Wednesday 17 June 2015

In support of Village Meletha

{English translation is given below}
15-6-2015

सेवा में,                                 
माननीय श्री हरीश रावत जी
मुख्यमंत्री उत्तराखंड
सचिवालय,
देहरादून, उत्तराखंड

                   विषय: टिहरी जिले के मलेथा गांव में स्टोन क्रैशर बंद कीजियेः
                           आंदोलनकारियों पर से मुकदद्में वापिस लीजिये

मान्यवर,

आपको विदित है कि टिहरी जिले के मलेथा गांव के निवासी वहंा लगे 2 प्रस्तावित व तीन लगे हुये स्टोन क्रैशरों का विरोध कर रहे है। चूंकि इससे प्रसिद्ध माधो सिंह भडारी जी के गांव मलेथा की खेती और र्प्यावरण पर अत्यंत बुरा असर पड़ रहा है।

विगत में ग्रामीणों का धरना व अनशन के बाद आपने कमिश्नर जांच के आदेश दिये थे। कमिश्नर की जांच बताती है कि पांचों स्टोन क्रैशरों में मानकों का उंलघन हो रहा है। किन्तु इसके बाद भी निरस्तीकरण का आदेश नही आया है। तीनों स्टोन क्रैशरों को नही हटाया गया है। इसके विरोध में ग्रामीणों को धरना व अनशन पुनः करना पड़ा है।

इस बीच पुलिस ने भी दमन किया। जिस कारण हिमालय बचाओं आंदोलन के कार्यकर्ता श्री समीर रतूड़ी ने 6 दिन तक पानी भी नही लिया। तब आपके प्रतिनिधी श्री प्रवीण भंडारी जी और उत्तराखंड कांग्रेस अध्ययक्ष श्री किशोर उपाघ्याय जी के प्रतिनिधी श्री शंाति भटट् जी ने आपका संदेश दिया कि पुलिस दमन के जिम्मेदार अधिकारियों को हटाया जायेगा। आपका सम्मान रखते हुये श्री समीर रतूड़ी ने पानी पीना स्वीकार किया है। किन्तु अनशन जारी है।

ग्रामीणों ने बार-बार आंदोलन करने के बाद अब आर-पार की लड़ाई का फैसला लिया है। गंाव मलेथा के ग्राम प्रधान श्री शूरवीरसिंह बिष्ट व श्री समीर रतूड़ी अनशन का आज 11वां दिन है। अनशनकारी जनहित में अपनी जान की बाजी लगा कर बैठे है। राज्य में इस आंदोलन को लेकर चिंता है। देश में भी यह प्रश्न उठ रहा है। इससे आपकी साख पर बुरा असर आ रहा है।

जन भावनाओं और उत्तराखंड की जमीन सच्चाई को जानने वाले मुख्यमंत्री जी से हमारी अपेक्षा है कि वे उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुये निम्न मांगों पर तुरंत कार्यवाही का आदेश देंगेः-

1. कमिश्नर जांच के आधार पर, स्टोन क्रैशरों के निर्धारित मानकों का उलंघन करने के कारण तत्काल हटवायें।

2. आंदोलन के दौरान अपने गांव को बचाने के लिये आंदोलनरत लोगो पर लगाये गये मुकद्दमें तुरंत प्रभाव से वापिस लें।

आपसे तुरंत कार्यवाही की अपेक्षा में


विमलभाई          पूरणसिंह राणा
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To,
Shri Harish Rawatji
The Chief Minister Of Uttarakhand
Secretariat,
Dehradoon, Uttarakhand


Sub : Stone crushers should be removed from Village Maletha, Tehri District.
The cases filed against the protesters should be removed.
Sir,
This is bring into your notice the protests done by people of Mathela village, Tehri district against the 2 proposed and 3 stalled stone crushers as they are crucially impacting the agriculture and environment of the village.
Recently after a protest and fast resolution there was an order given for Commissioner investigation. The investigation report say that all the stone crushers have broken the regulations. Even after that there is no order to stop the functioning of the crushers. Therefore the people had to do dharnas and fasts again.
While these incidents were going on, police also tried to suppress the protests. Sameer Ratudi activist of ‘Himalaya Bachao Andolan’ did eat not or drink anything for 6 days. Your representative Shri Praveen Bhandari ji Sand Uttarakhand Congress president's repersentative Shri Shanti Bhatt ji had informed to the movement that the police officials involved in the repressions will be charged. Showing respect to this decision Sameer Ratudi started drinking water but the fast still continues.
After organizing a number of protests now the people of villages have decided take serious steps. The headmen of Mathela village Shurveersingh Bist and Sameer Ratudi have continued fast. Today is the 11th day of their fast. Protesters have taken life at risk. There are tensions all over the state and the country.
With the believe that the authority is capable of understanding the suffering of the people, we expect that the State will take immediate actions and pay heed to the demands mentioned below :
  1. As the Commissioner investigation report says that the stone crushers have broken the regulations therefore should be removed.
  2. The cases filed against the protesters should be removed.

Hoping for an urgent action from your end
Vimalbhai, Puran Sing Rana

Tuesday 16 June 2015

श्रीनगर जलविद्युत परियोजना पर 2013 की तबाही के दो सालों बाद की रिपोर्ट मई 2015--



उत्तराखंड में अलकनंदा नदी पर 330 मेगावाट की श्रीनगर जलविद्युत परियोजना बनाने वाली जी0वी0के0 बांध कम्पनी द्वारा लापरवाही से श्रीनगर बांध की मिट्टी डंप नहीं कि गई होती तो जून 2013 में नदी का पानी केवल घरों एंव अन्य जगहों पर आता किन्तु मलबा नहीं आता। लोग अभी तक दो सालों के बाद भी मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से परेशान एवं अस्त-व्यस्त ना होते।
वैसे श्रीनगर बांध निर्माण में पूर्व से ही काफी कमियां रही हैं तथा इसके पर्यावरणीय पहलुओं पर लोग इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया के माध्यम से कहते रहे हैं। जी0वी0के0 कम्पनी पर मुकदमें भी हुये, जिनमें से कुछ अभी भी चल रहे हैं। जी0वी0के0 कम्पनी की लापरवाही मीडिया व कई व्यक्तियों द्वारा प्रश्न उठाये गये जो लगातार सच साबित हुये हैं। आज स्थिति यह है कि बांध के खिलाफ केस भी चालू है और बांध कंपनी ने विद्युत उत्पादन भी करना आरंभ कर दिया है।

चित्र-1  श्रीनगर जलविद्युत परियोजना का विद्युत गृह (सभी चित्र लेखक द्वारा)
                     चित्र-1 श्रीनगर जलविद्युत परियोजना का विद्युत गृह (सभी चित्र लेखक द्वारा)

2013 में श्रीनगर शहर के एक हिस्से में बांध कंपनी द्वारा गलत तरीके से रखा गया मलबा तबाही का कारण बना। प्रभावितों ने मांग की कि शक्तिबिहार, लोअर भक्तियाना, चैहान मौहल्ला, फतेहपुररेती क्षेत्र की सड़कें, गलियंा, एंव मकानों का पूरा मलबा हटाया जाये। सरकारी एंव गैरसरकारी स्थानों के मलबे की भी सफाई की जाये। आवासीय भवनों को रहने लायक बनाया जाये। जिन स्थानों से विस्थापन आवश्यक है उनका तत्काल पुनर्वास किया जाये। जब तक आवासीय भवन रहने लायक नही बन जाते तब तक प्रत्येक परिवार को वास्तवित मकान किराया भुगतान किया जाये। जी0वी0के0 कम्पनी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के निवासियों को मानसिक पीड़ा पहुंचाई गई है। शासन द्वारा दी गई एक लाख की धनराशि इसकी भरपाई नही कर सकती है। क्षेत्र की सुरक्षा हेतु नदी पर आरसीसी की सुरक्षा दिवार श्रीकोट से लेकर मालडइया तक बनाई जाये। जो बांध पूर्ण होने से पहले की जाये। तब तक बांध के गेट भी खुले रखे जाये। परियोजना के समीप शेष बची मक/मलबा ;उनबाद्ध को दिवार बनाकर कटाव रोका जाये तथा तत्काल में रेत के कट्टे लगाकर मिटटी के कटाव को रोका जाये। शासन तथा परियोजना प्रबंध द्वारा इस बात की गारंटी दी जाये की भविष्य में ऐसी कोई घटना नही होगी। पूर्ण क्षति का आकलन करके जी0वी0के0 कम्पनी से पूर्ण क्षतिपूर्ति कराई जाये। आज दो सालों के बाद 2015 मई में उस क्षेत्र की स्थिति यह है कि प्रभावित क्षेत्र में आई0 टी0 आई0 में भी पूरी तरह से मलबा भर गया था। सरकार ने दो लाख रुपये का खर्चा करके उसे नही हटाया किन्तु उसी के मैदान में भरे मलबे पर नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलाॅजी की 10 लाख से ज्यादा की प्री-फेब्रिकेट इमारत बना दी गई है। एनआईटी की स्थायी इमारत इसी जिले में बन रही है। हंा आई0 टी0 आई0 के छात्रों को पास में ही कही बिना किसी उपकरणों के पढ़ाया जा रहा है।
चित्र-2 एनआईटी की प्री-फेब्रिकेट इमारत
                                                          चित्र-2 एनआईटी की प्री-फेब्रिकेट इमारत

एनआईटी की इस प्री-फेब्रिकेट इमारत के सामने का हिस्सा नीचे हो गया है। लोगो को आशंका है कि यदि कभी पास के नाले से पानी पीछे आता है तो बस्ती में पानी फिर भर जायेगा। विश्व बैंक से आपदा के समय जो कर्जा लिया गया है उसमें आई0टी0आई0 को भी सही करना शामिल है। नवम्बर/दिसंबर 2014 में विश्व बैंक ने तथाकथित जनसुनवाई की। मात्र 4 प्रभावित लोगांे को खबर हो पाई। उन्होंने विश्व बैंक से कहा की हमारा भाग्य बदला है पर अब हम अपना पता नही बदलेंगे। अपने पते में हम निकट आई0टी0आई0 ही लिखेंगे। इसलिये इसे साफ किया जाये और चालू किया जाये।
चित्र-3 अलकनंदा नदी के किनारे सुरक्षा दिवार
                                               चित्र-3 अलकनंदा नदी के किनारे सुरक्षा दिवार

किन्तु आज दो साल बाद की स्थिति यह है कि सुरक्षा दिवार की उंचाई कम और गुणवत्ता खराब है। पिछले दिनों स्थानीय छात्रों ने इसी कारण दिवार का काम रोक दिया था। बांध के पावर स्टेशन के सामने नदी किनारे के पूर्व निर्मित सुरक्षा ब्लॅाक नदी में गिर चुकें है। तो इस बात की क्या गारंटी है कि नई बन रही दिवार नही गिरेगी?

सुरक्षा दिवार के काम की गति धीमी होने के कारण इस बरसात से पहले कार्य पूरा होना संभव नही है। निमार्ण की गति बढ़ाई जानी अति आवश्यक है। श्रीनगर बांध के पावर हाउस के बाहर नदी के दायीं तरफ बिना सुरक्षा दिवार बनाये मलबा डाला गया था वो भी पानी में धीरे-धीरे बह रहा है। और बरसात में तेजी से बहने का खतरा है। कटाव को रोकने के लिये तत्काल में रेत के कट्टे तक भी नही लगाये गये। नगर के सामने चैरास स्थित विश्वविद्यालय का हिस्सा भी बांध के कारण नदी की भेट चढ़ रहा है।
चित्र-4 गलियों में पड़ा मलबा
                                             चित्र-4 गलियों में पड़ा मलबा

प्रभावित लोगो ने स्वंय ही पैसा खर्च करके घर साफ किये। किन्तु सरकारी इमारतों की स्थिति वैसी ही है। गलियों में मलबा पड़ा हुआ है। ऐसा लगता है कि कोई शहर खुदाई में से निकला है।
2013 जून में उत्तराखंड में आई आपदा जिसमें श्रीनगर बांध परियोजना के कारण श्रीनगर शहर के बड़े क्षेत्र में मक भर गई थी। इस संबंध में मुआवजे के लिये एक याचिका राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में ‘श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति‘ व ‘माटू जनसंगठन‘ द्वारा डाली गई थी। बाद में श्री भरत झुनझुनवाला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित रवि चोपड़ा समिति का आधार लेकर इसमें शामिल हुये। प्राधिकरण में तारिखें तो लग रही है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के केस में अनेक आधारहीन तथ्यों से यह सिद्ध करने का ही प्रयास हो रहा है कि श्रीनगर के एक हिस्से को जून 2013 में बांध के मलबे से भर देने में उसकी कोई गलती नही है। बांध कंपनी पर कोई असर नही कोई मानवीयता नही है।
अभी 10 मई को ही बिना पूर्व सूचना दिये बांध के गेट से पानी छोड़ दिया गया। वो तो मौके पर अधिशासी अभियंता ने चैरास मोटर पुल के निर्माण की सामग्री व मजदूरों को हटा दिया। तो लोग व सामान बच गया। एक स्थानीय अखबार ने इस पर बांध कंपनी के प्रंबधन से पूछा मगर बांध कंपनी के प्रंबधन ने इस पर कोई जानकारी नही दी। स्थानीय लोग को कभी कंपनी के सायरन आदि नही सुनाई दिये। कंपनी भले ही दावा करे की वो सायरन बजाती है।