भू स्वामी संघर्ष समिति एवं माटू
जनसंगठन
बाँध नहीं चाहिए : पिंडर गंगा बहती चाहिए
ए० डी० एम० ने कहा की गांव स्तर पर जनसुनवाई करेंगे. जिसके बाद सब अधिकारी चेपड़ो और साहू गांव पहुचे. जंहा मात्र 10 मिनट में जनसुनवाई निपटा दी गई. 22 दिसंबर को पदमल्ला, तलौर गांव में जनसुनवाई करने ए० डी० एम०, तहसीलदार, कंपनी के अधिकारियों के साथ पहुंचे. लोगों ने उनका घेराव किया और बिना सहमति के बांध थोपने का आरोप लगाते हुए बांध निर्माण को तुरंत निरस्त करने की मांग की गई. “सतलुज कंपनी वापस जाओ के नारों के साथ आधे घंटे से ज्यादा अधिकारियों का घेराव किया गया. ग्रामीणों ने कहा कि यह क्षेत्र भूकंप, दैविक आपदा, जैव विविधता और धार्मिक दृष्टि से अतिसंवेदनशील है परियोजना से विकास नहीं विनाश होगा.
ज्ञातव्य है की 2009
से पर्यावरण जनसुनवाईयों में लोगो का जबरदस्त विरोध रहा. देवसारी बांध संबंधी
पर्यावरण आकलन रिपोर्ट व पर्यावरण प्रबंधन योजना लोगो को ना तो दी गई ना समझाई गई।
दो जनसुनवाई रद्द होने के बाद 20 जनवरी 2011 को पिंडरगंगा
के तट पर चेपडो गांव में हुई तीसरी जनसुनवाई ग्रामीणों की आवाज को दबा कर पूरी की
गई। लोगो को बात रखने का मौका नहीं दिया गया। कंपनी के अधिकारियों ने लोगों को
रोका। पुलिस लगा कर लोगों को मंच पर अकेले तक नहीं जाने दिया गया। मंच से बांध के
समर्थन और विरोध में हाथ खड़े करने की आवाज दी गई। यह पूरी तरह एक सफल नाटक था
जिसमे लोगों को धोखा देकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी जिला प्रशासन के
अधिकारी भाग गए। जिसके बाद भेजे गए किसी पत्र का जवाब नहीं दिया गया। 3 अप्रैल को
हमने लोक जन सुनवाई का आयोजन किया जिसमे हजारो लोगो ने आकर पिंडरगंगा को अविरल
बहने देने की घोषणा की. देश के माननीय लोग इसके गवाह रहे. सरकार को समय समय पर
पिंडर की जनता ने बता दिया है की हमें बांध नहीं चाहिए. 2009 से 2017 तक बांध रुका
ही हुआ है. सन 2013 की आपदा में यहां की परिस्थिति पूरी तरह बदल
गई है. गांवो में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी है. पिंडर नदी का रुख बदल
गया है.
13 अगस्त को माननीय सर्वोच्च न्यायलय
ने उत्तराखंड के सभी बांधो की किसी भी तरह की स्वीकृत पर रोक लगा दी थी. पर्यावरण
मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने धोखे से हुई जनसुनवाई को मानते हुए मात्र उसमें उठाए कुछ मुद्दों पर ध्यान दिया और अपनी ओर से पर्यावरण स्वीकृति के लिए बांध को अनुमोदित किया
किंतु साथ में यह शर्त लगाई थी पर्यावरण
स्वीकृति वन स्वीकृति के बाद ही ली जाए. वन आकलन समिति की बैठकों में देवसारी बांध
के पीछे कैल नदी पर स्थित 5 मेगावाट की देवाल परियोजना का
मुद्दा सामने आया. 5 मेगावाट की देवाल परियोजना, देवसारी बांध के जलाशय में डूब रही है. देवसारी बांध के परियोजना प्रयोक्ता सतलुज जल विद्युत
निगम ने वन आकलन समिति
के सामने कहा है कि वह एक दीवार बना कर देवाल परियोजना को सुरक्षित कर देगी. यह समझ से परे है कि एक नदी को दीवार बनाकर कैसे रोका जा
सकेगा? इसी तरह की तमाम ग़लतियों के साथ इस बांध
को आगे धकेला जा रहा है.
नवम्बर, 2017 में पिंडर घाटी के हिमनी गाँव में
राज्य के मुख्यमंत्री ने भी घोषणा की कि 5 नहीं 252 मेगावाट का बांध चाहिए. जिसका पूरी
घाटी में जबरदस्त विरोध हुआ.
महत्वपूर्ण बात है कि गांव को अभी तक वन अधिकार
कानून 2006 के अंतर्गत अधिकार भी नहीं दिए गए हैं। ऐसे में अचानक से पुनर्वास
संबंधी बैठकों का, लोगों को पुनर्वास नीति उपलब्ध कराए बिना किये
जाना गलत है। हम पूरी तरह से इस असंवैधानिक प्रक्रिया का व बांध का विरोध करते हैं.
हम मांग करते हैं कि:-
-बांध संबंधी सभी कागजातों, पर्यावरणीय
प्रभाव आकलन रिपोर्ट पर्यावरण प्रबंधन योजना को हिंदी में लोगों को दे कर समझाई जाए।
उसके बाद ही जनसुनवाई का आयोजन किया जाए. किन्तु
सरकार अपनी कमियों को छुपाकर किसी भी तारा से बांध को बनाना चाहती है. जिसे घाटी
की जनता नहीं होने देगी.
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