Thursday, 14 March 2013

Press Note: 14 March International Anti Big Dam day


14th March
Anti Big Dam Day 
Vishnugad-Peepalkoti
opposed by people




We want out river should flow freely.
हमारी नदियों को अविरल बहने दो  

 

‘अंतराष्ट्रीय बड़े बाँध विरोधदिवस‘ पर विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध का विरोध
आज 14 मार्च को अलकनंदागंगा घाटी में ‘अंतराष्ट्रीय बड़े बंाध विरोध दिवस‘ के दिन बड़े बांधो के खिलाफ प्रर्दशन हुआ। देशभर में बड़े बांधो से उजड़े लोगो का पुनर्वास तक नही हो पाया है। पर्यावरण के मानको का पूर्ण उलंघन हुआ है वही इन बांधो से घोषित बिजली उत्पादन तक नही हुआ है। उत्तराखंड में ही बन चुके बांधो की स्थिति खराब हैै। बांधो से आज ना केवल नदियंा खतरे में है बल्किी यह भी सिद्ध हो गया है कि राज्य को आने वाले समय में केवल नुकसान ही मिलेगा। टिहरी बांध के विस्थापितों के लिये उच्चतम् न्यायालय तक जाना पड़ा तब जाकर कुछ पुनर्वास हो पाया है। पिछले 21 वर्षो से एन0डी0 जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार केस चालू है। बांध विरोधियों ने ही पुनर्वास की लड़ाई लड़ी है। सरकारों का ध्यान मात्र बांध बनाने में है। पर्यावरण और लोगो पर पड़ रहे नुकसानों की ओर नही है। 


उत्तराखंड में अलकनंदागंगा पर निर्माणाधीन विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध क्षेत्र में विभिन्न प्रभावित गांव कौडि़या, दुर्गानगर, हरसारी, नौरख टंगरी आदि से आयी महिलाआंे व पुरुषों ने माटू जनसंगठन के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया। हरसारी गंाव के नीचे जहंा बांध के    विद्युतघर के लिये सुरंग निर्माणाधीन है, लोग वहंा इकट्ठे हुये और सुरंग काम बंद किया व बांध कंपनी टीएचडीसी के कर्मचारियों का     घेराव किया। बाद में जुलुस ने गंगा को अविरल बहने दो, बड़े बांध धोखा है आदि नारे लगाते हुये सियासेण में टीएचडीसी के कार्यालय पर जाकर प्रदर्शन किया। संघर्ष को आगे ले जाने का ऐलान किया।
 
सभा में नौरख के वन सरपंच बृहषराज तडि़याल ने कहा की हमारे भविष्य की बर्बादी हम नही सहेंगे। हमें बांध नही चाहिये। हमने आज तक लड़ाई लड़ी है आगे भी हमारा संघर्ष जारी रहेगा।                                                                          
नरेन्द्र पोखरियाल ने कहा की हम पिछले 9 वर्षाे से विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के असरों को झेल रहे है किन्तु बांध कंपनी को कोई परवाह नही है। हाटगांव के लोग भी अधूरे आश्वासनों में लटक रहे है।
रामलाल का कहना था की अभी बांध का काम भी चालू नही हुआ है। टीएचडीसी ने बांध के सर्वे के लिये जो नुकसान किये है उनकी भरपाई नही कर सकी तो आगे क्या करेगी? यह बात आज सबकी समझ में आ रही है। 


गीता देवी ने कहा की हम दुर्गापुर वालो की स्थिति भी हरसारी वालो की तरह होने वाली है। हम बांध नही बनने देंगे।
हरसारी की बिंदी देवी ने कहा की  रात को विस्फोटकों के कारण हम सो नही पाते और सरकार चैन की नींद सो रही है। विभिन्न गांवों से आई महिलाओं मसूरी देवी, नंदी देवी, भादी देवी आदि ने भी नदियों पर बांधों का विरोध किया।    

विश्वबैंक के अघ्यक्ष भारत आकर गंगा जी में गंदगी पर चिंता व्यक्त करते है और दूसरी तरफ गंगा की हत्या करने वाली बांध परियोजनाओं को पैसा देते है। हम उनके मगरमच्छी आसुंओ को समझते है यह एक तरीका है गंगा सफाई के लिये और कर्ज देने का। यदि उन्हे वास्तव में गंगा की इतनी चिंता है तो वे विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिये कर्जा क्यों दे रहे है?
24 जुलाई व 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। मनेरी भाली चरण दो के प्रभावितों का भी पुनर्वास नही हुआ। ऐसा ही केदार घाटी में भी बादल फटने से ज्यादा वहंा बन रहे बांधो के कारण नुकसान हुआ। ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम‘ भी पर कोई कार्यवाही नही हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। सरकारी हो या निजी, दोनो ही तरह की बांध कंपनियंा व्यवहार में एक सी है।

राज्य के बांधों में, सुरंगंे पहाड़ों को 1500 कि0मी0 लम्बाई में खोखला कर रही है। पहाड़ी क्षेत्र मंे मात्र 7 प्रतिशत भूमि खेती योग्य शेष बच रही है। इन पर भी डूब और अन्य बांध कार्यो का खतरा है। खेती कम होने से भविष्य में खाद्य सुरक्षा बड़ा प्रश्न खड़ा होने वाला है। पूरे राज्य में नदी किनारे असुरक्षित हो रहे है। नदी में पानी की भी अनिश्चितता हुई हैै। नदी का पानी अचानक से पानी छोड़ा जाता है। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों जैसे स्नानपर्व, दाह-संस्कार, नदी-पूजन आदि के लिए भी नदी में पानी नहीं रहा है। जिससे भूस्खलन बढ़े है। पहाड़ की संस्कृति पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे बुरा असर महिलाओं की स्वतंत्रता पर पड़ता है। देवभूमि उत्तराखंड में नदी किनारे के सभी प्रयाग या तो डूब रहे है या सूख रहे हैै।
इन सबके बाद भी यदि सरकारे नही समझती है तो भविष्य में राज्य की तबाही कि वे जिम्मेदार होंगी। पर्यावरण सुरक्षा और जनहक के लिये बड़े बांधों के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा।

नरेन्द्र पोखरियाल         मसूरी देवी      रामलाल       बिंदी देवी         विमलभाई

 ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------
14th March International Anti Big Dam day

People oppose Vishnugad-Peepalkoti HEP in 

Ganga valley

Today on 14th march in Alaknandaganga valley, on the occasion of international Anti Big Dam day demonstration held .on one hand , across the country, there has been no rehabilitation of the people displaced by big dams ,the environmental norms have been grossly violated ,on the other side the proposed power generation has not happened .In Uttrakhand itself the situation of the Dams constructed so far , is very dismal .the dams pose a danger not only for the river but also spell doom for the state. For seeking their rights , Tehri Dam displaced people had to go up to the supreme court only then some semblance of rehabilitation has happened. For the last 21 years litigation has been going on in the case between N.D. Juyal and shekhar singh V/s GoI. The struggle for rehabilitation has been spearheaded by the anti dam campaigners .
In uttrakhand on Alaknandaganga under construction Vishnugad–Peepalkoti HEP area ,under the banner of Matu Jansangthan, men and women of the affected villages of kaudiya ,Durgapur ,Harsari ,Naurakh ,Tagari etc. protested .In Harsari village people gathered at the Dam site where the construction of tunnel is under way ,the work was stalled and THDC officials were gheroed .After this the procession proceeded to the THDC office at Siyasedh ,shouting slogans like Ganga ko aviral Bahene do ,Badhe bandh Dhoka hai ,and vowed to continued their struggle .
In the meeting Naurakha Vansarpanch Brihashraj Tadial said that destruction of our future would not be tolerated, we do not want Dams .We have fought till today and the struggle would continue.
Narinder Pokhariyal said that for the last 9 years our village peopel are facing the consequences of this proposed Dam but the company has not shown any concern . Even Hatt village people are hanging on to mere assurances only.
Ramlal said that the company has not been able to compensate for the damages done during the survey so the people can well gauge the future .Geeta devi said that due to site blasting at night while the people have lost their sleep the government is sound asleep . Women at various villages Masuri Devi ,Nandi Devi ,Bhadi Devi all protested daming of the river.
Impact of even samll Hydro Electric Project are in bad in Uttrakhand. For example on July 24 and 3rd aug 2012 ,in Assi ganga river valley due to cloud burst under construction Kaldigahat and Assi ganga Phase-I and II Hydro electric project caused disaster and Bhagirathi ganaga in Maneri Chal phase II caused lots of destruction. There is no account or record of the deaths of the workers . The villages along Assiganga have been badly affected. The pathways have been eroded . But no action, no enquary has been setup on the dam builder.
Under this situation our struggle is on against dams to save our rivers and our rights over on natural resouces.
Narendra Pokhriyal, Bindadevi, Ramlal, Keshridevi, Vimalbhai

Tuesday, 12 March 2013

प्रैस विज्ञप्तिः 12 मार्च 2013

टिहरी बांध प्रभावितों की नई सम्पशार्विक नीति पुराने अनुभवो के आधार पर बने

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने श्री एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार और दूसरे चल रहे  मुकद्दमों में 5 मार्च 2013 को दिये गये आदेश में कहा है कि राज्य सरकार के पुनर्वास निदेशालय के अधिकारी व टीएचडीसी के अधिकारी राज्य उर्जा सचिव की अध्यक्षता में बैठें और सम्पाशर््िवक नीति में उठ रहे मतभेदों को दूर करें ताकि टिहरी जलाशय के चारों तरफ भिलंगना व भागीरथी घाटी में जलाशय के कारण हो रही क्षति से प्रभावित व्यक्ति/परिवारों का समुचित पुनर्वास हो सके।

19-10-2010 को राज्य सरकार की समिति ने स्थलीय निरीक्षण किया और उसके बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 30 जनवरी 2013 के आदेश के बाद 14 जनवरी को सम्पाशर््िवक नीति अधिसूचित हुई। अधिसूचना में जमीनी सच्चाईयों का पूरी तरह अभाव है। टिहरी और कोटेश्वर बांधों के जलाशय की डूब से हुये विस्थापित लोगों की पुनर्वास की समस्याये आज तक नही सुलझ पाई है। नीति को देखने के बाद मालूम पड़ता है कि इससे कोई सबक नहीं लिया गया है।

13 मार्च को उर्जा सचिव उत्तराखंड की अध्यक्षता में पुनर्वास निदेशालय के अधिकारी व टीएचडीसी के अधिकारियों की बैठक होने वाली है। 1989 से टिहरी बांध की समस्या और प्रभावितों के बीच काम के आधार पर प्रभावितों की ओर से हमने उर्जा सचिव और पुनर्वास निदेशक को सुझाव भेजे है।

नई सम्पाशर््िवक नीति बहुत ही सीमित अर्थों में बनाई गई है जिसमें सिर्फ जलाशय से व्यक्तिगत परिवारों पर होने वाले प्रभावों को देखा जा रहा है। नीति में नुकसान को व्यक्तिगत तौर पर लिया गया है। इस बात को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है कि यह नुकसान व्यक्तिगत नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र में होगा।

पत्र के कुछ खास बिन्दु हैः- भूस्खलन रुकता नही, सामकेतिक योजना का आभाव है, भूमिहीनों का भी पुनर्वास हो,बेनाप/कब्जाधारी भूस्वामियों का पुनर्वास हो, फ्री स्टाम्प ड्यूटी हो, भवन निर्माण के लिये कर्ज, पुनर्वास स्थलों पर सामुदायिक सुविधाये, पुनर्वास सामुदायिक होना चाहिए न कि व्यक्तिगत इकाई के रूप में। विस्थापितों को पूर्व में बने पुनर्वास स्थलों के आस-पास ही स्थान दिया जाये ताकि उनकी अपनी पहचान बरकरार रह सके। विस्थापितों को चुनने का अधिकार हो। 1. पहाड़ में; 2. मैदानी क्षेत्र में; 3. अपनी मनचाही स्थल पर जमीन खरीदने का। तीसरी दशा में सरकार उनको जगह खरीदने में मद्द व मूल्य राशि उपलब्ध करानी होगी। नई सम्पाशर््िवक नीति में लिखे गये पुनर्वास व मुआवजे के लिये तौर-तरीके व दिशा-निर्देश स्पष्ट नहीं है। जोकि आने चाहिये।

ज्ञातव्य है कि नवम्बर 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण ही टीएचडीसी ने पुनर्वास कार्यो को पूरा करने के लिये एक अरब से ज्यादा पैसा दिया। यह बताता है कि टिहरी बांध परियोजना की पुनर्वास नीति और उसके क्रियान्वयन में कितनी खामियां हैं। आज टिहरी बांध से बिजली उत्पादन चालू हुए लगभग 7 वर्ष होने वाले हैं किन्तु आज तक जलाशय स्तर 835 मीटर के नीचे के प्रभावितों का पुनर्वास भी नहीं हो पाया। जिस कारण सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ण जलाशय भरने की अनुमति नहीं प्रदान की है। यह बैठक भी इसीलिये ही हो रही है।

सर्वोच्च न्यायालय में श्री एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार केस में टीएचडीसी द्वारा उठाये गये प्रश्नों के संदर्भ में हमारा मानना है कि     जनप्रतिनिधि का समिति में होना जरुरी है साथ समिति में बांध प्रभावितों का भी एक प्रतिनिधी होना चाहिये। जलाशय से प्रभावित होने वाले भी बांध परियोजना से ही प्रभावित माने जाने चाहिए इसलिए उनको टिहरी बांध परियोजना की पुनर्वास नीति 1998 के अनुसार 2 एकड़ भूमि मिलनी चाहिए। टीएचडीसी का कहना है कि जलाशय के चारों तरफ आठ गांवों में 453.15 हेक्टयेर भूमी उपलब्ध है।  इस संदर्भ में पहला प्रश्न यह है कि टीएचडीस ने यह भूमि अन्य विस्थापितों को उपलब्ध क्यों नहीं कराई। दूसरा प्रश्न की यह ज्यादातर भूिम भी उसी प्रभावित क्षेत्र में आ रही है। तीसरा प्रश्न यह सभी विस्थापितों के लिए पूर्ण नहीं होगी। इसलिए इस भूमि को मात्र एक विकल्प के रूप में रखा जाये न कि अंतिम विकल्प में। जिसके लिये विस्थापितों की सहमति आवश्यक हो।
आजतक के अनुभवों के आधार पर टिहरी बांध के विस्थापितों के मानवीय पुनर्वास के लिए जरूरी है-
1-विस्थापन भूमिअधिग्रहण कानून के तहत होना चाहिये।2-भूमिअधिग्रहण की प्रक्रिया समयबद्ध हो- 3-विस्थापन की प्रक्रिया के बीच किसी पात्र कि मृत्यु होने पर उसके आश्रितों को पात्र माना जाए।4-धारा 4 लगने के समय 18 वर्ष के व्यक्तियों को पात्र माना जाए-5-जमीन दो एकड़ से कम नही हो-6-मकान के मुआवजे से पहले जमीन दी जाये-7-रोजगार सम्बन्धित शासनादेश को तुरन्त क्रियान्वित किया जाये-8-जमीन का भूअधिकार दो, फिर जमीन लो-9-गांव को बुनियादी सुविधाओ के साथ सामूहिक रूप से बसाया जाए-10-पुनर्वास के लिए दूसरो का विस्थापन नही हो-11- पुनर्वास महायोजना-टिहरी बांध की पर्यावरण स्वीकृति 19 जुलाई 1990 को दी गई थी जिसमें पुर्नवास की महायोजना बनाना एक शर्त थी। जो आजतक पूरी नही हो पाई। नतीजा है कि पुनर्वास में इतनी समस्यायें है। इसलिये अब जो विस्थापन हो रहा है कम से कम उसके लिये एक महायोजना जिसमें सभी पात्र विस्थापितों के लिए जमीन और संसाधन की बात हो साथ ही उसकी एक कार्य योजना भी। 12-जानकारी-लोगांे को उनके अधिकारों की जानकारी प्रशासन द्वारा ग्राम स्तर पर प्रदान की जाये। 13-पुनर्वास विभाग के शिविर गांव स्तर पर लगे-प्रभावितों के खर्च, समय व साधन बचाने और भ्रष्टाचार को रोकने के लिये यह जरुरी है। 14-घाटे में चल रहें उद्यान, आलू फार्म चाय बगान व इस तरह के क्षेत्र मालूम करके विस्थापितों को दिये जा सकते है।-15-उद्यानकृर्षि के फार्म वाली सरकारी योजनाओं में विस्थापितों को शामिल किये जायें।

वास्तव में जरुरत तो टिहरी बांध परियोजना जिसमें कोटेश्वर बांध भी आता है, विस्थापितों/प्रभावितों के लिये बनी 1998 की नीति की कमियों को नयी परिस्थितियों व अबतक के विस्थापन में आई समस्याओं को देखते हुये उच्चीकृत करना चाहिये। ताकि नये विस्थापितों को भी वही सब नहीं झेलना पड़े जो पूर्व में विस्थापित लोग झेल रहे हैं। वास्तव में सम्पाशर््िवक नीति की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। पुनर्वास नीति 1998 को ही नये संशोधनों के साथ नवीनीकृत करने की जरूरत थी। किन्तु यदि यह सरकार पुनः सम्पाशर््िवक नीति के नाम पर पुनर्वास नीति बना रही है तो उसे यह सब तो करना ही चाहिये। नीति बार-बार नही बनती है। यह एक मौका है कि टिहरी बांध विस्थापितों के साथ न्याय हो। मुख्यमंत्री जी बार-बार अदालत में बांध विस्थापितों के हक के लिये जाने की घोषणा करते रहे है। यह मौका है कि वो अपना कथन पूर्ण कर सकते है।


विमलभाई               
(समंवयक)

पूरण सिहं राणा


Tuesday, 5 March 2013

Releasing new Dam Story on youtube-- Bandh Katha 12 हमारी नई बांध कथा-12

(English message given below)

प्रिय साथी

जिंदाबाद

हमारी नई बांध कथा 12 देखे
भागीरथीगंगा की सहायक अस्सीगंगा में 3 अगस्त 2012 को बादल फटा। अस्सी गंगा में तीन जलविद्युत परियोजनायंे निमार्णाधीन है। एक और भी चालू हो रही है। लोगो का विरोध जारी है। पर्यटन और ट्राउट मछली के लिये प्रसिद्ध लगभग 25 किलोमीटर लम्बी सुंदर नदी घाटी की तबाही और 50 से ज्यादा मजदूरों की हत्या की जिम्मेदार है, उत्तराखंड जलविद्युत निगम की ये छोटी जलविद्युत परियोजनायें। भागीरथीगंगा में अस्सी गंगा के मिलने के बाद मनेरी भाली चरण-2 जलविद्युत परियोजना के कारण भी तबाही आई। यही सब इस देखे बांध कथा-12

http://youtu.be/N6PevEbI4m8

जल्दी ही इसी विषय पर हमारे 1 5 वें दस्तावेज़  का, बस थोडा इंतजार कीजिये।
विमलभाई



Dear Friends

Jindabad

Have a look of our new Bandh Katha 12 ( Dam story-12) On 3rd August 2012 there was a cloud burst in Assiganga, a tributary of Bhagirathiganga. In Assiganga, three hydroelectric projects (HEP) are under construction. Another one is also starting. Peoples protest is going on. These 'small' HEP of Uttrakhand Jal Vidyut Nigam are responsible for the death of more than 50 workers and destruction of 25 km of beautiful river Valley famous for tourism and "Trout Fish". After the confluence of Assiganga with Bhagirathiganga there was destruction also due to Manari Bhali HEP phase-II. View all these in this Bandh Katha-12.
Soon we are going to bring out our 15th Dastavez (booklet) on the same issue, just wait.......

http://youtu.be/N6PevEbI4m8

Vimalbhai