English version given after Hindi text
नदियों को अविरल बहने दो!! नदियों को नदियंा ही रहने दो!!
माटू जनसंगठन के द्वारा उत्तराखंड के बांधों पर अध्ययन के दौरान बांधों के जो असर सामने आये है उन्हे हम यहंा दे रहे है। समय-समय पर हम नये अनुभवों के साथ इसे अपडेट करते रहेगें।
पूर्व निर्मित जलाशय व सुरंग जलविद्युत परियोजनाओं के खतरों पर कोई ध्यान नही, उनका कोई निस्तारण नही फिर नयी परियोजनायें क्यों?
उत्तराखंड में सैकड़ों बांध बनाये जा रहे है। किसको फायदा मिला?
आखिर कितने बांध? किसके लिये?
देश व राज्य की सरकारें ये सच्चाई बतायें, इस पर श्वेत पत्र जारी करे।
उसके बाद ही नयी परियोजनाओं की बात करें।
भारत के ‘‘केन्द्रीय जल आयोग’’, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बांधों के बारे में अधिकारिक संस्था ‘‘बडे बांधों के अन्तर्राष्ट्रीय आयोग’’ व दो वर्षो तक विश्व भर के बंाधो का विस्तृत गहन अध्ययन करने वाले ‘‘विश्व बांध आयोग’’ इन तीनो की मान्य परिभाषाओं के अनुसार अपने निम्नतम नींव से 15 मीटर से ऊंचे बांध, बड़े बांधों की श्रेणी में आते हैं। अथवा 5 से 15 मीटर की ऊँचाई वाले बाँध जिनकी जल भण्डारण क्षमता 30 लाख घनमीटर से अधिक हो और 10,000 हजार हेक्टर तक सिंचाई क्षमता वाले हों तो भी वो बड़े बांध माने जायेंगे। राज्य की लगभग सभी नदियों पर बनने वाले बंाध 15 मीटर की ऊँचाई वाले है।
दीर्घकालीन लागतें-हानियंा: महत्वपूर्ण बिन्दु...........
जंगल व जमीनः-
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों मंे मात्र 7 प्रतिशत भूमि खेती योग्य शेष है। नदी किनारे कि भूमि प्रायः सबसे अच्छी और उपजाऊ होती है। बांधों में ये ही जमीने या तो डूब रही है या अन्य बांध कार्यो-बांध की कालोनी आदि में जा रही हैं।
उत्तराखंड के वनो के नष्ट होने का एक बड़ा कारण ये परियोजनाये भी है। जीव-जंतुओं पर भी बुरा असर हो रहा है।
ये उत्तराखंड का स्थायी विनाश है। साथ ही इससे लोगों के वन संबंधी हक हकूक भी समाप्त हो रहे है।
सुरंग परियोजनाओं में जितनी जमीन डूबती है परियोजना काॅलोनी में उससे ज्यादा जमीन जाती है। परियोजना वाले बाद में बची जमीन वापिस नहीं करते जैसे मजदूर काॅलोनी आदि की जमीन।
जल विद्युत परियोजनाओं के कारण बन रही सुरंगे पहाड़ों को हजारों किलोमीटर लम्बाई में खोखला कर रही है। जिन से हो रहे नुकसानों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। जो कि आने वाले समय के लिये खतरनाक है।
खेती कम होने से भविष्य में खाद्य सुरक्षा बड़ा प्रश्न खड़ा होने वाला है।
नदीः-
पूरे राज्य में नदी किनारे असुरक्षित हो रहे हैं। बांध से विद्युत उत्पादन के लिए कभी भी नदी का पानी छोड़ा जाता है।
जिससे नदी में पानी का प्रवाह भी अनिश्चित हुआ हैै।
सुरंग परियोजनाओं में जहां से नदी को सुरंग में डालते हैं फिर बिजलीघर तक, जहंा से पानी बाहर निकलता है, वहंा तक नदी तल सूखा रहता है या बहुत ही कम पानी रहता है।
देवभूमि उत्तराखंड में नदी किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै। उत्तराखंडी देव भूमि के निवासी
कहलाते थे अब बांध भूमि से विस्थापित कहे जा रहे है।
स्थानीय लोगो का नदी पर अधिकार नही बच रहा है। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों जैसे स्नानपर्व, दाह-संस्कार, नदी-पूजन आदि के लिए नदी में पानी नहीं रहता। सूखी नदी के कारण, नदी के किनारे रहने वालों को खासकर पशुपालकों को पानी नहीं मिल रहा है।
पूरी नदी घाटियों में सुरगें बनने से पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। जिससे भूस्खलन बढ़े हैं।
उत्तराखंड में नदियों पर जितनी परियोजनायें बन रही है। उनके बाद नदियंा कहीं भी नदी स्वतंत्र नही बचने वाली है।
सुरंगों से खतरेः-
सुरंग परियोजनाओं में सुरंग निर्माण हेतु किये जाने वाले विस्फोटों के कारण जल स्रोत अपना स्थान बदलते हैं। वे प्रायः सूख जाते हैं। इसका कोई भी हल नही होता।
सुरंग के ऊपर के मकानों में दरारें पड़ती हैं। जिसके कारण मकान कमजोर हो जाते हैं और हल्के भूकंप से भी गिर जाते हैं। भूमि में भी दरारें पड़ जाती है। इन सबका कोई मुआवजा नही मिलता है।
अध्ययन व निगरानीः-
किसी भी जलविद्युत परियोजनाओं में केन्द्र व राज्य स्तरीय निगरानी तक नही हो रही है।
परियोजनाओं के निमार्ण से पूर्व अध्ययन सही व पूरे ढंग से न होने के कारण बाद में समस्यायें और बढ़ती हैं।
नदी पर एक के बाद एक बन रहे बांधों के आपसी प्रभाव नकारात्मक हो रहे हैैं। जिनका कोई अध्ययन भी नही हो रहा है।
अन्यः-
बांध परियोजना कार्यों से उठी धूल के कारण पशुओं के चारे खराब होते हैं। विस्फोटकों की धूल व मिट्टी से क्षेत्र का चारा व खेती खराब हो जाती है। वन क्षेत्रों पर भी दूर तक नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
इन परियोजनाओं के बनने से बहती नदी का पानी झील में बदल जाता है। जिससे जल में आक्सीजन की मात्रा घट जाती है। टिहरी झील का पानी पीने के लिए अयोग्य बताया गया है।
इन परियोजनाओं के कारण उत्तराखंड मे जीव जन्तुओं पर भी बुरा असर पड़ा है। टिहरी झील के कारण बंदरो, सुअर, भालू व बाघ आदि का प्रकोप आबादी वाले इलाको में बढ़ा है।
इन परियोजनाओं की झील से धंुंध, बिमारियां व झील के ऊपर की भूमि पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
जलाशयों मेें रेत का भरना आम बात है। चूंकि बांध एक ही नदी पर एक के बाद एक बांध बन रहे है। एक बांध से रेत खाली करने पर दूसरे बांध में रेत जमा होती है। जलाशय तो रेत से भरते जा रहे है।
जलाशयों में रेत जमा होने के कारण निकट के क्षेत्रों में गर्मी बढ़ती है।
जलाशयों का पानी बांध कंपनी की आवश्यकता अनुसार घटता बढ़ता है। जिससे नदी पर लोगो का अधिकार खत्म हुआ है।
जलाशयों से अचानक पानी छोड़ने के कारण निचले क्षेत्रों में अनेक जाने जा चुकी है।
जलाशयों में पानी घटने-बढ़ने से किनारों पर भूस्खलन, धसाव बढ़ते है रिम क्षेत्र हमेशा खतरे की जद में रहता है।
पूरे राज्य में पहाड़ों पर पारेषण लाइनों के खतरे बढ़ रहे हैं।
चूंकि उत्तराखंड राज्य हिमालय के मध्य में है। यहंा का वातावरण अपेक्षाकृत ठंडा ही रहता है। इन बांधों के कारण जो वन क्षेत्र कम हो रहा है उससे गर्मी बड़ी है जिसने वैश्विक गर्मी को भी बढ़ावा दिया है।
बांधों की वजह से यहां जो गर्मी बढ़ी है। उसका स्थानीय फसलों व फलों पर ज्यादा बुरा असर पड़ रहा है।
निर्माण में लगे हजारों लोग एक ही स्थान पर रहते हैं। जिससे प्रतिदिन की गंदगी व विभिन्न बीमारियां बढ़ती हैं। जो कि ज्यादातर बाहर से आये होते है। उनका स्थानीय समाज, वन, पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है।
संस्कृति और महिलाओं की स्वतंत्रता पर सबसे बुरा असर पड़ता है। जिसका कोई मुआवजा नही हो सकता है।
ग्रीन हाऊस गैसों में, संसार मंे जलाशयों से पैदा होने वाले कुल उत्पादन में भारत के जलाशयों से 17 प्रतिशत की
बढ़ोत्तरी होती है। इन जलाशयों में बांधों के जलाशय भी है।
उत्तराखंड 4-5 स्तर के भूकंप संवेदनशील क्षेत्र में आता है। जो अत्याधिक खतरे वाला क्षेत्र माना गया है। राज्य में भूकंपों से हजारों लोग मारे जा चुके हैं। इतने सारे बांधों के निर्माण से भूकंप का खतरा और बढ़ेगा। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि बांधो से भूकंप आते है। बांधों से भूंकपों की तीव्रता बढ़ती है।
राज्य सरकार की नीति है पर किसी भी परियोजना में स्थानीय लोगो को 70 प्रतिशत रोजगार नही मिला है? जबकि
प्रचारित यही किया जाता है कि बांधो से स्थानीय लोगो को रोजगार मिलेगा। थोड़े अस्थायी रोजगार जरुर दिखते है जो
कि बांध बनने के बाद समाप्त हो जाते है।
जहंा निजी कंपनियंा बांध बना रही है वहंा प्रशासन बांध वालों के साथ खड़ा दिखता है।
बांधों से बाढ़ रोकने का दावा झूठा होता है। 2010 के मानसून में टिहरी बांध का उदाहरण सामने है। जिसके कारण बाढ़ का रुप ज्यादा भयानक हुआ। ये देश भर में हो रहा है।
बांधो की पर्यावरणीय जन सुनवाईया पूरी तरह धोखा साबित हुई है। लोगो को ना कोई जानकारी दी जाती ना ही
उनके विरोध को मान्य किया जाता है।
पूर्ववर्ती बांधो से कोई सबक नही लिया जा रहा है।
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विस्थापनहीन व पर्यावरण संरक्षित विकास ही सही विकास है
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Let Rivers flow uninterrupted : Let Rivers remain Rivers
Dangers
of Hydroelectric Projects
Bhagirathi
Ganga,
Vishnupadi
Ganga
Alakananda
and
Ganga
are
being
converted
into
reservoirs
and
pushed
into
tunnels
due
to
Big
Hydroelectric
projects.
From
some
kilowatts
to
thousands
megawatts,
Hydroelectric
projects
are
taking
over
the
Ganga
Valley.
It
is
our
hope
that
our
governments,
country's
development
heads
and
the
educated
masses
have
been
able
to
understand
the
effects
of
Hydroelectric
projects
and
hence,
would
rectify
errors
in
the
under
progress
projects
and
will
stop
thinking
about
any
new
projects.
But
this
would
warrant
an
honest
political
willpower
and
selfless
thinking.
Long
term
effects:
important
points............
Impact
on
Land
More
land
is
taken
over
by
Project
colonies
than
is
lost
in
the
Tunnel
projects.
The
project
proponents
do
not
give
back
the
left
over
land
like
the
land
of
labour
colony
etc
to
the
people.
According
to an estimate, under-construction Hydro-electric projects are
hollowing 1500 km length of our mountains, the effects og which are
being ignored. This could lead to problems in the future.
In
Uttarakhand mountainous region only 7% cultivable land is left. The
land near the river bank is often the most fertile. This land is
either submerged by the reservoir or destroyed in project related
work like living quarters for dam officials.
Because
of diminishing agriculture, fertilizer production is going to be a
big question.
Impact
on
Forests
A
big
cause
of
diminishing
forest
cover
in
Uttarakhand
is
the
construction
of
dams.
This
is
the
permanent
annihilation
of
Uttarakhand.
Fauna
have been adversely affected because of these projects in
Uttarakhand. Because of Tehri Dam reservoir and the destruction of
the natural habitat of several creatures, the terror of monkeys,
pigs, bears and tigers has increased in populated areas.
Due
to the dust rising from dam construction site, fodder for animals is
destroyed.
Impact
on
Rivers
In
the
whole
state
river
banks
have
become
more
precarious.
Whenever
the
river
water
is
released
for
electricity
production,
the
water
current
of
the
river
becomes
uncertain.
In
Run-off-the
river
projects,
all
the
way
from
where
the
river
is
pushed
into
the
tunnel
till
it
resurfaces
at
the
Power
House,
the
river
basin
is
either
dry
or
has
very
little
water
in
it.
All
prayags
(confluences)
on
the
river
banks
of
Devbhoomi
(land
of
Gods)
Uttarakhand
are
either
submerging
or
withering.
The
people
of
Uttarakhand
were
once
called
residents
of
Devbhoomi,
now
they
are
labelled
as
oustees.
The
mountains
are
weakening
due
to
digging
of
tunnels
in
the
whole
river
valley.
Increase
landslides
in
the
region
are
a
direct
consequence
of
this.
With
the
large
number
of
projects
being
constructed
in
the
Ganga
valley,
the
Bhagirathi
Ganga,
the
VishnupadiGanga
Alaknanda
and
all
their
tributaries,
there
is
no
river
left
free
to
flow.
Cultural
Impact
Thousands
of people are engaged in construction work, live in the same place
because of which everyday dirt has increased and spread of diseases
has escalated.
Since
most of the workers are immigrants, it affects the people, local
culture, environment, etc for which there can be no compensation.
The Local culture and women’s freedom is worst affected.
The
rights of the locals on rivers are not protected. There is no river
water available for religious and cultural rituals like bathing
festival, funeral rites, river worship etc. Due to dry rivers, the
people who live on the river banks, especially cattle herders, do
not get enough water.
Danger
of
Tunnels
Because
of
explosions
caused
by
digging
of
tunnels
in
Run-off-the
river
projects,
the
water
sources
changes
its
course.
The
river
often
dries
up.
In
most
cases
no
solution
is
provided
by
the
project
proponent.
Cracks
appear in the houses which the tunnels underpasses. Houses become
weak and collapse in very light earthquakes.
Cracks
appear in the land too. No compensation is paid for this.
Study
and Monitoring
Required
monitoring
of
hydroelectric
project
is
not
being
done
by
either
the
central
govt.
or
by
the
state
govt.
Problems
have multiplied due to incomplete or faulty pre-construction study
of project.
The
effects of building one dam after another on the same river has
created several negative impacts. Still no cumulative impact
assessment study has ever been done.
Failure
of Government
In
spite of the state governments policy, 70% employment not been given
to the locals in any of the projects. While this is exactly what has
been reported and promoted by the government. There are a few jobs
(Like shop ownership, guest houses) which can be seen, but shall
shut down with the completion of the dam.
When
private companies make dams, the Right to Information Act does not
apply and collecting information is still tougher.
The
Environment Public Hearings are a complete sham. Neither are the
people given any information nor is their opposition taken into
account.
Impact
of
Reservoirs
With
the coming of these projects, the flowing water of the river changes
into stagnant reservoir water that reduces the oxygen quantity in
the water. Tehri reservoir water is said to be unfit for drinking.
Silt
getting collected in the reservoir is a common problem with dam
projects. Because a large number of dams are being constructed in
the same river, the silt cleaned from one reservoir is washed ahead
and gets collected in the next reservoir.
The
excess amounts of silt collected in the reservoirs leads to increase
in temperature of the local areas.
Dam
reservoirs cause global warming- Of the total green house gases
produced in the world, a 17% increase has been caused by the
reservoirs in India which includes dam reservoirs. Projects like
Kotli-Bhel, Pancheshwar all have reservoirs in tens of kilometres.
Downstream
impact
In
whole of the state, fear of transmission lines is on the rise.
The
reservoir water level varies according to the THDC’s need.
The
sudden release of water from the reservoir has led to deaths
downstream.
This
sudden release has also led to landslides near the water, making the
rim area very dangerous.
There
is no truth to the claim that ‘dams stop floods’. The example of
how Tehri dam made the floods in Uttarakhand due to the 2010 monsoon
much worse is a case in point. This is happening around the country.
Others
Because
Uttarakhand
is
in
the
middle
of
the
Himalayas,
its
environment
remains
comparatively
cooler.
Temperature
has
increased
due
to
the
dams
and
the
local
plants
are
suffering.
On
the
Richter
scale,
Uttarakhand
comes
in
the
IV
&
V
seismic
zone.
Ganga
Valley
has
always
been
an
earthquake
prone
area.
Thousands
of
people
have
been
killed
as
a
result
of
these
earthquakes.
The
risk
of
earthquake
increases
with
the
building
of
so
many
dams.
No
lesson is being learnt from the experiences of earlier dams
Why
should
all
these
long
term
problems
be
invited?
Rivers
too have the right to flow.