Let the Ganga Flow Free!
{ हिंदी अनुवाद अंग्रेजी प्रेस नोट के नीचे है }
Amidst the Nation wide Lockdown that's yet to open up in many places, there's a worrisome development taking place in Central Himalayan region. Dams are being built that are a serious threat to all the Ecology and diversity of the region. And all of this is happening unchecked or unmonitored.
Meanwhile, the Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC) has been proactive in giving green light to many dams/projects. Five hydel projects of Sikkim, West Bengal and Uttarakhand are being considered by the Environmental Appraisal Committee of the River Valley and Hydroelectric Project today on 29-7-2020. This includes the Vishnugad-Peepalkoti hydro power project (444MW) on the Alaknanda Ganga by taking loan from the World Bank. This is an attempt to lock the Ganges.
On one hand, the government has never lagged behind in boasting about how they support nature and letting the rivers flow as they like. But their actions are different from their words as the new dam conditions are being discussed today. The project has been surrounded by controversies from the very beginning.
The first environmental public hearing on 18 October 2006 was canceled due to public opposition. After this, in the second public hearing held on 9 January 2007, mass protests were sidelined.
Now in this project that's being built with the help of the World Bank, the issues of environment and public interest have been largely denied.
Matu Jan Sangathan has wrote to the Environment Appraisal Committee informing them about the current situation/circumstances.
1- It has been more than 10 years since the project was planned and the geographical scenario of the area has changed a lot since.
2- Dams played a big role in June 2013's tragic Natural Disaster. This has been pointed out by the Ravi Chopra committee formed by the Ministry on the order of the Supreme Court. In which all these facts came out clearly.
3 - The course of Alaknanda River has been altered above this under construction project, which has led to the doors of the Vishnuprayag Dam being broken due to millions of ton of debris coming from the Khiro Valley. The upper part of the river is not in favor of hydropower projects due to presence of considerable silt and debris.
4-- The Tehri Hydro Development Corporation India Ltd.'s(THDC) record has also not been good in the context of Tehri Dam. Even the parameters and guidelines of not getting muck into the river were not followed. In this context, the Hon'ble National Green Tribunal in Vimal Bhai Vs THDC case fined THDC with ₹ 50,00,000. Further, this case is pending in the Hon'ble Supreme Court. This is for your information.
5-- The Environmental Impact Assessment Report made in November 2009 is 11 years old. The changes made by the World Bank in EIA and EMP have not come down to the ground level. Before any new approval or before the new TOR, it will be necessary to see how much of the old EIA and EMP was followed.
6 - The situation of rehabilitation and resettlement has been extremely miserable so far. People have been protesting continuously for their minimum rights as stated in the rehabilitation policy of the project. Haat Village's rehabilitation does not really meet any of the rehabilitation criteria. Somehow people have been removed from their original village and resettled. Many families are still there.
7 - In view of the larger perspective and to keep the Ganga stream uninterrupted, it's a necessity to cancel this project.
This is necessary not only in view of the ecology of the Ganga but also ecology of the Himalayas and the long-term benefits of the local population.
Vimal Bhai
गंगा को लॉक नही अविरल रहने दो
देश में लॉकडाउन की स्थिति है। अभी पूरी तरह लॉकडाउन नहीं खुला है। मगर मध्य हिमालय में पूरी परिस्थितिकी पर खतरे के बांधों पर काम चालू है। जिस पर कोई निगरानी भी नहीं हो पा रही है
इस बीच बांधों को स्वीकृति देने के लिए पर्यावरण मंत्रालय चुस्त दिखाई देता है। सिक्किम, पश्चिमी बंगाल और उत्तराखंड की पांच जल विद्युत परियोजनाओ को नदी घाटी एवं जल विद्युत परियोजना की पर्यावरण आकलन समिति, आज 29-7-2020 को विचार कर रही हैं। जिसमें अलकनंदा गंगा पर विश्व बैंक के कर्ज पर बन रही विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना भी शामिल है। ये गंगा को लॉक करने की कोशिश है।
एक तरफ अविरलता के लिए प्रतिबद्धता जताने में सरकार कभी पीछे नहीं रही मगर अविरलता को समाप्त करने वाले इस बांध को आगे बढ़ाने के लिए
नई बांध शर्तों पर आज चर्चा हो रही है। यह परियोजना न केवल शुरू से ही विवादों के घेरे में रही है।
18 अक्टूबर 2006 को हुई पहली पर्यावरणीय जनसुनवाई लोगों के विरोध के चलते रद्द की गई। इसके बाद दूसरी 9 जनवरी 2007 में हुई जनसुनवाई में जन विरोध को दरकिनार किया गया।
अब विश्व बैंक की मदद से बन रही इस परियोजना में पर्यावरण और जनहित के मुद्दों को काफी हद तक, एक तरफ किया गया है।
माटू जनसंगठन ने पर्यावरण आकलन समिति को पत्र भेजकर ताजा परिस्थिति से अवगत कराया है।
1-- परियोजना को बनते 10 वर्ष से ज्यादा हुए। इस बीच क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति में बहुत परिवर्तन आया है।
2- जून 2013 कि प्राकृतिक आपदा में बांधो ने बड़ी भूमिका अदा की है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंत्रालय द्वारा बनाई गई रवि चोपड़ा समिति ने इस ओर इंगित किया है। जिसमे यह सब बातें साफ आती हैं।
3--इस निर्माणाधीन परियोजना के ऊपर अलकनंदा नदी के रास्ते में परिवर्तन हुआ है। खीरो घाटी से लाखो टन मलबा आने की वजह से विष्णुप्रयाग बांध के दरवाजे टूटे। नदी का ऊपरी हिस्सा गाद और मलबे की दृष्टि से जल विद्युत परियोजनाओं के पक्ष में नहीं है।
4-- टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड का पुराना रिकॉर्ड टिहरी बांध के संदर्भ में भी अच्छा नहीं रहा है। इस परियोजना में भी नदी में मलवा ना जाए इसके मापदंडों का भी पालन नहीं हुआ। इस संदर्भ में विमल भाई बनाम टीएचडीसी मुकदमे में माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 50,00,000 ₹ का जुर्माना किया था। आगे अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में यह मुकदमा लंबित है। यह सूचना आपकी जानकारी के लिए है।
5-- नवंबर 2009 में बनी पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट 11 साल पुरानी हो चुकी है। विश्व बैंक ने ईआइए और ईएमपी में जो बदलाव किए वे जमीनी स्तर पर नहीं उतरे हैं। किसी भी नई स्वीकृति से पहले या नई टी ओ आर से पहले पुरानी ईआईए और ईएमपी का कितना पालन हुआ यह देखना जरूरी होगा।
6-- अभी तक के पुनर्वास और पुनर्स्थापना की स्थिति अत्यंत शोचनीय रही है। परियोजना की पुनर्वास नीति में बताए गए अपने न्यूनतम अधिकारों के लिए भी लोग लगातार धरने प्रदर्शन करते रहे हैं। हॉट गांव का पुनर्वास वास्तव में पुनर्वास के किसी मापदंड को पूरा नहीं करता। किसी तरह से मात्र लोगों को उनके मूल गांव से हटाया गया है। अभी भी कई परिवार वहां पर अपने स्थान पर से नहीं गए हैं।
7--बृहद परिप्रेक्ष्य को देखते हुए व गंगा की धारा को अविरल रखने के लिए यह जरूरी होगा कि इस परियोजना को रद्द किया जाए।
ना केवल गंगा अपितु हिमालय की पारिस्थितिकी और स्थानीय जनता के दीर्घकालीन लाभों को देखते हुए भी यह जरूरी है।
विमल भाई
Maatu जनसंघ के प्रयास प्रशंसनीय हैं। एक दिन मनुष्य अपनी कभी ना खत्म होने वाली महत्वाकांक्षा का शिकार स्वयं हो जाएगा। प्रकृति का निरंकुश दोहन कर मनुष्य अपने गर्त की सीढ़ी स्वयं बना रहा है,इसका उदाहरण २०१३ की आपदा आप सबके समक्ष है।
ReplyDeleteविमल काका को प्रणाम