सर्वोच्च न्यायालय :
पुनर्वास तर्क का विषय नही
टिहरी बांध का जलाशय भरने से पहले पुनर्वास करो
See in English after the Hindi text.
‘‘पुनर्वास तर्को का विषय नही है। देश में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानपूर्वक रोटी, कपड़ा और रहने के लिये स्थान प्राप्त करने का हक है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास से ही समाज का विकास होता है।’’ ये शब्द सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर0 एम0 लोधा ने न्यायमूर्ति एच0 एल0 गोखले के साथ, टिहरी 3 नवंबर को बांध संबंधी एन. डी. जयाल एंव शेखर सिंह बनाम केन्द्र सरकार और राज्य सरकार तथा अन्य मुकद्दमों की सुनवाई के दौरान कहे।
इसके साथ ही बांध कंपनी टिहरी जलविद्युत निगम (टीएचडीसी) द्वारा झील का जलस्तर 830 मीटर तक किये जाने का निवेदन नामंजूर कर दिया। अदालत ने टीएचडीसी को पुनर्वास के लिये उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास पूरा करने के लिये मंागी गई 102.99 करोड़ की राशि देने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति लोढा ने राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव को विशेष रुप से कहा की आप हमें पुनर्वास की ‘‘विस्तृत व सत्य जानकारी’’ मुहैया कराये। जिसके बाद आगे की सुनवाई होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के आदेशों के अनुसार पुनर्वास कार्य किसी भी तरह के विस्थापन के 6 माह पूर्व होना चाहिये था। उच्चन्यायालय ने 29 अक्तूबर 2005 को टिहरी झील को भरने के लिये हरी झंडी दिखा दी और झील का भरना दोपहर अढ़ाई बजे से शुरु हुआ था। किन्तु पुनर्वास का काम आज भी पूरा नही हो पाया है। टिहरी बांध विस्थापितों को पुनर्वास ना होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने आज तक टिहरी बांध झील को भरने की पूरी इजाजत नही दी है।
3 नवंबर को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महान्यवादी श्री एच0 पी0 रावल ने कहा की हमे उत्तराखंड सरकार से जलाशय भरने की इजाजत पुनर्वास के लिये अतिरिक्त आवश्यक राशि देने की शर्त पर मिल गई है। उन्होने अदालत में टीएचडीसी की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया जिसमें राज्य द्वारा 825 मीटर तक सर्शत जलाशय भरने की इजाजत का एक पत्र, तिथि 25.10.2011, का संलग्न था।
पिछले 20 वर्षो से विस्थापितों का पक्ष रख रहे, वादियों के वकील संजय पारिख ने अदालत को बताया की पुनर्वास मात्र पैसा देने से नही हो जायेगा। पुनर्वास राज्यसरकार और केन्द्र सरकार दोनो की ही जिम्मेदारी है। पिछले पंद्रह वर्षो से विस्थापित पुनर्वास की बाट जोह रहे है। सही व उचित पुनर्वास करने में दोनो ही नाकाम रहे है। पिछले वर्ष 2010 में अधिक वर्षा के कारण हरिद्वार व ऋषिकेश में बाढ़ का खतरा दिखाकर टीएचडीसी ने माननीय अदालत से टिहरी बांध जलाशय में 830 मीटर से उपर पानी भरने की इजाजत ले ली थी। जो सही नही था। पानी भरने के कारण रिम के चारोओर के गांवो मेे भूस्खलन हुआ है। जिनका पुनर्वास भी नही हो पाया है। माननीय अदालत ने अभी तक अनेको आदेश दिये है जिसके बावजूद भी पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विस ने कहा नदीपार के लोग के लिये प्रस्तावित पुल भी नही बन पाये है। अभी 825 मीटर के नीचे रहने वालो तक का पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव धवन ने कहा की हम जमीनी सच्चाई अदालत के सामने रख रहे है जबकि टीएचडीसी कागजो पर पुनर्वास पूरा हुआ दिखा रही है। देश में बांधों के कारण हुये विस्थापितों की स्थिति भाखड़ा बांध से लेकर नर्मदा के बांधों तक यही है। टिहरी बांध उसी क्रम में है। बांध बनाने के लिये सुंदरलाल बहुगुणा व मेधापाटकर के साथ बुरा सलूक किया गया किन्तु पुनर्वास आज भी पूरा नही हुआ है।
न्यायमूर्ति लोधा ने कहा की अदालत पूरी बात को सही रुप से जानने के बाद ही निर्णय देगी। पुनर्वास पर तर्क-विर्तक नही होने चाहिये। उसे सही रुप से पूरा करना आपकी जिम्मेदारी है।
ज्ञात्वय है कि एन. डी. जयाल एंव शेखर सिंह बनाम केन्द्र सरकार और राज्य सरकार तथा अन्य कई केस सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे है। ग्यारह वर्षो बाद 1 सितंबर 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में टिहरी बांध को स्वीकृति देते हुये कहा था किः-
‘‘यह स्पष्ट किया गया है कि परियोजना के चालू होने के पूर्व शर्तो को साथ-साथ अमल करने करने की शर्त को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत बहुत बारीकी से निगरानी किया जाएगा एवं परियोजनाकार यह सुनिश्चित करेंगे कि जलाशय को भरने के लिए टी-1/टी-2 सुरंग बन्द करने के पूर्व हरेक तरीके से विस्थापन, पुनस्र्थापन एवं पुनर्वास हो जाए।’’
हम लोगो की ओर से बोलने वाले अधिवक्ताओं सर्वश्री संजय पारिख, श्री कोलिन गोन्साल्विस, श्री राजीव धवन का आभार व्यक्त करते है। अब राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनो को ही ना केवल टिहरी बांध के पूर्ण जलाशय स्तर तक का वरन् रिम के चारों ओर हुये 80 से ज्यादा गांवो में हो रहे भूस्खलन के खतरों को दूर करना चाहिये। राज्य सरकार अब पुनर्वास स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं को पूरा करे। इन्ही सुविधाओं में कमी को दिनकर समिति की फरवरी 2010 की रिर्पोट में कहा गया था और 102.99 करोड़ रुपयों की मांग में इन सुविधाओं हेतु भी पैसे की आवश्यकता जुड़ी है। देखना यह भी है कि यह पैसा इन्ही कार्यो पर खर्च हो। भ्रष्टाचार ना हो यह भी देखना होगा। राज्य सरकार को पुनर्वास हेतु यह धनराशि उपलब्ध कराने के लिये माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के कदम का भी हम स्वागत करते है। टीएचडीसी को नयी परियोजनाये आंबटित करने वाली राज्य सरकार अब पुनर्वास के कार्य को युद्धस्तर पर करे।
विमलभाई
अदालत में केस के दौरान उपस्थित
पूरण सिंह राणा
पुनर्वास तर्क का विषय नही
टिहरी बांध का जलाशय भरने से पहले पुनर्वास करो
See in English after the Hindi text.
‘‘पुनर्वास तर्को का विषय नही है। देश में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानपूर्वक रोटी, कपड़ा और रहने के लिये स्थान प्राप्त करने का हक है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास से ही समाज का विकास होता है।’’ ये शब्द सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर0 एम0 लोधा ने न्यायमूर्ति एच0 एल0 गोखले के साथ, टिहरी 3 नवंबर को बांध संबंधी एन. डी. जयाल एंव शेखर सिंह बनाम केन्द्र सरकार और राज्य सरकार तथा अन्य मुकद्दमों की सुनवाई के दौरान कहे।
इसके साथ ही बांध कंपनी टिहरी जलविद्युत निगम (टीएचडीसी) द्वारा झील का जलस्तर 830 मीटर तक किये जाने का निवेदन नामंजूर कर दिया। अदालत ने टीएचडीसी को पुनर्वास के लिये उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा पुनर्वास पूरा करने के लिये मंागी गई 102.99 करोड़ की राशि देने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति लोढा ने राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव को विशेष रुप से कहा की आप हमें पुनर्वास की ‘‘विस्तृत व सत्य जानकारी’’ मुहैया कराये। जिसके बाद आगे की सुनवाई होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के आदेशों के अनुसार पुनर्वास कार्य किसी भी तरह के विस्थापन के 6 माह पूर्व होना चाहिये था। उच्चन्यायालय ने 29 अक्तूबर 2005 को टिहरी झील को भरने के लिये हरी झंडी दिखा दी और झील का भरना दोपहर अढ़ाई बजे से शुरु हुआ था। किन्तु पुनर्वास का काम आज भी पूरा नही हो पाया है। टिहरी बांध विस्थापितों को पुनर्वास ना होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने आज तक टिहरी बांध झील को भरने की पूरी इजाजत नही दी है।
3 नवंबर को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महान्यवादी श्री एच0 पी0 रावल ने कहा की हमे उत्तराखंड सरकार से जलाशय भरने की इजाजत पुनर्वास के लिये अतिरिक्त आवश्यक राशि देने की शर्त पर मिल गई है। उन्होने अदालत में टीएचडीसी की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया जिसमें राज्य द्वारा 825 मीटर तक सर्शत जलाशय भरने की इजाजत का एक पत्र, तिथि 25.10.2011, का संलग्न था।
पिछले 20 वर्षो से विस्थापितों का पक्ष रख रहे, वादियों के वकील संजय पारिख ने अदालत को बताया की पुनर्वास मात्र पैसा देने से नही हो जायेगा। पुनर्वास राज्यसरकार और केन्द्र सरकार दोनो की ही जिम्मेदारी है। पिछले पंद्रह वर्षो से विस्थापित पुनर्वास की बाट जोह रहे है। सही व उचित पुनर्वास करने में दोनो ही नाकाम रहे है। पिछले वर्ष 2010 में अधिक वर्षा के कारण हरिद्वार व ऋषिकेश में बाढ़ का खतरा दिखाकर टीएचडीसी ने माननीय अदालत से टिहरी बांध जलाशय में 830 मीटर से उपर पानी भरने की इजाजत ले ली थी। जो सही नही था। पानी भरने के कारण रिम के चारोओर के गांवो मेे भूस्खलन हुआ है। जिनका पुनर्वास भी नही हो पाया है। माननीय अदालत ने अभी तक अनेको आदेश दिये है जिसके बावजूद भी पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विस ने कहा नदीपार के लोग के लिये प्रस्तावित पुल भी नही बन पाये है। अभी 825 मीटर के नीचे रहने वालो तक का पुनर्वास नही हो पाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव धवन ने कहा की हम जमीनी सच्चाई अदालत के सामने रख रहे है जबकि टीएचडीसी कागजो पर पुनर्वास पूरा हुआ दिखा रही है। देश में बांधों के कारण हुये विस्थापितों की स्थिति भाखड़ा बांध से लेकर नर्मदा के बांधों तक यही है। टिहरी बांध उसी क्रम में है। बांध बनाने के लिये सुंदरलाल बहुगुणा व मेधापाटकर के साथ बुरा सलूक किया गया किन्तु पुनर्वास आज भी पूरा नही हुआ है।
न्यायमूर्ति लोधा ने कहा की अदालत पूरी बात को सही रुप से जानने के बाद ही निर्णय देगी। पुनर्वास पर तर्क-विर्तक नही होने चाहिये। उसे सही रुप से पूरा करना आपकी जिम्मेदारी है।
ज्ञात्वय है कि एन. डी. जयाल एंव शेखर सिंह बनाम केन्द्र सरकार और राज्य सरकार तथा अन्य कई केस सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे है। ग्यारह वर्षो बाद 1 सितंबर 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में टिहरी बांध को स्वीकृति देते हुये कहा था किः-
‘‘यह स्पष्ट किया गया है कि परियोजना के चालू होने के पूर्व शर्तो को साथ-साथ अमल करने करने की शर्त को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत बहुत बारीकी से निगरानी किया जाएगा एवं परियोजनाकार यह सुनिश्चित करेंगे कि जलाशय को भरने के लिए टी-1/टी-2 सुरंग बन्द करने के पूर्व हरेक तरीके से विस्थापन, पुनस्र्थापन एवं पुनर्वास हो जाए।’’
हम लोगो की ओर से बोलने वाले अधिवक्ताओं सर्वश्री संजय पारिख, श्री कोलिन गोन्साल्विस, श्री राजीव धवन का आभार व्यक्त करते है। अब राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनो को ही ना केवल टिहरी बांध के पूर्ण जलाशय स्तर तक का वरन् रिम के चारों ओर हुये 80 से ज्यादा गांवो में हो रहे भूस्खलन के खतरों को दूर करना चाहिये। राज्य सरकार अब पुनर्वास स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं को पूरा करे। इन्ही सुविधाओं में कमी को दिनकर समिति की फरवरी 2010 की रिर्पोट में कहा गया था और 102.99 करोड़ रुपयों की मांग में इन सुविधाओं हेतु भी पैसे की आवश्यकता जुड़ी है। देखना यह भी है कि यह पैसा इन्ही कार्यो पर खर्च हो। भ्रष्टाचार ना हो यह भी देखना होगा। राज्य सरकार को पुनर्वास हेतु यह धनराशि उपलब्ध कराने के लिये माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के कदम का भी हम स्वागत करते है। टीएचडीसी को नयी परियोजनाये आंबटित करने वाली राज्य सरकार अब पुनर्वास के कार्य को युद्धस्तर पर करे।
विमलभाई
अदालत में केस के दौरान उपस्थित
पूरण सिंह राणा
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