Friday, 30 December 2011

प्रैस नोटः सरकार द्वारा कुंभ में मात्र वादे नही ठोस निर्णय लेकर ही जाये। 12-4-10


सभी संतो से अपेक्षा है कि जब तक गंगा पर ठोस निर्णय नही हो कुंभ से लौटे नही।


31 मार्च 2010 को केन्द्रीय सरकार ने भागीरथी पर प्रस्तावित भैरोंघाटी व पाला-मनेरी बांधों पर रोक लगाने की घोषणा की और इनके बीच में निर्माणधीन लोहारीनाग-पाला बांध को बंद करने के असरो पर एक जांच समिति बिठा दी है। केन्द्रीय सरकार की इस घोषणा का बड़ा स्वागत किया गया। भले ही सामने कुछ भी कहे पर इससे मुख्यमंत्री निशंक को भी राहत मिली कि कुंभ तो शांति से निपट जायेगा और फिर उसके बाद बांध विरोधियों से भी निपट लिया जायेगा। केन्द्र व राज्य सरकारों की चिंता, कुंभ के सकुशल गुजर जाने की है। केन्द्र सरकार ने बड़ी शांति से ऐसी चाल खेली की भाजपा से हिन्दुओं की गंगा भी ले ली और गंगा पर अन्य परियोजनाओं का मामला भी शांत करने कि कोशिश कर दी। फिलहाल कुंभ में ऐसा ही किया गया है।

जबकि प्रस्तावित भैरोघाटी व पाला-मनेरी बांधो परियोजनायें 18 जून 2008 को जी. डी. अग्रवाल के उपवास के दौरान ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी ने एक पत्र देकर रोक दी थी। सरकार ने दो राज्य स्तरीय परियोजनायंे रोकने की घोषणा की और लोहारीनाग-पाला बांध जिसे एन0टी0पी0सी0 बना रही है उसे रोकने का जिम्मा केन्द्र के मत्थे डाल दिया था। जिसे कंेद्र ने अभी तक विभिन्न समितियों के पास छोड़ा हुआ है।

12 फरवरी 2009 में माटू जनसंगठन की ओर से एक स्वतंत्र जांच रिपोर्ट (12-2-2009 में देखी जा सकती है) सरकार को भेजी गई थी। जो सिद्ध करती है कि लोहारीनाग-पाला बांध को दी गई कमजोर व नाममात्र की पर्यावरण स्वीकृति शर्तो का भी सीधा उलंघन हो रहा है। पर्यावरण स्वीकृति की ही शर्त संख्या 3 व 7 के अनुसार बांध की स्वीकृति तुंरत रद्द करना केन्द्रीय मंत्रालय की जिम्मेदारी बनती थी। इस रिर्पोट में मांग की गई थी कि बांध क्षेत्र में केन्दªीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के सहयोग से, पहाड़ी परिस्थितियों के अनुसार उन्नत कृषि व फल कृषि आदि जैसी स्थायी विकास की नई परियोजनायंे शुरु करके स्थानीय लोगो के रोजगार कि स्थायी व्यवस्था करें। आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था करें। किन्तु बांध काम चालू रहा। ना ही मंत्रालय ने कोई कदम उठाने की जहमत की।

अभी ना तो राज्य सरकार ने भैरोंघाटी व पाला मनेरी बांध पर अनुबंध रद्द किया है। केन्द्र सरकार की ओर से भी अभी तक इस पर उठाया गया कोई कानूनी कदम सार्वजनिक नही किया गया है। सरकारों पर भरोसा कितना कर सकते है ये देश में बने अब तक बने 5100 बांधो के संदर्भ में देखा जा सकता है। मामला केन्द्र व राज्यों के संबंध और वैधानिक सीमाओं का है। कांगे्रंस-भाजपा की राजनीति तो सर्वोपरि है ही। पानी राज्य का विषय है, मगर केन्द्र यदि पर्यावरण स्वीकृति ही रद्द कर दे तो परियोजना आगे नहीं बढ़ाई जा सकती है।
हरिद्वार में कुंभ समाप्ति की ओर है। देश भर से संतो का जमावड़ा है। गंगा में स्नान करने के लिये लाखों लोग शायद करोड़ो लोग भी पहुंचें। कुंभ हर 12 वर्ष बाद आता है। अर्द्धकुंभ हर 6 वर्ष बाद आता है। 12 वर्ष पूर्व भी कुंभ पर गंगा को बचाने की बात कही गई थी पर टिहरी बांध बन गया। इस बार गंगा पर राजनैतिक दलों, संतो के हर वर्ग ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री भी कुंभ होकर आये है। मुख्यमंत्री तो लगातार कुुंभ के कार्यक्रमों में है। गंगा की अविरलता-निर्मलता पर बोल रहे है किन्तु बांध बंद होने पर नाराज़ होते है।
तो क्या 15 अप्रैल के बाद गंगा बच पायेगी? क्या बांध रुक पायेंगंे? क्या गंगा में गंदगी गिरनी रुकेगी? ये प्रश्न सामने है। सरकारी कोशिशें साफ दिख रही है कि ंिकसी तरह संतांे को सादर हरिद्वार से विदा किया जाये और बांधों को भी चालू रखा जाये।
गंगा घाटी में मुख्य नदी एंव उसकी सहायक नदियों पर बड़े जलाशय में बदलने वाले और नदी को सुरंग में डालकर बिजली पैदा करने वाले बांध बनाये जा रहे है। 100 से ज्यादा बांधो की इन श्रृंखलाओं के कारण स्वतंत्र गंगा कही नजर नही आयेगी। कुछ किलोवाट से लेकर हजारों मेगावाट की बांध परियोजनायंे कार्यरत है, निर्माणाधीन है, प्रस्तावित है और नयी परियोजनाओ के सर्वे चालू है। अब तक बने बांधो से गंगा घाटी में पर्यावरण, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक दृष्टि से दूरगामी नकारात्मक प्रभाव ही दिख रहे है। मनेरी भाली चरण एक व दो, टिहरी बांध, विष्णुप्रयाग बांध आदि इसके ज्वलंत उदाहरण है। वैसे ऐसी ही स्थिति राज्य की सभी नदियों की है।
देवभूमि उत्तराखंड में गंगा किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै। भागीरथी गंगा पर बने टिहरी बांध में गणेशप्रयाग तो पहले ही डूब चुका है। विष्णुपदी गंगा यानि अलकनंदा के विभिन्न नदियों के साथ बने पंचप्रयाग क्रमशः विष्णुप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग सभी बांध परियोजनाओं में या तो डूब रहे है या सूख रहे है। देवप्रयाग संगम पर तीन कोटली भेल चरण-1 अ, ब और चरण-2 जल विद्युत परियोजनायें बन रही है। जिनके जलाशय टिहरी बांध से भी बड़े हैं, देवप्रयाग 6 मीटर पानी में डूबने वाला हैं। देवप्रयाग का प्राकृतिक, सांस्कृतिक आधार नष्ट होगा व धर्माटन से लेकर आर्थिक रूप से असरग्रस्त होगा।

हमारी प्रकृति का हिस्सा! हमारी आस्था! हमारी संस्कृति! गंगा हमें स्वतंत्र चाहिये। सवाल गंगा के रक्षण एंव संवर्धन का है। गंगा को गंगा ही रहने देने का है।

हम कुंभ में उपस्थित सभी संतों से अपेक्षा करते है कि वो सरकार की चालो से सर्तक रहें और जब तक गंगा पर ठोस निर्णय नही हो, कुंभ से लौटे नही। सरकार द्वारा कुंभ में मात्र वादे नही ठोस निर्णय लेकर ही जाये।

विमल भाई, पूरण सिंह राणा
समंवयक

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