Friday 22 June 2012

प्रैस नोटः- 22 जून,2012

          डा0 भरत झुनझुनवाला पर हमले की निंदा

आज सुबह वरिष्ठ पत्रकार डा0 भरत झुनझुनवाला के लक्षमोली गांव {टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड} स्थित घर पर ‘‘अलकनंदा जलविद्युत परियोजना, श्रीनगर’’ कंपनी के कर्मचारियों  द्वारा हमला किया गया। सुबह के समय वे और उनकी पत्नि श्रीमति मधु झुनझुनवाला घर पर थे। बांध कंपनी के लगभग 40 लोगो ने अलकनंदागंगा किनारे उनके आवास पर हमला किया। गंदे व अभ्रद शब्दों का प्रयोग किया।

जब शोर सुनकर श्रीमति मधु झुनझुनवाला ने घर के दरवाजे़ बंद किये तो हमलावरों ने दरवाजें   पर हमला किया जिससे दरवाजें के शीशे व चटखनी टूट गई। डा0 भरत झुनझुनवाला ने अपनी बात समझानेें की कोशिश की तो उन्होने धमकी दी की यदि दो दिन मे  डा0 भरत झुनझुनवाला ने बांधों का विरोध बंद नही किया तो उन्हे घर सहित जला दिया जायेगा।

हम इस कृत्य की पूरी तरह से निंदा करते है। यह कृत्य बताता है कि बांध कंपनी ‘‘अलकनंदा जलविद्युत परियोजना, श्रीनगर’’ कितनी मजबूत है। प्रशासन को इस बात का पूरी तरह से अनुमान था। जो पुलिस की गाड़ी उनके घर के पास उस समय मौजूद थी वो हमले के समय वहंा से चली गई थी। उनके घर के आसपास काफी समय से पुलिस व सरकारी जासूस घूमा करते थे। उन पर हमला हो सकता है इसका अनुमान तब ही से था जब बांध कंपनी द्वारा श्रीनगर में प्रायोजित धरने किये गये थे और पिछले दिनों स्वामी सानंद पूर्व में {डा0 जी0 डी0 अग्रवाल} को जबरदस्ती पुलिस गिरफ्तार करके ले गई थी। तब भी सरकार ने डा0 भरत झुनझुनवाला की कोई सुरक्षा की कोशिश नही की। यह उत्तराखंड में लोकतंत्र पर बांध कंपनियों का हमला है।

ज्ञातव्य है कि डा0 भरत झुनझुनवाला पिछले कई वर्षो से उत्तराखंड में रह रहे है। श्रीनगर में निमार्णाधीन अलकनंदा जलविद्युत परियोजना के दीर्घकालीन पर्यावरणीय असरों को सामने ला रहे है। इस संदर्भ में विभिन्न अदालतों में कई मुकद्दमंे भी चल रहे है। जिस कारण से बांध कंपनी की गल्तियंा सामने आयी। कई बार बांध बंद हुआ किन्तु फिर भी बांध कंपनी के दवाब मंे सरकार ने कड़े कदम नही उठाये। बांध की जानकारी के लिये देखे



हम सब फिर दोहराते है कि इस तरह के हमलों से गंगा घाटी में बांधो के कुप्रभावों को और सच्चाई को सामने लाने वालो को दबाया नही जा सकता। उत्तराखंड की नई सरकार के सामने यह नई चुनौति है कि वो टिहरी, कोटेश्वर, मनेरी-भाली एक व दो, विष्णुप्रयाग व अन्य  बांधों की समस्याओं का समाधान किये बिना नये बांधों को आगे धकेले और बांध से विकास रोजगार के झूठे सपने दिखाये या फिर उत्तराखंड के सही विकास की योजना बनाये।
हम सब  डा0 भरत झुनझुनवाला का सर्मथन करते है। अब डा0 भरत झुनझुनवाला की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।

विमलभाई, पूरनसिंह राणा
माटू जनसंगठन, हरिद्वार 

मदन मिश्रा, महिपत सिंह कठैत
भूस्वामी संघर्ष समिति, देवाल, चमोली

प्रहलाद सिंह, जयसिंह
टौसघाटी जाग्रत समिति, मोरी, उत्तराकाशी

के0 रामनारायण
गोरी गंगा संघर्ष मोर्चा, मुनस्यारी, पिथौरागढ़

मल्लिका विर्दी व ई0 थियोफिलिस
हिमाल प्रकृति, पिथौरागढ़

हिमांशु ठक्कर
नदी, बांध व लोगो को दक्षिण एशिया समूह, दिल्ली

Sunday 17 June 2012

Press Note: People gethered against Land Acquisition in Pinderganga Valley 17-06-12



भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन
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भू-अघ्यापति अधिकारी का घेराव
भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह का पहला चरण समाप्त


22 मई से भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गांव-गांव में सत्याग्रह जारी है। शांतिपूर्ण सत्याग्रह के तहत 14 जून 2012 को थराली तहसील पर भू-अघ्यापति अधिकारी ‘‘गांव से कूच’’ किया गया। अगला चरण जल्द ही घोषित किया जायेगा।

भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह के अंतर्गत 14 तारिख को गंाव-गांव से पंहुचे सैकड़ो की संख्या में लोगो ने ‘‘गांव से कूच‘‘ के तहत तहसील थराली का घेराव किया जहंा भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के लिये भू-अघ्यापति अधिकारी आये थे। डटे रहेंगे नही हटेगें - नही हटेगें - नही हटेगें, बांध कंपनी वापिस जाओं, भू-अघ्यापति अधिकारी वापिस जाओं, केन्द्र सरकार होश में आओं, राज्य सरकार होश में आओं नारों के साथ पिंडरगंगा घाटी के गांवो से मजदूर, किसान, महिलायें, पुजारी, व्यापारी लोग थराली पुल से तहसील पर पहुंचे। उनके बैनर पर लिखा था ‘‘पिंडर को अविरल बहने दो-हमे सुरक्षित रहने दो‘‘। पिंडरगंगा घाटी में भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह जारी है। जिसके आठवें दिन इस ‘‘गांव से कूच‘‘ का आयोजन किया गया था।
तहसील में पुलिस की भी काफी उपस्थिति थी। जोकि सरकारी जोर जबरदस्ती व उनके गलत कामों का सबूत थी। तहसील प्रांगण में ही दोपहर तक सभी चली। महीपत सिंह कठैत ने कहा कि हमारी धरती को छीनने की कोशिशों को नाकाम किया जायेगा। सरकार विकास के नाम पर हमारी घाटी को बर्बाद नही कर सकती है।
विभिन्न वक्ताओं ने बांध को नकारते हुये गंगा की एकमात्र बिना किसी रुकावट के बह रही पिंडरगंगा को बहते रहने देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। डा0 जगमोहन रावत, ममता शाह, मुन्नी मिश्रा, नर्मदा देवी, दिनेश मिश्रा, शोभन सिंह खत्री, के.डी. मिश्रा, उमादेवी, बलवंत राम, मदन मिश्रा ने गलत विकास  लोगो पर थोपे जाने का विरोध किया। के. डी. जोशी ने विभिन्न प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन पढ़ा और उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव के नाम लिखे गये इस ज्ञापन को मौके पर मौजूद भू-अघ्यापति अधिकारी के प्रतिनिधी बाहर बुलाकर दिया।

ज्ञापन में मुख्य रुप से कहा गया कि            ‘‘भूमि अधिग्रहण कानून 1894 की धारा 17 के अन्तर्गत हमारी भूमि का अधिग्रहण होना गैर वाजिब है। देवसारी जलविद्युत परियोजना {252मेवा} को लोक हित का प्रयोजन बताना गैर कानूनी है। वरन् इस परियोजना से लोक अहित होगा। पतित पावनी पिंडर गंगा जिसकी माता के रूप में पूजा होती है उसे बहती नदी के स्थान पर बहाव रहित तालाबों एवं सुरंगों में बदला जा रहा है। गंगा के पवित्र जल में आक्सीजन की मात्रा कम हो जायेगी। तालाब में बदल जाने के बाद गंगा पवित्र और पूजनीय नहीं रह जायेगी। यह हमारी आस्था पर हमला है।

परियोजना से स्थानीय समाज पर तमाम विपरीत आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेंगे जैसे तापमान में कमी से रोग बढ़ना, भूमि के धसान से मकानों का क्षति ग्रस्त होना, दलदल में मवेशियों का फंसना, जंगल की डूब भूमि से मिलने वाले ईंधन, चरान, चुगान आदि से वंचित होना, महिलाओं को खेती और पशुपालन से वंचित होकर असहाय जीवन जीने के लिये मजबूर होना, बालू एवं मछली व्यवसायियों को बेरोजगार होना इत्यादि।
देवसारी जलविद्युत परियोजना {252मेवा}के कागजातों जैसे पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट व प्रंबध योजना में भारी कमियां है। अभी परियोजना को कोई पर्यावरण या अन्य स्वीकृतियंा नही मिली है। परियोजनाओं के लिये धारा 17 के अन्र्तगत जाॅंच करने एवं जनता को अपना पक्ष रखने से वंचित किया जाना गैरवाजिब और गैरकानूनी है क्योंकि धारा 17 का उपयोग केवल युद्ध जैसी राष्ट्रीय आपदाओं के लिये किया जा सकता है। सामान्य परियोजनाओं के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा इस धारा का उपयोग करना अवैध ठहराया जा चुका है।

वर्तमान भू-अधिग्रहण की कार्यवाही दुराग्रहपूर्ण है और अधिकारियों के द्वारा बिना विवेक को प्रयोग किये की गयी है अतः इसे निरस्त किया जाये।’’


सुभाष पुरोहित सभा के अंत में धन्यवाद ज्ञापन देते हुये कहा की लड़ाई लम्बी है। सरकार समझ ले की संघर्ष गांव-गांव मे चल रहा है।

पिंडर घाटी के लोग हर स्तर पर
बांध का विरोध करेंगे। इसी क्रम में भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह है।
भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन की ओर से


cyoar vkxjh                ममता शाह                       सुरेन्द्र रावत                             विमलभाई

आवश्यक पूर्व जानकारीः-
{पिंडरगंगा घाटी, जिला चमोली, उत्तराख्ंाड में प्रस्तावित देवसारी जलविद्युत परियोजना (252मेवा) विरोधी आंदोलन जारी है। राष्ट्रीय नदी गंगा की एकमात्र स्वतंत्र बहती सहायिका पिडंरगंगा पर बांधो की विभिषिका लादने का विरोध जारी है। ज्ञातव्य है कि इस परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई दो बार 13 अक्तूबर, 2009 फिर 22 जुलाई 2010 में रोकी गई। जिसके बाद 20 जनवरी 2011 को बैरिकेट लगाकर पर्यावरणीय जनसुनवाई का नाटक किया गया। 20 जनवरी 2011 को आयोजित जनसुनवाई में सभी प्रभावितों को बोलने का मौका ही नही दिया गया। जिसमें प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका पूरी तरह संदेहास्पद रही है। अपनी आवाज़ को सामने लाने के लिये 3 अप्रैल 2011 में घाटी के हजारों लोगो ने पिंडर के किनारे संगम मैदान में लोक जनसुनवाई में शामिल होकर बांध विरोध में अपनी एकजुटता दिखाई। जिसे यू ट्यूब पर Bandh Katha  टाईप करके देखा जा सकता है। विरोध प्रदर्शन जारी है}

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Bhooswami Sangharsh Samiti and Matu JanSangathan
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Land Acquisition officer rounded by the people
Satyagraha against Land Acquisition in the Pinder Ganga Valley : end of first phase

{ From 22nd may there has been satyagraha against the land acquisition in every village. Under peaceful satyagraha, the "Gaon se Kooch" (Rally from the Village) started on 14th June 2012 from Tharali Tehsil. The next phase will be announced shortly }

On 14th June, nearly thousand of villagers’ gheraoed the Tharali tehsil under the "Gaon se Kooch" (Rally from the Village) for the satyagrah against the land acquisition where the land question officer had arrived for land acquisition process. Dante rahenge, nai hatenge, nahi hatenge (We will be vigilant, we will not move!), Dam company go away!, Land acquisition officer go away!, Central Govt, wake up!, Central govt, wake up – Labour, farmers, women, Pujari, Businessmen and fisherrmen all from Pinder Ganga Valley have arrived with slogans at Tharali tehsil. The banner they carried the message of – “Pinder ko aviral behne do- hume surakshit rehne do” (Let Pinder flow undammed, let us remain safe!). A satyagrah is going on in the Pinder Ganga valley against land acquisition. On this 8th day the Gaon se Kooch (Rally from the Village) has been organised

There was considerable presence of police at the tehsil, which is indicative of the state force and wrong doings. The meet took place in the tehsil premises till afternoon. Mahipat singh kaithat said that the efforts to steal our land will be made unsuccessful. The government cannot destroy our valley in the name of development.
All the speakers spoke against the dam and were of the opinion that the Pinder ganga flow unhindered without any obstruction. Dr. Jagmohan Rawat, Mamta Shah, Munni Mishra, Narmada devi, Dinesh Mishra, Umadevi, Balwant Ram, Madam Mishra opposed wrond development beinh imposed on people. K.D Joshi read the resolution signed by the representatives which was written for the Chief Secretary Uttarakhand government and was given to the present land acquisition officer.
The resolution stated that – Under the Land Acquisition Act, 1894 section 17, acquisition of our land is unauthorized. Claiming the Devsari Hydro electric project (252MW) to be in interest of people is unlawful. In fact people will not benefit from this project. Pinder ganga is revered as a mother and worshipped and this place is being changed to ponds and. The oxygen level in ganga may go down. After getting converted to a pond, the ganga will not remain pure and worship-worthy. It is an attack on our faith.
This project will also have a negative impact on the economic and social lives of the people who live in the region. The impact on the environment is also immense. For example, changes in climate leading to increase in disease, landslides cause damage to housing, cattle getting caught in swampy and marshy land, loss of forest cover and produce due to submersion, loss of sand and fish leading to unemployment. The role of women also changes as they will no longer be involved in agriculture and cattle-rearing. This leaves them helpless and desperate.
The documents of Devsari Hydro electric project (252MW) like the Environmental Impact Assessment Report and the Environmental Management Plan has many shortcomings. The project hasn’t received any clearance as of yet. As per section 17, it unlawful to keep away inspection and the people to put forth their side because section 17 can only be used in war like situations of national emergency. The Honourable Supreme Court has ruled against using section 17 for such regular projects.
The present land acquisition process is faulty and use by the officials without aplying mind. It should therefore be stalled."

Subhash Purohit delivered the thank you speech in the end and said that the struggle is a long one. the government should realise that the struggle is taking place in every village

The people of the Pinder Valley oppose Dam at every level. It is in this regard that the Satyagraha is being launched against the land acquisition.
On behalf of
Bhooswami Sangharsh Samiti and Matu Jan Sangathan,


Balwant Agri ,         Mamta Shah,         Surendra Rawat,          Vimal Bhai

Background Note:-

Movement is going on against the proposed Devsari Hydro-electric project in the Pinder-Ganga Valley, district Chamoli, Uttarakhand. The Pinderganga is the only free flowing tributary of the National river Ganga. The movement is against the building of huge dams on this tributary. The Public Hearing for Environment was stopped twice on 13th October 2009 and 22nd July 2010. On 20th January 2011, the hearing was a farce with barricades being used against the people. Affected people were not given chance to speak. The role of the administration and Pollution Control Board was completely questionable. In order to bring their voice to the fore, thousands of people in the valley gathered on the banks of the river at Sangam on the 3rd of April, 2011, for a people’s public hearing. They spoke up against the dam and pledged solidarity to the movement. The clliping of hearing can be viewed on youtube as ‘bandh katha’.


Monday 11 June 2012

प्रैस नोटः- टिहरी बांध विस्थापितों का पुनर्वास क्यों नही ? 11 जून, 2012




पुनर्वास की मूलभूत सुविधाये और भूमिधर अधिकार दो
30 वर्षाे से लंबित है टिहरी बांध विस्थापितों के मामले

टिहरी बांध विस्थापितों के मामले 30 वर्षाे से लंबित है। भूमिधर अधिकार ही नही मिल पाया है। बिजली, पानी, सिंचाई, यातायात, स्वास्थय, बैंेेक, डाकघर, राशन की दुकान, पचांयत घर, मंदिर, पितृकुटटी, सड़क, गुल, नालियंा आदि और जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु दिवार व तार बाढ़ तक भी व्यवस्थित नही है। कही पर बरसों से यह सुविधायें लोगो को उपलब्ध नही हो पाई है। यदि कहीं पर किसी तरह से कुछ व्यवस्था बनी भी है तो स्थिति खराब है। स्कूल भी अब बना वो भी मात्र 10वीं तक है। प्राथमिक स्कूलों की इमारतें बनी है पर अघ्यापक नही है। स्वाथ्य सेवायें तो है ही नही। लोगों को मात्र जगंल में छोड़ दिया गया है। अपने बूते पर विस्थापितों ने मकान बनाये है। यातायात की सुविधाये है ही नही। रास्ते सही नही है तो निकासी नालियां भी नही है।

ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार ने 2010 में सिंचाई विभाग के तत्वाधान में जो दिनकर समिति बनाई उसकी रिर्पोट को सार्वजनिक नही किया था किन्तु सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एन. डी. जयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार के मुकद्दमें में इस रिपोर्ट के आधार पर पैसा मांगा। चूंकि अदालत में यह सिद्ध हो गया था कि पुनर्वास नही हो पाया है।  राज्य सरकार ने तब यह कहा की टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन {टी. एच. डी. सी.} पैसा नही दे रही इसलिये पुनर्वास के काम नही हो पा रहे है। कोर्ट ने टी. एच. डी. सी. को आदेश दिया की मांगी गयी 102.99 करोड़ की राशि देने का आदेश दिया।

कई महिनो बाद सरकार ने इस पैसे का क्या किया नही मालूम। जमीन पर स्थितियंा नही बदली। इसलिये आज माटू जनसंगठन की ओर से हरिद्वार क्षेत्र में बसाये गये के ग्रामीण विस्थापितों का प्रतिनिधी मंडल शिवालिक नगर स्थित पुर्नवास कार्यालय पर प्रर्दशन किया और पुनर्वास निदेशालय को ज्ञापन दिया।
विमलभाई ने कहा की 30 वर्षो बाद भी भूमिधर अधिकार क्यों नही दिये गये। पुनवास कार्य में हो रहे खर्च पर अब लोक निगरानी होगी। आपने स्वाथ्यय सेवाओं तक नही दी है। इन सब का जवाब अब देना होगा। आप हमारे ज्ञापन पर अपनी आख्या लगाकर प्रशासन का भेजे।
पूरनसिंह राणा ने कहा की यह जानने का हमे अधिकार है कि सरकार पैसे का क्या कर रही है। विस्थापित बेराजगार है और काम बाहर के लोग करे? विस्थापित क्षेत्र के ग्राम प्रधान पद्मसिंह गुंसाई, पंचायत सदस्य रणबीर सिंह राणा के साथ बलवंत पंवार, उत्तमसिंह, आजाद, तेगसिंह, प्रमोद आदि ने भी प्रभावित क्षेत्र की समस्याओं को कहा।

ज्ञापन में मांग की गई कीः-

भूमिधर अधिकार तुरंत दिये जाये।
शिक्षा, स्वाथ्यय, यातायात, सिंचाई व पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधायें तुरंत पूरी की जाये।
सुविधाओं के लिये 103 करोड़ की राशि का उपयोग किया जायेगा ही। इन सब कार्यों के लिये विस्थापितों की ही समितियंा बनाकर काम दिया जाये ताकि कार्य की गुणवत्ता बने और सही निगरानी भी हो सके।

उपस्थित अधिकारी उप-अधिशासी अभियंता श्री राजेश नौटियाल ने कहा की हरिद्वार पुनर्वास क्षेत्र के लिये 4 करोड़ रुपये की मंजूरी हुई है। पैसा आने पर ही काम शुरु होगा।
इन सबके लिये बार बार पत्र लिखें गये है। किन्तु या तो राजनैतिक इच्छाशक्ति का आभाव है या विस्थापितों को दुधारु गाय माना जाता है कि उनकी समस्याओं का यदि निबटारा हो गया तो फिर उनके नाम पर पैसा कैसे आयेगा? एक समस्या यह भी दिखाई देती है कि नीचे के अधिकारी समस्याओं को समस्या नही मानते। और उपर शासन तक भेजने की कोशिश भी नही करते है। जैसे की स्वास्थ्य सेवाओं का ना होना।
नये बांधो का हल्ला मचाने वाली सरकार और संस्थाओं को इस पर विचार करना चाहिये। आगे दौड़ पीछे छोड़ नही चलेगा।

   विमलभाई            पूरणसिंह राणा               बलवंत सिंह पंवार            जगदीश रावत

Wednesday 6 June 2012

प्रैस विज्ञप्ति / Press Note 6.06.2012

(English translation given below)              
      भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन
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  भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह


पिंडर घाटी , जिला चमोली, उत्तराख्ंाड  में प्रस्तावित देवसारी जलविद्युत परियोजना विरोधी आंदोलन जारी है। राष्ट्रीय नदी गंगा की एकमात्र स्वतंत्र बहती सहायिका पिडंरगंगा पर बांधो की विभिषिका लादने का विरोध जारी है। बांध के विरोध के कारण गढवाल विश्विद्यालय, उत्तराख्ंाड  के अध्यापकों ने झूठ बोलकर सर्वे किये। हमारे पास इसके सबूत है। ज्ञातव्य है कि इस परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई दो बार 13 अक्तूबर, 2009 फिर 22 जुलाई 2010 में रोकी गई। जिसके बाद 20 जनवरी 2011 को बैरिकेट लगाकर पर्यावरणीय जनसुनवाई का नाटक किया गया। 20 जनवरी 2011 को आयोजित जनसुनवाई में सभी प्रभावितों को बोलने का मौका ही नही दिया गया। जिसमें प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका पूरी तरह संदेहास्पद रही है। अपनी आवाज़ को सामने लाने के लिये 3 अप्रैल 2011 में घाटी के हजारों लोगो ने पिंडर के किनारे संगम मैदान में लोक जनसुनवाई में शामिल होकर बांध विरोध में अपनी एकजुटता दिखाई। जिसे यू ट्यूब पर  bandh katha टाईप करके देखा जा सकता है।

जब लोगो ने 2011 में सुरंग टैस्टिंग का काम रोका तो पुलिस के बल पर काम कराने की कोशिश की गई। यह लगातार जारी है। बांध कंपनी व सरकार बंाध काम को किसी भी तरह आगे धकेलने और यह सिद्ध करने के लिये कि बांध बनेगा ही। अब भूमि अधिग्रहण का सहारा ले रही है। जिसका पूरी घाटी में जबरदस्त विरोध है। बांध कंपनी की इस चाल का जवाब दिया जायेगा। 22 मई को बांध के प्रस्तावित डूब क्षेत्र देवाल में रैली और पुतला दहन इसी का एक प्रांरभिक कार्यक्रम था। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गांव-गांव में सत्याग्रह की शुरुआत होगी।

हमारा शांतिपूर्ण सत्याग्रह अगामी 13 जून 2012 को नये चरण में दाखिल होगा। पिंडरगंगा घाटी में प्रभावित गांवो मंे सांकेतिक उपवास रखा जायेगा। इसी शाम को भूमि-अधिग्रहण नोटिस का दहन होगा। 14 जून को तहसील पर ‘‘गांव से कूच’’ किया जायेगा। एक शांत सुरम्य पिंडरगंगा घाटी को आंदोलन में धकेलने की जिम्मेदारी सरकार की है। इसके बाद अगला चरण घोषित किया जायेगा।

अभी परियोजना को कोई पर्यावरण और वन स्वीकृतियंा नही मिली है। परियोजना के लिये धारा 17 के अन्र्तगत जाॅंच करने एवं जनता को अपना पक्ष रखने से वंचित किया जाना गैरवाजिब और गैरकानूनी है क्योंकि धारा 17 का उपयोग केवल युद्ध जैसी राष्ट्रीय आपदाओं के लिये किया जा सकता है। सामान्य परियोजनाओं के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा इस धारा का उपयोग करना अवैध ठहराया जा चुका है। स्पष्ट है कि वर्तमान भू-अधिग्रहण की कार्यवाही दुराग्रहपूर्ण है।


जबकि इस परियोजना से स्थानीय समाज पर तमाम विपरीत आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेंगे जैसे तापमान में कमी से रोग बढ़ना, भूमि के धसान से मकानों का क्षति ग्रस्त होना, दलदल में मवेशियों का फंसना, जंगल की डूब भूमि से मिलने वाले ईंधन, चरान, चुगान आदि से वंचित होना, महिलाओं को खेती और पशुपालन से वंचित होकर असहाय जीवन जीने के लिये मजबूर होना, बालू एवं मछली व्यवसायियों को बेरोजगार होना इत्यादि। इन दुष्प्रभावों की जानकारी संबन्धित अधिकारियों को पहले ही लिखित एवं मौखिक रूप में दी जा चुकी है। देवसारी जलविद्युत परियोजना {252 मेवा} के कागजात पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट एवं पर्यावरण प्रंबध योजना आज तक समझने वाली भाषा हमें हिन्दी में नही मिली। हम उसका भी जवाब दे सकते है। पर लोगो को हिन्दी में जानकारी दी तो जाये। हमने यह सारी बातें भी संबधित विभागों को निवेदन के रुप में भेजी है। किन्तु उसे दरकिनार करके यह परियोजना हम पर लादी जा रही है। पिंडर घाटी के लोग हर स्तर पर इसका विरोध करेंगे। इसी क्रम में भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ सत्याग्रह है।

भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन की ओर से

मदन मिश्रा,               सुभाष पुरोहित,             वीर सिंह,                  विमलभाई



Bhooswami Sangharsh Samiti and Matu Jan Sangathan 
 
Press note                                                                                            6th June 2012

Satyagraha 
against Land Acquisition in the Pinder Ganga Valley

Movement is going on against the proposed Devsari Hydro-electric project in the Pinder-Ganga Valley, district Chamoli, Uttarakhand. The Pinderganga is the only free flowing tributary of the National river Ganga. The movement is against the building of huge dams on this tributary. Due to protest, faculty of the Garhwal University were not able to tell the truth to the people while they were doing surveys for the dam. There is proof of this. The Public Hearing for Environment was stopped twice on 13th October 2009 and 22nd July 2010. On 20th January 2011, the hearing was a farce with barricades being used against the people. Affected people were not given chance to speak. The role of the administration and Pollution Control Board was completely questionable. In order to bring their voice to the fore, thousands of people in the valley gathered on the banks of the river at Sangam on the 3rd of April, 2011, for a people’s public hearing. They spoke up against the dam and pledged solidarity to the movement. The clliping of hearing can be viewed on youtube as ‘bandh katha’.

In 2011, when people tried to stop the tunnel testing work, police force was used to get the work done. This continues. It is as if the government and the private company building the dam are determined to take this ahead and prove that the dam will be built. They are now using land acquisition to take land from the people for the project. There is massive opposition against this in the whole valley. The people are revolting.

The first of this was on 22nd May in Debal, which is in the proposed submersion area. A rally was held where effigies were also burnt. The Satyagraha against land acquisition has begun in every village.

The next phase of our peaceful satyagraha starts on 13th June 2012. People in the affected villages will participate in a fast. The same evening, the land acquisition notice will then be burnt. On the 14th of June, the movement will come to the tehsil through the ‘Gaon se Kooch’ (Rally from the village). The next phase will be announced after this.

A picturesque peaceful valley has become a battleground for the movement. The government is responsible for this.

The project has not received environmental and forest clearances. This is a requirement of every project. It is only in special cases, under section 17, that land can be acquired from the public with adequate notice and compensation. This section is used only in case of war or other national crisis. In ordinary circumstances, the Honb'le Supreme Court has ruled that the section will not be used. It is hence clear that the present land acquisition process is wrong.

This project will also have a negative impact on the economic and social lives of the people who live in the region. The impact on the environment is also immense. For example, changes in climate leading to increase in disease, landslides cause damage to housing, cattle getting caught in swampy and marshy land, loss of forest cover and produce due to submersion, loss of sand and fish leading to unemployment. The role of women also changes as they will no longer be involved in agriculture and cattle-rearing. This leaves them helpless and desperate.

The relevant officials have already been notified of this impact through verbal and written communication. The Environmental Impact Assessment Report and the Environmental Management Plan of the Devsari Hydro-electric project (252 mw) have yet not been given to the people in the language they understand i.e Hindi. There will be questions raised even on those reports and plans, but first we need to see them in Hindi. We have raised these questions to all the relevant departments earlier. These have been ignored and the project is being forced upon us. The people of the Pinder Valley oppose this at every level. It is in this regard that the Satyagraha is being launched against the land acquisition.

On behalf of
Bhooswami Sangharsh Samiti and Matu Jan Sangathan



Madan Mishra           Subhash Purohit                 Veer Singh         Vimal Bhai