अलकनंदा गंगा पर स्थापित पहला निजी बाँध, विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना
की सुरंगों में बुरी तरह मलबा भर गया है और उसके निकट वाला दरवाजा टूटा
उत्तराखंड में बद्रीनाथ जी से पहले अलकनंदा गंगा पर स्थापित पहला निजी बाँध, विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना की सुरंगों में बुरी तरह मलबा भर गया है और उसके निकट वाला दरवाजा टूटा है।
जेपी कंपनी ने इस बार हर तरफ सुरक्षा गार्ड खड़े कर दिए ताकि यह खबर बाहर ना फैल सके। चित्रों से साफ़ जाहिर होता है कि बाँध का दक्षिणी दरवाजा नीचे से टूटा है और जून 2013 की आपदा में खीरोघाटी व अलकनंदा में उपर से आया हुआ मलबा वापस बाँध की सुरंगों में घुसा है और दरवाजों को तोड़ा।
जून 2013 की आपदा तरह इस बार भी जेपी कंपनी ने बाँध के दरवाजे तेज बारिश होने के बावजूद नहीं खोले थे। यह बात समझ से परे है कि अपने को विश्व स्तरीय तकनीकी ज्ञान वाली कंपनी मानने के बाद भी जेपी कंपनी के अधिकारी इस बात का जरा भी अंदाज नहीं लगा पाये कि मानसून में ऊपर जमा जून 2013 की आपदा का भारी मलबा वापस बाँध को व नीचे के क्षेत्र में क्षति पंहुचा सकता है।
माटू जनसंगठन ने यह बात अक्टूबर 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) में दायर याचिका में पहले ही कह दी थी जो कि अब सामने आ गई है। जेपी कंपनी और राज्य सरकार ने प्राधिकरण को भी भ्रमित किया किंतु बाँध से नीचे के गाँवों, लोगों के संपत्तियों की तबाही की जिम्मेदारी से जेपी कंपनी नहीं बच सकती।
पूर्व में खबर यह भी थी कि जेपी कंपनी का यह बाँध दूसरी देशी और विदेशी कंपनी को बेचा जा रहा था। किंतु इन् परिस्थिति में क्या उन् कंपनियों को यह बाँध लाभप्रद होगा?
क्षेत्र व राज्य के हित में होगा कि इन् बांधों को सरकारें गंगा और जनहित में तुरंत रद्द करे नाकि किसी अदालती आदेश की राह देखें।
पर्यावरण मंत्रालय व स्थानीय प्रशासन को यह भी देखना चाहिए कि ऊपर से आए मलबे का निस्तारण कैसे हो? यह गंभीर प्रश्न है ताकि श्रीनगर के लोगो को जिस तरह जून 2013 की आपदा में श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के मलबे में अपने घर व संपत्ति गंवानी पड़ी वो स्थिति दुबारा ना हो।
गंगा ने पुनः सिद्ध किया है कि बाँध उसे नामंजूर है। इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकीय क्षेत्र में बाँध हमेशा के लिए खतरा पैदा करते रहेंगे। यह बात बांध कपंनी व सरकारों को समझ लेनी चाहिये नाकि बाँध को एक जिद्द के रूप में लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
विमल भाई, भरत चौहान, दिनेश पंवार
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Ganga
again refused Dams
Vishnupryag hydroelectric project situated at
Alaknanda Ganga before Badrinath and furthermore the door broke down.
In
Uttarakhand, a lot of debris has entered into the tunnel of first
private dam of Vishnupryag hydroelectric project situated at
Alaknanda Ganga before Badrinath and furthermore the door broke down.
Jaypee
Company has placed guards all over so that the news cannot go out.
This has been clearly visible through the pictures that the door has
broken at the bottom and the debris came from Keeroghaati and
Alaknanada from upstream in 2013 disaster, has entered the tunnel
again and broke down the doors.
Like
June, 2013 disaster, Jaypee Company has not once again opened the
door even after much rain. This is beyond understanding that officers
could not predict that the debris of 2013 disaster collected above,
can be dangerous again in this monsoon for the dam and the places
situated downstream.
In
Oct, 2013, Matu Jansangathan said this previously in filed petition
at NGT, which has figured again. Jaypee Company and State Government
has also disillusioned the tribunal but they cannot escape from the
responsibility of disaster happened again in the villages downstream
and people lost their properties and valuables.
This
has also come in light that Jaypee Company was selling this dam to
other national and international company. But can this be profitable
for those companies in this situation?
This
will be beneficial for the area and state that without waiting for
the court orders, Government should cancel these dams in
the favor
of Ganga and people.
The
ministry of Environment and local administration should also find out
the ways to deal with the debris coming from upstream. This is a very
serious question so that Srinagar, 2013 incident should not happen
again in which people lost their home and properties because of the
debris came down through Srinagar Hydroelectric Project.
Ganga
has proved again that Dam is not acceptable. They will always remain
dangerous in the ecologically fragile places. The Dam Company and
respective Government should also understand this besides resisting
for it and move ahead for the greater common good of people living
there and the ecology of that area.
Vimalbhai, Bharat Chowhan, Dinesh Panwar
No comments:
Post a Comment