Friday, 4 March 2016

 
 
प्रभावितो ने विश्व बैंक के अधिकारियांे को घेरा
{English translation after Hindi and Pix on <matuganga.blogspot.in}
परियोजना का नामः विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना {444}; नदीः अलकनंदा गंगा; बांध कंपनीः टिहरी जलविकास निगम;

विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना से प्रभावितो ने विश्व बैंक के अधिकारियांे को घेरा। विश्व बैंक इस परियोजना में पैसा लगा रहा है। लोगो को बहुत शिकायतंे थी कि परियोजना में पुनर्वास का कार्य नहीं हो पाया। बांध से पर्यावरण कि क्षति होगी। सुरंग बनाने से लोगो का नुकसान होगा वगैरा-वगैरा। मगर विश्व बैंक ने बहुत चालाकी पूर्ण तरीके से यह दिखाने कि कोशिश कि सब समस्यायों का निदान हो गया और अब परियोजना व्यवस्थित रूप से चलानी चाहिये।

विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना को राज्य सरकार ने भी दूसरी वनस्वीकृति सुप्रीम कोर्ट के 13 अगस्त 2013 के आदेश की अवहेलना करते हुए दी। विश्व बैंक कि टीम को विभिन्न गाँव के विस्थापितों ने 2 मार्च को फिर घेरा। प्रायः जब भी विश्व बैंक के अधिकारी वहाँ गए है गाँव विस्थापितों ने उन्हें घेरा है। विश्व बैंक टीम ने प्रश्न पूछने पर हमेशा टालने वाले जवाब ही दिए है। किसी भी समस्या का निदान नही किया।
2 मार्च को भी यही हुआ ग्राम पल्ला, जाखोला, ह्यून, पोखनी, तिरोसी, लांजी, हरसारी, उरगम, मठ, जड़ेथा, बजनी, गनगोत और दुर्गापुर आदि गांवों के लोगों ने विश्व बैंक टीम को घेरा। इन गाँवों के नीचे से सुरंग बनने वाली है जिससे ये प्रभावित होंगे।

पोखनी गांव के मुरलीधर भंडारी ने कहा कि गंगा सुरंग में चली जायेगी तो हम दाह संस्कार कंहा करेंगे? सरपंच मातबर सिंह ने कहा की हमने अक्तूबर 2015 में बंाध कंपनी को पत्र भेजा था पर आज तक जवाब नही आया है। लांजी गांव के सरपंच कंवर सिंह भंडारी ने कहा सुरंग बनने से हमारे जल-जंगल-जमीन बुरी तरह से प्रभावित होंगे।अन्यो ने भी इसी तरह के सवाल पुूछे। मगर यह सब सुनने के बाद में विश्व बैंक के अधिकारियों ने यही जवाब दिया कि अगली बार हम आयंगे आपके गाँव में। ऐसा कह कर वह निकल गए। बैठक टीएचडीसी के गेस्ट हाऊस ‘सियासेन‘ .में हुई। यह सियासेन सबसे ज्यादा सुरक्षित है। यह स्थान सुरंग से बहुत दूर है। बाँध परियोजना कंपनी टीएचडीसी ने अपना कोई भी दफ्तर सुरंग के ऊपर के गांवों में नहीं बनाया और वो बार बार दावा कर रही है। कि सुरंग के ऊपर में कोई भी नुक्सान नहीं होने वाला। मगर अपने दफ्तर जरुर सुरक्षित कर लिये।

दुर्गापुर गाँव के लोग जब बैठक में पहुंचे अधिकारियो के पास में तो उन्होंने यही बहाना बनाया कि अब समय नही है हमें कही जाना है। जबकि दुर्गापुर के 21 लोगो पर टीएचडीसी की एक ठेकेदार कंपनी के द्वारा अभी मुकद्मा दायर हुआ है। क्यूंकि दुर्गापुर गाँव में विद्युतघर के उपर है जंहा से नदी बाहर निकलेगी। पूरा गाँव ही धसान को झेलने वाला है। लोगो ने लगातार काम रोका। महीनांे-महीनांे तक धरना चला, आन्दोलन चला और उसके बाद में चमोली के जिलाधीश ने यह कहकर धरना समाप्त कराया कि गांव पर विस्फोटों के असर के बारे में जांच होगी। सरकारी संस्थान ने अभी आधी ही जांच की है। पहले हो चुके नुकसान के लिये लोगो को मुआवज़ा दिया जाना था। वे नही दिये गये। बड़ा प्रश्न है कि टीएचडीसी कहती है कि लोगो ने 2013 की आपदा के बाद कंपनी की जगह पर घर बनाये है। जबकि 2013 कि आपदा के बाद सरकार ने लोगो को यह जमीन दी थी। इसकी जांच भी करने के लिए अधिकारी आये मगर अभी उसकी कोई रिपोर्ट हमारे सामने नहीं है। और अब उसी आंदोलन के कारण लोगो पर काम रोकने के झूठे आरोप लगाकर मुकदमा दायर कर दिया गया है।

सुरंग के शुरुआती तरफ जो गाँव है तथा विद्युतघर के उपर के गांव हरसारी, दुर्गापुर, हैलंग, जैसाल आदि के लोगो पर भी मुकदमें दायर कर दिये गये है। इस तरह जब भी लोगांे ने प्रदर्शन किया तो लोगों पर मुक़दमे ठोके गए। लोगो को एक तरफ फंसाया गया दूसरी तरफ बाँध का काम चालू किया गया। विश्व बैंक कि नीति इस तरफ नज़र आती है कि वो किसी भी तरह से अपनी ही पुनर्वास व पर्यावरण की नीतियों के खिलाफ, बाँध के काम को सही ठहराती है और पर्यावरण और पुनर्वास के गंभीर मुद्दों को नज़रंदाज़ करती है।

विश्व बैंक की ही नीतियों के उल्लंघन पर प्रभावितों द्वारा जो शिकायत विश्व बैंक के तथाकथित स्वतंत्र जांच दल के समाने डाली थी उसकी प्रक्रिया साल भर से ज्यादा चली किंतु उसकी रिपोर्ट भी सही मुद्दों को लाने में पूरी तरह असफल रही। मात्र लीपापोती ही की गई। बल्कि उसके बाद बांध कपंनी और विश्व बैंक दोनों ही निरंकुश होकर काम कर रहे है। लोगो कि शिकायतों पर ध्यान न देकर बांध का काम आगे बढ़ाना और प्रभावितों द्वारा यदि काम रोका जाता है तो टीएचडीसी व उसकी ठेकेदार कंपनियंा लोगो पर मुक़दमे डालती है। आज बंाध प्रभावित क्षेत्र के लगभग 74 लोग अपराधिक मुक़दमे झेल रहे है। पूरे प्रभावित क्षेत्र के लिये यह एक धमकी भी है।

विश्व बैंक की टीम में सुश्री सोना ठाकुर, श्री पीयूष व एक अन्य बैंक अधिकारी मौजूद थे। मगर लोगो ने जो चित्र रखा उसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। विश्व बैंक की टीम कभी भी क्षेत्र में सूचना देकर नही आती। गंगा स्वतंत्र रहेगी तो ही हिमालय व उसके निवासी सही रहंेगें। हम इस लड़ाई को आगे तक लेकर जायेंगे।

नरेन्द्र पोखरियाल,  धनेश्वरी देवी,  मुरलीधर भंडारी,  विमलभाई


Villagers summons the officials of World Bank
 Name of the Project: Vishnugaad – Peepalkoti hydroelectric project {444}: River: Alaknanda Ganga; Dam Company : Tehri Hydro Development Corporation;

The Villagers and Project Affected People of Vishnugaad – Peepalkoti hydroelectric project summons the officials of World Bank. World Bank is funding this project where people have continuously complained about the incomplete rehabilitation work in this project. The ecology and environment is getting largely affected due to the tunneling and overall development of this project. But World Bank has been cleverly showing that the problems have been resolved and this project should operation in a systematic manner.

The second environmental clearance has been given to the project violating the Hon’ble Supreme Court’s order dated August 13, 2013. The affected people of various villages have surrounded the officials of World Bank again today. This happened whenever the officials visited the villagers. They remained silent mostly and diverted the question when asked about the questions regarding resolution of problems related to rehabilitation, ecological devastation and environmental concerns.
On 2nd March also, the same thing happened with strong opposition from the villagers against the flawed developmental project and the promises from the Govt. and the World Bank. The dissent has spread all across the villages namely Palla, Jaakhola, Huon, Pokhni, Tirosi, Laanjhi, Harsari, Urgam, Matth, Jaretha, Bajni, Gangot, and Durgapur village. Villagers are going to be affected due to the tunneling work of this hydroelectric project. The tunneling has been questioned by various environmentalists on the ground of making hills vulnerable to landslides and ecological devastation.

At the same time, from the cultural aspect, Murlidhar Bhandari of Pokhni village has put a question that if the Ganga River will go into the tunnel, where will they do the funeral? Sarpanch Maatbar Singh has asked about the replies which he have not received till now against the letter, he sent in October, 2015 to the Company associated with the development of this Dam. Sarpanch Kanvar Singh Bhandari of Laanji Village said that the tunneling will affect dangerously the water, forest, and the land of the affected area.

Many others asked the similar questions but after listening to all the questions, the officials of World Bank has only replied that ‘we will come to your village next time’ and went back. The meeting was held in the ‘Siyasen’ Guest House of THDC, which is very much safe considering the distance from the actual place of tunneling. Contrastingly, after repeated claims of no destruction on the hills above the tunnel, THDC has not constructed any office there. It is clearly visible that putting the villagers in danger, they have marked themselves safe by keeping the office out of the affected area.

The villagers of Durgapur village were not heard showing lack of time and other engagements. 21 villagers have been framed in a legal case by a contractor company of THDC, alleging the disruption to the project work. The village is going to face the landslide as it is situated at the outlet of the tunnel from where the river will come out. The people have stopped the project work, staged protests, movements which was stopped by the district magistrate of Chamoli with an assurance of an investigation and report on likely impacts on the village due to the blasts carried out for tunneling under this project. The investigation is not yet completed; compensation for previous destruction has also not been given to villagers. THDC’s claim of illegal encroachment on their land after 2013 disaster is also false as the govt. only given the land to the villagers. The investigation report is not come out in the public even after the visits of officials and now because of the movements and protests against these irregularities, the company who has been given the contract is filing false cases on villagers for disrupting the work.
Similarly, the villagers have been framed in the village where the tunnel starts and village above Power House. Whenever people protested, they were framed and cases were filed against them, on the other hand the company kept moving ahead with the project work. This clearly shows the policies of World Bank where they are in a way against their own safeguard policies of rehabilitation and environmental and proving the work of Dam project right by ignoring the serious issues of rehabilitation and environmental devastation.

On blatant violation of World Bank policies, the affected villagers had complained with the so called independent investigation team in which the process took more than one year of time but the report has miserably failed to address the real issues. After which the company and the World Bank is working without any hesitation and when the villagers protested against the progress of dam work, they were endlessly framed by THDC and their contracted companies. Today almost 74 villagers are facing the legal cases in the dam affected area.

Ms. Sona Thakur, Mr. Piyush and a bank official were presenting the World Bank team. There was no information ever with the villagers and the Gram Sabha about their visit. The team has failed miserably to answer the questions and the real picture narrated by people during the meet.
Ganga need to be independent from the destruction then only the Himalaya and its inhabitants will remain protected and healthy. We will continue to take this struggle and movement ahead.

Narendra Pokhariyal,    Dhaneshwery Devi,         Muralidhar Bhandari,      Vimalbhai


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