Sunday, 26 May 2019

प्रेस नोट 20-4-2019



25 तक सरकार नही मानी तो 27 से जल भी नही पियेंगे।

युवा संत आत्मबोधानंद की खुली चेतावनी



24 अक्टूबर 2018 से अविरल निर्मल गंगा की मांग के साथ मातृ सदन, हरिद्वार, उत्तराखंड में अनशनरत युवा संत आत्मबोधानंद ने अपने अनशन के 177वें दिन 18 अप्रैल 2019 को सरकार को खुली चेतावनी दी-

"चूँकि 177 दिनों के अनशन के बाद भी मेरी मांगों को न तो माना गया है और न ही मुझसे कोई वार्ता ही करने आया है ऐसी परिस्थिति में यदि 25 अप्रैल 2019 तक मेरी मांगें नहीं मानी जाती है तो 27 अप्रैल 2019 से मैं जल का भी त्याग कर दूँगा"

ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद, मातृ सदन, हरिद्वार।--18-04-2019"

Since even after 177 days fast neither my demands have been fulfilled nor any people from the government came for dialogue, in this situation if my demands are not fulfilled till 25th April, 2019 I will leave even taking water intake from 27th April, 2019.

Brahmchari Aatmbodhanand, Matri Sadan Haridwar. 18-04-2019

आत्मबोधानंद जी के इस निर्णय के पीछे सरकार की पिछले 6 महीनो से उनकी मांगों के प्रति उपेक्षा है। सरकार ने न उनसे कोई बात की न ही कोई लिखित ब्यान तक नही दिया। यह
ना केवल अफसोस की बात है, वरन लोकतंत्र में संवैधानिक, नैतिक बल और आहिंसात्मक आंदोलनों को दरकिनार करने की शर्मनाक हरकत है।

हम इस सरकारी मौन का पूरी तरह से निषेध करते हैं। 11 अक्टूबर 2018 को स्वामी सानंदजी ऋषिकेश में सरकारी अस्पताल में अपनी संदेहास्पद मृत्यु से पहले लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते रहे। जिसका कि प्रधानमंत्री ने कभी कोई जवाब नहीं दिया।

उन्हीं कि उपवास पद्धति को मानते हुए, उनकी मांगों की पूर्ति के लिए आज आत्मबोधानंद जी अपने जीवन को दांव पर लगा रहे हैं। इस सरकार ने ना सानंद जी से कोई सकारात्मक बात कि ना ही आत्मबोधानंद जी के साथ कोई संवाद किया है।

स्वामी सानंद की मुख्य मांगे  साल भर से ज्यादा लटक रही है। गंगा एक्ट, गंगा भक्त परिषद, गंगा पर निर्माणाधीन प्रस्तावित बांधों पर रोक, गंगा पर खनन पर रोक व  वन कटान पर रोक आदि पर कोई ठोस सकारात्मक कदम सरकार ने आज तक नहीं उठाया।

चुनाव के समय में सरकार के पास यह आसान बहाना है कि आचार संहिता लागू है। किंतु हरिद्वार में चल रहे भयंकर खनन और स्टोन क्रेशरो की वजह से गंगा पर बुरा असर हो रहा है। स्थानीय हरिद्वार प्रशासन अब तक के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेशों को लागू करने में असफल दिखता है।

केंद्र सरकार ने गंगा पर कोई नए बांध नही बनेंगे, ऐसे कई बयान दिए। मगर खास करके खनन जिसको कि पुराने अदालती आदेशो, सरकारी अधिसूचना के साथ यदि प्रशासनिक सख्ती बरती जाती तो राज्य सरकार अपने स्तर पर भी रोक सकती है। मगर खनन माफिया को रोकने में सरकारें पूरी तरह असफल क्यों दिखाई दे रही है?

वास्तव में गंगा की अविरल प्रवाह और गंगा के गंगत्व को पुनः स्थापित करने के लिए उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी पर
सिंगोली-भटवारी, धौलीगंगा पर तपोवन-विष्णुगाड तथा अलकनंदा पर विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजनाओं को रोकना जरूरी हैं। चूंकि फिलहाल ये तीनों परियोजना अभी निर्माणाधीन है। तथा सीधा गंगा के प्रवाह पर असर डालती हैं।  पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह जी की सरकार ने भागीरथीगंगा पर 4 निर्माणाधीन परियोजना रोकी थी। तब गंगा के लिए अपने आप को समर्पित कहने वाली भाजपा सरकार ने इन परियोजनाओं को क्यों नहीं रोका? जबकि केंद्र राज्य को होने वाली प्रतिवर्ष होने वाली 12% मुफ्त बिजली के नुकसान को ग्रीन बोनस के रूप में दे सकती है जोकि 200 करोड़ से भी कम होगा।

इन सब परिस्थितियों में ही युवा संत आत्मबोधानंद को ये कड़ा निर्णय लेना पड़ा है। सरकार को किसी भी स्तर से आकर पहल करनी चाहिए। सरकार अपनी कथनी को लिखित रूप में लेकर आए। संत आत्मबोधानंद का जीवन बचना ही चाहिए।

साथी-----
विमलभाई, रामबीर राणा

मुख्य मांगे:-

1.        हरिद्वार में गंगा के दोनों ओर रायवाला से रायघाटी तक 5 किलोमीटर की दूरी तक खनन और स्टोन क्रेशर को वर्जित किया जाए।

2.    गंगा पर निर्माणाधीन सिंगोली- भटवारी, तपोवन- विष्णुगाड और विष्णुगाड- पीपलकोटी बांधों को रोक दिया जाए।

3. मातृसदन के संत आत्मबोधानंद से तुरंत बात की जाए।

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