Friday, 30 December 2011

प्रैस नोटः- कुंभ के संतो से अपेक्षा 27-3-10

हमारे देश की परंपरा है कि जब किसी महान व्यक्ति से संबधित तारिख आये या किसी महत्वपूर्ण तिथि पर्व पर खूब यशोगान करो फिर भूल जाओं। हरिद्वार में कुंभ समाप्ति की ओर है। खूब जोर-शोर से तैयारियंा चली। देश भर से संतो का जमावड़ा है। गंगा में स्नान करने के लिये लाखों लोग शायद करोड़ो लोग भी पहुंचें। कुंभ हर 12 वर्ष बाद आता है। अर्द्धकुंभ हर 6 वर्ष बाद आता है। कुंभ के समय पर गंगा के महत्व के बारे में खूब हल्ला मचता है पर गंगा अपने मायके उत्तराखंड से लेकर मैंदानों तक दुर्दशा की ही शिकार है।

केन्द्र सरकार ने 20 फरवरी 2009 को पर्यावरण एंव वन मंत्रालय की अधिसूचना द्वारा गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बाद राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की स्थापना की है। जिसकी बड़े जोरशोर से घोषणा हुई है।

अभी कुंभ चालू है! गंगा के प्रेमी और आस्थावान सभी गंगा के तट पर है। अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष श्री ज्ञानदास जी अपने साथियों सहित गंगा को बांधों से मुक्ति के लिये कटिबद्ध बैठे है। पर क्या 15 अप्रैल के बाद गंगा कितनी बच पायेगी? क्या बांध रुक पायेंगंे? क्या गंगा में गंदगी गिरनी रुकेगी? ये प्रश्न सामने है। सरकारी कोषिषें है कि संतो को सादर हरिद्वार से विदा किया जाये और बांधों को भी चालू रखा जाये।

‘‘गंगा’’का तात्पर्य उत्तराखंड में भागीरथीगंगा व विष्णुपदीगंगा अलकनंदा, दोनो बड़ी धाराओं व इनकी सहयोगी उपत्याकाओं के देवप्रयाग मंें मिलन के साथ पूरा होता है। यही से आगे उसका नाम अधिकारिक रुप से गंगा कहा जाता है। गंगा मात्र आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक ही नही वरन् आर्थिक रुप से भी देश में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गंगाजल को पवित्रतम् माना जाता रहा है।

गंगा घाटी में मुख्य नदी एंव उसकी सहायक नदियों पर बड़े जलाषय में बदलने वाले और नदी को सुरंग में डालकर बिजली पैदा करने वाले बांध बनाये जा रहे है। 100 से ज्यादा बांधो की इन श्रृंखलाओं के कारण स्वतंत्र गंगा कही नजर नही आयेगी। कुछ किलोवाट से लेकर हजारों मेगावाट की बांध परियोजनायंे कार्यरत है, निर्माणाधीन है, प्रस्तावित है और नयी परियोजनाओ के सर्वे चालू है। अब तक बने बांधो से गंगा घाटी में पर्यावरण, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक दृष्टि से दूरगामी नकारात्मक प्रभाव ही दिख रहे है। मनेरी भाली चरण एक व दो, टिहरी बांध, विष्णुप्रयाग बांध आदि इसके ज्वलंत उदाहरण है। वैसे ऐसी ही स्थिति राज्य की सभी नदियों की है।

गंगा घाटी के बांधों में, सुरंगंे पहाड़ों को सैकड़ों कि0मी0 लम्बाई में खोखला कर रही है। पहाड़ी क्षेत्र मंे मात्र 7 प्रतिषत भूमि खेती योग्य शेष बच रही है। इन पर भी डूब और अन्य बांध कार्यो का खतरा है। खेती कम होने से भविष्य में खाद्य सुरक्षा बड़ा प्रष्न खड़ा होने वाला है। पूरे राज्य में नदी किनारे असुरक्षित हो रहे है। नदी में पानी की भी अनिष्चितता हुई हैै। नदी का पानी अचानक से पानी छोड़ा जाता है। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों जैसे स्नानपर्व, दाह-संस्कार, नदी-पूजन आदि के लिए भी नदी में पानी नहीं रहा है। जिससे भूस्खलन बढ़े है। पहाड़ की संस्कृति पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे बुरा असर महिलाओं की स्वतंत्रता पर पड़ता है। उत्तराखंड की किसी भी बांध परियोजना में स्थानीय लोगो को 70 प्रतिषत रोजगार राज्य की नीति होने के बावजूद नही मिला है। ग्लेषियरों का कम होना अपने में एक भयानक सत्य के रुप में सामने आ रहा है। उत्तराखंड में रिचर स्कैल पर 5 स्तर के भूकंप क्षेत्र में आता है। ये नदी घाटियां पहले ही भूकंपो से ग्रस्त है। इतने बांधों के निर्माण से इसका खतरा बढ़ेगा।

देवभूमि उत्तराखंड में गंगा किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै। भागीरथी गंगा पर बने टिहरी बांध में गणेशप्रयाग तो पहले ही डूब चुका है। विष्णुपदी गंगा यानि अलकनंदा के विभिन्न नदियों के साथ बने पंचप्रयाग क्रमशः विष्णुप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग सभी बांध परियोजनाओं में या तो डूब रहे है या सूख रहे है। देवप्रयाग संगम पर तीन कोटली भेल चरण-1 अ, ब और चरण-2 जल विद्युत परियोजनायें बन रही है। जिनके जलाशय टिहरी बांध से भी बड़े हैं, देवप्रयाग 6 मीटर पानी में डूबने वाला हैं। देवप्रयाग का प्राकृतिक, सांस्कृतिक आधार नष्ट होगा व धर्माटन से लेकर आर्थिक रूप से असरग्रस्त होगा।

हमारी प्रकृति का हिस्सा! हमारी आस्था! हमारी संस्कृति! गंगा हमें स्वतंत्र चाहिये। सवाल गंगा के रक्षण एंव संवर्धन का है। गंगा को गंगा ही रहने देने का है।
हम श्री ज्ञानदास जी व कुंभ में उपस्थित सभी संत समाज से अपेक्षा करते है कि वो सरकार की चालो से सर्तक रहेंगे और गंगा मुक्ति के अपने प्रयासों पर अडिग रहेंगे। हमारा समर्थन और सहयोग इस मुद्दे पर उनके साथ है। देषभर के गंगा प्रेमियों की निगाह उन पर है।
इन तमाम तथ्यों को ध्यान में लाते हुए हमारी मांग है किः-
गंगा की प्रमुख धारायें भागीरथी व अलकनंदा और उनकी सहायक नदियों पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित बांधो पर रोक लगे। साथ ही भविष्य में ये बांध ना बने इसके लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना जारी हो।
गंगाघाटी में जलविद्युत परियोजनाओं की पर्यावरण व वन स्वीकृतियंा रद्द की जाये।
राज्य सरकार प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं का अनुबंध यानि एम0 ओ0 यू0 रद्द करें।
जलविद्युत परियोजनाओं संबधी आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकद्दमें तुरंत वापिस हो।
बांधों के रोकने से होने वाले तात्कालिक असरो की भरपाई करने के लिये, अब तक हुये बांध कामों के वैकल्पिक उपयोग में स्थानीय लोगो के स्थायी रोजगार की व स्थायी आजिविका की व्यवस्था की जाये।
कार्यरत जलविद्युत परियोजनाओ की सही निगरानी और नियम-कानूनो-वादों के उंलघन पर दंड की व्यवस्था हो।
कार्यरत बांधो से नदी की आवष्यकता के लिए लगातार पानी छोड़ने की व्यवस्था हो।
सरकार को चाहिये कि वो जल-विद्युत परियोजनाओं से अधिक महत्वपूर्ण तरीके पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जैव ऊर्जा, जिनका व्यापक व सफल प्रयोग भी हुआ है उन्हे अपनाये।
मात्र कुछ ही लोगो के फायदे के लिये बिजली की स्थायी समस्या का हल इन अस्थायी व अल्पकालीन जल-विद्युत परियोजनाओं मे ना खोजे।

विमल भाई , पूरण सिंह राणा
संयोजक

No comments:

Post a Comment