35
साल
बाद भी पुनर्वास सुविधायें नही
राज्य
सरकार भी अपने स्तर पर पूरा
कर सकती है
{English
translation after Hindi}
टिहरी
बांध पूरा होने के 10
साल
पर टिहरी बांध विस्थापितों
ने राज्य सरकार को कटघरें में
खड़ा किया। लोग लगातार राज्य
सरकार को अपनी समस्याओं पर
पत्र लिख रहे है कि राज्य सरकार
भी अपने स्तर पर समस्याओं का
कुछ समाधान कर ही सकती है।
माटू जनसंगठन के साथ लोगो ने
अभी फिर मुख्यमंत्री को पत्र
लिखकर कहा है कि हरिद्वार के
पथरी भाग 1,
2, 3 व
4
में
टिहरी ग्रामीण क्षेत्र से
1979
से
विस्थापितों को भेजा जा रहा
है। जहंा लगभग 40
से
ज्यादा गांवो के लोगो को
पुनर्वासित किया गया है।
किन्तु जो मूलभूत सामुदायिक
सुविधायें अधिकार रुप में
पुनर्वास के साथ ही मिलनी
चाहिये थी उनको लोग आज 35
वर्षाे
बाद भी सरकार से मांग रहे है।
किन्तु इस बारे में आज तक कोई
सुनवाई नही हुई है। जिसके कारण
लोगो का जीवन दुष्कर हो गया
है।
- यहंा के सभी विस्थापितों को भूमिधर अधिकार भी नही मिल पाया है। जिसके बिना कृषि संबधी कोई सुविधा जैसे किसान क्रेडिट कार्ड, उर्वरकों में छूट आदि नही मिल पाती है। लोग बैंक लोन आदि किसी प्रकार की जमानत भी नही ले सकते। कोई गारंटी नही दे सकते। निवासी होने का प्रमाण तक नही है।
- पिछले 35 वर्षो में लगभग 24,000 की विस्थापितों की आबादी के लिये निम्नतम सुविधा तक नही है। प्राथमिक चिकित्सा, जच्चा-बच्चा केन्द्र आदि भी नही है।
- 35 सालों में बहुत ही कठिनाई से 10वीं कक्षा तक के स्कूल की व्यवस्था हो पाई। किन्तु इसके बाद की शिक्षा का कोई प्रबंध नही है।
- मात्र भाग एक में को-आपरेटिव सोसाईटी का बैंक है तथा 34 सालों के बाद दिसंबर 2013 में भाग एक में ही अब इंडियन ओवरसीज़ बैंक खुल पाया है।
- यातायात की कोई सरकारी व्यवस्था तक नही है।
- 35 सालों में डाकघर तक नही मिल पाया है तो उससे जुड़ी कोई सुविधा भी नही मिल पा रही है। जबकि भवन मौजूद है।
- जंगली जानवरों से खेतों की सुरक्षा हेतु, कोई सुरक्षा दिवार नही बनी है। जिससे जानवर फसलों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे है।
- नीति के अनुसार बिजली मुफ्त मिलनी चाहिये थी। किन्तु दाम देने पर भी बिजली की सुचारु व्यवस्था नही है। जब श्री सुशील कुमार शिदें उर्जा मंत्री थे तो उन्होने टिहरी के एक कार्यक्रम में प्रति विस्थापित व प्रभावित परिवारों को 100 यूनिट बिजली देने की घोषणा की थी।
- पेयजल व सिंचाई के लिये विस्थापितों ने ज्यादातर अपनी व्यवस्था की है। सिंचाई के लिये बरसों की मांग के बावजूद हमें पास बहती गंगनहर से सिंचाई का पानी नही मिल पाया है। मंदिर, पितृकुटटी, सड़क, गुल आदि की सुविधायें 35 सालों बाद भी व्यवस्थित रुप में नही मिल पाई है।
यह
दुखद स्थिति है।
राज्य
सरकार को भी टिहरी बांध से
मिलने वाली मुफ्त बिजली से
जो प्रतिदिन आमदनी हो रही है
उसे टिहरी बांध विस्थापितों
के लिये खर्च करना चाहिये।
ऊर्जा मंत्रालय की ‘‘पनबिजली
परियोजनाओं के विकास की दिशा
निर्देश‘‘ 23
मई
2006
के
अनुरूप है जिसमें पेज न0
10 पर
लिखा है कि बांध से दी जाने
वाली मुफ्त बिजली की आमदनी
को बांध विस्थापितों पर खर्च
किया जाये। नीति का संबधित
हिस्साः-
2.3
भारत
के गृह राज्य सरकार को 12ः
मुफ्त बिजली का प्रावधान है,
दिनांक
17
मई,
1989 के
कार्यालय ज्ञापन के अनुसार,
मंजूरी
दी जाती है क्योंकि गृह राज्य
को पनबिजली परियोजनाओं में
विस्थापितों के पुनर्वास के
लिए वैकल्पिक भूमि और संसाधनों
का इंतजाम करने में काफी परेशानी
होती है”। राज्य सरकारों को
जल विद्युत परियोजनाओं से
प्रभावित क्षेत्रों में
पुनर्वास की समस्याओं का ध्यान
रखने के लिए,
उन्हें
सक्षम करने के लिए,
इस
तरह के (प्रस्तावित)
12ः
मुफ्त बिजली प्रोत्साहन के
रूप में देने के द्वारा सहायता
प्रदान करने की आवश्यकता है।
इस
तरह की सहायता और प्रोत्साहन
के बिना देश की काफी पनबिजली
क्षमता अप्रयुक्त रह जायेगी।
तदनुसार,
राज्य
सरकार,
भारत
नीति के अनुसार वहाँ के स्थानीय
क्षेत्र के विकास और पनबिजली
परियोजनाओं के विकास की दिशा
निर्देश से होने वाले प्रभावित
लोगों को होने वाली कठिनाईयों
को कम करने के लिए,
परियोजना
से 12ः
मुफ्त बिजली प्राप्त करने के
अधिकारी है।
{किसी
भी विवाद स्थिति में अंग्रेजी
अनुवाद,
अंग्रेजी
वाले प्रैस नोट में देखा जा
सकता है।}
जलविद्युत
नीति 2008
के
अनुसार स्थानीय क्षेत्र विकास
कोष में इस उद्देश्य से दिया
जायेगा ताकि अतिरिक्त ढ़ाचा
और सामूहिक सुविधाओं के लिये
लगातार आय होती रहे।
पथरी
भाग 1,
2, 3 व
4
हरिद्वार
के ग्रामीण क्षेत्र में रहने
वाले टिहरी बांध विस्थापितों
के 35
वर्षाे
से लंबित कार्यो के निपटान
के लिये इस राशि का उपयोग करना
चाहिये। हम लगातार सरकार से
यह मांग विभिन्न समयों पर
उठाते आ रहे है।
इन
परिस्थितियों में हमारी मांग
है किः-
- विस्थापितों को मूलगांव जैसा ‘‘संक्रमणी जैड ए श्रेणी क‘‘ का भूमिधर अधिकार तुरंत दिया जाये। यदि वन भूमि की समस्या है तो इस बारे में आप केंद्रीय पर्यावरण एंव वन मंत्रालय से स्वंय बात करें और विस्थापितों को भूमि अधिकार दिलायें।
- सभी ग्रामीण पुनर्वास स्थलों को तुरंत ही राजस्व ग्राम भी घोषित किया जाये।
- ऊर्जा मंत्रालय की नीति के अनुसार विस्थापितों को मुफ्त बिजली दिये जाने के प्रावधान को लागू करें। इस विषय में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय से बात करें।
- शिक्षा, स्वाथ्यय, यातायात, सिंचाई व पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधायें तुरंत पूरी की जाये। इन कार्यो के लिये टिहरी बांध परियोजना से, जिसमें कोटेश्वर बांध भी आता है, मिलने वाली 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली के पैसे का उपयोग किया जाये।
- सभी कार्यों के लिये विस्थापितों की ही समितियंा बनाकर काम दिया जाये ताकि कार्य की गुणवत्ता बने और सही निगरानी भी हो सके।
- चूंकि विस्थापन और पिछले 34 सालों से इन सुविधाओं के ना मिलने के कारण यह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक रुप बहुत पिछड़ गया है। इसलिये टिहरी बांध के ग्र्रामीण पुनर्वास स्थलों पथरी भाग 1, 2, 3 व 4 हरिद्वार को पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया जाये।
इस
कार्य को केन्द्र व राज्य
सरकारे मिलकर करे। नये बांधों
को बनाने से पहले कार्यरत
बांधों के विस्थापन-पर्यावरण
की समस्याओं का निदान आवश्यक
व न्याय की मांग है।
विमलभाई, पूरण सिंह राणा, आशा डोभाल, बलवंत सिंह पंवार
Even
after 35 years civic amenities not completed
State
government can do from its resources
After the 10 years of
commissioning the Tehri Dam, oustees put question on state
government. People are continuously sending letters regarding their
problems to State Government. People along with Matu Jansangathan
sent a letter to Chief Minister requesting that many of the problems
can be solved at the level of state Government.
The displaced of Tehri Dam HEP
are being sent to Pathri part 1,2,3,4 at Haridwar, in the name of
rehabilitation since 1979. Around 40 villages are set up at this
place.
Oustees should have been
provided basic amenities along with the rehabilitation but we’ve
been asking the government for past 35 years for the same. None of
the governments paid heed to our requests and because of this we
still live in utter distress.
- The oustees have not yet got their land rights in the displaced land. Because of this we cannot avail any government facility like farmer’s ration card, subsidies etc. We cannot even apply for bank loans, we have no property to show. We do not even have documents to show that we live here.
- In past 35 years, around 24,000 displaced people live here with no health facility. Even basic Health centres and child care centers are not available.
- After a lot of efforts, we’ve been able to have schools till 10th class but there is no availability of education after that.
- Only part 1 had one bank cooperative society. After 35 years, in September 2013, another Indian Overseas Bank opened, again in Part 1 only.
- There is no transport facility by the government provided at all.
- Since past 35 years, oustees have still not been provided with post office and hence can not avail any of its services although the building is there for it to function.
- There is no protection wall to protect agricultural farms and because of it wild animals continuously harm crops and farms.
- According to the policy of Ministry of Power, oustees should have been provided free electricity but even after paying we do not have adequate supply of electricity. When Shri Sushil Kumar Shinde were the Power Minister, he announced 100 units of free electricity to the people displaced because of Tehri HEP.
- For drinking water and irrigation people have done their means for it. Even after flowing Ganga nearby, facility of irrigation for the farms has not yet been provided, even when the water is coming only after drowning our very villages.
- Temple, Roads and other basic amenities are still missing after 35 years of displacement.
It is extremely sad
situation.
The electricity is regularly
produced at Tehri HEP and the state government is earning regular
revenues out of it. The total revenue must be more than thousand
crores till date.
The state government should
utilize the money, getting form generated from electricity generation
from Tehri HEP should be used for the displaced people of the
project. The energy ministry’s guideline in “Guidelines for
development of Hydro Electric Projects Sites" 23 May 2006 speaks
of the same fact that 12% free power should be used for developmental
facilities for the displaced population. The concerned paragraph is:
2.3 Provision of 12% free
power to the home state Government of India, vide its O.M. dated 17th
May, 1989 have approved that “since the Home States are
increasingly finding it difficult to locate alternative land and
resources for rehabilitation of the oustees in hydro-electric
projects. They, need to be suitably assisted by giving incentives,
such as the (proposed) 12% free power, to enable them to take care of
the problems of rehabilitation in the areas affected by the
hydro-electric projects.
Without such assistance and
incentives, considerable hydel potential of the country would remain
unutilized. Accordingly, the State Government shall be entitled to
realize 12% free power from the project for local area development
and mitigation of Guidelines for development of Hydro Electric
Projects Sites hardships to the project affected people in line with
the Govt. of India policy”.
Also according to Hydro power
Policy, 2008, under the chapter “Salient Features of New Hydro
power Policy”
10.1 (h) An additional 1% free
power from the project would be provided and earmarked for a Local
Area Development Fund, aimed at providing a regular stream of revenue
for income generation and welfare schemes, creation of additional
infrastructure and common facilities etc.
This money should be utilized
to provide amenities that have remained pending for the displaced
people in Pathri Bhaag 1,2,3,4, Haridwar.
Thus we demand that:
- The displaced should get the land rights in an immediate manner. The rights should be as mentioned in “Sankramani Z a category K” (‘‘संक्रमणी जैड ए श्रेणी क‘‘). If there is an issue of forest land, the state government needs to deal it with center and the forest department itself but the land rights to the people need to be immediately given.
- All the displaced rural locations should be declared “Revenue” villages immediately.
- According to the guidelines of the Energy Ministry, free electricity should be provided to these villages and central government should be approached if needed for its quick application.
- Education, health, transport, irrigation and drinking facilities should be immediately provided to these villages. For its expenses, 12% free electricity from Tehri HEP in which Koteshwar Dam also comes should be utilized.
- For all these works, associations of the displaced should only be assigned the responsibility for quality management and better surveillance.
- Because of displacement and 35 years of unavailability of basic amenities, we’ve remained backward socially, politically, economically and educationally. Therefore, Pathri Part 1,2,3,4 should be declared backward regions constitutionally.
The state and central
government should together work to accomplish these work. Before
making dams, there is a need to regulate the displacement,
rehabilitation and environmental concerns of the old projects. This
is the demand of justice.
Vimalbhai, Puran Singh Rana, Asha
Dobhal, Balwant Singh Panwar
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