Sunday 1 January 2012

माटू दस्तावेज़ Matu Dastavaz

हमने पिछले वर्षो में बांध खासकर उत्तराखंड के, बांधों के विषय में 14 दस्तावेज़ प्रकाशित किये है। हमने सिर्फ टिहरी बांध की पुनर्वास व पर्यावरण की समस्याओं से संबंधित चैाथे दस्तावेज़ को हिन्दी व अंग्रेजी दोनो भाषाओं में प्रकाशित किया है। शेष सभी हिन्दी में ही है। अभी 10वां और 14वां दस्तावेज़ उपलब्ध है। अन्य दस्तावेज़ आपको हम पीडीएफ फाईल मे भेज सकते है

We have published 14 Documents related with dam issues. Mostly in Hindi. Many documents we have out of stock. Given here the list. On demand we can send the soft version in pdf file.


हमारे प्रकाशित दस्तावेज़

1. हनुमंतराव समिति की सिफारिशंे
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणाजी के टिहरी बांध विरोध में 75 दिनों के लम्बे उपवास के बाद सरकार ने 1996 में भूंकप के विषय पर एक समिति बनाई। साथ ही बांध को आगे बढ़ाने के लिये भी पर्यावरण व पुनर्वास के विषय में हनुमंतराव समिति बनाई। उर्जा मंत्रालय के तहत बनी इस समिति में 8 सरकारी व 4 गैर सरकारी सदस्य थे। सरकार ने इसकी रिपोर्ट व सिफारिशंे मानने में 2 वर्ष लगा दिये। तो भी 10 प्रतिशत ही मानी। जिनका पालन भी सही नही हुआ।

2002/हिन्दी/2 रु0

2.टिहरी बांध-बोलती खबरें/आकड़ें

तात्कालिक समय 2002 में टिहरी बांध के विरोध के कारणों और पर प्रकाशित लेख-खबरें-आंकड़ों को इस दस्तावेज़ में संकलित किया गया है। ताकि टिहरी बंाध के विस्थपितों का संघर्ष का दस्तावेज़ीकरण हो सके और अन्य प्रस्तावित बांध क्षेत्रों में प्रभावितांे के सामने यह सत्य आ सके की बांध वालों के दावो-वादों की सच्चाई क्या होती है।

2002/हिन्दी/15 रु0


3. सरकारी शासनादेश

इस दस्तावेज़ मे यह बताने की कोशिश की गई है कि टिहरी बांध संबधी सरकारी आदेश पहले क्या थे और उन पर कितना अमल हो पाया। टिहरी बांध परियोजना की पहली पुनर्वास नीति 1995 में आई थी। बांध की घोषणा 1962 में हुई। जबकि 1976 में प्रभावित जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक लग गई थी। 1978 में पहला भू-अधिग्रहण हुआ।

4. विफलता और विनाश की ओर
{टिहरी बांध परियोजना, पर्यावरण - पुनर्वास}

Towards Failure and Devastation

(Tehri Dam Project, Environment& Rehabilitation)

{This Fourth Document is dedicated to all those who have been warning against the dangers of Tehri Dam and who have been fighting for their rights.}
This is the first data base document on Tehri Dam HEP regarding Rehabilitation and Environment issues. Till 2002.This document is an attempt towards raising some of the significant issues. Serious contemplation is required on these issues. Not only because Tehri Dam project is being promoted under the pretext of development, though it is an alarming signal of devastation. But contemplation and wide-ranging discussions become the need of the hour since Uttarakhand projected as a source of bountiful energy, in actuality, spells the destruction of existent perennial rivers, mountains and their inhabitants.
The document also emphasises that question of full rehabilitation is not an isolated one. It is much more than that. Full rehabilitation of the displaced people is chimerical since it is not going to be accomplished in the near future. Manipulation of data, political ambitions, lack of adequate land and rampant corruption reveal that the question of rehabilitation is not an isolated one. Questions such as the cost-benefit ratio of the Dam, environmental devastation and unpredictable seismic movements are as much related. The quantum of silt accumulated in the reservoir is an indicator that it would seriously affect the longevity of the Dam and consequently the amount of power generation would fall far short of projected estimates, notwithstanding the claims of the project authorities.

{यह चौथा दस्तावेज़, टिहरी बांध के खतरों के प्रति आगाह करने वाले, सबके हकों के लिए लड़ने वालों को समर्पित}

आंकड़ो पर आधारित यह पहला प्रकाशन है जिसे हमने ही प्रकाशित किया है। यह टिहरी बंाध परियोजना के 2002 तक के पुनर्वास और पर्यावरण के मुद्दों को पूरी तरह से समेटता है। यह दस्तावेज सिर्फ एक कोशिश है, टिहरी बांध संबन्धी कुछ बिन्दुओ को छूने की। जिन बिन्दुओं को हमने इसमें छुआ है उन पर गंभीर चर्चा की जरूरत है। न सिर्फ इसलिए की टिहरी बांध परियोजना विकास के नाम पर महाविनाश की जननी है। बल्कि इसलिये भी ये चर्चा जरूरी है कि ‘ऊर्जा प्रदेश’ के नाम पर उत्तराखंड की कलकल बहती नदियों, पहाड़ों व उसके रहवासियों के साथ आगे ऐसा खिलवाड़ न किया जाये।

इस दस्तावेज का यह भी कहना है कि प्रश्न समुचित पुनर्वास का ही नही है। अब तक पुनर्वास प्रक्रियाओं को देखते हुये समुचित पुनर्वास एक ऐसा सपना है जो कभी पूरा नही हो सकता है। आंकडो़ के ख्ेाल, राजनैतिक महत्वाकांक्षाये, जमीन की अनुपलब्धता, भ्रष्टाचार ने यह भी बता दिया है कि पुनर्वास का प्रश्न अकेला नही है बांध का लाभ-हानि अनुपात, पर्यावरणीय नुकसान, भूगर्भीय हलचल आदि मुद्दे भी साथ जुडे़ है। झील में भरती गाद बता रही है कि बिजली दावों से कही कम समय तक ही उत्पादित हो पायेगी।

2002/हिन्दी एंव अंग्रेजी/35 रु0

5. बिना जानकारी कैसी जनसुनवाई?

{यह पांचवा दस्तावेज़ समर्पित है नर्मदा बचाओ आंदोलन की शोभा बहन को जिनका संघर्शमय युवाजीवन सरदार सरोवर की दलदल ने लील लिया।}

जलविद्युत परियोजनाओं संबधी पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट पर पर्यावरणीय जनसुनवाई की प्रक्रिया को बताता है साथ ही उसमें हो रही धांधलियों को भी सामने लाता है। यह 2004 में प्रकाशित किया गया किन्तु सितम्बर 2006 में इस प्रकिया में बदलाव आया है।

सितम्बर 2004/हिन्दी/15 रु0

6. आखिर टिहरी शहर डुबाया गया!!

{यह छठा दस्तावेज़ समर्पित है उन्हे जो टिहरी शहर में अंत तक समुचित पुनर्वास के लिए संघर्ष करते रहे-डटे रहे। }

भविष्य के इतिहासवेत्ता जब भागीरथी घाटी के बारे में लिखेंगे तो उनके संभवतः ये शब्द होंगे कि देश के विकास के खातिर टिहरी शहर ने जल समाधि ली। किन्तु टिहरी के इतिहास में दफन होने से पहले शहर के लोगों के हक-हकूक जिस तरह छीने गये और शहर से हटने वाला अंतिम व्यक्ति बनने/बनाने की जो कवायद रही है वह भी एक बड़े इतिहास का हिस्सा है।
टिहरी शहर डुबाना अपने में एक बड़ी साजिश थी। उस दर्द की दास्तां लोगों की जुबानी, कमरबंद करके आपके सामने रख रहे है। ये कोशिश इस भ्रम को दूर करने कि है कि टिहरी वालों को खूब मुआवजा मिला।

2005/हिन्दी/10 रु0

7. बांध एक जिदद् नही होता!!!

{यह दस्तावेज समर्पित है उनको जो सबके हित के लिए संघर्श करते है। }

इस संकलन में हिमाचल व उत्तराखण्ड में सतलुज, राबी, ब्यास, एलाईन-दुहंगन, मलाना, सैंज, भागीरथी, धौली गंगा व उसकी सहायक नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं के जल विद्युत के संदर्भ में पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट पर जनसुनवाई की प्रक्रिया; राष्ट्रीय व पहाड़ी राज्यों की पुनर्वास नीति; व भाखड़ा, टिहरी और नर्मदा कि स्थितियों पर लिखे विमलभाई के लेख संकलित है। लेखांे में कही दोहाराव भी है किन्तु उस लेख की बनावट न बिगड़े इसलिए उसे नही काटा गया है।

पर्यावरण दिवस 2005/हिन्दी/30रु0

8. ऐसा फिर ना हो
{यह आठवां दस्तावेज़ समर्पित है उन मजदूरों को जो टिहरी बांघ, विश्णुगाड आदि बांधों कि सुरंगो में काम करते मारे गये।}
उत्तरांचल में टिहरी जिले में भागीरथी व भिलंगना नदियों के संगम पर बने टिहरी बांध की पहली टरबाईन का औपचारिक रूप से उद्घाटन करते समय 30 जुलाई को केन्द्रीय उर्जा मंत्री श्री सुषील कुमार षिंदे ने टिहरी के विस्थापितों के प्रति आभार जताया और साथ में ये भी क्लेम किया की परियोजना में पुनर्वास की मद में खर्च अब तक किये गये अन्य सभी परियोजनाओं से ज्यादा है। ये दोनों बातें उन विस्थापितों के प्रति एक क्रूर मजाक है जो अपनी सदियों से बसी सभ्यता संस्कृति से उजड़कर ऐसे पुनर्वास स्थलों पर पहुॅचा दिये गये है। जहां उनके लिए बसना नामुमकिन है।
‘‘टिहरी के विस्थापितों का पुनर्वास बहुत अच्छा हुआ है, उन्हें कई बार मिला है’’ ये बातें बहुत दुश्प्रचारित की गई। न तो पुनर्वास की समुचित व्यवस्था हई न ही हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी दी गई। जब तक पुनर्वास का काम टीएचडीसी के पास रहा उन्होने कोई जमीन की व्यवस्था विस्थापितों के लिए नही की। हां! झूठ बोलने में वे अव्वल रहे है। आम विस्थापित से लेकर उच्चतम् न्यायालय तक में। टिहरी के संदर्भ दावे-वादे-आष्वासन सब झूठे सिद्ध हुये। इस दस्तावेज़ में यह सब सार्थक तरह से रखने कि कोशिश कि गई है कि सरकार व बांध निर्माताआंे के पूर्ण पुनर्वास (?) के नारे के साथ, टिहरी शहर के बाद गांवो को डुबाये जाने की मुहिम की सत्यता को सामने आये।

नवम्बर 2006/हिन्दी/10 रु0

एक फौरी रिपोट
उजाड़ोगे! डुबाओगे! आखिर कब तक?
{यह रिर्पोट समर्पित है पानी के सैंकड़ो वर्ष पुराने इंजीनियर श्री माधो सिंह भंडारी को जिन्हांेने अपने सुपुत्र का बलिदान देकर सबको पानी दिया। जो आज के अंधे विकास के लिए बलिदान लेने कि पद्धति को चुनौती देता है}

यह फौरी रिपोर्ट प्रस्तावित कोटली-भेल जल-विद्युत परियोजना चरण 1 ब प्रभावित क्षेत्र की सही तस्वीर व लोगो की पहचान के साथ परियोजना से जुड़े सवालो को सामने लाने का प्रयास हैै।

मई 2007/हिन्दी/5 रु0

9. गंगा के मायके में!!!

{यह नौवां दस्तावेज़ समर्पित है, हमारे प्रेरणा स्त्रोत पर्यावरणविद् श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी को जिन्होने गंगा के पर्यावरणीय, सांस्कृतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक पक्ष को स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक उठाया। वे हमेशा एक सुव्यवस्थित हिमालय नीति के लिए प्रयासरत रहे है।}

उत्तराखंड गंगा का मायका माना जाता है। बरसों से टिहरी बांध पर चले संघर्ष ने इस बात को उजागर किया है कि मैदानों में यदि गंगा मैली हुई है तो पहाड़ों में गंगा को बांधकर न केवल उसके प्राकृतिक स्वरुप को नष्ट किया जा रहा है वरन् उसके अस्तित्व को ही समाप्त किया जा रहा है। उत्तराखंड बनने के बाद ऊर्जा राज्य की मुहिम में यह प्रक्रिया और तेज हुई है। जो उत्तराखंड के भविष्य के लिए घातक है।
यह दस्तावेज़ निश्चित रूप में गंगा की उसके मायके में क्या स्थिति है उसको साफ-साफ रखेगा। हमने गंगा से संबधित कुछ तथ्य दिये है। भागीरथी व अलकनंदा पर बांधों के कहर की स्थिति को भी रखा है ताकि ये दस्तावेज और उपयोगी हो सके।

सितम्बर 2008/हिन्दी/25 रु0

10. गंगा की भ्रूण हत्या

{यह दस्तावेज़ उत्तराखंड की उन जुझारु बहनो को जो मिट्टी से जुड़ी है व उसे बचाने के लिए संघर्ष करती हंै, को समर्पित है।}

यह दस्तावेज़ भागीरथी-अलकनंदा-गंगा नदियों पर प्रस्तावित 3 कोटली भेल जल-विद्युत परियोजनाओं पर चले रहे आंदोलन, पर्यावरणीय जन सुनवाईयों के नाटक, लोगांे की चिट्ठियंा, चल रही कानूनी कार्यवाहियों, पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्टाे के झूठ, नेशनल हाइड्रो डेवलपमेन्ट कारपोरेशन के बंाधो के प्रभावों व उसकी पुनर्वास नीति का स्वार्थ आदि बताता है।
कह सकते है कि यह दस्तावेज़, खासकर बांध के मुद्दे पर कार्यरत संगठनो/व्यक्तियों/समूहों/प्रभावितों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा। बांध के संघर्ष को शुरु से समझने व करने के लिए ये भी दस्तावेज़ महत्चपूर्ण है।
पर्यावरणीय, सामाजिक, संास्कृतिक मूल्यों व जरुरी अघ्ययनों आदि को दरकिनार करके बांधो को कैसे सही ठहराने कि कोशिश हो रही है? यह भी इस दस्तावेज़ से मालूम होगा।

अक्तूबर2008/हिन्दी/60 रु0

11. बहे ना बहे

उत्तराखण्ड में किसी भी जलविद्युत परियोजना पर पहली स्वतंत्र जांच रिपोर्ट: लोहारीनाग-पाला जलविद्युत परियोजना
गंगा की मुख्य सहायक नदी, भागीरथी नदी पर गंगोत्री से 50 कि.मी. नीचे नेशनल थर्मल पाॅवर कारपोरेशन (एन.टी.पी.सी.) द्वारा 600 मेगावाट की लोहारीनाग-पाला सुरंग जल विद्युत परियोजना बनाई जा रही है। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने, ‘‘पर्यावरण प्रभाव आकलन 1994’’ के आधार पर 8 फरवरी 2005 को पर्यावरणीय मंजूरी दी है। जिसके मानकों को ताक पर रख कर बांध निर्माण चालू है। इसी लोहारीनाग-पाला जल विद्युत परियोजना के पर्यावरणीय व सामाजिक दायित्वों की अवहेलना के संदर्भ में पांच सदस्यों के एक स्वतंत्र जांच दल ने (पर्यावरण स्वीकृति के अनुसार) में सरकारी कागजातों, विभिन्न समाचार पत्रों की रिपोर्टांे, बांध प्रभावित गांवांे के भ्रमण के दौरान प्रभावितों से मिलकर व एन.टी.पी.सी. के अधिकारियों से भटवाड़ी, स्थित परियोजना कार्यालय में 23 दिसम्बर 2008 को मिलने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। स्वतंत्र जांच दल के पास रिपोर्ट से संबधित प्रेस कटिंग, कानूनी कागजात, फोटो, प्रभावितों के पत्र आदि मौजूद है।...............................
(यह परियोजना अभी बंद कर दी गई हैं)

2009/हिन्दी/10 रु0

12. ढोल में पोल

देवभूमि उत्तराखण्ड़ के श्रीनगर शहर में, टिहरी-पौड़ी जिलों में, अलकनंदा नदी पर बन रही 330 मेगावाट की श्रीनगर जल-विद्युत परियोजना जनहक, पर्यावरणीय मापदण्डो, झूठे व धोखाधड़ी से पूर्ण आकड़ांे, कागजातों, आवश्यक कानूनी मापदण्ड़ों की अवहेलना करके बनाई जा रही है।

इस दस्तावेज में यह बताने कि कोशिश है कि कैसे ऊर्जा राज्य के ढोल में पोल है

2009/हिन्दी/10 रु0

13. अविरल गंगा?

इस दस्तावेज़ को 2010 के महाकुंभ के समय इसलिये निकाला गया ताकि लोगो को गंगा की सही अर्थ व स्थिति मालूम हो सके व गंगा पर कार्यरत, निर्माणाधीन व प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना के बारे मे जन जागृति हो सके। इतने बांधो के बाद क्या गंगा अविरल बचेगी? गंगा के रक्षण का मामला प्रदूषण के साथ गंगा घाटी की जलविद्युत परियोजनाओं को बंद करने से जुड़ा है।

जनवरी 2010/हिन्दी/10 रु0

14. पिंडर का जनसंघर्ष

एक के बाद एक पर्यावरणीय जनसुनवाईयों का नाटक, राष्ट्रीय गंगा नदी की फिलहाल एकमात्र स्वतंत्र बहती पिंडर नदी
घाटी में संस्कृति-समृद्धि-स्वतंत्रता पर हमले के खिलाफ चल रहे संघर्ष का दस्तावेज़।

2011/ हिन्दी/ 40 रु0

2 comments:

  1. appreciate the
    efforts which the sangathan is making for the welfare of the garhwal
    and society.

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