प्रस्तावित नैटवाड-मोरी जलविद्युत परियोजना (60 मेवा) 3.5.2011
की जनसुनवाई मेंअसली मुद्दे गायब
3.5.2011 की जनसुनवाई
स्थगित मानी जाये
और पुनः मांगो के अनुसार हो
The Reality of a Public Hearing,
Bandh Katha 5 (1 of 2) & (2 of 2)
Part-1 http://youtu.be
part-2 http://youtu.be
टौंस घाटी में मोरी ब्लाक के नैटवाड गांव में आयोजित इस जनसुनवाई के यहंा घाटी के लोगो को पता तक नही था कि क्या होने वाला है। बांध कंपनी सतलुज जलविद्युत निगम का यह प्रयास सफल भी रहा है कि लोगो को मालूम ही ना हो पाये कि जनसुनवाई क्या है? क्यों है? इसका क्या अर्थ है? यह किन कागजातों के आधार पर होती है? जिन कागजों पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंध योजना, के आधार पर जनसुनवाई होती है वे क्या है? क्या ये बांध कंपनी द्वारा कहीं-कहीं पर दिये गये चालाकीपूर्ण 25-26 पन्नों के कागजात ही होते है? इस परियोजना से भविष्य में क्या होगा?
अंग्रेजी के सैकड़ो पन्ने के पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंध योजना की मात्र सार-संक्षेप जो कुछ लोगो को बांटा गया है। इस सार-संक्षेप में चालाकी से परियोजना के बुरे असरो को ना बता कर इसी बात पर जोर दिया गया है कि पुनर्वास के लिये कितना पैसा कैसे खर्च किया जायेगा। लोगो को पूरी जानकारी होना घाटी के भविष्य के लिये आवश्यक है। पहले हम जान तो ले कि बांध है क्या? कोई आफत नही आ रही है। जबतक सही रुप में बांध के असरों को नही जानेंगे तब तक बांध से लाभ या मांग रखना भी गैर वाजिब है।
बिना सही व पूर्ण जानकारी दिये यह जनसुनवाई करना पर्यावरण एंव वन मंत्रालय की 15 सितबंर 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के शब्दों व अर्थ का उलंघन है और क्षेत्र के साथ धोखा है।
सतलुज जलविद्युत निगम ने क्षेत्रिय जनता को भ्रम में रखा है। लगातार कानूनों का उलंघन किया है। जिस गोविंद वन्यजीव विहार में वाहनों का आना-जाना बंद है, विस्फोट करने पर तो पूरी ही पाबंदी है वहंा कैसे नवम्बर 2010 में एक विस्फोटको से भरी गाड़ी पहुंच गई। फिर उसकी जांच दबा दी गई। यह जांच का विषय है। यह बांध कंपनी के कुकर्माे का एक उदाहरण है। यह धोखा देने का क्रम इस जनसुनवाई में भी दिखा है। जनसुनवाई के लिये पर्यावरण प्रभाव अंाकलन रिपोर्ट व पर्यावरण प्रबंध योजना का सार-संक्षेप कुछ लोगो को बंाटा गया है वह अपूर्ण व दिग्भ्रमित करने वाला है।
जो 24 पन्नों का सार-संक्षेप देखा उसमें महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट नही है जैसे-
प्रभावितों कि सूची ग्रामीणों को क्यो नही दी है? 97 परिवारों को ही प्रभावित माना है। पर प्रभावित तो पूरी घाटी होगी। कितने प्रतिशत स्थानीय लोगो को नौकरी मिलेगी? जलाशय के चारों ओर क्या कोई सुरक्षा पट्टी बनेगी? यदि बनेगी तो उसका आधार क्या होगा? सुरक्षा दिवारे कहां बनेगी? उनके स्थान चुनने का क्या आधार है? सिदरी, कासला, गंगाड़, नैटवाड, गैचवाणगांव एंव ताल्लुका जैसी बस्तियंा और फफराला गाड, हलारा गाड, मियंागाड, छिबाडा गाड, गियागाड आदि गाड पूरी तरह से भूस्खलन की चपेट मे है। इसका कोई जिक्र नही। बांध संबधी संकटकालीन प्रबंधन, भूमि कटाव पर नियंत्रण व आपात कालीन उपाय ये सब लोगो की जिन्दगी से जुड़े मुद्दे है। इनकी पूरी जानकारी यानि कब? क्या? क्यों? कैसे? बांध से पर्यावरण पर क्या-क्या प्रभाव असर होंगे? यह मालूम ही नही होता। पशुओं के चारे का क्या होगा? चारागाह व उसके रास्तों का क्या होगा? गोविंद पशु विहार व अभ्यारण्य इस परियोजना के क्षेत्र में आते है। हमारे क्षेत्र के कई गांवो में इसके कारण वाहन ले जाने पर पाबंदी है, सड़क नही बनी है। और अब इसी क्षेत्र में विशालकाय बांध का निर्माण हो रहा है। तो क्या इस बांध के कारण पशु-पक्षियों पर पड़नेवाले असरों का कोई अध्ययन हुआ है? यमुना की सहायक नदियों टौंस, पब्बर आदि पर बांध के बाद बांध बन रहे है। क्या इनका कोई गुणात्मक या अतंरसबंधी अध्ययन नहीं किया गया है?
बांध परियोजनाओं के विकल्पो के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। जबकी पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट में ये अध्ययन होना जरूरी होता है। पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंध योजना सार-संक्षेप परियोजना के पक्ष में ही बात कहता है जिससे मालूम पड़ता है कि ये निष्पक्ष नही है। जबकि ये होना चाहिये था। टौंस नदी में पानी भी पहले से कम होता जा रहा है। तो ग्लेशियर की क्या स्थिति है? बांध के बनने के बाद नदी में लगातार कम से कम कितना पानी होगा?
जब इस परियोजना में हजारों लोग काम करेंगे तो महिलाआंें की सुरक्षा का क्या होगा? परियोजना के जलाशय से खेती पर क्या असर पडे़गा? जलाशय में जल-स्तर ऊंचा-नीचा होगा? रवंाई घाटी की सुंदरता और संस्कृति पर क्या प्रभाव पडे़गा? देश में बांधों के टूटने का लंबा इतिहास है। इसके उदाहरण श्रीनगर परियोजना का काॅफर बांध 2 बार टूटा, कोटेश्वर बांध की प्रत्यावर्तन सुरंग ही धंस गई। किन्तु फिर भी सार-संक्षेप में कोई आपदा प्रबंध योजना का जिक्र नही हैं?
जबकि इआईए बनाने का ठेका श्रीनगर विश्विद्यालय के प्रोफेसर है। हिमाचल की रोहड़ू तहसील में चीड़ गांव में बने पावरहाउस के टूटने से, चीड़ गांव में तो तबाही आई ही। उसके लगभग 60 किलोमीटर नीचे त्युनी कस्बे तक बाढ़ आई थी। और सार-संक्षेप में इआईए ठेकेदार मात्र नदी पर विभिन्न बांध की कंपनियों के आपसी तालमेल की बात कही गई है। तो क्या ये कंपनियंा सिर्फ आपस में मात्र बात ही करेंगी? इसमें जो नक्शा दिया गया है वह इतने छोटे अक्षरों मे है कि पढ़ना पूरी तरह मुश्किल है।
ऐसे अनेक प्रश्न टौंस घाटी के भविष्य को लीलने को आतुर हैं उनका कही कोई जिक्र नही था। जनसुनवाई की कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए ही सारा नाटक चला। असली मुद्दों पर कहीं चर्चा ही नहीं है। लोगो को इन शंकाओं का उत्तर मात्र कुछ मिनटों में नही वरन सही तरह से गंाव-गांव में जाकर समझाया जाये। क्यों सरकारे/बंाध कंपनी लोगो के बीच आने से डरती है?
जनसुनवाई में विभिन्न निवेदनों में हमने ये ही मंाग उठाई हैः-
नैटवाड-मोरी जल-विद्युत परियोजना (60मेवा) की आज 3.5.2011 की जनसुनवाई को रद्द माना जाये।
पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट व पर्यावरण प्रंबध योजना उपर दिए सभी मुद्दों को सही रुप में जोड़ कर, पुनः दोनों कागजात पर्यावरण विषेषज्ञों आदि से बनवाए जाए।
नयी बनने वाली पूरी पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट व प्रर्यावरण प्रंबध योजना हिन्दी में अगली जनसुनवाई से एक महीना पहले प्रत्येक गांव में दी जाए व समझाई जाए। ताकि परियोजना प्रभावों की सम्पूर्ण जानकारी के साथ हम अपनी टिप्पणी/प्रतिक्रियाएं दे सकें।
यदि यह नही होता तो सरकारें क्षेत्र में, भविष्य में होने वाले आंदोलनो व पर्यावरण विनाश के जिम्मेदार होगंे। जिला प्रशासन व प्रदूषण निंयत्रण बोर्ड की भी यह जिम्मेदारी है कि वो अपनी रिपोर्ट में ये तथ्य सही रुप में दे।
विमलभाई
माटूजनसंगठन
राजपालपंवार, प्रहलादसिंह, जयसिंहराणा
टौंस घाटी जाग्रतसमिति
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