलाई 2010 की जनसुनवाई तुरंत प्रभाव से रोकनी चाहिये चूंकि पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना का भी पालन नही हुआ है।
2- पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट व पर्यावरण प्रबंध योजना व अन्य कागजात अगली जनसुनवाई से कम से कम एक महिना पहले हिन्दी में समझने वाली भाषा में ग्राम स्तर पर दिए जाने चाहियें।
3- ताकि परियोजना प्रभावों की सम्पूर्ण जानकारी पर भी हम अपनी टिप्पणी/प्रतिक्रियायें दे सकें और बता सकें कि इन कागजातों के आधार पर भी यह परियोजना सही नही है।

इन संदर्भाें में हम यह कहना चाहते है कि प्रस्तावित देवसारी बांध की जनसुनवाई भी लोगो के साथ, उत्तरांखड के पर्यावरण के साथ फिर एक धोखा साबित होगी।
इसलिये हमारी मांग है किः-
  • सतलुज जल-विद्युत निगम झूठे मुकद्दमें वापिस करें।
  • जन सुनवाई रद्द की जाये और पिंडर नदी को स्वतंत्र बहने दें।
  • राज्य सरकार सतलुज जल विद्युत निगम के साथ देवसारी बांध का अनुबंध रद्द करें। (इस संदर्भ में राज्य सरकार को 5 फरवरी 2010 को माटू जनसंगठन ने पत्र भी भेजा था।)
हम विकास को मानते है और बिजली की जरुरत व विकास की आवयकता को भी मानते करते है किन्तु जिस तरह से विकास का नाम देकर जलविद्युत परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है वह उत्तराखंड के भविष्य के लिये खतरनाक है।

विमल भाई)

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