Saturday, 31 December 2011

प्रेसविज्ञाप्ति: उत्तराखंड सरकार को टीएचडीसी के खिलाफ अवमानना दाखिल करें 01.10.2010

उच्चतम न्यायालय:

एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बंद करें और प्रभावित लोगों का पुनर्वास कार्य करें।

टिहरी बांध के संबंध में एन. डी. जयाल बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मुकदमे में उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश आर. वी. रविन्द्रन एवं माननीय न्यायाधीश एच. एल. गोखले की पीठ ने उत्तराखंड राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को 17 सितंबर 2010 को आदेश दिया कि वे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बंद करें और प्रभावित लोगों का पुनर्वास कार्य करें। उन्हें छः सप्ताह के अंदर स्थिति एवं कार्यवाही रिपोर्ट दाखिल करना है। हालांकि हम उच्चतम न्यायालय के फैसले की तारीफ करते हैं लेकिन इसमें टीएचडीसी एवं राज्य सरकार को अपनी जिम्मेदारी पूरा करने के लिए जरूरी गंभीरता का अभाव है।

याचिकाकर्ता एड्वोकेट कोलिन गोंसाल्विस एवं एड्वोकेट संजय पारिख द्वारा उजागर किये गये समस्याओं वाले क्षेत्र जिन पर राज्य सरकार एवं टीएचडीसी द्वारा ध्यान दिया जाना जरूरी है, वे निम्नांकित हैं:

(1) बांध में पानी का स्तर बढ़ने के कारण भागीरथी नदीघाटी में तीन गांवों रौलाकोट, नाकोट, स्यांसु के डूबने की आशंका है। वास्तव में, ये तीन गांव पहले भी प्रभावित हुए थे एवं इन तीन गांवों के निवासियों को तत्काल पुनर्वास उपाय की जरूरत है।

(2) रीम सर्वे लाइन एवं बांध में पानी का स्तर बढ़ने का कारण, पहले आंकलित किये गये प्रभावित परिवारों के अलावा, 45 गांवों में अतिरिक्त 18 से 158 परिवारों के बीच प्रभावित होंगे और उन्हें पुनर्वास की जरूरत है। हालांकि, राज्य सरकार ने पहले ही टीएचडीसी से फंड की मांग की है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा मांग किये गये फंड का बहुत थोड़ा हिस्सा ही जारी किया गया है।

(3) जल स्तर बढ़ने एवं उसके बाद जल स्तर घटने के कारण, 26 गांवों में नियमित भूस्खलन होने के कारण वे अस्थिर हो गये हैं। इन 26 गांवों में कोई जान-माल की क्षति हो इस बारे में कोई कदम नहीं उठाये गये हैं।

(4) अब तक 1000 से ज्यादा शिकायत याचिकाएं विचाराधीन हैं और उन पर निर्णय नहीं हुआ है। हालांकि करीब 500 शिकायत याचिकाओं के मामले में सुनवाई हो चुकी है जबकि आदशों पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं और उन्हें कार्यवाही के लिए जारी नहीं किया गया है।

(5) प्रभावित गांवों के लिए पेयजल योजनाओं को क्रियान्वित नहीं किया गया है, जिसकी वजह से पेयजल की काफी कमी हो रही है।

(6) प्रभावित इलाकों से सम्पर्क कट जाने के मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई है। डोबत्रा पुल, घोंटी पुल का निर्माण एवं रोपवे का काम एवं नौकाओं का आवागमन निर्धारित अवधि में नहीं हुआ है, जिससे परियोजना प्रभावित गांवों में समस्याएं बढ़ रही हैं।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने अपने 15 मई 2008 के आदेश को दोहराते हुए 27 अगस्त 2010 के आदेश में कहा था कि बांध में जल स्तर बढ़ने की स्थिति में राज्य सरकार को 830 मीटर की ऊंचाई तक के प्रभावितों के पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिया था कि लम्बित दावों को निपटाने का प्रयास करे। राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को दो सप्ताह के अंदर स्थिति रिपोर्ट पेश करना था। जबकि, अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों से यह स्पष्ट है कि पुनर्वास उपायों के क्रियान्वयन के मामले में विचारों में अंतर है और पुनर्वास की प्रक्रिया को जल्दी, ज्यादा सक्षम एवं प्रभावी बनाने के लिए उनमें आपस में बेहतर तालमेल की जरूरत है।

यह ध्यान देने योग्य है कि ऐसा तब है जबकि टीएचडीसी ने पुनर्वास कार्य पूरा हो जाने का दावा किया है और हरिद्वार एवं ऋषिकेश जैसेमहत्वपूर्णशहरों को बाढ़ से बचाने के लिए बांध में जल स्तर बढ़ाने की अनुमति की मांग की है। उच्चतम न्यायालय के आदेश से एक बार फिर डीएचडीसी की बेशर्मी जाहिर होती है कि उसने पुनर्वास के मामले में आंखो में धूल झोकने की कोशिश की है।

इतने कटु अनुभव के बाद भी राज्य सरकार ने टीएचडीसी को विष्णुगाड पीपलकोटि जैसी परियोजना सौंपी है। यह परियोजना मोटे तौर पर विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित है।

इस तरह हमारी मांग है कि -

उत्तराखंड सरकार अब तक की गई गलतियों में सुधार करे एवं तब तक बगैर पुनर्वास के ही लोगों को डुबाने और उत्तराखंड में अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय तबाही लाने के लिए जिम्मेदार टीएचडीसी के खिलाफ अवमानाना की याचिका दाखिल करे।
उत्तराखंड सरकार टीएचडीसी के साथ किये गये समस्त करारों को निरस्त करे।
टीएचडीसी को और ज्यादा परियोजनाएं नहीं सौंपी जानी चाहिए, जिससे ऐसी तबाही दोहरायी जाए।
वर्तमान में निर्माणाधीन कोटेश्वर बांध को रोका जाना चाहिए और गंगा को मुक्त प्रवाहित होने देना चाहिए।
विश्व बैंक द्वारा टीएचडीसी को वित्तपोषण रोकना चाहिए।

विमल भाई (संयोजक) पूरन सिंह

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