श्रीनगर
में जून 2013
की
त्रासदी के लिये जी0वी0के0
कंपनी
जिम्मेदार
{English
translation after Hindi}
राष्ट्रीय
हरित प्राधिकरण ने 14
अगस्त
2015 को,
उत्तराखंड
में जी0वी0के0
कंपनी
के श्रीनगर बांध के कारण जून
2013 आपदा
में तबाह हुयी संपत्ति के
मुआवजें के लिये ‘‘श्रीनगर
बाँध आपदा संघर्ष समिति‘‘
और ‘‘माटू जनसंगठन‘‘ की याचिका
पर सुनवाई की। इस याचिका को
वकील रित्विक दत्ता व वकील
राहुल चौधरी द्वारा दाखिल
किया गया था। सुनवाई में एक
दखल याचिकाकर्ता डॉ.
भरत
झुनझुनवाला ने राष्ट्रीय
हरित प्राधिकरण के माननीय
न्यायाधीश यू0
डी0
साल्वी
व माननीय विशेषज्ञ सदस्य ए0
आर0
यूसुफ
के सामने अपना पक्ष रखा। 2014
से
दाखिल इस याचिका मंे 17
तारिख
हो चुकि है।
ज्ञातव्य
है कि जून 2013
में
आपदा के समय श्रीनगर बांध में
बिजली पैदा ना होने के बावजूद
पहले जी0
वी0
के0
कम्पनी
ने पानी भरा ताकि प्रसिद्ध
धारी देवी मंदिर को डुबाया
जा सके। फिर बाद में बांध को
टूटने से बचाने के लिये,
के
द्वारा आनन-फानन
में,
नदी
तट पर रहने वालों को बिना किसी
चेतावनी के दिये बांध के गेटों
को पूरा खोल दिया। जिससे जलाशय
का पानी प्रबल वेग से नीचे की
ओर बहा। जिसमंे जी0
वी0
के0
कम्पनी
द्वारा नदी के तीन तटों पर
डम्प की गई मक बही। इससे नदी
की मारक क्षमता विनाशकारी बन
गई। जिससे श्रीनगर शहर के
शक्तिबिहार,
लोअर
भक्तियाना,
चौहान
मौहल्ला,
गैस
गोदाम,
खाद्यान्न
गोदाम,
एस0एस0बी0,
आई0टी0आई0,
रेशम
फार्म,
रोडवेज
बस अड्डा,
नर्सरी
रोड,
अलकेश्वर
मंदिर,
ग्राम
सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती,
श्रीयंत्र
टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की
सरकारी,
अर्द्धसरकारी,
व्यक्तिगत
एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा
बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई।
डॉ.
भरत
झुनझुनवाला ने अपना पक्ष रखते
हुये कहा की बाँध कंपनी ने
विभिन्न स्थानो से मक (बाँध
का मलबा)
उठाकर
जहाँ बाढ़ आई है उस क्षेत्र
के पास ही जमा कर दिया था
और मक के कारण बाड़ का स्तर
पूर्व की तुलना मे कम बारिश
आने पर भी तबाही आईं उन्होने
आगे कहा की मई 2013
मे
पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट
बताती है की मक संभालने का काम
नही किया गया जिसके कारण बाढ़
के साथ मक पानी में बही।
पर्यावरणीय शर्ताे के अनुसार
जहाँ भी मक डाली जाती है वहाँ
सुरक्षा दीवार व मक पर पेड़
लगाना,
जाली
लगाना किया जाना चाहिए। मगर
बरसों से नदी किनारे मक रखी
गई पर फिर भी उस पर पेड़ नही लगाए
गये जिससे की मक जम जाती और
पानी के साथ ना बहती।
प्रमुख
मुद्दा यह भी है की राज्य
सरकार ने अभी तक बाढ़ क्षेत्र
की परिभाषा नही तय की जिस
कारण से वो नदी के उपर किसी
भी स्तर को बाढ़ स्तर मे शामिल
कर सकती है। उन्होने जी.वी.के.
कंपनी
द्वारा दिए गए कागज़ातो से
भी सिद्ध किया की जी.वी.के.
कंपनी
की ग़लती से ही नदी का जल स्तर
उंचा उठा। सभी तर्काे के
साथ विभिन्न अदालती आदेशो
का हवाला भी दिया गया।
उत्तराखंड
सरकार के वकील ने अपना पक्ष
रखते हुये पहले तो यह सिद्ध
करने की कोशिश की कि यह मुक़दमा
सुनने लायक ही नही क्यूंकी
यह ईश्वरीय कारणांे से हुआ
है और इसमंे जी.वी.के.
कंपनी
का कोई दोष नही है। उस समय
बहुत तेज बाढ़ आई थी। हम
उत्तराखंड राज्य से है और
हमारे पास सभी आँकड़े है।
जी.वी.के.
कंपनी
के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता श्री
लाहोटी ने कहा की व इन सभी
तर्काे पर कंपनी से बात करके
प्राधिकरण के समक्ष अपना पक्ष
रखेगे। प्राधिकरण की पीठ ने
25 अगस्त
को आगे की सुनवाई के लिये तारिख
रखी है।
विमलभाई
GVK Company was responsible
for June 2013 Disaster in Srinagar
On 14th
August, 2015, The National Green Tribunal heard the petition filed by
“Srinagar Bandh
Aapda Sangharsh Samiti”
and “Matu Jansangathan”
for the compensation against the destruction and damage happened
during the June, 2013 disaster from Srinagar Dam of GVK Company in
Uttarakhand. Filed
with Adv.
Ritwik Dutta and Rahul Chowdhary. This was the 17 date of the case
in NGT. Case heard by HON’BLE
MR. JUSTICE U.D. SALVI, JUDICIAL MEMBER and HON’BLE
PROF. A.R. YOUSUF, EXPERT MEMBER
We know that during June, 2013
disaster, GVK Company had filled the dam reservoir uselessly when no
electricity was being generated, purposefully to drown the famous
Dhaari Devi temple. Thereafter, when it got filled completely, they
opened the gates of dam in haste to prevent it from any unexpected
damage without even giving any warning to the villagers living nearby
to river stream.
Dr. Bharat Jhunjhunwala has
said in his defence that the Dam company was carried the muck from
different places and piled up in the flood area which made the area
more vulnerable to the flood even after less rain than previous year
and resulted in disaster. The May, 2013 report of MoEF&CC is also
showing that muck was not been handled which caused them to flown
away with the streams during flood. According to the environmental
conditions, there should be safety wall, plantation, and safety net
on the muck kept. But the muck, which was kept for years near the
river stream, was neither protected by safety walls and safety net,
nor was any plant planted, which can prevent the muck from getting
drained with river streams.
The important issue is also
about the definition of Flood Plain which has not been fixed by the
state government yet and due to which they can include any level
above the river as reference of Flood Plain. It has been proved
through the documents provided by the GVK Company that the water
level of the river was risen only because of the mistakes of company.
With all arguments, Court orders were also provided in this context.
The lawyer of defence of
Uttarakhand Government, while putting arguments in his defence, tried
to prove that the case is irrelevant and happened because of natural
disaster which makes the GVK Company not guilty. At that time, a
rapid flood was come. We belong to Uttarakhand state and have all the
evidences.
The senior advocate of GVK
Company, Shri Lahoti said that he will put his defence after talking
with the company on all these arguments. The bench of tribunal has
fixed the date of 25th
August for further proceedings.
Vimalbhai
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