प्रैस विज्ञप्ति 27 फरवरी, 2016
उच्चतम् न्यायालय ने अपने कंधों का भार उतारा
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परियोजना का नामः टिहरी बांध जलविद्युत परियोजना {1000+1000+400}; नदीः भागीरथी गंगा व भिलंगना नदी; बांध कंपनीः टिहरी जलविकास निगम; पर्यावरण स्वीकृतिः 19-7-1990; बांध का उद्घाटनः 2006 माननीय उच्चतम् न्यायालय में टिहरी बांध केसः एन0 डी0 जयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य (SLP (c) No. 22894 of 2005)
लगभग 11 साल चलने के बाद माननीय उच्चतम् न्यायालय ने टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास के मुद्दे को वापिस नैनीताल उच्चन्यालय भेजा दिया। टिहरी बांध के विस्थापितों के लिए यह कोई अच्छी खबर नहीं है। उच्चतम् न्यायालय ने कहा कि दस साल से यहंा क्यों है? जबकि अपेक्षा थी की उच्चतम् न्यायालय सरकार व टिहरी बांध बनाने वाली कंपनी, टिहरी जल विकास निगम से पूछता की उन्होनें पुनर्वास क्यों नही किया? जिन मुद्दों को पिछले दस सालो से उच्चतम् न्यायालय देख रहा था उन सब को एक ही झटके में नकार कर सिर्फ ‘‘उच्चतम् न्यायालय में दस साल से केस क्यों लंबित है?‘‘ इस पर ही चिंतित होकर विस्थापितों व पर्यावरण के गंभीर प्रश्नों से मुंह फेर लिया है। आखिर किस बात की जल्दी है माननीय उच्चतम् न्यायालय को? पिछले दस सालांे में उच्चतम् न्यायालय के कारण पुनर्वास के अनेक काम हो पाये थे। 11 साल में यह महत्व का है कि पिछले लगभग डेढ़ साल से केस की तारिख बिना कारण आगे बढ़ती जा रही थी। यानि माननीय उच्चतम् न्यायालय ही न्याय में देर करता रहा। और अंत में केस ही वापिस किया उन्ही के पास जिनके निर्णय के खिलाफ वादी माननीय उच्चतम् न्यायालय आये थे।
उच्चतम् न्यायालय के कारण क्या हो पाया?
ऽ टिहरी बांध बनने के बाद भी सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वे ने, जो टिहरी बांध जलाशय की गलत सर्वे लाइन के कारण 1000 विस्थापित पुनर्वास से वंचित थे, उनको पुनर्वास योग्य पाया गया। अभी उन सबका पुनर्वास बाकी है।
ऽ नवम्बर 2011 में 103 करोड़ उच्चतम् न्यायालय के आदेश पर टीएचडीसी ने उत्तराखंड सरकार को टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास के लिये दिये।
ऽ अदालत के दवाब पर ही, 2010 में टिहरी झील भरने के कारण झील के किनारे के जो लगभग 45 गांव धसने लगे थे उनके लिये एक सम्पाशर्विक नीति बनाने के लिये सरकारें मजबूर हुई।
ऽ इतने सालों में ग्रामीण विस्थापन से लेकर शहरी विस्थापन तक, कही पर भी पुनर्वास की सुविधाएं पूरी नही मिल पाई हैं। बल्कि नयी समस्याएं सामने आई है।
ऽ हम नैनीताल उच्च न्यायालय में पूरी आस्था रखते हुये यह मानते है कि उच्चतम् न्यायालय के कारण ही सरकार व बांध कंपनी पुनर्वास के मामले पर कुछ सजग रही।
अभी भी बाकि हैः-
ऽ जहाँ पर आज 36 साल बाद भी लोगो को पुनर्वास की समुचित सुविधायें नहीं मिल पाई है, भूमिधर अधिकार नहीं मिल पाया है।
ऽ पुनर्वास की समस्याआंे को हल करने के लिए जो तंत्र बनाए गए वे भी काफी हद तक नाकामयाब रहे है।
ऽ शिकायत विभाग ने जितनी भी उनके पास शिकायते आई उनको निरस्त कर दिया गया। क्यों निरस्त किया यह जानकारी भी लोगो को सीधी नहीं मिल पाई?
ऽ ग्रामीण पुनर्वास स्थल में काफी लोगो ने अपनी ज़मीन इसीलिए बेचीं दी क्यूंकि वहाँ पर पानी एवं अन्य सुविधाएं नहीं थी।
ऽ 29 जुलाई 2005 में जब बाँध कमीशन हुआ था। और 2008 में तत्कालीन उर्जा मंत्री ने घोषणा की थी 1 प्रतिशत लाभ स्थानीय विकास कोष में दिया जाएगा। इस नीति पर कोई काम नही हुआ है।
ऽ तत्कालीन उर्जा मंत्री ने यह भी घोषणा की थी कि बाँध विस्थापितों को 100 यूनिट बिजली मुफ्त मिलेगी। इस नीति पर कोई काम नही हुआ है।
ऽ बाँध की झील भरने के साथ 2010 में लगभग 45 गाँव धसक कर नीचे आ रहे है उनके लिए सम्पाशर्विक नीति बनी। माननीय उच्चतम् न्यायालय में अभी उस नीति पर चर्चा ही चल रही थी।
ऽ माननीय उच्चतम् न्यायालय अभी यह निर्णय नही कर पाया था नये विस्थापितों को ज़मीन नीचे हरिद्वार जिले में दी जाए या फिर झील के आस-पास दी जाए?
ऽ टिहरी बांध शिकायत निवारण सेल के अध्यक्ष श्री इंद्रजीत मलहौत्रा ने उच्चतम् न्यायालय को भेजी अपनी अंतिम रिर्पोट में पुनर्वास निदेशालय के कामकाज पर पूरी तरह असंतोष जताते हुये कहा है कि पर्यावरण का विनाश और टिहरी बांध विस्थापितों का शोषण हो रहा है।
ऽ केंद्रीय वन, पर्यावरण एंव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2003 के बाद से टिहरी बांध क्षेत्र के पर्यावरण व पुनर्वास के मुद्दों की कोई निगरानी की है।
ऽ जलसंग्रहण उपचार योजना का काम सही नही हुआ है या योजना सही नही थी। इसका नतीजा है टिहरी बांध जलाशय के किनारे के गांव नीचे धसक रहे है।
ऽ भारतीय भूसर्वेक्षण की रिर्पोटो पर भी ध्यान नही दिया।
इस पूरी परिस्थिति में आज उच्चतम् न्यायालय ने वापिस उच्च न्यायालय को ज़िम्मेदार बनाया है की अगर प्रभावितों की कोई शिकायत होती है तो उसमे जा सकते है। उच्चतम् न्यायालय का ये भी मानना रहा की विभिन्न तरह के जो भी तंत्र है यानि जिलाधिकारी, पुनर्वास कार्यालय से लेकर शिकायत विभाग तक। वो अपना काम करें और फिर यदि प्रभावितों को अगर कोई समस्या हो तो वो उच्चन्यायालय भी जा सकते है।
अब प्रश्न है कि आखिर कितने लोग वहंा जा सकते है? कितनों के पास उतने संसाधन होंगे?
ज्ञातव्य है की अभी तक राज्य सरकार ने बाँध की झील पूरा भरने की इजाज़त नहीं दी है। क्यूंकि राज्य सरकार पर पुनर्वास देख रही है पिछले कई वर्षाे से यह लगातार हो रहा है कि पुनर्वास कार्यालय पैसे की तंगी से जूझ रहा है पुनर्वास के लिए पैसा टीएचडीसी है। मगर टीएचडीसी मानती है कि पुनर्वास पूरा हो गया है। इसलिये अब पुनर्वास के लिये पैसा नहीं दे रही है। विस्थापित टीएचडीसी व पुनर्वास कार्यालय के बीच झूल रहा है।
सबसे बड़ी बात यह है एक तरफ बांध से उत्पादित बिजली में राज्य सरकार जो 12 प्रतिशत का हिस्सा मिलता है। राज्य सरकार उसका क्या कर रही है? उसका भी कोई पता नही। ऐसे तमाम प्रश्न रहे है जिनको उच्चतम् न्यायालय उठाया जा रहा था। 29 अक्तूबर, 2005 में जब नैनीताल उच्च न्यायालय ने बाँध की झील भरने की इजाज़त दी तो उसके अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट में एन. डी. जयाल व शेखर सिंह तथा किशोर उपाध्याय व अन्य ने इस अन्यायी निर्णय को उच्चतम् न्यायालय में चुनौति दी। इसमें बड़ी भूमिका वकील श्री संजय पारिख जी की रही जो 1992 से इस केस में वादियों की पैरवी कर रहे है।
लोगो की अपेक्षा इस कारण से भी उभरी थी माननीय उच्चतम् न्यायालय के दबाव के कारण से बांध कंपनी और सरकार कुछ-कुछ कामों को आगे बढ़ा रही थी मगर अब वो आशा धूमिल दिखती है मगर फिर भी हमारी अपेक्षा है की नैनीताल उच्च न्यायालय इन बातों पर निगाह रखेगा और जिलाधिकारी, पुनर्वास कार्यालय से लेकर के शिकायत विभाग व सरकार के अंतिम अधिकारी तक इस बात की कोशिश करेगे की उत्तराखंड का सिरताज बताये जाने वाले टिहरी बाँध से जो विस्थापन हुआ है उन विस्थापितों को उनका जायज़ हक मिले और पर्यावरण की जो क्षति हुई है उसकी भरपाई हो।
इस निर्णय से ये भी संकेत मिलता है कि ये मामले सिर्फ अदालतंे ही तय नहीं कर सकती है। ये राज्य और केंद्र सरकार के उर्जा एवं पर्यावरण मंत्रालय की भी ज़िम्मेदारी है। आज जल संसाधन मंत्रालय जिसमें गंगा पुनर्जीवन शब्द भी जोड़ा गया है। वो भी गंगा की सफाई से उपर उठकर गंगा के बांधों से हो रही गंगा व स्थानीय लोगो की तबाही पर ध्यान दें।
लोगो के पास संघर्ष का विकल्प हमेशा है ही!
विमलभाई
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HON'BLE SUPREME COURT SHRUGGED OF THE CASE
Name
of the Project: Tehri Dam {1000+1000+400}: River: Bhagirathi and
Bhilangana; Dam Company : Tehri Hydro Development Corporation;
Environment Clearance: 19-7-1990; Dam commission: July 2006; Case in
Supreme Court: N. D. July and Shakher Singh Vs. GOI and others (SLP (c) No. 22894 of 2005)
After decades Hon'ble
supreme court reversed back the Tehri dam displacement case to Nanital high
court which is a setback for the people displaced due to Tehri Dam. Hon'ble
Supreme Court commented why this case is here since last 10 years? It was
expected from the Hon'ble supreme court that court will ask to the government
and Tehri hydro development corporation (THDC), why the rehabilitation has not
been done? Overlooking all the important aspects of the case like environmental
hazards due to Tehri dam and the rehabilitation of the displaced people, court
only focused on the question that why the case is in supreme court since last
10 years. Why is the Supreme court in such a hurry? It must be noted that the
SC has been rescheduling and postponing the dates of hearing since one and half
year. Its means Hon'ble supreme court delayed the justice and in the end
reversed the case to high court against whom order the appellant had challenged
in Hon'ble supreme court. It important to mention here that it is only because
of the supreme court many rehabilitation works were done in last 11 years.
WHAT HAS BEEN DONE
BECAUSE OF THE HON'BLE SUPREME COURT?
- As in Tehri dam, because of the faulty survey 1000 people were struck out of the rehabilitation process. They were later found eligible for rehabilitation by the Survey of India, due to the efforts of SC but still the rehabilitation has not been done.
- By the order of the SC, in November 2011 THDC gave 103 rore rupees to Uttarakhand government for the rehabilitation purpose.
- In 2010, due to the filling of the Tehri reservoir, around 45 villages on the periphery started to sink in. due to the pressure of the SC the government was compelled to frame collateral policy.
STILL LEFT:
- So far the rehabilitation facilities have yet to be completed rather many new problems have surfaced out.
- Even after 36 Years people have not been provided with the basic facilities and land rights.
- The mechanism built for the rehabilitation process has failed to a larger extent.
- GRA dismissed all the complaints without giving proper reason of dismissal.
- people were forced to sell out their land because they had no water and other basic facilities.
- On 29th July 2005, dam was commissioned. In 2008 the then power minister announced 1% of profit will be given to “Local Area Development Fund” and it is yet to be done.
- The then power minister also announced to provide free 100-unit electricity to dam displaced people. Nothing has been done on this policy also.
- In 2010 dam reservoir was filled which led to sink around 45 villages and for them collateral policy was framed and discussion was going on in SC.
- SC is still in a dilemma whether to provide land to the new oustees, on the periphery of the lake or in the Haridwar district.
- The chairperson of Tehri Dam GRA Mr. Indrajeet Malhotra submitted the final report to Hon'ble supreme court showed dissatisfaction towards the rehabilitation directorate work and commented in the report about environmental damage and the exploitation of the Tehri dam displaced people.
- After 2003 Ministry of environment, forest & climate change (MoEFCC) didn't do inspection on any issues related to environment and rehabilitation in Tehri dam affected area.
- Catchment area treatment plan or work was not in right direction. it resulted in sinking of the villages near by Tehri reservoir.
- Reports of the Geological survey of India were not taken into consideration.
Considering the whole
circumstances, Hon'ble supreme court has shifted the responsibility to Nainital
High Court and said if the affected people have any complain they can appeal to
the Nainital High Court. Hon'ble supreme court also believes that all the
administrative bodies, be the District Magistrate, Rehabilitation directorate
and GRA work properly and if then the affected people have any problem they can
approach to the Nanital High Court.
NOW THE QUESTION IS
HOW MANY PEOPLE HAVE THE CAPABLITY AND RESOURCES TO APPROACH HIGH COURT?
Uttarakhand state
government has not given permission to fill the reservoir fully. State
government is taking care of the rehabilitation. Rehabilitation directorate is
short of funds, monetary funds were
provided by the THDC but now THDC believes that rehabilitation is complete and
that’s why THDC is not giving funds anymore. So displaced people are hanging in
between the THDC and rehabilitation directorate.
The question is about the
12 % share of electricity generated by Tehri dam, that government gets from the
Tehri dam company? what the government is doing with it? All these questions have
been raised in Hon'ble supreme court. On 29 October, 2005 Nainital high court
ordered to fill up the reservoir. Next day it was challenged in Hon'ble supreme
court in the case of N. D. Jayal and Shekher Singh also by Kishore Uppadhay and
others. Advocate Sanjay Parikh played an important role who has been favoring
appellant since 1992.
People’s expectations were
increased because in the pressure of Hon'ble supreme court, the government and
dam companies did some work on the issue of rehabilitation. Now it seems
muddled but we hope that the Nainital High court will keep its eye on it and
the district administration and rehabilitation directorate will try that
affected people get proper compensation and the environmental damage will be
taken care.
This order also indicated
that only the courts cannot finalize the issues like this. This is also the
responsibility of the center and state, Power Ministry and MoEFCC. Nowadays
word Ganga rejuvenation is added to ministry of water resources, so the
ministry should work for the protection of the National River Ganga in upper
reaches and its people and it should be beyond the cleanliness of National River Ganga.
PEOPLE ALWAYS HAVE THE
OPTION OF STRUGGLE.
Vimalbhai
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