14th March
Anti Big Dam Day
Vishnugad-Peepalkoti
opposed by people
We want out river should flow freely.
हमारी नदियों को अविरल बहने दो
नरेन्द्र पोखरियाल ने कहा की हम पिछले 9 वर्षाे से विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के असरों को झेल रहे है किन्तु बांध कंपनी को कोई परवाह नही है। हाटगांव के लोग भी अधूरे आश्वासनों में लटक रहे है।
रामलाल का कहना था की अभी बांध का काम भी चालू नही हुआ है। टीएचडीसी ने बांध के सर्वे के लिये जो नुकसान किये है उनकी भरपाई नही कर सकी तो आगे क्या करेगी? यह बात आज सबकी समझ में आ रही है।
गीता देवी ने कहा की हम दुर्गापुर वालो की स्थिति भी हरसारी वालो की तरह होने वाली है। हम बांध नही बनने देंगे।
हरसारी की बिंदी देवी ने कहा की रात को विस्फोटकों के कारण हम सो नही पाते और सरकार चैन की नींद सो रही है। विभिन्न गांवों से आई महिलाओं मसूरी देवी, नंदी देवी, भादी देवी आदि ने भी नदियों पर बांधों का विरोध किया।
विश्वबैंक के अघ्यक्ष भारत आकर गंगा जी में गंदगी पर चिंता व्यक्त करते है और दूसरी तरफ गंगा की हत्या करने वाली बांध परियोजनाओं को पैसा देते है। हम उनके मगरमच्छी आसुंओ को समझते है यह एक तरीका है गंगा सफाई के लिये और कर्ज देने का। यदि उन्हे वास्तव में गंगा की इतनी चिंता है तो वे विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिये कर्जा क्यों दे रहे है?
24 जुलाई व 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। मनेरी भाली चरण दो के प्रभावितों का भी पुनर्वास नही हुआ। ऐसा ही केदार घाटी में भी बादल फटने से ज्यादा वहंा बन रहे बांधो के कारण नुकसान हुआ। ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम‘ भी पर कोई कार्यवाही नही हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। सरकारी हो या निजी, दोनो ही तरह की बांध कंपनियंा व्यवहार में एक सी है।
राज्य के बांधों में, सुरंगंे पहाड़ों को 1500 कि0मी0 लम्बाई में खोखला कर रही है। पहाड़ी क्षेत्र मंे मात्र 7 प्रतिशत भूमि खेती योग्य शेष बच रही है। इन पर भी डूब और अन्य बांध कार्यो का खतरा है। खेती कम होने से भविष्य में खाद्य सुरक्षा बड़ा प्रश्न खड़ा होने वाला है। पूरे राज्य में नदी किनारे असुरक्षित हो रहे है। नदी में पानी की भी अनिश्चितता हुई हैै। नदी का पानी अचानक से पानी छोड़ा जाता है। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों जैसे स्नानपर्व, दाह-संस्कार, नदी-पूजन आदि के लिए भी नदी में पानी नहीं रहा है। जिससे भूस्खलन बढ़े है। पहाड़ की संस्कृति पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे बुरा असर महिलाओं की स्वतंत्रता पर पड़ता है। देवभूमि उत्तराखंड में नदी किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै।
इन सबके बाद भी यदि सरकारे नही समझती है तो भविष्य में राज्य की तबाही कि वे जिम्मेदार होंगी। पर्यावरण सुरक्षा और जनहक के लिये बड़े बांधों के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
नरेन्द्र पोखरियाल मसूरी देवी रामलाल बिंदी देवी विमलभाई
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People oppose Vishnugad-Peepalkoti HEP in
Anti Big Dam Day
Vishnugad-Peepalkoti
opposed by people
We want out river should flow freely.
हमारी नदियों को अविरल बहने दो
‘अंतराष्ट्रीय बड़े बाँध विरोधदिवस‘ पर विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध का विरोध
आज
14 मार्च को अलकनंदागंगा घाटी में ‘अंतराष्ट्रीय बड़े बंाध विरोध दिवस‘ के
दिन बड़े बांधो के खिलाफ प्रर्दशन हुआ। देशभर में बड़े बांधो से उजड़े
लोगो का पुनर्वास तक नही हो पाया है। पर्यावरण के मानको का पूर्ण उलंघन हुआ
है वही इन बांधो से घोषित बिजली उत्पादन तक नही हुआ है। उत्तराखंड में ही
बन चुके बांधो की स्थिति खराब हैै। बांधो से आज ना केवल नदियंा खतरे में है
बल्किी यह भी सिद्ध हो गया है कि राज्य को आने वाले समय में केवल नुकसान
ही मिलेगा। टिहरी बांध के विस्थापितों के लिये उच्चतम् न्यायालय तक जाना
पड़ा तब जाकर कुछ पुनर्वास हो पाया है। पिछले 21 वर्षो से एन0डी0 जुयाल व
शेखर सिंह बनाम भारत सरकार केस चालू है। बांध विरोधियों ने ही पुनर्वास की
लड़ाई लड़ी है। सरकारों का ध्यान मात्र बांध बनाने में है। पर्यावरण और
लोगो पर पड़ रहे नुकसानों की ओर नही है।
उत्तराखंड में अलकनंदागंगा
पर निर्माणाधीन विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध क्षेत्र में विभिन्न प्रभावित
गांव कौडि़या, दुर्गानगर, हरसारी, नौरख टंगरी आदि से आयी महिलाआंे व
पुरुषों ने माटू जनसंगठन के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया। हरसारी गंाव के
नीचे जहंा बांध के विद्युतघर के लिये सुरंग निर्माणाधीन है, लोग वहंा
इकट्ठे हुये और सुरंग काम बंद किया व बांध कंपनी टीएचडीसी के कर्मचारियों
का घेराव किया। बाद में जुलुस ने गंगा को अविरल बहने दो, बड़े बांध
धोखा है आदि नारे लगाते हुये सियासेण में टीएचडीसी के कार्यालय पर जाकर
प्रदर्शन किया। संघर्ष को आगे ले जाने का ऐलान किया।
सभा में नौरख के वन
सरपंच बृहषराज तडि़याल ने कहा की हमारे भविष्य की बर्बादी हम नही सहेंगे।
हमें बांध नही चाहिये। हमने आज तक लड़ाई लड़ी है आगे भी हमारा संघर्ष जारी रहेगा। नरेन्द्र पोखरियाल ने कहा की हम पिछले 9 वर्षाे से विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के असरों को झेल रहे है किन्तु बांध कंपनी को कोई परवाह नही है। हाटगांव के लोग भी अधूरे आश्वासनों में लटक रहे है।
रामलाल का कहना था की अभी बांध का काम भी चालू नही हुआ है। टीएचडीसी ने बांध के सर्वे के लिये जो नुकसान किये है उनकी भरपाई नही कर सकी तो आगे क्या करेगी? यह बात आज सबकी समझ में आ रही है।
गीता देवी ने कहा की हम दुर्गापुर वालो की स्थिति भी हरसारी वालो की तरह होने वाली है। हम बांध नही बनने देंगे।
हरसारी की बिंदी देवी ने कहा की रात को विस्फोटकों के कारण हम सो नही पाते और सरकार चैन की नींद सो रही है। विभिन्न गांवों से आई महिलाओं मसूरी देवी, नंदी देवी, भादी देवी आदि ने भी नदियों पर बांधों का विरोध किया।
विश्वबैंक के अघ्यक्ष भारत आकर गंगा जी में गंदगी पर चिंता व्यक्त करते है और दूसरी तरफ गंगा की हत्या करने वाली बांध परियोजनाओं को पैसा देते है। हम उनके मगरमच्छी आसुंओ को समझते है यह एक तरीका है गंगा सफाई के लिये और कर्ज देने का। यदि उन्हे वास्तव में गंगा की इतनी चिंता है तो वे विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिये कर्जा क्यों दे रहे है?
24 जुलाई व 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। मनेरी भाली चरण दो के प्रभावितों का भी पुनर्वास नही हुआ। ऐसा ही केदार घाटी में भी बादल फटने से ज्यादा वहंा बन रहे बांधो के कारण नुकसान हुआ। ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम‘ भी पर कोई कार्यवाही नही हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। सरकारी हो या निजी, दोनो ही तरह की बांध कंपनियंा व्यवहार में एक सी है।
राज्य के बांधों में, सुरंगंे पहाड़ों को 1500 कि0मी0 लम्बाई में खोखला कर रही है। पहाड़ी क्षेत्र मंे मात्र 7 प्रतिशत भूमि खेती योग्य शेष बच रही है। इन पर भी डूब और अन्य बांध कार्यो का खतरा है। खेती कम होने से भविष्य में खाद्य सुरक्षा बड़ा प्रश्न खड़ा होने वाला है। पूरे राज्य में नदी किनारे असुरक्षित हो रहे है। नदी में पानी की भी अनिश्चितता हुई हैै। नदी का पानी अचानक से पानी छोड़ा जाता है। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों जैसे स्नानपर्व, दाह-संस्कार, नदी-पूजन आदि के लिए भी नदी में पानी नहीं रहा है। जिससे भूस्खलन बढ़े है। पहाड़ की संस्कृति पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे बुरा असर महिलाओं की स्वतंत्रता पर पड़ता है। देवभूमि उत्तराखंड में नदी किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै।
इन सबके बाद भी यदि सरकारे नही समझती है तो भविष्य में राज्य की तबाही कि वे जिम्मेदार होंगी। पर्यावरण सुरक्षा और जनहक के लिये बड़े बांधों के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
नरेन्द्र पोखरियाल मसूरी देवी रामलाल बिंदी देवी विमलभाई
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14th
March International Anti Big Dam day
People oppose Vishnugad-Peepalkoti HEP in
Ganga valley
Today
on 14th march in Alaknandaganga valley, on the occasion of
international Anti Big Dam day demonstration held .on one hand ,
across the country, there has been no rehabilitation of the people
displaced by big dams ,the environmental norms have been grossly
violated ,on the other side the proposed power generation has not
happened .In Uttrakhand itself the situation of the Dams constructed
so far , is very dismal .the dams pose a danger not only for the
river but also spell doom for the state. For seeking their rights ,
Tehri Dam displaced people had to go up to the supreme court only
then some semblance of rehabilitation has happened. For the last 21
years litigation has been going on in the case between N.D. Juyal and
shekhar singh V/s GoI. The struggle for rehabilitation has been
spearheaded by the anti dam campaigners .
In
uttrakhand on Alaknandaganga under construction Vishnugad–Peepalkoti
HEP area ,under the banner of Matu Jansangthan, men and women of the
affected villages of kaudiya ,Durgapur ,Harsari ,Naurakh ,Tagari etc.
protested .In Harsari village people gathered at the Dam site where
the construction of tunnel is under way ,the work was stalled and
THDC officials were gheroed .After this the procession proceeded to
the THDC office at Siyasedh ,shouting slogans like Ganga ko aviral
Bahene do ,Badhe bandh Dhoka hai ,and vowed to continued their
struggle .
In
the meeting Naurakha Vansarpanch Brihashraj Tadial said that
destruction of our future would not be tolerated, we do not want Dams
.We have fought till today and the struggle would continue.
Narinder
Pokhariyal said that for the last 9 years our village peopel are
facing the consequences of this proposed Dam but the company has not
shown any concern . Even Hatt village people are hanging on to mere
assurances only.
Ramlal
said that the company has not been able to compensate for the damages
done during the survey so the people can well gauge the future .Geeta
devi said that due to site blasting at night while the people have
lost their sleep the government is sound asleep . Women at various
villages Masuri Devi ,Nandi Devi ,Bhadi Devi all protested daming of
the river.
Impact
of even samll Hydro Electric Project are in bad in Uttrakhand. For
example on July 24 and 3rd aug 2012 ,in Assi ganga river
valley due to cloud burst under construction Kaldigahat and Assi
ganga Phase-I and II Hydro electric project caused disaster and
Bhagirathi ganaga in Maneri Chal phase II caused lots of destruction.
There is no account or record of the deaths of the workers . The
villages along Assiganga have been badly affected. The pathways have
been eroded . But no action, no enquary has been setup on the dam
builder.
Under
this situation our struggle is on against dams to save our
rivers and our rights over on natural resouces.
Narendra
Pokhriyal, Bindadevi, Ramlal, Keshridevi,
Vimalbhai
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