‘‘नदी के निचले व ऊपरी हिस्सों में प्रस्तावित/पहले से कार्यरत परियोजनाओं के विषय में कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस क्षेत्र में नदी के सूखने के मुद्दे का हल कैसे निकाला जाएगा? जलग्रहण क्षेत्र की जानकारी नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं होता कि इससे कोई पारिस्थितिकीय क्षति नहीं होगी। मानसून में बांध के नीचे कितना पानी छोड़ा जाएगा, इसकी भी जानकारी शामिल नहीं है। सुरक्षा दीवारों तक की ऊंचाई व मलबा फेंकने के स्थानों की योजना सही व पूरी नही है। नदी में शीज़ोथोरैक्स व अन्य मछलियों के विशिष्ट प्रजनन स्थलों की जानकारी नही दी गई है। विस्तृत पर्यावर्णीय प्रवाह अध्ययन किया जाए। नदी के विभिन्न भागों में उसकी गहराई व गति के साथ उसके पर्यावर्णीय प्रवाह की कोई यह एक भूकंपीय क्षेत्र है, भूकंप के बाद यहां काफी भू-स्खलन होता है। आस-पास के क्षेत्रों में सुरंग आदि निर्माण कार्य से होने वाले प्रभावों की विस्तृत जानकारी नही है। परियोजना क्षेत्र में बाढ़ पूर्वसूचना प्रणाली नही है। बांध टूटने की स्थिति का विश्लेषण और आपदा प्रबंधन योजना नही है।’’
ये सब 29 और 30 अप्रैल 2011 को संपन्न पर्यावरण आकलन समिति (नदी घाटी एवं जलविद्युत परियोजनायें) में प्रस्तावित देवसारी जल-विद्युत परियोजना (252 मेवा) पर की गई कार्यवाही में थी। बांध निमार्णकर्ता कंपनी, सतलुज जल वि़द्युत निगम को इस पर अघ्ययन करने थे। इससे मालूम पड़ता है कि बांध की पर्यावरण प्रभाव आकलन और पर्यावरण प्रबंध योजना में कितनी सारी गंभीर खामियंा है और यह गलत बनाई गई हंै। हमने इन बातों की आशंका पहले ही कही थी। आश्र्चय की बात है की बांध कंपनी ने ये सब जानकारियंा जिन्हे बनाने में साल से ज्यादा समय लगता उन्हे 3-4 महिनों महिनों में ही तैयार करके फिर से मंत्रालय में दाखिल कर दिये। 12 नवंबर को फिर पर्यावरण आकलन समिति के सामने ये विचार के लिये आ गया था।
ज्ञातव्य है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में, पिडंर नदी पर प्रस्तावित देवसारी जल-विद्युत परियोजना का शुरु से ही विरोध हो रहा है। बांध हेतु दो जनसुनवाईयों में लोगो का पूरा विरोध रहा। तब बांध कंपनी ने बैरिकेट लगाकर, जनता को दूर रखकर जनसुनवाई का नाटक पूरा किया। पिंडर घाटी के निवासियों के विरोध के बावजूद, अनियमितताओं से पूर्ण, जबरदस्ती कराई गई इस पर्यावरणीय जनसुनवाई के बाद पिंडर की जनता ने इस अपमान का पूरा विरोध धरने, रैली, प्रदर्शनों के रुप में लगातार किया है। इसके बाद 3 अप्रैल 2011 को देश के विज्ञजनों के सामने हुई लोक की ‘‘जनसुनवाई’’ में शामिल पिंडर घाटी के हजारों लोगो द्वारा जनता का पूरा विरोध सामने खुलकर प्रदर्शित हुआ है। उसकी सारी कार्यवाही की विडियो व लिखित रुप में भी हमने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को भेजी है। जिसका नतीजा था कि प्रस्तावित परियोजना को तुरंत स्वीकृति नही मिली।
हर गांव में संघर्ष जारी है। थराली गांव में पुलिस भेजकर, पिंडर घाटी के साहसी लोगो को डराकर काम शुरु करने देने के लिये दवाब बनाना। पैठाणी गांव में जहंा पावर हाउस बनना है वहंा भी महिलाओं ने काम रोक रखा है। जिस कारण अभी बांध की विस्तृत परियोजना रिर्पोट नही बन पाई है। चमोली जिले की पूर्व मे बनी और निर्माणाघीन परियोजनाओं के कारण पर्यावरण हानि और क्षेत्र के लोगो पर बुरे असर सामने दिख रहे है। उनका समाधान नही हुआ है। मंदाकिनी घाटी भी यही स्थिति है। हम यह सब पिंडर घाटी में नही होने देंगे।
यह क्षेत्र भूकंपग्रस्त है और यहंा के गांवो में भूस्खलनों का सैकड़ों सालो का इतिहास रहा है। 2010 व बाद के मानसून में भूस्खलनों को प्रशासन ने रिकार्ड में छुपाने की कोशिश की। बांध की सुरंगे इन्ही गांवो के नीचे बन रही है। नंदादेवी राजरात यात्रा का प्राचीन पवित्र यात्रा मार्ग भी इन्ही गांवों से होकर जाता है।
पिंडर नदी ही राष्ट्रीय नदी गंगा की एकमात्र स्वतंत्र बहती नदी शेष है। पर्यावरण मंत्रालय स्वंय की पहल पर इसे स्वतंत्र नदी घोषित करें। लोग तो लड़ेंगे ही।
माटू जनसंगठन व भू-स्वामी संघर्ष समिति की ओर से
दिनेश मिश्रा, सुरेंद्र रावत, महिपत सिंह कठैत, सुभाष पुरोहित, सुरेन्द्रर परिहार, केडी मिश्रा, बलवंत आगरी,
मदन मिश्रा व विमलभाई
जारीः--देवाल, चमोली, उत्तराखंड
No comments:
Post a Comment