Wednesday, 2 January 2019

प्रेस विज्ञप्ति 20-12-2018

प्रेस विज्ञप्ति   20-12-2018

      {English translation after Hindi}

श्रीनगर बांध परियोजना: पावर चैनल में रिसाव 
    गांव के लोग भय में जीने के लिए मजबूर 

पिछले 4 दिन से उत्तराखंड के  टिहरी व पौड़ी जिले में बनी श्रीनगर बांध परियोजना का पावर चैनल यानी लगभग 4 किलोमीटर लंबी खुली नहर में जगह-जगह से तेजी से रिसाव हो रहा है। रिसाव के कारण  मंगसू और सुरासू आदि गांवों के लोग भय में हैं। उनके घरों के आसपास पानी है, खेतों में पानी है जो की फसलों को खराब भी कर रहा है, यह पानी सर्दी के मौसम में और ठंडक बढ़ा रहा है।

ज्ञातव्य है कि 2015 में इन गांवों में नहर के रिसाव के कारण भारी मात्रा में पानी भर गया था । जिसके बाद तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने  2 मंत्रियों की एक कैबिनेट समिति बनाई। जिसमे ऊर्जा सचिव को भी रखा गया था। जिसकी संस्तुति पर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ने अपनी  रिपोर्ट दी । इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि पावर चैनल की जगह और निर्माण में खामियां हैं। अपनी सिफारिशों में वाडिया इंस्टीट्यूट ने बताया था कि कई अन्य संस्थानों के साथ मिलकर इसके गहन अध्ययन की आवश्यकता है। इसके बाद जीवीके कंपनी ने बिना किसी अध्ययन किए, नहर पर जगह-जगह कुछ लीपापोती जैसे काम की किए। मगर वह पूरी तरह कभी भी न सफल हुए हैं । बल्कि नए से कचरा सफाई करके जो मलबा नीचे की तरफ डाला गया उससे लोगों के खेत और खराब हुए। जिस पर कोई मुआवजा नहीं।

हम मानते हैं कि बांध निर्माता जीवीके कंपनी ने लोगों की सुरक्षा को नजरअंदाज किया है। मात्र पानी बेकार न जाए इस बात को ध्यान में रखा। रिसाव क्यों हो रहा है उस गंभीर प्रश्न पर काम नहीं किया। पिछले 3 सालों में उत्तराखंड सरकार में सत्ता बदली है। मगर पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार दोनों ने ही इस ओर ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा है कि आज स्थिति गंभीर है।

श्रीनगर बांध परियोजना के निर्माण किस समय से ही लगातार प्रश्न उठते रहे हैं । बांध कंपनी ने पर्यावरणीय शर्तों की अनदेखी करते हुए बांध को आगे बढ़ाया । अन्य मुद्दों पर भी आज स्थिति यह है कि शहर में गंदा पीने का पानी, लोगों के मुआवजे लटके हुए हैं, लीज पर ली गई जमीनों के पैसे अभी तक नहीं दिए गए, शहर में मरीन ड्राइव बनाने का वादा गायब, गर्मियों में चौरास में उड़ती धूल। पूरे बांध क्षेत्र के पर्यावरण की तबाही और इन सब के साथ मंगसू से धारी देवी तक के गांवों में छोटी-छोटी समस्याएं जैसे पानी, गांव के रास्ते आदि-आदि भी लटके हुए हैं।

माटू जन संगठन मांग करता है कि :-

1-सरकार वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट पर तुरंत कार्यवाही हो।

 2- पावर चैनल के रिसाव से हो रहे नुकसान की भरपाई बांध कंपनी करें ।

3- लंबित मामलों पर सरकार कंपनी के साथ मिलकर तुरंत निदान कराएं।

विमल भाई,    विनोद चमोली,  मनीष रावत
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    (English translation)                                                    
Shrinagar Dam Project: Leakage in power channel, village people forced to live under threat.
For the past 4 days, there has been continuous leakage from the 4km long power channel of Shrinagar Dam Project constructed in Tehri and Pauri districts of Uttarakhand. Due to this leakage, residents of villages like Mangsu, Surasu, etc. are under threat. Their homes are surrounded by water, their fields are water logged which is also damaging the crop. This presence of water adds on to the wintry cold season.
It is well known how in 2015, these villages were waterlogged owing to a leakage in the canal. Following which the then Uttarakhand government had urgently set up a Cabinet Committee comprising 2 ministers which included the secretary for Energy and on the recommendation of which, the Dehradun based Wadia Institute submitted its report. The report concluded that the location as well as construction of the power channel was flawed. Recommendations of Wadia Institute said that an in-depth study of it in collaboration with other institutes was needed. Following this, the GVK company undertook some tasks at various places of the canal without having done any study of any kind. But they have never succeeded entirely. Rather the waste collected after cleaning the canal, which was dumped downwards, all the more damaged people’s fields who have yet not been compensated.
We believe that the Dam constructor GVK company has ignored and overlooked people’s safety. Their only consideration has been that the water for generating electricity shouldn’t be wasted. The question about the cause of the leakage has not been worked upon. In the past 3 years, the government of Uttarakhand has changed. But both the previous and the present  government have paid no heed in this direction. As a result, today, the situation is serious.
There have been continuous doubts and questioning about the Shrinagar Dam Project ever since it had been constructed. The Dam constructing company undertook the construction overlooking all environmental risks. Other unsettled issues include unhygienic water for drinking, unpaid compensations to people, lands taken on lease have not been paid till date, the promise to construct marine drive in the city is missing, the unattended dust and waste blown away in summers. The entire area under dam construction is devastated and along with this, villages from Mangsu till Dhaara devi are aggrieved with small problems like water, pathways, etc.
Matu People’s Organisation demands :-
  1. Immediate Government proceeding on Wadia Institute’s report.
  2. The damage being caused due to leakage in the power channel should be compensated for by the dam construction company.
  3. Pending cases should be urgently resolved by the government with the company’s cooperation.

Vimal Bhai, Vinod Chamoli, Maneesh Rawat.

प्रेस विज्ञप्ति 28-11-218


 प्रेस विज्ञप्ति          28-11-218


संगीनों के साए में पुनर्वास की जनसुनवाई


उत्तराखंड के छोटे से मोरी ब्लॉक में आज बैरिकेडिंग थी और बड़ी मात्रा में पुलिस थी। नजारा ऐसा था कि कोई बड़ा आतंकवादी हमला होने वाला है। उत्तरकाशी जिले के इस छोटे से ब्लॉक में सुपिन नदी पर, गोविंद पशु विहार में बनने वाली जखोल साकरी बांध परियोजना ( 44 मेगावाट) की पुनर्वास संबंधी जनसुनवाई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 5 गांव प्रभावित हो रहे हैं पाव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी, धारा व जखोल आदि।
 किसी भी गांव में लोगों की मांग के अनुसार उनको कागजात न दिए गए ना समझाएं गए। 12 जून 2018 को लोगों के कड़े विरोध के चलते पर्यावरणीय जनसुनवाई रद्द हुई थी।
 लोगों की मांग थी कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक समाघात आकलन रिपोर्ट उन्हें हिंदी में दिया जाए और व्यवस्थित, निष्पक्ष संस्था , व्यक्तियों द्वारा समझाया जाए। प्रभावित क्षेत्र में मात्र चंद लोग के आलावा तमाम लोग इस बांध परियोजना का विरोध कर रहे हैं।प्रशासन व सतलुज जल विद्युत निगम कंपनी जब पर्यावरणीय जनसुनवाई कराने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने सामाजिक समाधान पर आकलन रिपोर्ट पर होने वाली जनसुनवाई का मोरी ब्लॉक में एक केंद्रित आयोजन किया ताकि वे यह दिखा सके की बांध का काम चालू है।
 बहुत टालमटोल के बाद सूचना के अधिकार के तहत मिले कागजातों से यह मालूम पड़ता है कि गांव की अशिक्षित महिला प्रधानों को बिना रिपोर्ट पढ़ाये व बिना कोई प्रक्रिया समझाए, कागजों पर हस्ताक्षर ले लिए गए।
सामाजिक समाघात आकलन प्रक्रिया में आवश्यक है की ग्रामीण स्तर की समितियां बने। जो कि नहीं बनाई गई । परियोजना स्तर की जो विशेषज्ञ समिति बनाई गई उसमें टिहरी बांध परियोजना के बड़े अधिकारियों को लिया गया। यह सर्वविदित है कि टिहरी बांध परियोजना में अभी तक पुनर्वास नहीं हो पाया है। रटिहरी बांध पुनर्वास निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार भी 415 लोग अभी भूमि आधारित पुनर्वास के लिए कतार में खड़े हैं। 
पुनर्वास के लिए बनाई गई समिति के ग्रामीण सदस्यों ने यह रिपोर्ट नहीं पढ़ी है। आज की जनसुनवाई किसी तरह संभव हो इसलिए सरकारी स्तर पर लोगों को भ्रमित रखने के प्रयास किए गए। जनसुनवाई प्रभावित गांवों से 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक में रखी गई, जिसके 1 किलोमीटर आगे पीछे पुलिस बैरिकेड था। जिनकी भूमि जा रही है उनकी लिस्ट के अनुसार उनके पास बना करके भेजा गया। इसके अलावा यदि कोई आवश्यक रूप से जीप या कार सड़क से निकल रही थी तो उसमें एक पुलिस वाले को बिठाया गया। 

भू अर्जन पुनर्वास और पुनः व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 का खुले रूप से उल्लंघन किया गया । पहले यह जनसुनवाई 25 अक्टूबर को आयोजित की गई थी किंतु चुनाव के चलते रद्द की गई और 28 नवंबर को पुन: घोषित की गई। प्रशासन ने मात्र जिनकी जमीन जा रही है उनको ही जनसुनवाई में आना है, ऐसा झूठ प्रचारित किया। माटू जन संगठन व अन्य लोगों ने भी पर्यावरण मंत्रालय, जिलाधिकारी व मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर अपना विरोध जताया था । किंतु सरकार ने इस पर कोई ध्यान ना देकर पुनर्वास संबंधी जनसुनवाई किसी तरह पूरी की।  जन सुनवाई के दौरान भी पाव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी, धारा व जखोल आदि के प्रभावितों ने विरोध पत्र जनसुनवाई में देकर, अपना विरोध दर्ज कराया। 12 जून को स्थगित हुई जनसुनवाई से डरे हुए प्रशासन ने ढेर सारी पुलिस शायद इसीलिए लगाई थी ताकि लोग इकट्ठे होकर अपनी आवाज न उठा सके । सरकार ने कागजों की भरपाई तो कर ली। साथ ही यह बता दिया गया कि बांध का मतलब जबरदस्ती, गैर जरूरी तरह से, लोगों पर सरकारी योजना थोपना है। जिसमें ठेकेदार और सरकारी नुमाइंदे का भला होगा। प्रभावितों की कोई चिंता नहीं, पर्यावरण का कोई सोच नहीं।

अन्य गावों से लोग ना पाए इसलिए उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक का दौरा भी आज ही जखोल में रखा गया। जहां पर लोगों ने उनसे सवाल किया कि हमें एक पेड़ काटने की इजाजत नहीं और आपने कैसे बांध कंपनी को खुलेआम जंगल की जमीन देदी? लोगों ने कहा कि बांध के लिए वनअनापत्ति धोखे से ली गई है। आप उन्हें रद्द कीजिए।

बंदूक और संगीनों से पहाड़ खोदकर बनाए जा रहे इस छोटे से बांध के लिए पूरी सरकार कमर कस के तैयार खड़ी है। बांध कंपनी को हर तरह का संरक्षण है। लोग संरक्षित गोविंद पशु विहार में असुरक्षित बंदूकों के साए में कैद कर दिए गए।

किंतु सरकार यह जान ले कि संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं और राजनेताओं को जल्दी ही वोट मांगने लोगों के सामने आना पड़ेगा। तब जनता उनसे हर तरह से जवाब मांगेगी।

हम हर एक न्यायोचित, संविधान सम्मत, शांतिपुर्ण,
सत्याग्रह में विश्वास करते हुए  अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे।

रामवीर सिंह,  राणा गुलाब सिंह, किशन रावत, राजपाल रावत, विमल भाई

Press Release 12 Octber, 2018


Press Release 12 Octber, 2018

Politics of “Ganga Saviours” stands exposed
Salute Sawamiji's struggle

FIR be  registered
under Sec. 302 of IPC, on Mr Modi, Mr Nitin Gadkari and Ms Uma Bharti.

We, Matu Jansangthan and other organisations express our anguish on the Government assassination of Swami Gyan Swaroop Sanand (G. D. Agrawal) whose contributions to India's environmental planning and design remains unparalleled till date in the country, he was CPCB's first member secretary and a passionate engineer who inspired scores of students while at IIT-Kanpur.

We have resentment that government  completely ignored the issues raised by swamiji .On one hand, Congress acknowledged the issues and Notified a stretch of Bhagirathi as Free fellow.

This governments  head calls himself THE SON OF GANGA. Road and highways  minister also happens to be the Minister of Water Resources, River Development & Ganga Rejuvenation, calls himself THE SERVANT OF GANGA.

Even  Ms Uma Bharti who calls herself THE DAUGHTER OF GANGA who also served the Ganga MInistry and indulge in huge extra vaganz in Delhi’s VIGYAN BHAWAN and at other places used to put up show of NAMAMI GANGE project worth 22,000 crore rupees .
But she failed miserably upholding her towords Ganga and Swami Ji.

Swami Sanand ji after Modi came to power chose to remain silent for  4 years.
And when he realised that this government despite on its way to complete its tenure, in reality, was not stopping the works of dam on Ganga, then he decided to go on hunger strike for betterment  of Ganga.

Along with sitting on fast, Swami Ji sent letters, open letters to the Mr. Modi which was not noticed. He continued to send letters. Government sent, to divert the attention got on board former Chief Ministers Mr.  Nishank who happened to be the supporter of dams and who lent a big hand in dam”s projects during his CM tenure. But they callously prolonged the whole process that Swami Ji’s body gave in. And when his body got terribly  weakened and he had announced to give up water, then on 10th October’s noon Swamiji was sent to hospital by the District Magistrate. They forcibly lifted Swamiji along with his chair into the ambulance and drove away to hospital. Administration did not even showed the basic courtesy about his health and of the fact that he was a senior citizen of 87 years. They did not even care to get him into a stretcher. This shows how Government always wanted to wriggle out of this problem.

A FIR be  registered under Sec. 302 of IPC, on Mr Modi, Mr Nitin Gatkari and Ms Uma Bharti, for the murder of Swami ji, because in his letter earlier, Swami Ji had expressed that Mr. Modi will be responsible for his death.

Swami Sanand Ji had fought for closure of the dams on Alaknanda and Mandakini rivers. Matu Jansangathan has been raising the environment as well as ecology related issues and we are very grieved that government did not pay heed to any of the issues. They, neither thought of environment nor strengthen its own case advocate by the Board of Priests for ganga. Government has come forward with its real face that they only care about big dam companies and stand with them. They do not care about the sanctity of `Ganga’ rather about the resources and funds that can be gained from it. Be it in the form of Waterways and running of cruisers along it, or even the misuse of Ganga water or just made Ganga a vote bank issue

All the akhadas of Rishikesh as well as Haridwar or so Sant Samaj from Ashrams, did not stand with Swami Ji. Even when it is them who take up the  materialistic gains from ganga. Baba Ramdev and Swami Chinmayanand are also guilty. Saints conducting big seminars, conferences, meetings and collecting funds from all over the world, inviting people to ashrams to perform ganga Aarti and all Sant Samaj in reality bear the blot of being the reason for killing of a son of Ganga.
We demand that a FIR be  registered
under Sec. 302 of IPC, on Mr Modi, Mr Nitin Gadkari and Ms Uma Bharti for being complicit in the death of Swamiji.

Also, all the Ashrams and sadhus should support the issues raised by Swami Sanand Ji to stop the construction of dams and stand  for which Sawami ji had to pay with life.

Vimal Bhai

प्रेस विज्ञप्ति 4-10-2018

प्रेस विज्ञप्ति 4-10-2018

प्रधानमंत्री को पर्यावरण के लिए पुरुस्कार?नदियों पर बांध: लोगो की आवाज़ों पर ताला!!


जखोल साकरी जल विद्युत परियोजना की जनसुनवाई अचानक से 25 अक्टूबर को घोषित हुई ।ज्ञातव्य हैं कि पिछली जन सुनवाई 12 जून को प्रभावित लोगों ने इसीलिए स्थगित करवाई थी कि सभी कागजात अंग्रेजी में रखे गए थे और गांव में जो समरी कागजात दिए गए वे भी अंग्रेजी भाषा को हिंदी लिपि में लिखा गया था।

उत्तराखंड की उत्तरकाशी जिले में टोंस की सहायक छोटी सी नदी सुपिन पर प्रस्तावित 44 मेगावाट की जखोल साकरी बांध के असर के बारे में लोगो को कोई जानकारी नहीं । बरसो से इस सुपिन नदी घाटी की सुंदर वादी को गोविंद वन्यजीव विहार में लिया गया है इस कारण यहां पर तीव्र ध्वनि तक पर पाबंदी है। ऐसी में यहां पर बांध समझ में ही नहीं आता है।
चालाकी से मात्र बांध निर्माण क्षेत्र को वन्यजीव विहार से कुछ सालों पहले अलग कर दिया गया। ताकि बांध का रास्ता खुल जाए।

लोगो पर दवाब लेन के लिए,  उनमें भ्रम फैलाकर, गलत सूचना देकर, धमका कर तत्कालीन जिला उपजिलाधिकारी अनापत्ति प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर ले रहे थे। 24 मई को जिलाधिकारी उत्तरकाशी को मिलकर हमने यह सब बताया था।

इस बार भी अगस्त व सितम्बर महीने में बांध प्रभावित में तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने लोगों को डरा धमका कर बांध के पक्ष में होने के लिए दबाव दिया। लोगों को मुकद्दमें का भय दिखाया गया। जिसके लिए 30 अगस्त को जिलाधिकारी को फैक्स से निवेदन भेजा। 17 सितंबर को थानाध्यक्ष, मोरी को लोगो ने डाक द्वारा थाने में तहरीर दी थी। 

परियोजना के लिए लोगों पर अनावश्यक दवाब दिया गया है। जबकि 20 लाख से ज्यादा खर्च कर बनाये गए कागजातों को लोगों की भाषा में देने और समझाने की मांग को प्रशासन ने नहीं पूरा किया है।
बांध प्रभावित मात्र वे नहीं है जिनकी जमीन जा रही है प्रभावित पूरा क्षेत्र होगा जिसका पर्यावरण खराब होगा।

अब अचानक से ही लोगों कि किसी मांग पर ध्यान दिए, 25 अक्टूबर को पुन: जनसुनवाई घोषित  कर  दी गई है, जो पूरी तरह अनुचित है। कपनी के दवाब में मनमानी कार्यवाही है। हम इस मनमानी का विरोध करते हैं।

12 जून 2018 को हुई जनसुनवाई में भी 14 सितंबर 2006 की अधिसूचना की शब्द और आत्मा का उल्लंघन किया गया था वैसे ही इस बार भी हुआ है।

लोगों की मांग के अनुसार उनको परियोजना संबंधित कागजात पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक आकलन रिपोर्ट (EIA, EMP & SIA) ना हिंदी में दिए गए हैं ना समझाए गए हैं।

वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत प्रभावित गांवों के अधिकार भी सुनिश्चित नहीं किये गए हैं।

स्थानीय अख़बारों में बांध द्वारा ली जाने वाली भूमि की जानकारी के नीचे मात्र जनसुनवाई का स्थान और समय बताया गया है । कागजातो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

यह जनसुनवाई प्रभावित गांवों से लगभग 40  किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक, सभागार में रखी गई है। जहां लोगों का पहुंचना बहुत ही कठिन है। 12 जून की जनसुनवाई में भी लोगों के लिए किसी तरह के वाहन की व्यवस्था नहीं की गई थी। 

यह समय त्यौहारों के साथ फसल कटाई, लकड़ी, घास इकट्ठी करने का है जो कि इस तरह की सार्वजनिक  लोकसुनवाई के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है।

हमारे द्वारा उठाए गए इन सवालो पर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया है। यह बांध इस सुपिन नदी घाटी क्षेत्र के लोगों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरण की ढांचे को छिन्न भिन्न करेगा। इसी बांध कंपनी द्वारा बनाई जा रहे नटवार मोरी परियोजना के प्रतिफल हमारे सामने दिखते हैं। 

क्योंकि लोगों को उनकी भाषा में जानकारी नहीं दी गई थी इसलिए वे समुचित रुप से अपनी बात नहीं कह पाए थे। जिसका नतीजा आज क्षेत्र भुगत रहा हैं। हम ऐसा इस क्षेत्र में नहीं चाहते। लोगो की भाषा में संपूर्ण कागजातो की जानकारी दी जाए तो लोग बता सकते हैं कि जखोल साकरी बांध से क्या बर्बादी आएगी?
 एक ही नदी पर, एक के बाद एक बन रहे इन बाधो से भविष्य में नदी घाटी का क्या होगा? इसकी कल्पना अभी शासन कर्ताओं को नहीं है । जून 2013 में प्रकृति ने अपना रूप दिखाया था। केरल में अभी की तबाही में बांधो का बड़ा हिस्सा है। जैसे कि उत्तराखंड में रह हैं।
प्रशासन ने लोगों के विरोध के कारणों को न हल करके, लोगों से दूर बंद कमरे में सुरक्षा बलों के साए में जनसुनवाई करने का फैसला किया है।

बांध कंपनी व शासन भीतर जानता है कि जनसुनवाई,  14 सितंबर 2006 की अधिसूचना के अनुसार पर्यावरण स्वीकृति के लिए लोगों के बीच जाना, उनके लिए बाध्यकारी है। इसीलिए जनसुनवाई की प्रक्रिया को किसी भी तरह पूरा करने की मंशा साफ नजर आती है। किंतु यह स्थानीय लोगों के हितों के खिलाफ और पर्यावरण के लिए पूरी तरह गलत होगा। 

इसलिए हमारी मांग है कि:-

1. लोगों की मांग के अनुसार उनको परियोजना संबंधित कागजात पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक आकलन रिपोर्ट (EIA, EMP & SIA) हिंदी में दिए जाए तथा आसान भाषा मे  स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा समझाया जाए।

2. इस पूरी प्रक्रिया के बाद ही जनसुनवाई का आयोजन प्रभावित गांव में हो।

3. लोगो को अन्य गांवों से लेने के लिए साधनों की व्यवस्था भी हो।

4.  वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत प्रभावित गांवों के अधिकार सुनिश्चित किये जाएं।

ऐसे समय में जब देश के प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के लिए पुरुस्कार प्राप्त कर रहे हों तब क्या अपने ही देश में लोगों और पर्यावरण के खिलाफ उनकी सरकार जाएगी?


गुलाब सिंह रावत, रामलाल विश्वकर्मा, रामवीर राणा, राजपाल रावत, विमल भाई