Thursday, 30 July 2015

Press Note: “After ten years”

                      ‘‘दस बरस बाद‘‘

(English translation after Hindi)
बांध विस्थापित क्षेत्रों में आज भी भूमिधर अधिकार नहीं मिल पाए है। बिजली, पानी, स्वास्थय सेवाएं, शिक्षा व्यस्था, बैंक यहाँ तक कि पोस्ट ऑफिस और जानवरों से खेती की सुरक्षा के लिए ताड़-बाड़ जैसी मूलभूत समस्याओं के लिए 1978 से आज तक टिहरी बाँध विस्थापित/प्रभावित संघर्ष कर रहे है। नए टिहरी शहर में मात्र पुराने टिहरी शहर की मात्र 40 प्रतिशत आबादी बस पायी, पुश्तों और सीढ़ियों के शहर में हाँफते हुए लोग घुटनों के दर्द और साँस की बीमारियों से पीड़ित हो रहे है। 29 जुलाई, 2005 में बाँध के उद्घाटन के समय तत्कालीन उर्जा मंत्री द्वारा मुफ्त बिजली का किया गया वादा मात्र वादा ही रह गया।
टिहरी बाँध के उद्घाटन के 29 जुलाई, 2005 से 10 वर्ष बीत गए और टिहरी बाँध की झील में रेत भयानक स्तर तक भर गई है। साथ ही झील के चारों तरफ के लगभग 40 गाँव बाँध कि झील के कारण धसक रहे हैं। बाँध कंपनी ‘’टिहरी जल विद्युत् निगम इंडिया लिमिटेड’’, इन गाँवो को बाँध से ना प्रभावित मानकर प्राकृतिक आपदा का शिकार मान रहीं है।
पुनर्वास कार्य पूरा ना होने के कारण एन. डी. जुयाल, शेखर सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य, तथा किशोर उपाध्याय बनाम भारत सरकार मुकदमों के कारण माननीय उच्चतम न्यायालय ने बाँध कि झील को पूरा भरने पर रोक लगा रखी है। जो यह बताता है कि बाँध पूरा करना मात्र एक जिद्द थी जिसमे महत्वपूर्ण परि-पासु की शर्त का पालन नहीं हुआ जिसके अनुसार पुनर्वास कार्य व बाँध का इंजीनियरिंग कार्य साथ साथ होना चाहिए था।
बाँध से 1000 मेवा बिजली पैदा करने का दावा था वो भी कम ही पैदा हो पायी है। यहाँ प्रश्न यह भी उठता है कि राज्य सरकार को मिलने वाली 12% मुफ्त बिजली का पैसा कहाँ गया। केंद्रीय उर्जा मंत्रालय नीति के अनुसार यह पैसा बाँध विस्थापितों व पर्यावरण कि समस्याओं के निराकरण के लिए खर्च किया जाना चाहिए था।
बाँध बनने के बाद 2010 में जो बाढ़ आई जिसमे पानी बाँध के ऊपर से गुजरने वाला था उस समय ये सिद्ध हुआ कि झील के पानी कि सर्वे लाइन गलत थी। पुनः सर्वे में नए विस्थापित आए अभी इन सबका पुनर्वास नहीं हुआ है। पुनर्वास में भ्रष्टाचार पराकाष्ठता पर रहा है जो हाल ही में विस्थापितों को हरिद्वार में नदी के खादर में जमीन के पट्टे काट दिए गए। खुलासा होने पर ये स्तिथि कुछ रुकी।
इससे पुनः यह सिद्ध हुआ है कि इन सबका 1978 से विस्थापन शुरू होना, 10 साल से बिजली पैदा शुरू होना जिस विकास कि ओर इंगित करता है उसमे नदी घाटी के लोगों का स्थान ना होना, पर्यावरण की बर्बादी बड़ा भ्रष्टाचार दिखाई देता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शब्द सही सिद्ध हुए जो उन्होंने बाँध बनने से पूर्व अपने टिहरी दौरे के बाद कहे थे कि यह बाँध ठेकेदारों और पूंजीपतियों को ही फायदा पहुचायेगा।
बांध के उद्घाटन के 10 साल बाद आज नमामि गंगा का जाप करने वाली केंद्र सरकार व राज्य की कांग्रेस नीत सरकार, क्या इसपर विचार करेगी?
विमलभाई, पूरण सिंह राणा

After ten years”

Land rights are still a misery in the Tehri Dam displacement regions. Since 1978 to present, The Tehri Dam affected people are struggling for the basic amenities like electricity, water, health services, educational facilities, bank, even the post offices and fencing to protect the agricultural crops from animals. Only 40% of Old Tehri city has settled in New Tehri city, the people of city having retaining walls and stairs has been suffering from ankle’s pain and respiratory diseases. The promises of free electricity made by the immediate energy minister at the time of inauguration of the Dam on 29th July, 2005, have also remained as only promises for the people.

It has been 10 years since the inauguration of Tehri Dam and the lake of the Dam is already filled with sand on a dangerous level. Along with this, 40 villages around the lake are subsiding due to the lake of Tehri Dam. Whereas THDCIL, the Dam Company is considering them affected by natural disasters, and not by the Tehri Dam reservoir.
Due to incomplete rehabilitation, cases of N. D. Juyal, Shekhar Singh Vs. Union of India and others, and Kishor Upadhyay Vs. Union of India, Hon'ble Supreme Court has already prohibits from filling the reservoir fully. This also tells that finishing the Dam was only a stubbornness, due to which important conditions of Pari-Pasu was not followed in which rehabilitation work and engineering works of Dam should be happening together.
It was claimed to generate 1000MW of electricity Tehri dam but that also have never achieved. Here the question is also rising as where the money of 12% free electricity which was meant for state government has gone? According to the policy of Central Energy Ministry, this money should be spending on Dam displaced people and to solve the environmental issues.
After the dam construction, in 2010, the water was almost set to cross over the dam height. At that time also this was proved that the survey line of  reservoir was wrong. Oustees recognise in new serve they were not rehabilitated till now. Corruption in rehabilitation is very level. In the recent past government give river land to the oustess. This has stopped only after when this news came out.    
This again prove that in development people from river valley does not have place and devastation of environment and corruption is in full swing. Displacement begun in 1978 and electricity generation starts since 10 years but till now problems of oustees not solved.
What ex-prime minister of India Mrs. Indira Gandhi said after her Tehri visit in 1978 that this dam will give profit only to contractors and capitalist has proved.
After 10 years of commissioning the Tehri dam will the central government who is  chanting ‘’ Namami Ganga’’  and state government will think over this situation?
Vimalbhai, Puransingh Rana

Friday, 10 July 2015

Press Note 10-7-2015 .गंगा ने फिर नकारे बाँध.Jaypee Company's dam again break

अलकनंदा गंगा पर स्थापित पहला निजी बाँध, विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना की सुरंगों में बुरी तरह मलबा भर गया है और उसके निकट वाला दरवाजा टूटा

 




उत्तराखंड में बद्रीनाथ जी से पहले अलकनंदा गंगा पर स्थापित पहला निजी बाँध, विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना की सुरंगों में बुरी तरह मलबा भर गया है और उसके निकट वाला दरवाजा टूटा है।

जेपी कंपनी ने इस बार हर तरफ सुरक्षा गार्ड खड़े कर दिए ताकि यह खबर बाहर ना फैल सके। चित्रों से साफ़ जाहिर होता है कि बाँध का दक्षिणी दरवाजा नीचे से टूटा है और जून 2013 की आपदा में खीरोघाटी व अलकनंदा में उपर से आया हुआ मलबा वापस बाँध की सुरंगों में घुसा है और दरवाजों को तोड़ा।

जून 2013 की आपदा तरह इस बार भी जेपी कंपनी ने बाँध के दरवाजे तेज बारिश होने के बावजूद नहीं खोले थे। यह बात समझ से परे है कि अपने को विश्व स्तरीय तकनीकी ज्ञान वाली कंपनी मानने के बाद भी जेपी कंपनी के अधिकारी इस बात का जरा भी अंदाज नहीं लगा पाये कि मानसून में ऊपर जमा जून 2013 की आपदा का भारी मलबा वापस बाँध को व नीचे के क्षेत्र में क्षति पंहुचा सकता है।

माटू जनसंगठन ने यह बात अक्टूबर 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) में दायर याचिका में पहले ही कह दी थी जो कि अब सामने आ गई है। जेपी कंपनी और राज्य सरकार ने प्राधिकरण को भी भ्रमित किया किंतु बाँध से नीचे के गाँवों, लोगों के संपत्तियों की तबाही की जिम्मेदारी से जेपी कंपनी नहीं बच सकती।

पूर्व में खबर यह भी थी कि जेपी कंपनी का यह बाँध दूसरी देशी और विदेशी कंपनी को बेचा जा रहा था। किंतु इन् परिस्थिति में क्या उन् कंपनियों को यह बाँध लाभप्रद होगा?

क्षेत्र व राज्य के हित में होगा कि इन् बांधों को सरकारें गंगा और जनहित में तुरंत रद्द करे नाकि किसी अदालती आदेश की राह देखें।

पर्यावरण मंत्रालय व स्थानीय प्रशासन को यह भी देखना चाहिए कि ऊपर से आए मलबे का निस्तारण कैसे हो? यह गंभीर प्रश्न है ताकि श्रीनगर के लोगो को जिस तरह जून 2013 की आपदा में श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के मलबे में अपने घर व संपत्ति गंवानी पड़ी वो स्थिति दुबारा ना हो।

गंगा ने पुनः सिद्ध किया है कि बाँध उसे नामंजूर है। इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकीय क्षेत्र में बाँध हमेशा के लिए खतरा पैदा करते रहेंगे। यह बात बांध कपंनी व सरकारों को समझ लेनी चाहिये नाकि बाँध को एक जिद्द के रूप में लेकर आगे बढ़ना चाहिए।

विमल भाई,    भरत चौहान,     दिनेश पंवार
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Ganga again refused Dams
Vishnupryag hydroelectric project situated at Alaknanda Ganga before Badrinath and furthermore the door broke down.

In Uttarakhand, a lot of debris has entered into the tunnel of first private dam of Vishnupryag hydroelectric project situated at Alaknanda Ganga before Badrinath and furthermore the door broke down.
Jaypee Company has placed guards all over so that the news cannot go out. This has been clearly visible through the pictures that the door has broken at the bottom and the debris came from Keeroghaati and Alaknanada from upstream in 2013 disaster, has entered the tunnel again and broke down the doors.
Like June, 2013 disaster, Jaypee Company has not once again opened the door even after much rain. This is beyond understanding that officers could not predict that the debris of 2013 disaster collected above, can be dangerous again in this monsoon for the dam and the places situated downstream.
In Oct, 2013, Matu Jansangathan said this previously in filed petition at NGT, which has figured again. Jaypee Company and State Government has also disillusioned the tribunal but they cannot escape from the responsibility of disaster happened again in the villages downstream and people lost their properties and valuables.
This has also come in light that Jaypee Company was selling this dam to other national and international company. But can this be profitable for those companies in this situation?
This will be beneficial for the area and state that without waiting for the court orders, Government should cancel these dams in the favor of Ganga and people.
The ministry of Environment and local administration should also find out the ways to deal with the debris coming from upstream. This is a very serious question so that Srinagar, 2013 incident should not happen again in which people lost their home and properties because of the debris came down through Srinagar Hydroelectric Project.
Ganga has proved again that Dam is not acceptable. They will always remain dangerous in the ecologically fragile places. The Dam Company and respective Government should also understand this besides resisting for it and move ahead for the greater common good of people living there and the ecology of that area. 
Vimalbhai,                               Bharat Chowhan,               Dinesh Panwar  

Thursday, 9 July 2015

Press Note-विश्व बैंक वापस जाओ Vishnugad-Peepalkoti HEP affected People says World Bank go back



Vishnugad-Peepalkoti HEP affected people says "World Bank Go Back"
"विश्व बैंक वापस जाओ"
                              विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना प्रभावितों ने कहा






"विश्व बैंक वापस जाओ" "गंगा को अविरल बहने दो" के नारों के साथ अलकनंदा घाटी में विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना प्रभावितों ने विश्व बैंक के अधिकारियों को घेरा गया। लगभग ७०-८० लोगों ने बारिश और ख़राब मौसम के बावजूद जिस होटल में विश्व बैंक की टीम थी उसका घेराव किया। उनके अधिकारी वहाँ ०६ जुलाई से बिना गाँव वालों के जानकारी के मौजूद थे। घेराव के बाद,विश्व बैंक अधिकारी सोना ठाकुर बाहर आयी और कहा कि आप अन्दर आएं और बैठ कर के अपनी बात कहें। इसपर नवीन मटियाल ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में इतना सब कुछ घटित हुआ किंतु विश्व बैंक ने उसका कोई संज्ञान नहीं लिया। हमारी बस एक ही मांग है कि विश्व बैंक अपना पैसा ले और परियोजना छोड़ कर वापस जाएँ,हम अन्दर जाकर बात नहीं करेंगे,जो भी बात करनी है हम सभी लोगों के समक्ष होगी। हमारी समस्या और कोई नहीं विश्व बैंक और बाँध है। लगभग एक घंटे कि तकरार के बाद विश्व बैंक के अधिकारी वापस होटल में अन्दर गए और कहीं और निकल गए।

संदीप रावत व सीपीएम नेता बस्सीलाल जी ने भी बाँध से पूरे वन क्षेत्र पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के कारण विश्व बैंक को क्षेत्र छोड़ने को कहा। ज्ञातव्य है कि विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना में विश्व बैंक ने अपने ही काफी पर्यावरणीय व पुनर्वास के मानको का उल्लंघन करते हुए परियोजना को पैसा देना मंजूर किया।

पिछले पांच वर्षों में अनेकों बार लोगों ने विश्व बैंक के टीम का घेराव किया और उनको उत्तर देने पर मजबूर किया है मगर हर बार बड़ी चतुराई से सही विषयों कि अनदेखी करते हुए परियोजना के सीधे पक्ष में ही विश्व बैंक नज़र आया है। ज्ञात रहे कि २०१३ में आपदा के बाद माननीय सुप्रीम कोर्ट के १३ अगस्त के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने वन्य स्वीकृति दी जिसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया गया था।

बाँध विरोध करने वाले लोगों पर झूठे मुक़दमे,मानसिक प्रताड़ना,धमकियाँ का दौर जारी है। लोगों ने विश्व बैंक में उनकी स्वयं कि नीतियों का उल्लंघन करने पर एक याचिका दायर कि थी किंतु विश्व बैंक के जाँचदल ने लम्बी प्रकिया के बाद भी जो रिपोर्ट दी उसने पुनः इस बात को साबित किया कि विश्व बैंक का स्वयं कि पर्यावरणीय पुनर्वास कि नीतियों से कोई लेना देना नहीं है। वह सिर्फ एक साहूकार ही है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हाट गाँव का हडसारी तोक जिसमे मात्र दस बारह परिवार ही रहते है वहाँ विश्व बैंक कि कई टीमें जिसमे विश्व बैंक के भारतीय निदेशक,चमोली जिले के विभिन्न जिलाधिकारी भी समय-समय पर गांव में सुरंग से होने वाली समस्या, जल श्रोतों का सूखना,जमीन का धसना स्वयं जाकर देख चुके है। अनेकों पत्र व्यवहार,धरने प्रदर्शन के बाद भी समस्या जस की तस है। इतने लोगों के मांगों का नहीं ध्यान दिया गया बल्कि उनके ऊपर मुक़दमे लगा दिए तो आने वाले समय में क्षेत्र का भविष्य क्या होगा? ऐसी ही स्थिति दुर्गापुर गांव (जो कि अलकनंदा और बिरही नदी के संगम पर है) में जहाँ परियोजना के विद्युत गृह की जल निकासी सुरंग बनने वाली है। यहाँ पर भी लोगों के आन्दोलन और तमाम विरोध के बावजूद लोगों को भ्रम में डाल,परियोजना का काम आगे बढाया गया है।

पिछले पाँच वर्षों में इन परिस्थितयों से जूझते हुए गंगा घाटी में अब बाँध विरोध ही बस एकमात्र रास्ता बचता है।

विमलभाई, नवीन मटियाल

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                       "World Bank Go Back"  
                     
     Vishnugad-Peepalkoti HEP affected people says
The affected people of Vishnugad-Peepalkoti Hydroelectric Project (VPHP) have surrounded the officers of World Bank with the slogan of “World Bank Go Back, Let Ganga free”. In even the bad weather and rain, almost 70-80 people have surrounded the hotel in which the team of World Bank was staying. Their officers were present there from 03rd July without the knowledge of villagers. After the incident, Ms.Sona Thakur of World Bank has came out and asked them to sit and talk inside the hotel. In an answer, Naveen Matiyal replied that “World Bank never enquired about so many incidences happened in the last five years. We are only asking that World Bank should take their money back and leave the project; we will not go inside for a talk. Whatever you have to talk, you should talk in front of all of us. We have no other problems but the World Bank and this Dam.” After the tussle went on for one hour, World Bank officers went inside and left the hotel after some time further.

Sandeep Rawat and CPM leader Bassilal ji has also asked World Bank to leave the project because of its harmful effects on all the forests nearby. This is known that World Bank has violated own set environmental and rehabilitation p
olicies in Vishnugad-Peepalkoti Hydroelectric Project and accepted the proposal for funding.

In the last five years, many times people had surrounded the World Bank team and repeatedly asked them to answer on the issues but they cleverly ignored the issues which seemed to be directly in the favor of the project.

We should know that even the orders of 13th August of Supreme Court after Uttarakhand Disaster, 2013; the State Government has already given the environmental clearance, which was challenged in the Supreme Court.

There have been rounds of filing false cases, mental torture, and threatening to the people protesting against the dam. This has also been proved that they have nothing to do with their policies after the way investing team of World Bank have produced report after a long process on the petition filed by people against the violation of set policies of World Bank. They are only behaving like money lenders.

This is very important to state that there are only 10 to 12 families living in the hamlet of Haat village, where the problems related due to tunneling, drying up of streams, landslides were seen by the India country director of World Bank and District Collector of Chamoli District. The issue remains same even after so many communications through letters and agitations. They filed cases against the people demanding instead of approving the demands, and then it is being difficult to imagine the future of the village and people by looking at the responses.

The same situation is arising in Durgapur Village (Situated at the confluence of Alaknanda and Birhi River), where tunnel for water release is going to be made under the hydroelectric project. Here also, even after the people’s movement and strong agitations, the project work is going on keeping people in state of illusion.

Looking at the situations and people’s struggle, now movement against Dam is only way ahead left.

Vimalbhai and Navin Matiyal