Sunday 26 February 2017

PN-26-2-2017


Matu Jansangathan and Srinagar
Bandh Aapda Sangharsh Samiti
प्रैस विज्ञप्ति 
 
श्रीनगर बांध की समस्याओं के लिये केन्द्रिय पर्यावरण मंत्रालय जिम्मेदार
''श्रीनगर बांध पर राष्ट्रीय जनआयोग‘‘ की घोषणा 
 
श्रीनगर बांध परियोजना के पर्यावरण व पुर्नवास तथा अन्य सवालों की निगरानी रखने और निर्णय लेने की पूर्ण जिम्मेदारी केन्द्रिय पर्यावरण मंत्रालय की है। हाल ही में जल संसाधन एवं नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मंत्री सुश्री उमा भारती जी ने उत्तराखंड राज्य सरकार को परियोजना के विभिन्न नियमों के उल्लंधनों पर कार्यवाही करने का जो निर्देश दिया है उसका श्रीनगर के नागरिकों ने स्वागत किया है।

श्रीनगर बाँध आपदा संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन के तत्वाधान में उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारें श्रीनगर में आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने परियोजना बनने से पहले और परियोजना के चालू होने के बाद विभिन्न असरों पर अपनी बात रखी । माटू संगठन के समन्वयक विमल भाई ने कहा कि हम मंत्री जी के पत्र में व्यक्त की गई चिन्ताओं का स्वागत करते हैं। हम मानते हैं कि राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने स्तर पर परियोजना से संबंधित मुद्दों का तथ्य परक आंकलन करें और अपनी रिपोर्ट केन्द्रिय मंत्रालय को भेजें और साथ ही उन्होने यह भी स्पष्ट किया कि परियोजना की मूलतः दो पर्यावरण और वन स्वीकृतियां, केन्द्रिय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा दी जाती हैं। इसलिये मंत्रालय की यह पहली जिम्मेदारी है कि वह दोनों स्वीकृतियों पर निगरानी करे। इस मंत्रालय ने बिना किसी अध्ययन, पर्यावरण प्रभाव आंकलन किये बांध की उंचाई 65 मी0 से 95 मी0 तथा विद्युत उत्पादन क्षमता 220 मेगावाट से 330 मेगावाट करने की अनुमति दी जिसका नतीजा यह हुआ कि मां धारी देवी का प्राचीनतम मंदिर जलमग्न हो गया, श्रीनगर शहर को लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ा है जिसमें पीने का गंदा पानी, बांध की नहर के रिसाव के कारण चौरास क्षेत्र के अनुसूचित जाति बहुल मंगसू, सुरासू, गुगली नागराजासैण, पतुल्डु तथा नौर व मढ़ी आदि समस्त वह क्षेत्र जहां से परियोजना की नहर गुजरती है, खतरे की स्थिति में है। जिसे सरकारी वाडिया संस्थान ने भी स्वीकारा है। अलकनंदा लोगो से छिन गई है।

गढ़वाल के केन्द्रिय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के भूगर्भ विज्ञानी प्रो0 सती ने कहा कि यह परियोजना भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में बना दी गई है जो कि भविष्य के लिये खतरा है।
कीर्तिनगर से चन्द्रभानु तिवाड़ी ने कहा कि बांध का मक निस्तारण के बारे में पर्यावरण मंत्रालय ने पूर्व में अपनी स्वीकृति में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिये थे और बांध कम्पनी ने भी मक का निस्तारण समुचित तरीके से नहीं किया जिस कारण सन् 2013 की आपदा में श्रीनगर शहर के एक हिस्से को भयंकर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। एन0 जी0 टी0 के 19/08/2016 के आदेश में यह बात स्वीकार की गई है।
मंगसू गांव के महेश भारद्वाज का कहना है कि हमें छला गया। पहले हम नदी से पानी लाते थे अब पीने का पानी दो दिन में एक बार मिलता है। बांध नहर के कारण सिंचाई की गूलें खत्म हो गई, हमारी जमीनों पर खेती नहीं हो पा रही और जो जमीनें लीज पर ली थीं कम्पनी नें उसका हर साल एक समझौता करना था । जो कई सालों से नहीं हुआ है। हमारे रिहायशी भवनों में भी दरारें है न पशुओं को चारा है न घर में अनाज। रोजगार से भी युवाओं को भी बंचित कर दिया गया है।
भक्तियाना क्षेत्र की वार्ड सदस्य सुश्री विजयलक्ष्मी रतूड़ी ने कहा कि बांध से मिलने वाला 12 प्रतिशत व 1 प्रतिशत बिजली का पैसा जो क्षेत्र के लिये खर्च किया जाना था उसका कुछ पता ही नहीं है।
श्रीनगर बांध आपदा संधर्ष समिति के अध्यक्ष जी श्री चन्द्र मोहन भट्ट ने चिन्ता व्यक्त की कि नदी में अविरल प्रवाह न होने के कारण बांध से पावर हाउस तक नदी का पारिस्थितिकि तन्त्र खत्म हो गया है। मछलियों का जीवनचक्र प्रभावित हुइा है। 6 सरकारी ट्यूबवैल निर्मित होने से पहले ही बेकार हो गये।
  • अन्य विभिन्न वक्ताओं ने भी बांध से उत्पन्न विभिन्न समस्याओं पर चिन्ता व्यक्त की। सेमिनार के अंत में सर्वसम्मति से केन्द्रिय मंत्री सुश्री उमा भारती जी, श्री अनिल माधव दवे व मुख्य मंत्री श्री हरीश रावत जी को पत्र के माध्यम से अपनी चिन्ताओं से अवगत करवाया व मांग की कि ये सभी मुद्दे केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अध्ययन किये जायें। पर्यावरण मंत्रालय अपनी जिम्मेदारी निभाये चूंकि पर्यावरण एवं वन दोनों की ही स्वीकृति उसने ही दी है।
  • आगे की रणनीति के तौर पर बांध से जुड़ी सभी समस्याओं पर एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट के लिये एक ‘‘श्रीनगर बांध पर राष्ट्रीय जनआयोग‘‘ की घोषणा की गई जिसके नामों घोषणा भी जल्दी की जायेगी। यह जनआयोंग अगले दो महीनों में इस रिर्पोट को सरकार को भेजेेगा तथा राज्य सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही पर निगाह भी रखेगा।
हरीश रतूड़ी ,  इंदु उप्रेती,  सुरेंदर सिंह नेगी

Tuesday 14 February 2017

14- 2-2017

Releasing  BANDH KATHA 27 (Tunneling the Himalayas)

We, Matu Jansangathan is releasing a 3 minutes video named BANDH KATHA 27 (Tunneling the Himalayas) on the impacts of Run of the River project. This movie can be seen to understood how Run of the River Projects have misunderstood by people and how they are impacting environment and life of people.
Please spread the word.


https://www.youtube.com/watch?v=6eBg9jzjZLo

Safina Khan

Thursday 9 February 2017

Press Note 9-2-2017 पर्यावरण एवं विस्थापन राजनैतिक पार्टियों के मुद्दो से गायब है!

English version after the Hindi Press Note
पै्रस विज्ञप्ति                                                                     9 फरवरी, 2017

पर्यावरण एवं विस्थापन राजनैतिक पार्टियों के  मुद्दो से गायब है!

उत्तराखंड के लोग अपना पांचवा राज्य विधानसभा चुनने जा रहे है। हमने पाया कि बांध व अन्य बड़ी परियोजनायें, खदान, शराब, बेरोजगारी, पर्यटन, इत्यादि के कारण हो रहा विस्थापन का वास्तविक मुद्दे है। ये सब राजनैतिक पार्टियों के एजेंडा में शामिल नहीं है। जून 2013 की त्रासदी से प्रभावित लोग अभी भी ठीक तरीके से ना बसाये गये है ना ही सभी को क्षतिपूर्ति मिली है। इन सब  मुद्दों के अलावा, वे उन मुद्दों को उठा रहे है जो की अस्तित्व में ही नहीं है और न ही उत्तराखंड के लोगों एवं हरे-भरे वातावरण संबघी रोजाना की समस्याओं को हल कर सकेंगें। 
उत्तराखंड एक हरा-भरा, नदियों खासतौर से राष्ट्रीय नदी गंगा और पांचधाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, और हेमकुंड साहिब) वाला हिमालयी राज्य है। कोई भी राजनैतिक पार्टी, यहाँ के स्रोतों से बड़े लोगों को छोड़कर, स्थानीय लोगो का भला करने वाले, विकास के रोडमैप के साथ नहीं उतरी है। 
यह स्थान जहाँ से राष्ट्रीय नदी गंगा निकलती है, इस नष्ट एवं गायब हो रही गंगा के संरक्षण का कोई एजेंडा  उन राजनैतिक पार्टियों के पास भी नही है जो “नमामि गंगा” का राष्ट्रीय स्तर पर मंत्रोच्चारण करते रहते है।
हमारे पास जीवंत उदहारण है जहाँ समस्याएं बिना समाधान के जारी है। जैसे की टिहरी बाँध, जो इसके जलाशय के आसपास रहने वाले लोगों के लिए कभी न ख़त्म होने समस्या बन गया है। 40 से ज्यादा गंाव, घरों में दरार, भूमि धंसान, इत्यादि की समस्या का सामना कर रहे हैं। इन समस्याओं के कारण रोज के रोज एक नये गांव को पुनर्वास की जरुरत है। सभी पुल जो भागीरथी नदी के दोनों किनारों को जोड़ेंगे अभी तक पुरे नहीं हुए है। अभी तक सभी विस्थापितों को उनके पुनर्वास स्थल पर जमीन अधिकार एवं नागरिक सुविधाएँ नहीं मिली है। पिछले सभी चुनावों में ये मुद्दा स्थानीय स्तर पर उठाया जाता रहा है लेकिन चुनाव जीतने के बाद सरकारी योजनाओ में नही दिखाई देता है। यद्दपि बड़ी पार्टियाँ केंद्र एवं राज्य स्तर पर काबिज थी, किन्तु उन्होने नीति स्तर पर कुछ नहीं किया। 
परियोजना दर परियोजना विस्थापन बढ़ रहा है और जमीन की उपलब्धता कम होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र, रुद्रपुर, देहरादून, हरिद्वार एवं हल्दानी में विकसित किये जा रहे है। लेकिन 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार देने की नीति अभी भी अमल में नहीं लायी गयी है। स्थानीय लोगों को दिए गए रोजगार का स्तर बहुत ही कम है। पुरे राज्य में लोग हमेशा, परियोजना वालों एवं अलग-अलग कंपनियों से रोजगार के लिए लड़ते है। जिनमे से बाँध के द्वारा प्रभावित हुए लोगों की हालत दयनीय है। अधिकतर घटनाओं में देखा गया है की लोग जब भी अपना हक पाने लिये आवाजें उठाते है तो उन्हें झूठे मुकदमो में फंसा दिया जाता है और कभी-कभी जेलों में डाल दिया जाता है। 
पर्यावरण संरक्षण नियमों का पालन न होने के कारण, पर्यावरण को भी क्षति पहुँच रही है जैसे की औद्योगिक क्षेत्र अपने क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन कर रही है। बाँध कम्पनियाँ गन्दगी और मलबे को सीधे ही नदियों में डाल रही है। अवैध रेत खनन, नदी को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। चेक और बैलेंस की स्थिति बहुत ही बुरी है और जब भी जन संगठन इन मुद्दों को उठाते है तो सरकार की तरफ से शायद ही कोई ध्यान दिया जाता है। यह राज्य की विडम्बना ही है कि पर्यावरण मुकदमों में सरकार हमेशा परियोजना वालों और कंपनियों का ही पक्ष लेती है।
बड़ी राजनैतिक पार्टियाँ अपने नैतिक मूल्यों को खो चुकी है। राजनेता जो एक पार्टी को कई सालों से समर्थन देते आये है और दूसरी पार्टी का भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर आलोचना करते आये है, अचानक से उसी पार्टी में चले जाते है। वे अचानक से नैतिक एवं सही कैसे हो सकते है? यह स्पष्ट बताता है की सत्ता हासिल करना उनका मुख्य लक्ष्य है, बजाय उत्तराखंड के लोगों की सेवा करना।
इन स्थितियों में सही प्रत्याशी को वोट करने का चुनाव करना बहुत ही कठिन हो जाता है। हम उत्तराखंड के लोगो से यह निवेदन करते है की उन्हें निम्न आधारों पर प्रत्याशियों को वोट करना चाहिए.....
प्रत्याशी ईमानदार होना चाहिए और उस पर कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं होना चाहिए।
प्रत्याशी का ध्यान राज्य के विविध पेड़-पौधे, जंगल-जानवर, और नदी के संरक्षण तथा विस्थापन की समस्या एवं पूर्ण पुनर्वास पर भी होना चाहिए।
प्रत्याशी को यह समझ हो की राज्य की प्राकृतिक संसाधनों का लोगों की भलाई में उपयोग हो नाकि बड़ी कंपनियों का लाभ बढ़ाने में हो।
प्रत्याशी के पुराना इतिहास को भी नजरिये में रखना होगा। 


विमल भाई       सुदर्शन साह
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PRESS NOTE

Environment and displacement issues are not political parties issues

People of Uttarakhand are going to elect their 5th State Assembly. We found the real issue of displacement of people due to HEPs, big infrastructure; mining, liquor, unemployment, people based tourism etc. which are not on the agenda of political parties. People affected by 2013 disaster not yet properly compensated and recovered from their losses. Instead of these, they are pampering issues which don’t exist and do not solve day to day problems of Uttarkhandi’s  life and green environment of the state. 

Uttarakhand state of Himalaya, green cover, rivers specially National River Ganga and Paanchdham (Badrinath, Kedarnath, Gangotri, Yamunotri and Hemkundshaheb). No big political party had came out with making a roadmap for the development of people through its resources benefitted to the people not to the big players. It’s also where National River Ganga originate but protection of dying and disappearing Ganga and its tributaries is not on the agenda of political party chanting Namami Ganga at national level.

We have living examples where problems are continue without solution. Like Tehri Dam has become a never ending problem for the people living around the reservoir. More than 40 Villages are facing problem of cracks in houses, sinking etc. Day by day new villages need rehabilitation due to these problems. All the Bridges which connect both side of Bhagirathi river not yet completed. Even till now all the oustees didn’t get Land rights and basic civic amenities at their rehabilitation sites. In every elections these issues addressed at very local level but nothing comes out after winning elections in policies of Government. Although big political parties were in power at both centre and state level, in spite of this they haven’t done anything at policy level.

New displacement in the state is increasing, project by project and slowly availability of land is reducing. Industrial areas are developed in Rudrapur, Dehradun, Haridwar and Haldwani. But Policy of seventy percent employment to local people not yet implemented. The level of employment given to locals is very low. In whole State people always fighting with the Project Proponents and different companies for employment. The condition of Dam effected people is bad. In most of the cases when they raise voice for their rights are facing false cases and sometimes put in jails.

The environmental condition is also depleting as these industrial areas are producing more carbon in their areas, not following prescribe environmental protection rules. Dam companies are throwing muck and debris directly into the river. Illegal mining destroying river beds. Check and balance situation is very minimal and when people’s Organisation bring these issues in front of Government it hardly pays any attention. It’s irony of State which always takes side of Project Proponents and Companies in environmental cases.

Big political parties have lost their ethical values, political leaders who have served in one party for years have switched to parties which once criticized them for corruption charges, now suddenly after changing their party how they became morally correct. This shows that acquiring Power is their main aim, not serving Uttrakhand’s people.

In this situation it’s very difficult to vote a appropriate candidate. We appeal to the masses that they must cast their votes on the basis of...

·        Candidate must be honest and he shouldn’t have corruption or any other charges.
·        Candidate should also focus upon issue, displacement environment conservation as river protection and flora fauna of State.
·        Candidate must recognise that natural wealth of state should be gently use for the benefit of the locals not for the big companies.
·        Candidate's past record must be consider.

Vimalbhai    Sudershan Sah
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