Saturday 2 February 2019

Press Note 2 फरवरी, 2019

फ्री गंगा, ( अविरल गंगा)
रोड नंबर 28, रजौरी गार्डननई दिल्ली


उपवास का 103वां दिन: सरकार का मौन
देश के समाज कर्मियों व गंगा प्रेमियों का प्रतिरोध हुआ तेज
नागरिक समाज के साथ संत समाज समर्थन में

2 फरवरी 2019, नई दिल्ली :: युवा संत के 103 से चल रहे लम्बे उपवास और सरकार की चुप्पी पर देश के समाज कार्यकर्ताओं में प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है। वरिष्ठ वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, राजस्थान व हिमाचल के साथियों सत्यों सहित देश भर से आये लोगों ने समर्थन दिया। रामबीर आर्य, के से पाण्डेय, बी के झा, डॉ. विजय वर्मा, निर्मला पाण्डेय, बन्दना पाण्डेय, वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस शारदा, मेजर हिमांशु, चन्द्र विकास, गौरव, अभय कुमार झा विपुल सिंह के साथ- साथ मजदूरों के बीच दशकों से काम कर रहे समाजवादी सुभाष लोमटे ने भी गंगा के मुद्दे चल रहे युवा संत की मांगों का दिल्ली के जंतर मंतर आकर समर्थन किया।

उत्तराखंड से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मातृसदन हरिद्वार से कुम्भ जाकर समर्थन देने के बाद आज दिल्ली के जंतर मंतर पर भी समर्थन देने पहुंचे

कुंभ में मुक्ति मार्ग स्थित मातृ सदन के कुम्भ शिविर मे जल पुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी ने गंगा सदभावना यात्रा की पूरी टीम के साथ आकर समर्थन दिया। राजेंद्र जी पिछले महीनों से गंगा किनारे की यात्रा पर रहे है। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर वहां के जन संगठनों और युवाओं ने 3 फरवरी को धरने का निर्णय किया है। हिमाचल में धर्मशाला  में भी वहां के जन संगठन सड़क पर उतर रहे हैं। पुणे में 107 दिनों से धरना चल रहा है। पश्चिम बंगाल के बराक्पुर में गंगा के किनारे नदी बचाओ, जीवन बचाओ आन्दोलन से जुड़े लगभग 15 संगठनों के 200 लोग जिसमें 15 साल तक की उम्र के युवा भी शामिल हैं, आज 24 घंटे के उपवास पर बैठे हैं

जंतर मंतर पर सांकेतिक धरने व उपवास का संचालन कर रहे डॉक्टर विजय वर्मा ने देश से मार्मिक अपील की कि संतों का जीवन भी अमूल्य समझा जाए और उपवास पर बैठे प्रतिनिधियों से बात करने के लिए सरकार को अपील भेजें । उन्होंने आगे कहा कि ये ऐसे संत हैं जो देश के और प्रकृति के सच्चे प्रेमी हैं। अपना सब कुछ त्याग कर बहुत सादगी से गंगा किनारे रहते हुए गंगा के रक्षण का कार्य कर रहै है। देश में पर्यावरण और नदियों के लिए जीवन समर्पित करने वाले सुश्री मेधा पाटकर जैसे सामाजिक लोग आत्मबोधानंद जी के समर्थन में उतरे हैं। गंगा की अभिलाषा के लिए जिनकी एक प्रमुख मांग गंगा पर निर्माणाधीन सिंगोली- भटवारी, तपोवन- विष्णुगाड और विष्णुगाड- पीपलकोटी बांधों को रोक दिया जाए।

स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने भी उनकी मांगों को पूर्ण समर्थन दिया। कुंभ में उनके  साथ आए सभी 150 संत उपवास रखेंगे। उन्होंने अन्य संत समुदायों से भी अपील कि वे कुम्भक्षेत्र में एक दिन पूर्व घोषणा कर अपना अन्न बंद करे और सरकार पर आत्मबोधानंद जी के मांगो को पूरा करने के लिए नैतिक दवाब बनाये।



कौन हैं ब्रहमचारी आत्मबोधानंद जी?

चार साल पूर्व इस युवक ने मातृसदन, हरिद्वार के गुरुदेव स्वामी शिवानन्द जी महाराज से दीक्षा ग्रहण कर के ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के नाम से सन्यास आश्रम में प्रवेश किया| केरल से कंप्यूटर साइंस में स्नातक के चौथे सेमिस्टर तक अध्ययन कर के जीवन का सार अध्यात्म में पाकर पढाई अधूरी छोड़कर मुक्ति की राह पर चल पड़े। दक्षिण से उत्तर में उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम तक की यात्रा की| यात्रा के दौरान माँ गंगा की दयनीय दशा देख कर दुखित हुए| जब भी गुरु की खोज करते हुए बद्रीनाथ पहुंचे वहीं उनकी गुरुदेव से भेंट हुई। उसके बाद उन्होंने मातृसदन आश्रम में गंगा जी के बारे मे जाना, स्वामी निगमानंद जी के बलिदान के बारे में जाना| स्वर्गीय सानंद जी के 111 दिन की उपवास के दौरान भी वे मातृ सदन में ही थे। सानंद जी के निधन के बाद उन्होंने 24 अक्टूबर 2018 से उपवास शुरू किया| उनकी मांग स्वामी सानंद जी के संकल्प की पूर्ति यानि गंगा के लिए अलग कानून बनाने की है| गंगा को बांधों से मुक्त और उसके निर्मल अविरल प्रवाह के लिए है।

हरिद्वार में गंगा पर खनन के खिलाफ वे जिलाधीश हरिद्वार के सामने खड़े हुए। जिस पर कथित रूप से जिलाधीश ने स्वयं उन पर हमला किया। यह  सभी न्यायालय के विचाराधीन है। मातृ सदन की आंदोलनात्मक परंपरा के कर्मठ सिपाही हैं, उनका कहना है कि वे एक सन्यासी हैं और गंगा के लिए उपवास तो कर ही सकते हैं, लोगों को उनकी नहीं बल्कि गंगा की चिंता करनी चाहिए। ज्ञातव्य है कि युवा संत ब्रहमचारी आत्मबोधानंद जी का ये 8 वां अनशन है|

निसंदेह उनका उपवास ना केवल गंगा प्रेमियों अपितु देश के आम जनमानस को भी झकझोर रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि जहां एक तरफ कुंभ में लोगों को धार्मिक क्रियाकलापों के लिए निर्मल गंगा जल देने की चिंता की जा रही है वहीं गंगा की अविरलता के लिए गंगा के निर्माणाधीन बाधो को भी तुरंत निरस्त करना चाहिए। युवा संत का जीवन इसी चिंता के साथ जुड़ा है।

विमल भाई, बंदना पांडेय

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