Sunday 26 May 2019

प्रेस नोट 21 मई, 2019



टीएचडीसी के वादे झूठे दावे कमजोर


टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (टीएचडीसी) के महा प्रबंधक ने हाल ही में जो ब्यान दिए हैं। उन्हीं के संदर्भ में माटूजन संगठन उनसे पूछना चाहता है कि यादें टिहरी व कोटेश्वर बांध से प्रभावितों को आज भी पुनर्वास के लिए ऐसा क्यों नही दे रही। जबकि  2001 के ऑफिस मेमोरेंडम के तहत टीएचडीसी को यह निर्देश था कि पुनर्वास के लिए जब भी जरूरत होगी वह पैसा देगी। जो टिहरी व कोटेश्वर बांध के प्रभावितों के लिए नहीं कर रहे वैसे ही बातें अब विष्णुगाड-पीपलकोटी के संदर्भ में बांध प्रभावितों के लिए किए जा रहे हैं।

टीएचडीसी एक ही कंपनी है जो टिहरी बांध व कोटेश्वर बांध बना चुकी और अभी विष्णुगढ़ पीपलकोटी बांध विश्व बैंक के पैसे से बना रही है। राज्य को जिस 12% मुफ्त बिजली देने की वह बात कर रहे हैं, 1% बिजली विस्थापितों को और 100 यूनिट बिजली प्रतिमाह प्रभावितों को देने की बात है हम प्रमाणित कर सकते हैं कि यह बातें आज तक जमीन पर नहीं उतरी हैं बांध प्रभावितों को इनके कोई लाभ नहीं पहुंचे।मात्र अपनी तथाकथित छवि सुधारने के लिए वे ऐसा कह रही है।

ज्ञातव्य है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की सन 2006 और 2008 की नीतियों के अनुसार राज्य को 12% बिजली पर्यावरण और पुनर्वास की समस्याओं को दूर करने के लिए दी जाती है। टिहरी  बांध के उद्घाटन के समय तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील शिंदे जी ने 1% लाभ अलग से और 100 यूनिट बिजली प्रभावितों को देंने की घोषणा की थी।

बाद में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने नीति बनाई। जिसमें राज्य भी अपने हिस्से की ओर से 1% लाभ जोड़ते हुए स्थानीय क्षेत्र विकास कोष बनायेगा, जिसमें प्रभावितों की आजीविका वृद्धि के लिए काम हो सके। 100 यूनिट बिजली प्रत्येक प्रभावित परिवार को 10 वर्षों तक दी जाएगी या उसका पैसा उसके बराबर पैसा या दोनों ही दिए जाएंगे।

ऊपर लिखी नीतियों में से एक भी जमीन पर नहीं उतर पाई। टिहरी व कोटेश्वर बांध से प्रभावित इनमें से किसी भी नीति से आज तक लाभ नहीं ले पाए हैं। टिहरी बांध प्रभावितों के थोड़े थोड़े से छोटे छोटे से काम भी पैसे की कमी के चलते रुके पड़े हैं। बांध बनने के 13 साल बाद भी भागीरथी व भिलंगना नदी में डूबे 10 पुलों के बदले बनने वाले पुल नहीं बन पाए। टिहरी बांध का जलाशय भरने के बाद जो गांव पहले आंशिक रूप में माने गये थे। बाद में वहां धसान, भूस्खलन, मकानों में दरारें आदि आ रही है। उनके लिए राज्य सरकार ने एक सम्पाशर्विक नीति बनाई। मगर टीएचडीसी ने उसको उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। नतीजा है कि झील किनारे के इन लगभग 40 गांवों में धसान भूस्खलन जारी है। मगर उनका नीति ना होने की वजह से मुआवजा और पुनर्वास नहीं हो रहा है। दोनों ही बांधों से प्रभावित विस्थापितों की पुरानी समस्याएं तो हल नहीं हो पाई बल्कि नई-नई समस्याएं और खड़ी हो गई हैं। ग्रामीण पुनर्वास स्थलों में पेयजल, स्कूल, स्वास्थ्य, परिवहन आदि समस्या है नहीं हो पाई है।

विष्णुगाड- पीपलकोटी बांध में ही टीएचडीसी ने और उसकी ठेकेदार कंपनियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 80 लोगों पर विभिन्न तरह के मुकदमे किये हुए हैं। हरसारी व गांव के लोगों लोगों पर से न्यायालय ने यह मुकदमा खारिज किए हैं 2010 से बांध का काम शुरू करने वालीटीएचडीसी जब से इस क्षेत्र में आई लोगों ने अपनी समस्याओं के लिए बात उठाई। उन्होंने धरने किए, प्रदर्शन किए, आवेदन किए। पर जब बात नहीं सुनी गई तब लोगो ने बांध का काम रोका। जिसका सहारा लेकर उन पर तुरंत मुकदमे थोपे गए। यानी लोगों पर नई मुसीबत डाली गई। इससे लोगों की आर्थिकी और कमजोर हुई।
आज भी कमजोर कथा बिना भूमि देने वाली पुनर्वास नीति और उसके लागू ना होने के कारण हॉट गांव के सभी लोग विस्थापित नहीं हो पाए हैं।
हरसारी तोक के लोग 14 साल से पहले यह मांगे करते आए हैं:-
-गैरकानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जलस्रोतों, खेती आदि पर कोई नुकसान न हो।
- हमें आज तक किए हुए नुकसानों का मुआवजा, फसल मुआवजा, सूखे जल स्रोतों और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाए।
- हमें इस बात की गारंटी दी जाए कि परियोजना से हमारे जीवन व आजीविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल, विस्फोटकों से कंपन, जल स्त्रोतों का सुखना जैसे असर नहीं पड़ेंगे

यह बात भी दीगर है कि टीएचडीसी बांध कॉलोनी और दफ्तर सियासैन गांव में जहां बहुत व्यवस्थित तरीके से बनाए गए हैं। दूसरी तरफ हॉट गांव के विस्थापित प्रभावितों को मजबूरन उनकी अपनी ही जमीन पर स्थापित होने को मजबूर किया गया। जहां किसी तरह का कोई योजनाबद्ध कार्य नहीं किया गया है। लोग पानी, सड़क, बिजली की समस्याओं के साथ वर्षा ऋतु में जलभराव की समस्याएं झेलते हैं।

टीएचडीसी ने पर्यावरण शर्तों का भी उल्लंघन ने किया है।
सियासैन गांव के पास बांध कंपनी में सुरंग से निकलने वाले मलबे यानी मक को सीधा ट्रकों से नदी में डालना शुरू किया इस पर जो मुकदमा विमल भाई बनाम भारत सरकार दायर हुआ उसमे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने टीएचडीसी पर 50 लाख का जुर्माना किया हुआ है और नदी में मक ना डालने तथा अन्य पर्यावरणीय संरक्षण संबंधी निर्देश जारी किए हैं। 50 लाख के जुर्माने को लेकर अभी टीएचडीसी
सर्वोच्च न्यायालय गई है। मगर यह तो जाहिर हो ही गया कि विश्व बैंक से समर्थित इस परियोजना में पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन भी हो रहा है।

बेहतर होगा कि टीएचडीसी लोगों से झूठे वादे ना करें बल्कि पहले टिहरी बांध कोटेश्वर बांध में अपने वादे वादे पूरे करें।
हरसारी तोक के लोगों की मांगों को तुरंत पूरा करें।


विमल भाई,  नरेंद्र पोखरियाल, बृहर्षराज तड़ियाल

प्रेस नोट 17 मई, 2019

प्रेस नोट       17 मई, 2019

        बांध का काम रोका: समस्याओं का निदान नही



13 मई 2019 से नैटवाड़-मोरी बांध परियोजना (60 मेगावाट), टॉन्स नदी, ज़िला उत्तरकाशी, उत्तराखंड से प्रभावित नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगों ने अपनी बरसो से लंबित मांगों की पूर्ति ना होने के कारण बांध का काम रोका हुआ है उनकी मांगें वही है जो कि उनसे जनसुनवाई तथा उसके बाद अलग-अलग समय पर वादे किए गए और जिन्हें पूरा नहीं किया गया है।


अफसोस की बात यह है कि प्रशासन ने अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। स्थिति खराब है।
-नैटवाड़ में एक मकान गिरा है।
-नैटवाड़ और बनोल के वह सभी मकानों में दरारें आई है। भविष्य में इन मकानों की गिरने का पूरा खतरा है।
-लोगों से जो  वादे किये गए थे वे पूरे नहीं किये गए है। जिसमें मुख्यता प्रत्येक परियोजना प्रभावित परिवार को रोजगार, गांव में ढांचागत विकास कार्य, पुनर्वास नीति में किये गए वादे आदि हैं।
-लोगों की खास मांग है कि परियोजना प्रमुख राजेश कुमार जगोरा को वहां से हटाया जाए।
-बड़े-बड़े डंपर चलने की वजह से उड़ती धूल से स्थानीय बाजार और लोगों को अलग तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं जिस पर कंपनी ध्यान नहीं देती।
नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगो ने  बांध परियोजना का विरोध नहीं किया था। परियोजना के बारे में जैसा बताया गया, जो उनसे वादे किये गए उसको ही लोगो ने सच माना था। बांध की जनसुनवाई से पहले उनको पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंध योजना हिंदी में, आसान भाषा में मुहैया नहीं कराई गई थी।  इसके सबूत हमारे पास मौजूद है। हमने तभी कहा था कि भविष्य में समस्याएं आएंगी और लोग उसका निवारण नहीं करवा पाएंगे क्योंकि प्रशासन की भूमिका जन सुनवाई के बाद मात्र बांध निर्माण में आने वाली समस्याओं को दूर करने की रह जाती है। आज लोग बांध का समर्थन करके भी भयानक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

जखोल-साकरी बांध परियोजना की जनसुनवाई प्रक्रिया भी गांव वासियों को बिना पूरी जानकारी दिए, जबरदस्ती के साथ  पूरी की गई है। हमें खतरा है कि वहां का भविष्य भी इसी तरह का होगा।

नैटवाड़ और बनोल के संदर्भ में हमारी प्रशासन से मांग है कि:-

1-तुरंत लोगों की इन गंभीर समस्याओं को देखते हुए एक त्रिपक्षीय वार्ता बुलाये जिसमें SJVNLl के उच्च अधिकारी, जिलाधीश स्वयं आप और प्रभावित लोग हो।

2-समझौते की कार्यवाही तीनों पक्षो के सामने सुनाई जाए और तब उस पर हस्ताक्षर हो।

2-समझौते में जो भी हो तय किया जाए उसको समयबद्ध पूरा किया जाए।

लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए। वास्तव में यह संविधान की धारा 21 के अंतर्गत उनकी जिंदा रहने की अधिकार पर हमला है। उनकी समस्याओं के निदान की ओर कार्य होना कि उनके ही खिलाफ कोई कार्यवाही करके उनकी आवाज दबाने का प्रयास हो। देश के तमाम लोगो की नज़र इस छोटी परियोजना पर है। सब ये देख रहे हैं कि किस तरह मात्र दो गांवों के प्रभावितो की बात की भी अनसुनी की जा रही है।

रामबीर, राजपाल सिंह रावत, विमल भाई, विजय सिंह

प्रेस नोट 1 मार्च, 2019


प्रेस नोट 1 मार्च, 2019

  जन सुनवाई में जनता से खतरा क्यों?


उत्तराखंड शासन प्रशासन ने दिखा दिया कि बांध कंपनियां लोगों के अधिकारों और पर्यावरण से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
यमुना घाटी में टॉन्स नदी की सहायक नदी सुपिन पर प्रस्तावित
जखोल साकरी बांध परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई  प्रभावित क्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक में कथित रूप से पूरी कर दी गई। 1 मार्च को जन सुनवाई का समय 11:00 बजे से शुरू हुआ किंतु उसमें खास जखोल गांव के लोगों को रोका गया। जखोल गांव इस बांध के लिए प्रस्तावित 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के ऊपर आता है और जहां सुरंग के दुष्परिणाम संभावित हैं।
प्रशासन ने चुनकर जखोल गांव के अलावा अन्य प्रभावित गांवों पांव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी और धारा के सैकड़ो लोगों को भी जनसुनवाई में जाने से मोरी जखोल मोटर मार्ग पर बैरिकेड लगा कर रोक दिया। जखोलगाँव के प्रधान सूरज रावत के नेतृत्व में लोगो ने ब्लॉक के दरवाजे पर धरना किया और लगातार तीखे नारे देकर बैठे रहे। कोट गांव के प्रधान सूरज दास, डगोली गांव की महिला प्रधान के साथ ग्राम प्रधान हडवाड़ी के मुंशीराम ने भी धरना दिया।


मोरी बाजार की तरफ माटू जनसंगठन के साथी विमल भाई, रामलाल भाई, गुलाब सिंह रावत व राजपाल रावत को पुलिस ने यह कहकर रोका कि आपको लेने एस डी एम पूरणसिंह राणा आएंगे।



लगातार निवेदन करने पर भी जबर सिंह असवाल कानूनगो और पटवारी अनिल असवाल ने नहीं जाने दिया।
दोनों ही तरफ़ लोग लोगो को बाहर रोक कर अंदर जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई।
जब सभी अधिकारी बाहर सड़क पर आए तो लोगों ने उनको वहां रोकने की कोशिश की। जिला अधिकारी आशीष चौहान जी सहित सभी अधिकारी तेज रफ्तार गाड़ियों से 1 किलोमीटर दूरी पी डब्लू डी के गेस्ट हाउस पहुंचे, जहां लोग भी दौड़ते हुए पहुचे और सड़क पर चक्का जाम किया।


बाद में जिला अधिकारी ने गेस्ट हाउस से बाहर आकर मामला सुलझाने की कोशिश की। विमल भाई ने लोगो की ओर से उनसे एक ही प्रश्न पूछा कि लोगों को अंदर आने से क्यो रोका गया? यह हमारी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह जनसुनवाई पूरी तरह प्रायोजित कार्यक्रम की तरह पूरी की गई है।



गुलाब सिंह रावत ने कहा कि हम अपनी मांग जो पहले हमने कही थी उसी को दोहराना चाहते थे। जब तक हमें पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक समाघात योजना हिदी में नहीं मिल जाते हम बांध पर अपनी बात कैसे रखेंगे?  सुनकुंडी गांव के जयवीर ने कहा कि मुझे सुबह पुलिस ने पहले ही उठा दिया था। हम 2011 से इस बांध का विरोध कर रहे हैं हमारी बात तक नहीं सुनी गई।



रामलाल जी ने कहा लोगों को डराने के लिए जखोल के 21 लोगों पर झूठे मुकदमे कायम किये गए हैं।
साथी प्रदीप ने आरोप लगाए की जनसुनवाई में किन्ही आंगनबाड़ी की व आशा कार्यकर्ताओं को तथा अन्य सरकारी कर्मचारियों को बिठाया गया।

धारा गांव के प्रह्लादसिंह पवार बहुत मुश्किल से जनसुनवाई में जाकर अपनी बात कह पाए। उनका कहना है कि जब पर्यटन के लिए और लोगों के स्थाई रोज़गार के लिए आवश्यक हर कि दून मोटर मार्ग को गोविंद वन्य जीव बिहार के कारण स्वीकृति नहीं दी जा रही है तो बांध की 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के लिए कैसे स्वीकृति की बात है? जब भूकंप नीचे से आता है तो सुरंगों के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक इस्तमाल करने से ऊपर क्या स्थिति होगी?
राजपाल रावत के कहा कि सुरंग परियोजनाओं के असरों को पूरी तरह नकार कर जखोल गांव को प्रभावित तक की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा?
शासन प्रशासन और बाध कंपनी ने 12 जून की जनसुनवाई स्थगित होने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। इसीलिए आज हर हालत में जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी करने के लिए भारी संख्या में लाठी और बंदूक के साथ पुलिस बल के साए में जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की गई । जनता से दूर यह जनसुनवाई पूरी तरह से असंवैधानिक और शासन-प्रशासन की चालाकी का नमूना है।
हम इसको पूरी तरह नकारते हैं। प्रशासन ने इस बात को मद्देनजर नहीं रखा कि आज के अधिकारी हमेशा रहने वाले नहीं है, किंतु गांव, नदी और पर्यावरण स्थाई है। इस बिना जानकारी दिए आयोजित जन सुनवाई के असर लोक और पर्यावरण हमेशा झेलेंगे।
हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं वरन लोगों के अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा का है।  आंदोलन अपने तमाम संवैधानिक अधिकारों का उपयोग जन और पर्यावरण हक के लिए करेंगा।

रामबीर राणा।  भगवान सिंह रावत


प्रेस नोट 4 मई, 2019

प्रेस नोट                4 मई, 2019

194 दिन के बाद आत्मबोधानंद जी के अनशन को विराम



युवा संत आत्मबोधानंद जी ने आज अपने 194 दिन के लंबे अनशन को विराम दिया। गंगा की अविरलता निर्मलता के लिए मातृ सदन के युवा सन्यासी का संकल्प एक मुकाम पर पहुँचा।

आज 4 मई, 2019 को  राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन  की डायरेक्टर जनरल श्री राजीव रंजन मिश्रा जी का पत्र  मातृ सदन में प्राप्त हुआ ।

स्वामी शिवानंद जी को  लिखे पत्र की पहली पंक्ति है ---
Kindly recall the discussion during my visit to Matri Sadan on 26/4/2019.
इस पंक्ति को मुख्य मानते हुए यानी कि 25 अप्रैल को जब पहली बार राजीव रंजन जी मातृसदन आए थे और उनकी स्वामी शिवानंद जी से और आत्मबोधानंद जी से बात हुई थी उस पूरी बात का आधार इस एक पंक्ति में आ जाता है। इसी पंक्ति को मद्देनजर रखते हुए और पूरे पत्र की शाब्दिक से अधिक आत्मिक भावना के साथ आज युवा संत आत्मबोधानंद जी के 194 दिनों के उपवास को विराम देने का निर्णय लिया।


इस महती अवसर पर इस पत्र को  लेकर स्वयं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के कार्यकारी निदेशक श्री रोज़ी अग्रवाल जी के साथ देहरादून में मिशन यूनिट के श्री प्रभात राज जी पहुंचे।
साथ ही हरिद्वार की उप जिलाधिकारी महोदय सुश्री कुसुम चौहान जी, सर्किल अधिकारी विजेंद्र दत्त जी तथा अन्य पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे ।
साथ ही पास के गांव से जल्दी ही खबर मिलकर कुछ साथी पहुंच पाए।
इस अत्यंत सादगी, पूर्ण छोटे से कार्यक्रम में 26 वर्षीय युवा संत आत्मबोधानंद जी के साथ फलाहार पर बैठे श्री पुण्यानंदजी का भी फलाहार समाप्त हुआ।
आश्रम ने तय किया था कि आत्मबोधानंद जी के बाद इस संकल्प को आगे बढ़ाएंगे।

गंगा की लड़ाई बड़ी है आश्वासनों के साथ उसको जमीन पर उतारने के लिए गंगा के मायके से लेकर गंगा के तिरोहण, गंगासागर तक वह अपनी तरह बहती रहे। इसके लिए देश के तमाम साथियों को काम करना ही होगा।

स्वामी शिवानंद जी तथा स्वयं आत्मबोधानंद जी ने कहा कि 194 दिन के उपवास के बीच देशभर से तमाम साथियों ने जो धरने, प्रदर्शन, रेलिया आदि की व सरकार को पत्र भेजे, उन सबका मातृ सदन की ओर से हम आभार मानते हैं।

गंगा को अविरल रहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो।
गंगा को गंगा रहने दो।

विमल भाई
माटू जनसंगठन

प्रेस नोट 20-4-2019



25 तक सरकार नही मानी तो 27 से जल भी नही पियेंगे।

युवा संत आत्मबोधानंद की खुली चेतावनी



24 अक्टूबर 2018 से अविरल निर्मल गंगा की मांग के साथ मातृ सदन, हरिद्वार, उत्तराखंड में अनशनरत युवा संत आत्मबोधानंद ने अपने अनशन के 177वें दिन 18 अप्रैल 2019 को सरकार को खुली चेतावनी दी-

"चूँकि 177 दिनों के अनशन के बाद भी मेरी मांगों को न तो माना गया है और न ही मुझसे कोई वार्ता ही करने आया है ऐसी परिस्थिति में यदि 25 अप्रैल 2019 तक मेरी मांगें नहीं मानी जाती है तो 27 अप्रैल 2019 से मैं जल का भी त्याग कर दूँगा"

ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद, मातृ सदन, हरिद्वार।--18-04-2019"

Since even after 177 days fast neither my demands have been fulfilled nor any people from the government came for dialogue, in this situation if my demands are not fulfilled till 25th April, 2019 I will leave even taking water intake from 27th April, 2019.

Brahmchari Aatmbodhanand, Matri Sadan Haridwar. 18-04-2019

आत्मबोधानंद जी के इस निर्णय के पीछे सरकार की पिछले 6 महीनो से उनकी मांगों के प्रति उपेक्षा है। सरकार ने न उनसे कोई बात की न ही कोई लिखित ब्यान तक नही दिया। यह
ना केवल अफसोस की बात है, वरन लोकतंत्र में संवैधानिक, नैतिक बल और आहिंसात्मक आंदोलनों को दरकिनार करने की शर्मनाक हरकत है।

हम इस सरकारी मौन का पूरी तरह से निषेध करते हैं। 11 अक्टूबर 2018 को स्वामी सानंदजी ऋषिकेश में सरकारी अस्पताल में अपनी संदेहास्पद मृत्यु से पहले लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते रहे। जिसका कि प्रधानमंत्री ने कभी कोई जवाब नहीं दिया।

उन्हीं कि उपवास पद्धति को मानते हुए, उनकी मांगों की पूर्ति के लिए आज आत्मबोधानंद जी अपने जीवन को दांव पर लगा रहे हैं। इस सरकार ने ना सानंद जी से कोई सकारात्मक बात कि ना ही आत्मबोधानंद जी के साथ कोई संवाद किया है।

स्वामी सानंद की मुख्य मांगे  साल भर से ज्यादा लटक रही है। गंगा एक्ट, गंगा भक्त परिषद, गंगा पर निर्माणाधीन प्रस्तावित बांधों पर रोक, गंगा पर खनन पर रोक व  वन कटान पर रोक आदि पर कोई ठोस सकारात्मक कदम सरकार ने आज तक नहीं उठाया।

चुनाव के समय में सरकार के पास यह आसान बहाना है कि आचार संहिता लागू है। किंतु हरिद्वार में चल रहे भयंकर खनन और स्टोन क्रेशरो की वजह से गंगा पर बुरा असर हो रहा है। स्थानीय हरिद्वार प्रशासन अब तक के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेशों को लागू करने में असफल दिखता है।

केंद्र सरकार ने गंगा पर कोई नए बांध नही बनेंगे, ऐसे कई बयान दिए। मगर खास करके खनन जिसको कि पुराने अदालती आदेशो, सरकारी अधिसूचना के साथ यदि प्रशासनिक सख्ती बरती जाती तो राज्य सरकार अपने स्तर पर भी रोक सकती है। मगर खनन माफिया को रोकने में सरकारें पूरी तरह असफल क्यों दिखाई दे रही है?

वास्तव में गंगा की अविरल प्रवाह और गंगा के गंगत्व को पुनः स्थापित करने के लिए उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी पर
सिंगोली-भटवारी, धौलीगंगा पर तपोवन-विष्णुगाड तथा अलकनंदा पर विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजनाओं को रोकना जरूरी हैं। चूंकि फिलहाल ये तीनों परियोजना अभी निर्माणाधीन है। तथा सीधा गंगा के प्रवाह पर असर डालती हैं।  पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह जी की सरकार ने भागीरथीगंगा पर 4 निर्माणाधीन परियोजना रोकी थी। तब गंगा के लिए अपने आप को समर्पित कहने वाली भाजपा सरकार ने इन परियोजनाओं को क्यों नहीं रोका? जबकि केंद्र राज्य को होने वाली प्रतिवर्ष होने वाली 12% मुफ्त बिजली के नुकसान को ग्रीन बोनस के रूप में दे सकती है जोकि 200 करोड़ से भी कम होगा।

इन सब परिस्थितियों में ही युवा संत आत्मबोधानंद को ये कड़ा निर्णय लेना पड़ा है। सरकार को किसी भी स्तर से आकर पहल करनी चाहिए। सरकार अपनी कथनी को लिखित रूप में लेकर आए। संत आत्मबोधानंद का जीवन बचना ही चाहिए।

साथी-----
विमलभाई, रामबीर राणा

मुख्य मांगे:-

1.        हरिद्वार में गंगा के दोनों ओर रायवाला से रायघाटी तक 5 किलोमीटर की दूरी तक खनन और स्टोन क्रेशर को वर्जित किया जाए।

2.    गंगा पर निर्माणाधीन सिंगोली- भटवारी, तपोवन- विष्णुगाड और विष्णुगाड- पीपलकोटी बांधों को रोक दिया जाए।

3. मातृसदन के संत आत्मबोधानंद से तुरंत बात की जाए।