Thursday 18 April 2013

प्रैस विज्ञप्तिः- 19.4.2013




Hindi Press Release given below--Matu Jansanghatan  released its 15th Dastavez (Hindi) on 15th April  “Aapda mey fayada” (Benefit in calamity) to highlight  that the calamity was much due to Hydro Electric Power project in Assiganga and in Bhagirathiganga. HEPs proponent "Uttarakhand Jalvidhut Nigam" is relible for this. Report also mention large-scale irregularities in relief works done for those affected by the cloudburst in Uttarkashi 3 August, 2012. A summary of the report in English will be upload on our blog soon. Just send us a mail if u want.      ---Vimalbhai and Puran Singh Rana



''आपदा में फायदा'' का विमोचन
नुकसान बादल फटने से इतना नही वरन् जलविद्युत परियोजनाओं के कारण हुआ

उत्तराखंड में उत्तरकाशी में अस्सीगंगा व भागीरथी गंगा के संगम पर 15 अप्रैल को आपदा प्रभावितों के बीच माटू जनसंगठन के पंद्रहवें दस्तावेज़ ‘‘आपदा में फायदा‘‘ का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सभा में वक्ताओं ने आपदा प्रंबध की पोल खोलने के साथ मुआवज़ा वितरण में हो रही धांधली की आलोचना की। एकमत से अस्सीगंगा के बांधो का विरोध किया गया।

क्षेत्र पंचायत सदस्य श्री कमलसिंह ने कहा की हम अस्सी गंगा के बांधों का प्रारंभ से विरोध कर रहे है। हमारी बात सही सिद्ध हुई। आपदा प्रबंधन के दिशानिर्देशों के अनुसार तो आपदा आते ही यहंा सभी समस्याओं के समाधान के लिये कैम्प लगना चाहिये था जो नही लगा और समस्यायें आज भी मौजूद है। अभी संगम चट्टी पर मलबा पड़ा है। सैकड़ो पेड़ गिरे पड़े है। पहले  उस क्षेत्र का उपचार होना चाहिये था नाकि 25 किलोमीटर नीचे गंगोरीगाड में पुश्ते लगाने का काम चालू होता।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व इस दस्तावेज़ के सहयोगी श्री नागेंद्र जगूड़ी
ने कहा की हमें लम्बा संघर्ष करना पड़ेगा जिसके लिये तैयारी जारी है। हम लोगो को ऐसे ही नही छोड़ सकते है।

‘सूर्योदय लोक हितकारी सेवा समिति‘ के अध्यक्ष श्री केसरसिंह पंवार ने कहा की खेती की जमीनों का नुकसान बहुत हुआ है। हमारे सिंचित खेत बह गये और सरकार एक नाली खेत का मुआवजा सिर्फ 2500/- दे रही है। हम उत्तरौं गांव के लोगो ने ये मुआवजा ना लेने का निर्णय लिया है। जो मुआवजा बांटा भी गया है। उसमें तमाम धांधलियां है। अनेक अपात्रों को मुआवजा दिया गया है। इसमें भी भाई-भतीजावाद हुआ है। जिनके मकान बहे है उन्हे 180 वर्गमीटर जमीन देने की बात चली थी किन्तु बाद में कुछ नही। भ्रष्टाचार और प्रशासन की मनमानी का नमूना है कि स्वंय मेरी जमीन बह गई किन्तु विधायक सहित अनेक जनप्रतिनिधियों के शपथपत्र के बावजूद मुझे जमीन नही मिल रही है।

समिति के सचिव श्री विकास उप्पल ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने अभी पुलांे और पुश्तांे के लिये 2 अरब 22 करोड़ रु0 की   घोषणा की है। पर प्रभावितों के बारे में अभी जांच करायेंगे। हम सात महीनों से लगातार शासन-प्रशासन के सामने समस्याओं को रख रहे है। पर आश्वासन ही मिले है। अब जो पुश्तो को काम चालू भी हुआ है तो वो मांनदंडो के उलट है। अभी नदी भरी है और दिवारें उसके साथ ही बनाई जा रही है। ये कितनी टिकेगी? यानि नया घपला चालू हो गया है।

गंगोरी के श्री विकास अग्रवाल
ने कहा की इन बांधो के कारण ही हमारा ज्यादा नुकसान हुआ है। प्रभावितों को आपदा प्रमाण पत्र तक नही मिला है। कुछ दिन पहले एक बीमा कंपनी आई थी बंाधों के नुकसान का आकलन करके चली गई। किन्तु लोगो के नुकसानों का आकलन कौन करेगा? रामपाल चैहान, मुकेश नेगी आदि ने भी अपने विचार रखे। टौंस घाटी से केसर पंवार व रमेश नौटियाल भी इस कार्यक्रम में शामिल हुये। सभा ने एकमत से रिपोर्ट में लिखी मांगो का समर्थन किया और पुनः इस बात को दोहराया किः-
अस्सीगंगा पर बांध तुरंत रोके जाये और अस्सीगंगा को लोक आधारित पर्यटन के लिए सुरक्षित किया जाये। पर्यावरणीय व मानवीय हानि पर एक गहन और विस्तृत जांच होनी चाहिये। इस हादसे की दोषी उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम व उसके अधिकारियों पर तुंरत कार्रवाई हो।

माटू जनसंगठन की इस रिपोर्ट से यह मालूम पड़ता है कि गंगा की दोनो मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में जुलाई, अगस्त और सितंबर महिने 2012 में जो भयानक तबाही हुई उसका कारण बादल फटने से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाये थी। अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के बाद एशियन विकास बैंक पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो परियोजनाआंे के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड नही, अस्सीगंगा व केदार घाटी के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। इसकी कोई समुचित निगरानी नही हुई। ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम‘ पर भी कोई कार्यवाही नही हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। बीमा कंपनियों से उनका नुकसान तो पूरा होगा साथ ही भ्रष्टाचार के लिये और पैसा मिल जायेगा। हम इस पर आगे कार्यवाही करेंगे।

जो सरकारें 4.5 और 9 मेगावाट की परियोजनाये नही संभाल सकती वो बड़े बांध की बात कैसे कर सकती है? उत्तराखंड सरकार बांधों को जिस तरह से आगे बढ़ा रही है वो आने वाले समय के लिये बहुत ही घातक है। बड़े बांधों में ही नही वरन् छोटी-2 जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जो पर्यावरण व जनहक की अवहेलना हो रही हैं उसे भी नजरअंदाज किया जा रहा है।  

माटू जनसंगठन के इस पंद्रहवें दस्तावेज़ ‘‘आपदा में फायदा‘‘ में क्षेत्रीय भ्रमण, प्रभावितों से बातचीत और कई वर्षो की प्रेस रिपोर्टो के आधार पर यही बताने की कोशिश है कि बादल फटने के कारण नही वरन् वहंा जलविद्युत परियोजनाओं के कारण ज्यादा तबाही हुई। साथ ही बांध कंपनियों का भ्रष्टाचार, सरकार की लापरवाही और पर्यावरण की बर्बादी की पोल खोलने की भी कोशिश है।     

विमलभाई                                                 पूरण सिंह राणा

पुस्तक का आकार- 5.5’’ 8.5
मूल्य- 20/- (डाक खर्च अलग से)
पृष्ठ संख्या-कवर सहित 36


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