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विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध को अभी द्वितीय चरण की वन स्वीकृति नही है।
उत्तराख्ंाड में अलकनंदागंगा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध परियोजना पर अभी रोक जारी है। 25 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के हवाले से जारी अंग्रेजी के एक अखबार में भ्रामक खबर आई और उसके बाद विश्वबैंक व अन्य सरकारी परियोजनाओं से जुड़ी देहरादून स्थित एक एनजीओ वक्तव्य जारी किया गया जिसे कई अन्य अखबारों ने छाना है। हम बताना चाहेगें की इस तरह से फैलाई गई बातें भ्रामक, तथ्यहीन, आधारहीन है।
विष्णुगाड-पीपलकोटी की वन स्वीकृति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौति और परिणामः-
सर्वोच्च न्यायालय के 24 जनवरी, 2013 के आदेश में ऐसा कही कुछ नही लिखा है। जिसे प्रचारित किया जा रहा है। सब सही नही है और बांध के पक्ष में हवा बनाने के लिये यह दुष्प्रचार है। आदेश में सिर्फ याचिका को निरस्त करने के बारे में लिखा है केस आदेश की प्रति संलग्न है। जिसे पढ़कर सही स्थिति मालूम होती है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के 14 नवंबर 2011 के आदेश में पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को निर्देश दिया गया था कि वो विभिन्न बांध परियोजनाओं में भौतिक, जैविक और सामाजिक दृष्टि से एक-दूसरे पर पड़ने वाले असरो पर एक उचित समिति बनाये जिसके निणर्य व सिफारिशे निश्चित समय पर आये ताकि लाभ-लागत का अनुपात निकालने में पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को अंतिम निर्णय लेने के समय अनचाही पर्यावरणीय एंव पारिस्थितिकीय खतरे को दूर किया जा सके। पर्यावरण एंव वन मंत्रालय वन भूमि हस्तंातरण के सही मूल्यांकन के लिये लाभ-लागत निकालने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों को तैयार करे।
उत्तराखंड के पर्यावरण व निवासियों के भविष्य के हित में विमलभाई और भरत झुनझुनवाला ने सर्वोच्च न्यायालय में इसी आदेश को विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना पर भी लागू करने के लिये याचिका दायर की थी। जिसे सर्वोच्च अदालत ने स्वीकार नही किया। किन्तु अभी कानूनी रुप से टीएचडीसी बांध काम नही कर सकती है। बिना द्वितीय चरण की वन स्वीकृति के बांध का काम नही हो सकता है। जो कि अभी नही मिली है।
सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य श्रीमान बी. के. चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध का भविष्य इस समिति की रिर्पोट पर भी निर्भर करता है।
इन सब बातो से जाहिर है कि बांध के प्रभावों को, बांध पीड़ितों की समस्याओं को समझे बिना सिर्फ बांध के पक्ष में वे ही बोल सकते है जिनके हित बांध के साथ जुड़े है। जिन्होने कभी बांध प्रभावितों की लड़ाई नही लड़ी है। जिन्हे उत्तराख्ंाड के स्थायी विकास और पर्यावरण सुरक्षा से कोई मतलब नही है। बांध की जनसुनवाई के समय विरोध में खड़े कुछ व्यक्ति अब कितने ठेके और दूसरे लाभ लेकर बैठे है यह जानने से उनके बांध समर्थन की सारी असलियत सामने आ जाती हैं।
टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास ना किये जाने पर माननीय सर्वोंच्च न्यायालय में चल रहे एन0 डी0 जुयाल और शेखर सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य तथा विस्थापितों के दूसरे मुकद्दमें चल रहे है। जिसमें लगातार दिये गये आदेशो के बावजूद भी उनकी पालन नही हो रहा है। माननीय न्यायाधीशों को कड़ी टिप्पणियंा करनी पड़ी है। यदि अदालत का दवाब नही होता तो पुनर्वास के नाम पर जो हुआ है वो भी नही होता।
इन्ही कार्यतर बांधों में हो रही पर्यावरण व विस्थापितों की दुर्दशा परिप्रेक्ष्य में बांधों का विरोध हो रहा है।
बांध प्रभावितों की स्थितिः-
स्थानीय स्तर पर विरोध जारी है। ज्ञातव्य है कि जुलाई 2010 में भी स्थानीय लोगो के पत्र के आधार पर विश्व बैंक ने इस परियोजना को वित्तीय सहायता देने पर विचार नही किया था।
बांध के पावर हाउस के लिये जाने वाली सुरंग हरसारी गांव के नीचे से निकाली जा रही है। जिसके कारण 2004 से लोगो के घरो में दरारंे आई, जलस्त्रोत सूखे, खड़ी फसल का नुकसान हुआ। प्रभावितों ने काम रोककर रखा। 15 मार्च, 2012 को जिलाधीश महोदय व बाद में विश्व बैंक के अधिकारी भी गाँव आकर समस्याओं को देख गए है। किन्तु इन सब नुकसानों का मुआवजा आजतक नही मिला है। आश्वासन दिया गया कि हरसारी गांव के प्रभावितों से बात करके सुरंग का रुख बदला जायेगा। किन्तु टीचडीसी ने एक तरफ़ा कार्यवाही करके बिना प्रभावितों से चर्चा किये जुलाई 2012 में दूसरी सुरंग का निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। जो कि पूर्व सुरंग से मात्र 10 मीटर अलग है। टीएचडीसी लगातार प्रशासन व प्रभावितों को गुमराह कर रही है।
टीएचडीसी प्रभावितों को आगे के विकल्प देने की बात कर रही है किन्तु अब तक के हुये नुकसानों की बात को टाल रही है। प्रभावितों पर दवाब है कि वे पहले बांध की स्वीकृति के लिये हामी भर दे फिर वे उनके पूर्व में हुये नुकसानों पर चर्चा कि जायेगीे। इसमें भी भरपाई की गारंटी नही है। वर्तमान में हो रहे विस्फोटों से हरसारी गांव का शेष पानी भी सूखने कि कगार पर है। दुर्गापुरगांव में भी यही होने वाला है। गुलाबकोटी व यूंणा आदि गांवो की जमीनों में मक डालने से समस्यायें हो रही है। नौरख गांव में बिना वन स्वीकृति के बांध के लिये सड़क निर्माण किया जा रहा है, जिसे वन विभाग ने रोका है। स्थानीय ठेकेदार को नौरख के वन सरपंच ने मात्र जुर्माना लगाकर छोड़ा है। किन्तु टीचडीसी ने इसमे कोई जिम्मेदारी नही ली। यह स्थिति स्थानीय रोजगार की है।
हम फैलाई जा रही अपवाहो से परेशान होने वाले नही है। हम उत्तराखंड के पर्यावरण जोकि देश भर के लिये महत्वपूर्ण है और लोगो के प्राकृतिक संसाधनों के अधिकारों तथा पहले से प्रभावित हो चुके लोगो के उचित पुनर्वास के लिये अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
विमलभाई
पूरण सिंह राणा
Vishnugad-PipalKoti Dam project does not have 2nd Phase environmental clearance
Proposed Vishnugad-Pipalkoti Dam project
on Alaknanda River in Uttarakhand has been stopped and environmental
clearance has not been given yet. On 25th of January 2013
some English newspaper wrongly reported about the clearance of this
project purporting it as an order of Supreme Court.
Challenges and outcome of environmental clearance of Vishnugad-Pipalkoti Dam in Supreme Court:
There
is nothing with regards to environmental clearance in Supreme Court’s
order and this vicious propaganda is set up to built a pressure in
favour of the Dam. Order just says "Civil Appeal is dismissed". The copy
of the judgement is attached which can make clear sense.
The environmental clearance is not yet given for 2nd
phase of work and the work cannot start without this permission.
Ministry of Environment and Forest gave instruction on National Green
Tribunal (NGTs) order on 14th November 2011
The
Tribunal also directed the Ministry of Environment and Forest (MoEF) to
setup an appropriate committee of experts drawn from IITR and WII in
the preparation of CIA report of the five projects considered in WII
report to integrate the physical, biological and social impacts in
making comprehensive cumulative impact assessment report and frame
appropriate conclusions and recommendations within a reasonable
timeframe for consideration and final review by the Ministry of
Environment and Forest to avoid any unforeseen environmental and
ecological threat in the study area.
To ensure sound evaluation of forestland diversion proposals MoEF was asked to prepare the guidelines for cost benefit analysis, may be updated/modified to provide clear instructions regarding the various cost and benefit elements to be incorporated for the purpose of arriving at cost benefit ratio and applications for Forest Diversion will be done following the prescribed procedure.
To ensure sound evaluation of forestland diversion proposals MoEF was asked to prepare the guidelines for cost benefit analysis, may be updated/modified to provide clear instructions regarding the various cost and benefit elements to be incorporated for the purpose of arriving at cost benefit ratio and applications for Forest Diversion will be done following the prescribed procedure.
In interest of future of the people and
environment activists Vimalbhai and bharat Jhunjhunwala filed a petition
to implement the same order in Vishnugad-Pipalkoti project, which was
rejected by Court. Still without environmental clearance for 2nd phase THDC can’t start work.
And it is also relevent here tell that
Government of Inida has established a committee under r. B.K. Chaturvedi
(member, Planning Commission) which consist different Ministries, to
decide the water level in Ganga and its tributaries. The report is
expected in March 2013.
Later, this rumour was taken by one NGO
who is working with World Bank and various other state schemes/projects,
and published in various other newspapers. We want to clarify that all
these news are baseless and not true. Disconnected from the impact of
the dam on affected communities, it is clear that only those people
speak in favor of the Dam whose own interests are closely linked with
it, who never fought for the rights of the affected people and has
nothing to do with sustainable development of the state and
environmental justice. The realty of those people who expressed
opposition for the Dam at the time of public hearing, are exposed when they sees the contracts and benefits given by the authorities to them.
The case of the failure to rehabilitate
the displaced people is still pending in Supreme Court (N.D. Juyal and
Shekhar et al Vs State of India and others), but the orders are still
not followed properly by the authorities. The Court has slammed the
authorities (T.H.D.C. and state Govt. of Uttarakhand) for failure of
action. If not for this pressure from the Court even what little has
been done in the name of rehabilitation would not have been done.
People are protesting due to this environmental lose and failure to rehabilitate the displaced.
Local Condition of affected area:
The protest continues at local level, it is to remember that due to
petition by local people, World Bank was not consider funds this project
in July 2010.
One tunnel for the
Dam’s power house is being extracted from the bottom of Harsari Village,
resulting crack in people’s houses, loss to present crop. Affected
people stopped the work. In March 2012 the affected village was visited
by District Magistrate and later by the World Bank officials. Till date
compensation for these losses not yet received despite seeing all the
problems occurred. Affected villagers from Harsari were assured that the
direction of tunnel will diverted, but THDC started building another
tunnel in July 2012 just 10 meters away without even consulting the
villagers. THDC frequently misleads the affected people and
administration.
Now, THDC claims to give further space
for negotiation with affected people, but so far have been avoiding
talking about earlier losses. The Dam affected people are in constant
pressure first to give consent to the Dam before talking about their
earlier losses, but gives no guarantee of compensation. The remaining
water level is on the verge of drying due to current explosions in
Harsari village.
Same is going to happen in Durgapur
village. Gulabkoti and una villages are also falling into same problems.
The road is being built in Naurakh village without approval by Forest
Department and the local contractor left by just paying fines to the
Sarpanch. The THDC have not taken any responsibility for this as well as
for the local employment.
We are not affected by rumors thaqt are
being spread. We will continue our fight to keep Uttarakhand environment
better, which is improtant for the country and fight for the people's
right over on natural resources and better rehabilitation for already
affected by dams.
Vimalbhai
Puran Singh Rana
उत्तराख्ंाड में अलकनंदागंगा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध परियोजना पर अभी रोक जारी है। 25 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के हवाले से जारी अंग्रेजी के एक अखबार में भ्रामक खबर आई और उसके बाद विश्वबैंक व अन्य सरकारी परियोजनाओं से जुड़ी देहरादून स्थित एक एनजीओ वक्तव्य जारी किया गया जिसे कई अन्य अखबारों ने छाना है। हम बताना चाहेगें की इस तरह से फैलाई गई बातें भ्रामक, तथ्यहीन, आधारहीन है।
विष्णुगाड-पीपलकोटी की वन स्वीकृति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौति और परिणामः-
सर्वोच्च न्यायालय के 24 जनवरी, 2013 के आदेश में ऐसा कही कुछ नही लिखा है। जिसे प्रचारित किया जा रहा है। सब सही नही है और बांध के पक्ष में हवा बनाने के लिये यह दुष्प्रचार है। आदेश में सिर्फ याचिका को निरस्त करने के बारे में लिखा है केस आदेश की प्रति संलग्न है। जिसे पढ़कर सही स्थिति मालूम होती है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के 14 नवंबर 2011 के आदेश में पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को निर्देश दिया गया था कि वो विभिन्न बांध परियोजनाओं में भौतिक, जैविक और सामाजिक दृष्टि से एक-दूसरे पर पड़ने वाले असरो पर एक उचित समिति बनाये जिसके निणर्य व सिफारिशे निश्चित समय पर आये ताकि लाभ-लागत का अनुपात निकालने में पर्यावरण एंव वन मंत्रालय को अंतिम निर्णय लेने के समय अनचाही पर्यावरणीय एंव पारिस्थितिकीय खतरे को दूर किया जा सके। पर्यावरण एंव वन मंत्रालय वन भूमि हस्तंातरण के सही मूल्यांकन के लिये लाभ-लागत निकालने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों को तैयार करे।
उत्तराखंड के पर्यावरण व निवासियों के भविष्य के हित में विमलभाई और भरत झुनझुनवाला ने सर्वोच्च न्यायालय में इसी आदेश को विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना पर भी लागू करने के लिये याचिका दायर की थी। जिसे सर्वोच्च अदालत ने स्वीकार नही किया। किन्तु अभी कानूनी रुप से टीएचडीसी बांध काम नही कर सकती है। बिना द्वितीय चरण की वन स्वीकृति के बांध का काम नही हो सकता है। जो कि अभी नही मिली है।
सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य श्रीमान बी. के. चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध का भविष्य इस समिति की रिर्पोट पर भी निर्भर करता है।
इन सब बातो से जाहिर है कि बांध के प्रभावों को, बांध पीड़ितों की समस्याओं को समझे बिना सिर्फ बांध के पक्ष में वे ही बोल सकते है जिनके हित बांध के साथ जुड़े है। जिन्होने कभी बांध प्रभावितों की लड़ाई नही लड़ी है। जिन्हे उत्तराख्ंाड के स्थायी विकास और पर्यावरण सुरक्षा से कोई मतलब नही है। बांध की जनसुनवाई के समय विरोध में खड़े कुछ व्यक्ति अब कितने ठेके और दूसरे लाभ लेकर बैठे है यह जानने से उनके बांध समर्थन की सारी असलियत सामने आ जाती हैं।
टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास ना किये जाने पर माननीय सर्वोंच्च न्यायालय में चल रहे एन0 डी0 जुयाल और शेखर सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य तथा विस्थापितों के दूसरे मुकद्दमें चल रहे है। जिसमें लगातार दिये गये आदेशो के बावजूद भी उनकी पालन नही हो रहा है। माननीय न्यायाधीशों को कड़ी टिप्पणियंा करनी पड़ी है। यदि अदालत का दवाब नही होता तो पुनर्वास के नाम पर जो हुआ है वो भी नही होता।
इन्ही कार्यतर बांधों में हो रही पर्यावरण व विस्थापितों की दुर्दशा परिप्रेक्ष्य में बांधों का विरोध हो रहा है।
बांध प्रभावितों की स्थितिः-
स्थानीय स्तर पर विरोध जारी है। ज्ञातव्य है कि जुलाई 2010 में भी स्थानीय लोगो के पत्र के आधार पर विश्व बैंक ने इस परियोजना को वित्तीय सहायता देने पर विचार नही किया था।
बांध के पावर हाउस के लिये जाने वाली सुरंग हरसारी गांव के नीचे से निकाली जा रही है। जिसके कारण 2004 से लोगो के घरो में दरारंे आई, जलस्त्रोत सूखे, खड़ी फसल का नुकसान हुआ। प्रभावितों ने काम रोककर रखा। 15 मार्च, 2012 को जिलाधीश महोदय व बाद में विश्व बैंक के अधिकारी भी गाँव आकर समस्याओं को देख गए है। किन्तु इन सब नुकसानों का मुआवजा आजतक नही मिला है। आश्वासन दिया गया कि हरसारी गांव के प्रभावितों से बात करके सुरंग का रुख बदला जायेगा। किन्तु टीचडीसी ने एक तरफ़ा कार्यवाही करके बिना प्रभावितों से चर्चा किये जुलाई 2012 में दूसरी सुरंग का निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। जो कि पूर्व सुरंग से मात्र 10 मीटर अलग है। टीएचडीसी लगातार प्रशासन व प्रभावितों को गुमराह कर रही है।
टीएचडीसी प्रभावितों को आगे के विकल्प देने की बात कर रही है किन्तु अब तक के हुये नुकसानों की बात को टाल रही है। प्रभावितों पर दवाब है कि वे पहले बांध की स्वीकृति के लिये हामी भर दे फिर वे उनके पूर्व में हुये नुकसानों पर चर्चा कि जायेगीे। इसमें भी भरपाई की गारंटी नही है। वर्तमान में हो रहे विस्फोटों से हरसारी गांव का शेष पानी भी सूखने कि कगार पर है। दुर्गापुरगांव में भी यही होने वाला है। गुलाबकोटी व यूंणा आदि गांवो की जमीनों में मक डालने से समस्यायें हो रही है। नौरख गांव में बिना वन स्वीकृति के बांध के लिये सड़क निर्माण किया जा रहा है, जिसे वन विभाग ने रोका है। स्थानीय ठेकेदार को नौरख के वन सरपंच ने मात्र जुर्माना लगाकर छोड़ा है। किन्तु टीचडीसी ने इसमे कोई जिम्मेदारी नही ली। यह स्थिति स्थानीय रोजगार की है।
हम फैलाई जा रही अपवाहो से परेशान होने वाले नही है। हम उत्तराखंड के पर्यावरण जोकि देश भर के लिये महत्वपूर्ण है और लोगो के प्राकृतिक संसाधनों के अधिकारों तथा पहले से प्रभावित हो चुके लोगो के उचित पुनर्वास के लिये अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
विमलभाई
पूरण सिंह राणा
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