सर्वाेच्च न्यायालय में तारिख फिर आगे बढ़ी
पर्यावरण मंत्रालय ने 19 महिनों से जवाब दाखिल नही किया
पर्यावरण मंत्रालय ने 19 महिनों से जवाब दाखिल नही किया
{English translation after
Hindi}
उत्तराखंड
में गंगा पर बने टिहरी बांध पर एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार
वाले केस में 10 फरवरी 2014 के आदेश में पर्यावरण, वन एंव जलवायु परिवर्तन
मंत्रालय को अपना शपथ पत्र दाखिल करना था कि उसे उत्तराखंड के जंगल भूमि
को विस्थापितों को देने पर उसकी कोई आपत्ति है या नही? 15 जुलाई 2014 को
अदालत ने नाराज होकर कहा भी कि मंत्रालय ने 4 हफ्ते का समय मांगा था किन्तु
4 महिने बाद भी कोई सूचना अपने वकील तक को नही दी। सर्वोच्च अदालत में
इसके बाद से 16 बार तारिख आगे बढ़ चुकि है। पर्यावरण, वन एंव जलवायु
परिवर्तन मंत्रालय ने 19 महीने बाद भी कोई जवाब नही दिया है। अब अगली तारिख
8 सितम्बर है।
टिहरी बांध के खिलाफ एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार वाले केस में माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश को 13 साल और टिहरी बांध के कमीशन होने के 10 साल बाद भी टिहरी बांध विस्थापितांे का पुनर्वास पूरा नही हो पाया है। बंाध संचालित होने के बाद पाया गया कि सर्वे गलत थे। नये सर्वे में हजार से ज्यादा नये विस्थापित मालूम पड़े। बांध की झील के किनारे के लगभग 40 गांव धसक रहे है।
उत्तराखंड राज्य सरकार जो कि पुनर्वास का काम कर रही है, उसका कहना है कि टी.एच.डी.सी. पुनर्वास के लिये पैसा मुहैया नही कर रहा है। ऊर्जा मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापन 09 दिसम्बर, 1998 व 2 जनवरी 2001 के अनुसार पुनर्वास का संपूर्ण काम प्रदेश के सरकार और इसके ऑफिसर के द्वारा गढ़वाल डिवीज़न के कमिश्नर के नियंत्रण और देख रेख में किया जाना चाहिए, जिसके लिए निधि टी.एच.डी.सी. द्वारा उपलब्ध करायी जानी थी। किन्तु बांध संचालित होने के बाद टी.एच.डी.सी. के रुख में पूरी तरह बदलाव आ गया। टी.एच.डी.सी. विभिन्न तरह के बहुत छोटे पुनर्वास कार्याे हेतु जैसेः- टिहरी बांध जलाशय में जलभराव परिक्षेत्र में साम्पार्श्विक क्षति से प्रभावित परिवारों के विस्थापन एंव पुर्नस्थापन हेतु धन उपलब्ध करने के सम्बन्ध में, टिन शेडों के निर्माण हेतु, परियोजना एवं शिकायत निवारण प्रकोष्ठ हेतु वर्ष 2014-15 के धनाबंटन के सम्बन्ध में, पुनर्वास हेतु अधिग्रहण/क्रय की गयी रानीपुर रोह, शिवालिकनगर तथा पथरीरोह (सुमननगर) की भूमि का मूल्य भुगतान किये जाने के सम्बन्ध में धन की मांग पूरी नहीं की हैं।
स्थिति तो यह है कि टिहरी बांध परियोजना के अधिष्ठान एवं शिकायत निवारण प्रकोष्ट हेतु, संयुक्त विशेषज्ञ समिति के समस्त सदस्यों का मानदेय दिए जाने हेतु भी धन उपलब्ध नहीं कराया गया है। यहाँ तक की शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के नियमित क्रियान्वन के लिए भी तय निधि नहीं आ रही है। इसके सम्बन्ध में पुनर्वास निदेशालय टी.एच.डी.सी. से पैसा मांगता है तो टी.एच.डी.सी. कभी कागजों मे कमी, कभी प्रक्रिया की कमी, कभी केंद्र सरकार के उर्जा मंत्रालय से स्वीकृति की कमी आदि का कारण देकर धन की मांग पूरी नही करती। जबकि ये मांगे बहुत पहले ही पूरी हो जानी चाहिए जो आज तक भी कागजों पर ही चल रहा है।
29 जुलाई 2015 को टिहरी बाँध को संचालित हुए भी 10 साल हो गए है। किंतु अभी भी खासकर ग्रामीण पुनर्वास स्थल में न्यूनतम सुविधायें पूरी नहीं हो पायी है। कई पुनर्वास स्थलों से तो विस्थापित इन समस्याओं के कारण जमीन बेचकर कहीं और बसने पर मजबूर हो रहे है।
जबकि एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार वाले टिहरी बांध के केस में विस्थापितों का पुनर्वास माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के 01 सितम्बर 2013 के आदेश के अनुसार--
‘‘यह स्पष्ट किया गया है कि परियोजना के चालू होने के
पूर्व शर्तो को साथ-साथ अमल करने करने की शर्त को वन एवं पर्यावरण
मंत्रालय के मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत बहुत बारीकी से निगरानी किया जाएगा
एवं परियोजनाकार यह सुनिश्चित करेंगे कि जलाशय को भरने के लिए, टी-1/टी-2
सुरंग बन्द करने के पूर्व हरेक तरीके से विस्थापन, पुनर्स्थापन एवं
पुनर्वास हो जाए। .............................. ...इन शर्तों के पूरा
होने के बाद ही डूब लायी जाएगी। प्रत्यार्थी द्वारा दिये गये इस विशिष्ट
कथन द्वारा याची को सुनिश्चित करना चाहिए कि टिहरी बाँध के बारे में 19
जुलाई 1990 के पर्यावरणीय मंजूरी के प्रमाण पत्र की समस्त शर्तों के पूरी
तरह पालन होने तक किसी डूब की अनुमति नहीं दी जाएगी।‘‘
नमामि गंगा का जाप करने वाली सरकार गंगा पर बने बांधों को रोकने का तो कोई उपक्रम कर ही नही रही है। साथ ही कब अब तक बने बांधों जैसे टिहरी बांध के विस्थापितों के बारे में सही रुख लेगी?
विमलभाई व पूरणसिंह राणा
DATE
EXTENDED 16th
TIMES IN SUPREME COURT
MINISTRY
OF ENVIRONMENT DID NOT REPLY SINCE
19 MONTHS
Ministry
of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC)
had
to file
an
affidevit in
the case on Tehri Dam filed
by N.D. Juyal and Shekhar Singh,
for the oustees of Tehri Dam regarding
its objection to
providing
forest land to the
affected
people.
On the
15th
July 2014 the
Honb'le
Supreme Court took
record that the ministry asked for a time period of a month but even
after 4 months
the ministry did not provide any information to its
lawyer. The
hon'ble supreme court shifted the hearing date atleast 16 times but
the
MoEFCC
has
not responded
till now even after 19 months. Next
date for the hearing is now on 8th
September, 2015.
After 13 years of the order of
Hon'ble Supreme Court in the case of N.D. Jayal and Shekhar Singh Vs.
Government of India and 10 years since the commission of Tehri Dam,
the rehabilitation has not been completed.
The
state government of Uttarakhand, which
is
responsible
for the
rehabilitation is saying that Tehri Hydro Devlopment Commission
(THDC)
is not releasing the funds for the rehabilitation and resettlement
work. According to the Office Memorandum dated 09th
December, 1998 and Office Memorandum dated 2nd
January 2001, the complete rehabilitation work shall be done by State
Govt. in the monitoring and control of Commissioner of Garhwal
Division. For which THDC was made responsible for making funds
available.
THDC has also not fulfilled
the demand of providing funds for different rehabilitation works
like, releasing funds for the resettlement and rehabilitation of
affected families, funds for those affected by the collateral damage
done due to Tehri dam reservoir in surrounding area; funds for
construction of tin sheds, allotment of funds for the year 2014 - 15
to the Project and Grievance Redressal Cell, for payment of acquired
or purchased land for rehabilitation in Ranipur Road, Shivaliknagar
and Pathrirod (Suman Nagar).
The situation of
rehabilitation has become worse as the funds have not been released
even for the honorarium of the members of Joint Expert Committee and
Grievances Redressal Cell of Tehri Dam Project. In this regard, THDC
has justified its own failure through giving arbitrary excuses like
lack of appropriate approvals, lack of adequate processes and lack of
approvals from Ministry of Power. In reality, it should have been
completed long back but the work is still stuck due to puzzles being
played by the THDC in documents and paper work.
It has now been 10 years since
the completion of Tehri dam and yet the basic amenities have not been
provided for the rural rehabilitation. Many people have shifted from
the rehabilitation site to other places because of numerous problems
in terms of basic amenities.
According
to the order dated 01st
September, 2013 of Hon’ble Supreme Court in the case of N.D.
Jayal and Shekhar Singh Vs. Government of India
the rehabilitation of affected families of Tehri Dam will be as per
the orders -
“It
is made clear that implementation of pari-passu conditions prior to
the commission of the project shall be closely monitored under the
existing mechanism set up by MoEF and the project authorities will
ensure that prior to closing of diversion tunnels T1/T2 for
impoundment of the reservoir, evacuation, resettlement and
rehabilitation are completed in all respects.
----------------- It is
only after the completion of these conditions impoundment would
start. This categorical statement made by the respondents should
assure the petitioners that no impoundment would be allowed until all
the conditions in the Environmental Clearance Certificate of the
Tehri Dam dated July 19, 1990 are compiled with and stand fulfilled.”
The
government which claims to worship the Ganga and chants “Namami
Ganga” has done nothing to stop the construction of dams on the
same Ganga. Along
with this when will the government take necessary action for
rehabilitation of oustees of earlier Dams like Tehri Dam.
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