Saturday 31 December 2011

प्रेस विज्ञप्तिः टिहरी बांध से नई डूब! 02.11.2010

माटू जन संगठन ने नई टिहरी, उत्तराखंड मंे ‘‘टिहरी बांध से नई डूब?’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें टिहरी बांध की डूब के विभिन्न आयामों पर चर्चा की गयी। ‘भूमिधर विस्थापित संगठन’ व ‘नागरिक मंच, टिहरी’ ने नई टिहरी में बसाये गये लोगों की समस्यायें रखी कि आज तक साफ पानी की सुविधा तक लोगांे के पास नहीं है। वे अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिये संघर्षरत हैं। उनके द्वारा 7 नवंबर से नई टिहरी में क्रमिक अनशन की उनकी घोषणा का माटू जनसंगठन की ओर से समर्थन किया गया। इस संदर्भ कुछ रणनीतियां तय की गयी।

हाल ही में जान बूझकर टिहरी बांध जलाशय को भरने की जो प्रक्रिया की गई उसके असरों पर माटू जनसंगठन की ओर से नागेन्द्र जगूड़ी जी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें बताया गया कि -

ऽ 75 गांवों छोटे-बडे पर भूस्खलन, धंसाव, भूमि कटान के असर और उनके झील में आने का खतरा।
ऽ दिचली-गमरी पट्टी में 40 गांवों रास्ते बंद होने से खाद्यान्न का संकट।
ऽ ढूंगमंदार पट्टी के 27 गांवों के रास्ते बंद। धारमंडल क्षेत्र के रास्ते डूबे। चम्बा-धरासू मार्ग धंसा है।
ऽ स्यांसू, नगुण, जलकुर आदि नदियों मे गाद रूकने से डेल्टा बने है।
ऽ झील में अब तक लगभग 50 जीवों का नुकसान व 28 स्त्री-पुरूष डूबे।
ऽ बांध के रिंग रोड के लिये चिन्हित धरासू-बधांणगांव-मणि मार्ग भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त है।
ऽ बांध के जलाशय के निशान यानि पिलर भी गलत हैं। दुबारा किये गये नये सर्वे में लगाये गये पिलर भी गलत है।
ऽ बांध के चारों ओर बनाई गई ग्रीन बेल्ट असफल नजर आती हैं
ऽ रिम क्षेत्र में भूस्खलन रोकने के लिये कोई उपचार नहीं है।
ऽ टिहरी बांध झील का जलाशय मनेरी भाली चरण दो जल-विद्युत परियोजना के विद्युत गृह में घुसा जो 829 मीटर की उंचाई पर स्थित है। जबकि जलाशय का अंतिम चिन्ह 840 मीटर है।

यह जाहिर है कि सर्वोच्च न्यायालय के 6-2-2006 के आदेश में 840 मीटर पर पुनर्वास करने का निर्देश था किन्तु केन्द्र व राज्य सरकारों ने 835 मीटर तक पुनर्वास करना है ऐसा शपथ पत्र देकर पूर्ण डूब में कम व आंशिक डूब में ज्यादा गांव दिखा दिये गये। यह एक साजिश थी जिसके तहत कोर्ट को बताने की कोशिश की गई कि पुनर्वास का काम पूरा दिया गया है। इस तरह से बांध की लागत भी कम दिखा दी गई।

माटू जन संगठन ने 28 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद ही कहा था कि टीएचडीसी ने यह डूब लाकर आपराधिक कृत्य किया है। 17 सितम्बर को दिये गये सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ जाहिर है कि टीएचडीसी व राज्य सरकार दोनों आपस में ना कोई समझ बनाये हैं और न ही दोनों में कोई तालमेल है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 से लगातार पुनर्वास पर अंतरिम आदेश दिये है। जिन पर ही गंभीर नहीं रहे और इसका खामियाजा विस्थापितों को भुगतना पड़ा है।

संगोष्ठी में तय किया गया कि-
 टिहरी झील के पानी का स्वतंत्र विश्लेषण किया जायेगा। उसकी गुणवत्ता की जांच की जायेगी।
 टिहरी बांध की समस्याओं के राजनैतिकरण के जवाब में दिल्ली में कार्यक्रम किया जायेगा।
 टीएचडीसी के कारनामों व टिहरी बांध की सच्चाई सामने लाने के लिए एक दस्तावेज बनाकर जहां भी टीएचडीसी बांध बना रही है। वहां उसके कारनामों की पोल खोली जायेंगी।

संगोष्ठी ने मांग की कि-
ऽ टिहरी हाईड्रªªो डेवलपमेंट कारपोरेशन यानी टीएचडीसी को उत्तराखंड राज्य से बाहर किया जाये। कोटेश्वर स्थित अन्य सभी बांध समझौते रद्द हों। केन्द्र सरकार इसे काली सूची में डाले।
ऽ उत्तराखंड राज्य सरकार स्वयं आगे आकर टीएचडीसी पर मुकदमा दायर करे। सर्वोच्च न्यायालय के 17-09-10 के आदेश से यह जाहिर है।


ऽ यह सिद्ध हुआ है कि राज्य में बांधों की निगरानी व अध्ययन नही हो रहे है इसलिये नये बांधों से पहले पुराने बांधो पर श्वेत पत्र जारी हो।
ऽ राज्य सरकार ने 2010 की शुरुआत में पुनर्वास की समस्या पर जो दिनकर समिति बनाई थी उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई हो। समिति इसके लिये 90 करोड़ की आवश्यकता बताई है। राज्य को जो आय 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली से होती है यह खर्च उसमें से किया जा सकता है। इस मांाग को तुरंत अमल में लाया जाये।

चर्चा में गिरीश घिल्डियाल, मनोज जोशी, देवेश्वरी घिल्डियाल, रामानंद भट, भरत सिंह भण्डारी, महीपाल सिंह नेगी, दीपा पंत, भरत सिंह राणा, रघुनाथ सिंह राणा, फारूक शेख, मुहम्मद यासीन आदि शामिल रहे।

विमल भाई, नागेन्द्र जगूडी, पूरण सिंह राणा

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