पंचेश्वर
बांध विरोधी संगठन
माटू जनसंगठन हिमधारा पर्यावरण समूह
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पंचेश्वर बांध व रुपालीगाड बंाधों की प्रक्रिया तुरंत प्रभाव रोकी जाये।
प्रभावित जनता को अंधेरे में रखकर पर्यावरण और वन स्वीकृतियंा लेने की प्रक्रियंा पूरी की जा रही है वह यह बताता है कि सरकारों की मंशा किसी तरह के विकास की नही वरन् मात्र ठेकेदारों की भरण पूर्ति का साधन तैयार किया जा रहा है। पंचेश्वर बहुद्देशीय नही बहुधोखीय परियोजना है
कैसे और कौन से सर्वे के तहत एक पूर्व मुख्यमंत्री ब्यान दे जाते है कि 99 प्रतिशत जनता बांध के पक्ष में है? इससे मालूम होता है कि सरकार फर्जी आकड़ों के आधार पर ही बांध को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। बांध के पक्ष में बिना किसी अध्ययन के दावे और वादे बताते है कि सत्ताधारी दल बांध को चुनाव की तरह से देख रहा है। बस किसी भी तरह से बांध को कानूनी जामा पहनाया जाये और वादे-दावे तो टिहरी बाध्ंा की तरह लटके रहेंगे।
प्रशासन
के पास तो मोदी जी के सपने को
पूरा करने का दवाब है इसलिये
वो अब ‘‘बांध विरोधी संगठनों
पर खास नजर रखी जायेगीं‘‘,
इस तरह के
सरकारी ब्यानों से प्रभावितों
को और जनपक्षीय संगठनों को
डराने की कोशिश कर रहा है।
उत्तराखंड के कुमांउ क्षेत्र
की दूरस्थ महाकाली व सरयू घाटी
के अतुलनीय सौंदर्य,
सांस्कृतिक
विरासत, धार्मिक
आस्थाओं, आक्सीजन
के भंडार, स्वावलंबी
गांव के लोगों को जिन्हे आजादी
के बाद से ही सड़क, स्वास्थ्य,
शिक्षा व्
विकास अन्य लाभों से महरूम
रखा गया है उनपर बर्बादी के
ये बांध थोपे जा रहे है। हमारा
इन दोनो बांधों का पूरी तरह
से विरोध है।
हम मात्र भावना ही नही वरन् तार्किक रुप और कानूनी पहलुओं से भी सिद्ध करने में सक्षम है कि यह बांध क्यों गलत है।
चम्पावत जिले में जल्दबाजीः- पंचेश्वर और रुपालीगाड बंाध चम्पावत जिले में प्रस्तावित है इसलिये इस जिले में इन बांधों से जुड़ी सभी तरह की कानूनी औपचारिकतायें औपचारिक रुप से ही पूरी की जा रही है। जिसका प्रभावितों या पर्यावरण से कोई मतलब नही। सामाजिक आकलन रिर्पोट के आकड़े पुराने और गलत है। गांव वालो को पता तक नही की कब कौन सर्वे करने आया? नये जमाने में गूगल बाबा से जमीनी सर्वे हो गये। इसलिये चम्पावत जिले के सिमलखेत, बौतड़ी, निडिल आदि गांवों में जो सामाजिक आकलन रिर्पोट और तथाकथित पुनर्वास नीति पर बैठके हो रही है उसमें लोग विरोध कर रहे है।
एक नही दो बांध परियोजनायें हैः- दो बांधों को एक ही परियोजना मान कर 25 अप्रैल 2015 में बांधों के अध्ययन कागजात बनाने के लिये पर्यावरण आकलन समिति ने अनुमति दी। फिर जनसुनवाई भी धोखे से एक में ही करवाई गई।
चम्पावत जिले में ही प्रस्तावित, पंचेश्वर बांध से 27 किलोमीटर नीचे 95 मीटर उंचे कंक्रीट के 240 मेगावाट के रूपालिगाड बांध की जनसुनवाई अलग से होनी चाहिये थी। इसे पंचेश्वर बहुद्देशीय जलविद्युत परियोजना का एक हिस्सा बताकर गलत किया गया है। यह एक बड़ा बांध है जो कि अपने आप में स्वंय एक अलग परियोजना है। इस तरह लोगो के अधिकारो को सीमित किया गया है। यह अपने आप मे एक सबूत है कि पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना की नींव ही धोखे की है।
बिना जानकारी की धोखे वाली जनसुनवाईयंाः- 9 अगस्त 2017 को चम्पवात, 11 अगस्त 2017 को पिथौरागढ़ और 17 अगस्त 2017 को अल्मोड़ा जिले में हुई जनसुनवाईयंा कानूनी, व्यवहारिक व नैतिक तरह से गलत थी। ये जनसुनवाईयां बिना जानकारी दिये भय, दवाब और भ्रम में पूरी की गई थी।
‘सामाजिक आंकलन रिर्पोट‘ को रद्द मानों, पुनर्वास के दावे झूठेः- पुनर्वास के जो दावे किये जा रहे है वो सच्चाई से परे है। आंकड़े कब कैसे कहां से इकटठे किये गये इसका भी कोई जिक्र नही है। बांध के लोगो पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बनी ‘सामाजिक आंकलन रिर्पोट‘ में एक स्थान पर 2011 का जिक्र है किन्तु प्रत्येक सूची के नीचे सन का कोई जिक्र नही है। रिपोर्ट में खेती की स्थिति, महिलाओं का अनुपात और उनकी आर्थिक समाजिक स्थिति पर गलत आंकड़े दिये गयंे है। जौलजीबी व झूलाघाट जैसे दो बड़े बाज़ारों व व्यापारियों का भी कोई जिक्र नही है। जबकि यह भारत-नेपाल के बड़े व्यवसायिक केन्द्र है जिन पर हजारों परिवार बरसों से आश्रित है। एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान के केन्द्र भी है।
134 गांवों के 29,400 परिवार पंचेश्वर बांध में व रुपालीगाड बंाध में 1,587 परिवार में प्रभावित हो रहे है। ये संख्या बहुत धोखे वाली है। चूंकि जिसके नाम पर जमीन है उसे परिवार माना है। यानि 75 साल के वृद्ध के 4 बेटे और 8 व्यस्क पौत्र है तो भी उनको एक ही परिवार माना गया है। जमीन देने का वादा भी साफ नही है। किसको क्या मिलेगा? कब मिलेगा?
वन अधिकार कानून 2006 कानून का उलंघनः- बिना वन अधिकार कानून 2006 के अंर्तगत गांव वासियों को वन अधिकार दिये उनसे वन संबधी अनापत्ति ली जा रही है। चम्पावत मे तो यह कार्य 9 अगस्त से पहले ही कर लिया गया। प्रभावितों को मालूम तक नही की वन अधिकार कानून 2006 उनको पास के जगंल पर अधिकार देता है। आज तक उत्तराखंड में कही पर भी लोगो को वन अधिकार कानून 2006 के तहत मान्यता नही दी गई है।
द बायोलोजिकल डायवसिटी एक्ट 2002 यानि जैविक विविधता कानून 2002 का पालन होः- द जैविक विविधता कानून 2002 के अनुसार प्रत्येक शहर व ग्राम, ब्लाक व जिला स्तर पर लोक जैव विविधता रजिस्टर बनाना जरुरी है जिसमें वहंा की जैविक विविधता का पूरा आकड़ा होता है। ताकि गांव की जैव विविधता के पूरे आंकड़े आ सके।
हमारी मांग है किः-
हम मात्र भावना ही नही वरन् तार्किक रुप और कानूनी पहलुओं से भी सिद्ध करने में सक्षम है कि यह बांध क्यों गलत है।
चम्पावत जिले में जल्दबाजीः- पंचेश्वर और रुपालीगाड बंाध चम्पावत जिले में प्रस्तावित है इसलिये इस जिले में इन बांधों से जुड़ी सभी तरह की कानूनी औपचारिकतायें औपचारिक रुप से ही पूरी की जा रही है। जिसका प्रभावितों या पर्यावरण से कोई मतलब नही। सामाजिक आकलन रिर्पोट के आकड़े पुराने और गलत है। गांव वालो को पता तक नही की कब कौन सर्वे करने आया? नये जमाने में गूगल बाबा से जमीनी सर्वे हो गये। इसलिये चम्पावत जिले के सिमलखेत, बौतड़ी, निडिल आदि गांवों में जो सामाजिक आकलन रिर्पोट और तथाकथित पुनर्वास नीति पर बैठके हो रही है उसमें लोग विरोध कर रहे है।
एक नही दो बांध परियोजनायें हैः- दो बांधों को एक ही परियोजना मान कर 25 अप्रैल 2015 में बांधों के अध्ययन कागजात बनाने के लिये पर्यावरण आकलन समिति ने अनुमति दी। फिर जनसुनवाई भी धोखे से एक में ही करवाई गई।
चम्पावत जिले में ही प्रस्तावित, पंचेश्वर बांध से 27 किलोमीटर नीचे 95 मीटर उंचे कंक्रीट के 240 मेगावाट के रूपालिगाड बांध की जनसुनवाई अलग से होनी चाहिये थी। इसे पंचेश्वर बहुद्देशीय जलविद्युत परियोजना का एक हिस्सा बताकर गलत किया गया है। यह एक बड़ा बांध है जो कि अपने आप में स्वंय एक अलग परियोजना है। इस तरह लोगो के अधिकारो को सीमित किया गया है। यह अपने आप मे एक सबूत है कि पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना की नींव ही धोखे की है।
बिना जानकारी की धोखे वाली जनसुनवाईयंाः- 9 अगस्त 2017 को चम्पवात, 11 अगस्त 2017 को पिथौरागढ़ और 17 अगस्त 2017 को अल्मोड़ा जिले में हुई जनसुनवाईयंा कानूनी, व्यवहारिक व नैतिक तरह से गलत थी। ये जनसुनवाईयां बिना जानकारी दिये भय, दवाब और भ्रम में पूरी की गई थी।
‘सामाजिक आंकलन रिर्पोट‘ को रद्द मानों, पुनर्वास के दावे झूठेः- पुनर्वास के जो दावे किये जा रहे है वो सच्चाई से परे है। आंकड़े कब कैसे कहां से इकटठे किये गये इसका भी कोई जिक्र नही है। बांध के लोगो पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बनी ‘सामाजिक आंकलन रिर्पोट‘ में एक स्थान पर 2011 का जिक्र है किन्तु प्रत्येक सूची के नीचे सन का कोई जिक्र नही है। रिपोर्ट में खेती की स्थिति, महिलाओं का अनुपात और उनकी आर्थिक समाजिक स्थिति पर गलत आंकड़े दिये गयंे है। जौलजीबी व झूलाघाट जैसे दो बड़े बाज़ारों व व्यापारियों का भी कोई जिक्र नही है। जबकि यह भारत-नेपाल के बड़े व्यवसायिक केन्द्र है जिन पर हजारों परिवार बरसों से आश्रित है। एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान के केन्द्र भी है।
134 गांवों के 29,400 परिवार पंचेश्वर बांध में व रुपालीगाड बंाध में 1,587 परिवार में प्रभावित हो रहे है। ये संख्या बहुत धोखे वाली है। चूंकि जिसके नाम पर जमीन है उसे परिवार माना है। यानि 75 साल के वृद्ध के 4 बेटे और 8 व्यस्क पौत्र है तो भी उनको एक ही परिवार माना गया है। जमीन देने का वादा भी साफ नही है। किसको क्या मिलेगा? कब मिलेगा?
वन अधिकार कानून 2006 कानून का उलंघनः- बिना वन अधिकार कानून 2006 के अंर्तगत गांव वासियों को वन अधिकार दिये उनसे वन संबधी अनापत्ति ली जा रही है। चम्पावत मे तो यह कार्य 9 अगस्त से पहले ही कर लिया गया। प्रभावितों को मालूम तक नही की वन अधिकार कानून 2006 उनको पास के जगंल पर अधिकार देता है। आज तक उत्तराखंड में कही पर भी लोगो को वन अधिकार कानून 2006 के तहत मान्यता नही दी गई है।
द बायोलोजिकल डायवसिटी एक्ट 2002 यानि जैविक विविधता कानून 2002 का पालन होः- द जैविक विविधता कानून 2002 के अनुसार प्रत्येक शहर व ग्राम, ब्लाक व जिला स्तर पर लोक जैव विविधता रजिस्टर बनाना जरुरी है जिसमें वहंा की जैविक विविधता का पूरा आकड़ा होता है। ताकि गांव की जैव विविधता के पूरे आंकड़े आ सके।
हमारी मांग है किः-
- माना जाये कि यह एक नही दो बांध परियोजनायें थी। जो अब बंद हो रही है।
- ये जनसुनवाईयंा ही गैर कानूनी मानी जानी जाये।
- ‘सामाजिक आंकलन रिर्पोट‘ को रद्द मानों।
- वन अधिकार कानून 2006 के तहत गांवों को अधिकार दिये जाये।
- लोक जैव विविधता रजिस्टर ग्राम, ब्लाक व जिला स्तर और नगरपालिका व नगर निगम स्तर पर बनाया जाये।
सुरेन्द्र आर्य, विप्लव भटट्, पी0 सी0 तिवारी, अजंनी कुमारी, हरिवल्लभ भटट्, सुमित महर,
प्रकाश भंडारी, विमलभाई, हरेन्द्र कुमार अवस्थी
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The
Pancheshwar
multipurpose is rather multi-delusional project.
The process of the Pancheshwar dam and Rupaligad dam be stopped immediately.
Protect Forest Rights - make Biodiversity Register at village level.
The process of the Pancheshwar dam and Rupaligad dam be stopped immediately.
Protect Forest Rights - make Biodiversity Register at village level.
The
affected people have been kept in dark and the procurement of
environment and forest clearance is being subtly processed which
directly construes that the government does not at all have any
intention of development, instead creating ways and means of the
fulfilment for the contractors. It
is more of Pancheshwar multi-delusional rather than Pancheshwar
Multipurpose project.
How
and according to which survey a former chief minister gives statement
that 99 percent of the people are in favor of the dam? This shows
that the government is trying to push the dam only on the basis of
spurious data. Claims and promise in favor of the dam without studies
show that the ruling party is treating the dam as an election
campaign. Just in some way the dam should be put on a legal front and
the promises & claims will remain swinging like the Tehri dam.
Administration
has the pressure to fulfil the dream of Modi ji hence with the
statement “anti-dam organization will be especially monitored”,
they are now trying to frighten the affected and pro-people
organizations. Incomparable beauty of Sarayu Valley and the Mahakali
of Kumaon area of Uttarakhand, cultural heritage, religious beliefs,
oxygen reserves and the villagers who have been kept isolated from
health services, education and other benefits of development even
after independence, are being imposed upon the dam of destruction. We
utterly oppose both the dams.
We
are able to prove not only ethically that the dam is unsuitable but
also with logic and legal aspect.
Warfutting
work in Champawat
district:- The
Pancheshwar and the Rupaligad dam are proposed in Champawat district.
Therefore, all the legal formalities attached to these dams in the
district are being formally completed. Which has nothing to do with
the affected and the environment. Data of the Social Impact
Assessment Report is outdated and inaccurate. The villagers are not
even aware of when who came to survey? As if the ground survey were
carried out with the help of Google
Baba
in the modern technologically developed world. Therefore, the
meetings on the Social Impact Assessment Report and so-called
rehabilitation policy going on in the villages Simlkhet, Botri,
Needle etc. of the Champawat district are being opposed.
Two dam projects, not one: -Assuming the two dams as a single project, the Environmentl Assessment Committee gave Terms of Reffrence this project on April 25, 2015. Then, public hearing was also deceitfully unified in one.
There should have been separate public hearing of the 95-meter-high concrete Rupaligad dam of 240 MW below 27 kilometers of the Pancheshwar dam, proposed in the Champwat district itself. This has been done wrong having said it as a part of the Pancheshwar multipurpose hydro power Project. It is a big dam which itself is a separate project. This way, the rights of the people have been curtailed. This itself is an evidence that the foundation of the Pancheshwar multipurpose hydroelectric power project laid on deception.
Deceitful
public hearing, Without information: -
The
public hearings in Champawat on August 9, 2017, Pithoragarh on August
11, 2017, and in the Almora district on August 17, 2017, was wrong on
all ethical, practical and legal ground. The public hearings were
completed without informing them in fear, pressure and delusion.
Turn
down the 'Social Assessment Report' and false claim of
rehabilitation:-
The
rehabilitation claims are beyond the reality. There is no mention of
how the figures were gathered and from where. There is a mention of
the year 2011 at one place in the 'social assessment report' about
the effects of the dam on people, but there is no mention of years
under each list. In the report, incorrect statistics have been given
on the status of agriculture, ratio of women and their socio-economic
status. There is no mention of even the two big markets such as
Jauljibi
and Jhulaghat in the report. whereas these are the major trade
centers of Indo-Nepal on which thousands of families are dependent
for years. This is also a cultural exchange center.
29,400 families of 134 villages are being affected in the Pancheshwar dam and 1,587 families in the Rupali Gada dam. These numbers are very deceptive. Because only those who had land registered on their name have been considered as a family. Which means, a 75-year-old who has 4 sons and 8 adult grandsons is considered only one family on this equation. The promise of giving land is not clear.
Violation
of the forest land act 2006: - Without giving
actually the forest rights to the villagers, forest related clearance
are being obtained under the Forest Rights Act, 2006. In Champawat
district, the task was accomplished even before August 9. The
affected people do not even know that the Forest Rights Act 2006
entitle them rights at the nearby forest. Till date, nowhere in
Uttarakhand, the people have been recognized under Forest Rights Act
2006.
The
Biological
Diversity
Act
2002 be followed: -
According
to The
Biological Diversity Act 2002, it is necessary to make a public
biodiversity register at every town, village, block and district
level, in which there would be a complete information of biological
diversity of the area. So that the entire bio-diversity of the
village can be found.
So, we
demand that: -
- It is acknowledged that this was two dam projects, not one. Which is now getting closed.
- These public hearings should be considered unlawful.
- The 'Social Assessment Report' be turned down.
- Under the Forest Rights Act 2006 the villages be given rights.
- Public Biodiversity Register should be made at village, block, district and municipality level.
Surendra Arya, Viplav Bhatt, P. C. Tiwari, Anjani Kumari, Hari Vallabh Bhatt,
Sumit
Mehar, Prakash Bhandari, Vimal Bhai, Hrendra Kumar Awasthi.
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