Tuesday, 16 February 2021

Press Note: 17-02-2021

     English translation after Hindi Press Note--------                                                        

17-02-2021

धौली गंगा आपदा

एन टी पी सी के सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा


प्रेस नोट: 17-02-2021

 7 फरवरी, 2021 को तपोवन गांव स्थित बैराज के गेट बंद थे। जिस कारण से तेजी से बहता पानी गेट से टकराकर बांयी ओर स्थित हेडरेस्ट टनल में घुस गया। आज अपने ही मजदूर व कर्मचारियों के परिवारों के जीवन की बर्बादी की जिम्मेदार एनटीपीसी है।

यह दुर्घटना  पूरी तरह सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। हम ग्लेशियर टूटने या ग्लोबल वार्मिंग को दोष देकर लोकल वार्मिंग के मुद्दे को नहीं छुपा सकते।

अफसोस है कि उत्तराखंड में सरकार ने एक दिन का शोक तक नहीं घोषित किया गया? एनटीपीसी ने भी एक शोक प्रस्ताव का स्टेटमेंट तक नहीं निकाला। क्या मात्र 4  लाख रुपये पर इन मेहनतकश मज़दूरों की जिंदगियों की कीमत है? जिन बांधो को विकास कहकर प्रचारित किया जाता है उन्ही बांधो ने इन मज़दूरों की जान ली है। 

माटू जनसंगठन ने 9 तारीख को पहले ही स्टेटमेंट में इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी। रोज़ निकल रहे शव शोक में डुबा रहे हैं। हमारे पास दुखित परिवारों को सांत्वना देने के लिए शब्द नही है। मृतकों को श्रद्धांजलि में आंखे नम है। हम नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स, आर्मी, आईटीबीपी, एसडीआरएफ व स्थानीय पुलिस के जवानों को सलाम करते हैं। उनकी कोशिशें सफल हो। जो लापता हैं वे सलामत मिले। साथ ही जोशीमठ के गुरुद्वारे प्रबंधक कमेटी को भी ज़िंदाबाद जो इन जवानों के लिए रहने व खाने की लगातार व्यवस्था दे रहे हैं।

एनटीपीसी को 8 फरवरी 2005 में तपोवन विष्णुगाड परियोजना बनाने के लिए पर्यावरण स्वीकृति मिली थी। 2011 में यह परियोजना के पूरा होने की संभावित तारीख थी। किंतु परियोजना लगातार क्षेत्र की नाजुक पर्यावरणीय स्थितियों के कारण रूकती रही है। सन 2011, 2012 व 2013 में काफर डैम टूटा, बैराज को कई बार नुकसान पहुंचा। सन 2009 में हैड रेस्ट टनल को बनाने के लिए लाई गई 200 करोड़ की टनल बोरिंग मशीन टनल में ही अटक गई। फिर 2016 में दोबारा अटक गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक वही खड़ी है। इसी दौरान जोशीमठ के नीचे से टनल बोरिंग के कारण एक बहुत बड़ा पानी का स्त्रोत फूटा जो कि जोशीमठ के नीचे के जल भंडार को खत्म कर रहा है। इस दौरान संभवत कंपनी में टनल का डिजाइन भी बदला है। जिसकी कोई आकलन रिपोर्ट सामने नहीं आई है। परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है।  पर्यावरणीय परिस्थितियां परियोजना को नकार रही है। याद रहे 1979 में प्रशासन स्थानीय प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण पर भी आपत्ति जताई गई थी। क्योंकि जोशीमठ एक बड़े लैंडस्लाइड पर बसा हुआ शहर है। अभी यहां बड़े निर्माण कार्य तेजी से चालू है। तो क्या हम मात्र प्राकृतिक आपदा को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी से अलग हटेंगे?

इतनी बड़ी परियोजनाओं में कोई सुरक्षा प्रबंध, अर्ली वार्निंग देने का कोई सिस्टम का ना होना?

उत्तराखंड राज्य बनते ही जल विद्युत परियोजनाओं और पर्यटन को आमदनी का स्त्रोत और विकास का द्योतक माना गया। मगर इन परियोजनाओं की लाभ हानि को तो एक तरफ कीजिए बल्कि इन बांध परियोजनाओं की स्वयं की सुरक्षा और इन परियोजनाओं  में काम करने वाले मजदूरों और बांधो के टूटने की दशा में क्या हो? या बांध संबंधी अन्य  दुर्घटनाओं के बारे में कोई सुरक्षा प्रणाली अब तक नहीं बनाई गई। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन  2010 में टिहरी बांध को संभालने में नाकामयाब रही। उसकी टनल में मजदूरों के मारे जाने की कितनी ही घटनाएं हुई। 2012 में अस्सी गंगा में बादल फटने पर भी कोई अलार्म सिस्टम नहीं था। कल्दी गाड (9.5 मेगावाट) परियोजना और मनेरी-भाली चरण-2, दोनों ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम की परियोजनाएं थी। मगर पानी कल्दीगाड से मनेरी भाली तक पानी को आने में घंटे भर से भी ज्यादा समय लगा। मगर तब भी मनेरी भाली दो के गेट नहीं खुल पाए थे। 2006 में भी मनेरी भाली परियोजनाओ से 6 लोग मारे गए। अचानक से पानी छोड़ने के कारण। 2013 की आपदा ने उत्तराखंड सहित पूरे देश को हिला दिया था। संसार भर में से हर तरह की राहत यहां पहुंची। अफसोस अर्लीअलार्म सिस्टम तब भी मौजूद नहीं रहा और 7 फरवरी 2021 को भी नही था। 

 *तो इसका दोषी कौन है?* 

हमने  तपोवन गांव व रैणी गांव का दौरा किया। जहां पर ऋषि गंगा परियोजना का पावर हाउस है। उस दौरे में रैणी गांव के लोगों ने कहा हमें कोई राहत सामग्री की जरूरत नहीं है। हमने ही यहां पर आने वाले लोगों को अपने घरों में ठहराया है। सुरक्षाबलों और अन्यों को जलाने के लिए लकड़िया दी हैं। हमें बस यह बांध नहीं चाहिए। अब इस बांध को बंद होना चाहिए। 

ज्ञातव्य है कि 13.5 मेगा वाट की ऋषि गंगा परियोजना में लगातार दुर्घटनाएं होती रही हैं। परियोजना प्रयोक्ता कि 2011 में चट्टान धसकने से मृत्यु हुई। उसके बाद भी अनेक दुर्घटनाओं में परियोजना को काफी नुकसान पहुंचा। यह सब बताता है कि पूरे क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थिति किया काफी नाजुक है।

 माटू जनसंगठन की मांगे:-

1-नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन पर प्रथम दृष्टया सरकार की ओर से गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दायर किया जाए।

2- इस पूरे प्रकरण की जांच तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा एक रिटायर्ड हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में हो।

3-मजदूरों के परिवारों को प्रति परिवार एक स्थाई रोजगार व 50 लाख करमुक्त राशि दी जाए।

4- सर्वोच्च न्यायालय तुरंत इस पर स्वयं संज्ञान लेकर इस संदर्भ में लंबित मुकदमे को अंजाम दे।

5- दोनों परियोजनाएं बंद होनी ही चाहिए।



 विमल भाई,  दिनेश पंवार व भरत चौहान


Dhouli Ganga Disaster:
Consequences of disregard of security arrangements and criminal negligence by NTPC



 On 7 February 2021, the barrage gates at Tapovan village were closed. Due to which fast flowing water collided with the gate and entered the Headrace tunnel on the left. Today NTPC is responsible for the loss of life of the families of its own employees and workers. This accident is a result of complete disregard of security arrangements and criminal negligence. We cannot hide the issue of local warming by blaming glacier breakdown or global warming.


Sadly, the government has not even declared a day mourn in Uttarakhand? NTPC has not even taken out a statement of condolence. Are the lives of these working laborers worth only 4 lakh rupees? The dams which are promoted as development are responsible for the killing of these workers.


Matu Jan Sangathan had already paid tribute to these martyrs in its statement on 9th Feb. The dead bodies coming out everyday are drowning in long lasting grief. We have no words to console the grieving families. The eyes are full with tears as a tribute to the dead. We salute the personnel of National Disaster Response Force, Indian Army, ITBP, SDRF and local police. May their efforts be successful. Those who are missing get safe guard. At the same time, we also salute the Gurdwara Prabandhak Committee of Joshimath, who are constantly providing accommodation and food to the soldiers.


NTPC received environmental clearance on 8 February 2005 to build the Tapovan Vishnugad project. This project was expected to be commissioned in 2011. But the project has been continuously stalled due to the fragile environmental conditions of the region. In 2011, 2012 and 2013, the Coffer Dam broke, barrage was damaged several times. In 2009, the 200 crore tunnel boring machine brought to build the head race tunnel was stuck in the tunnel itself. Then it was stuck again in 2016.

According to the information received, the TBM is still stuck. Meanwhile, due to tunnel boring, a huge water source erupts which is destroying the ground water in Joshimath. Because of this, the design of the tunnel has also changed by the company. No assessment report of which has been revealed. The cost of the project continues to increase. Environmental conditions are negating the project.


Remember, in 1979, the local administration had objected to the road construction, because Joshimath is situated on a large landslide. Right now large construction work is going on very fast. So, shall we just get over calling it a natural disaster?

 

In such large projects there is no security, no system of early warning?

As soon as Uttarakhand became a state, hydropower projects and tourism were considered as a source of income and a sign of development. Apart from the profit and loss of these projects, there is no attention given to the self-protection of these dam projects and what should happen with the workers working in these projects in case of dam break? No safety system has been created regarding dam related accidents yet.


The Tehri Hydro Development Corporation failed to handle the Tehri Dam in 2010. There were so many incidents of workers being killed in its tunnel. In 2012, there was no alarm system when a cloud burst in the Asi Ganga. Both the Kaldi Gad (9.5 MW) project and the Maneri-Bhali Phase-2 on Bhagirathi were Uttarakhand Jal Vidyut Nigam projects. It took more than an hour to get the water from Kaldigad to Maneri Bhali. But even then the gate of Maneri Bhali-2 could not open.


Also in 2006, 6 people died because water was suddenly released from Maneri Bhali projects without any prior information. The 2013 disaster shook the entire country including Uttarakhand. Every kind of relief reached here from all over the world. Sadly the early alarm system did not exist even then and was not even on 7 February 2021. So who is to blame?

 

We visited Tapovan village and Raini village where power house of the Rishi Ganga project located. The people of Raini village said that they do not need any relief material. They said that they provide shelter to people in their homes who came to their village. They provide wooden sticks to burn to security forces and others. They strongly opposed the dam and said that they just don't want this dam. Now this dam should be closed.


It is known that there have been frequent accidents in the 13.5 MW Rishi Ganga project. The project  user died of a rock fall in 2011. Even after that, the project suffered significant damage in many accidents. All this suggests that the environmental condition of the entire region is quite fragile.


Matu Jansangthan demands: - 

  1. The government should file a prima facie case for unintetional murder and criminal negligence on NTPC.

  2. This entire case should be investigated by technical experts headed by retired High Court or Supreme Court Judge. 

3 - Workers' families should be given a permanent employment and a tax-free amount of 50 lakh.

4- The Supreme Court should immediately take cognizance of this and execute the pending case in this context. 

5- Both projects should be closed. 

 

Vimal Bhai, Dinesh Panwar and Bharat Chauhan

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