(English translation after Hindi)
प्रभावितों को सामाजिक-आर्थिक व कानूनी सुरक्षा की दरकार
विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना 444 मेगावाट, अलकनंदा नदी, जिला चमोली, उत्तराखंड
हम माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल
के आदेश का (टीएचडीसी बनाम उत्तराखंड सरकार रिट पिटिशन (क्रिमिनल) नंबर 2122/ 2019 में 5 दिसंबर 2019) स्वागत करते हैं।
बांध प्रभावितों के मुद्दे सुलझाने की बजाय टीएचडीसी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक आपराधिक प्रकरण दायर किया। किंतु अदालत ने उसे स्वीकार करने से साफ मना किया और टीएचडीसी को अन्य प्रभावी सिविल अदालत में जाने को कहा। साथ ही अदालत ने कहा कि जिलाधिकारी चमोली दोनों पक्षों को बुलाकर मुद्दे का मैत्रीपूर्ण समाधान करें। हम जिलाधिकारी से अपेक्षा करते हैं कि वह वर्षों से चली आ रही समस्याओं का निदान करेंगे
विश्व बैंक एक तरफ दावा कर रहा है कि विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना में अलकनंदा नदी को जिस सुरंग में डाला जाना है। उस सुरंग का काम बहुत तेजी से चालू है।
पर्यावरण और पुनर्वास की अपनी ही बनाई नीतियों को दरकिनार करते हुए बांध काम आगे बढ़ाए जाने की रिपोर्ट तैयार करना हो रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का विनिवेश करने की घोषणा की है। इस परिस्थिति में ठंडे मौसम की शुरुआत के साथ जब उत्तराखंड में बर्फबारी की भी शुरुआत हो गई है लोग 25 नवंबर से बांध का काम रोक कर धरने पर बैठे हैं।
बर्फबारी के बीच आज 19वें दिन लोग विश्व बैंक वापस जाओ, विश्व बैंक और टीएसडीसी ने गंगा को बर्बाद किया जैसे नारे लगा रहे हैं। ज्ञातव्य है की हॉट गांव के नीचे विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का विद्दयुत गृह बन रहा है।
प्रभावितों ने संदर्भ में अधिकारियों को 17 साल से लगातार पत्र भेजे है। किन्तु कोई नतीजा नही निकला उनका जीवन दूभर हो गया है। न तो हाट गांव का पुनर्वास स्थल सही बन पाया। आसपास के पर्यावरण व संस्कृति पर कभी ना ठीक होने वाला असर पड़ रहा है। जिसमें शिवनगरी छोटी काशी नगरी व मठ मंदिर भी आते है। हाट गांव के हरसारी तोक के बाशिंदों की समस्याएं भी वैसी ही है। प्रभावितों ने परेशान होकर 25 नवंबर से विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम रोककर धरने पर बैठे है। जिसकी सूचना उन्होने 21 नवंबर 2019 को विष्णुगाड.पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के प्रयोक्ता टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के महाप्रबंधक को भेजी थी।
ज्ञातव्य है कि हाट गांव के पुनर्वास के लिये टीएचडीसी ने जो विकल्प सुझाये थे उसमें से एक लाख प्रति नाली भूमि का मुआवजा और दस लाख रुपये 3 किस्तों में पुर्नवास सहायता के रुप में मंजूर कराया गया। परिस्थितियंा ही ऐसी थी की ग्रामीणों ने स्वंय हाट गांव के सामने नदी पार की अपनी खेतीवाली जमीन पर ही बिना किसी योजना के मकान बनाये। बेहतर होता कि लोगो को योजनाबद्ध रुप से बसाया जाता। एक ऐसी रिहायशी बस्ती बनाई जाती जिसमें पानी, बिजली, स्कूल, मंदिर, अस्पताल, डाकघर, बैंक व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध होती। पुनर्वास नीति में लिखा है कि विस्थापन, विस्थापितों के जीवन स्तर को उंचा उठायेगा। किन्तु ऐसा हाट गांव के विस्थापन में नही हुआ। लोग अपनी खेतीहर भूमि पर जगह-जगह बिखरकर रह गये है। इन सुविधाओं के अभाव के कारण लोगो का जीवन स्तर उपर नही उठा। पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधायें जो सहज ही उपलब्ध थी उनके लिये भी प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा पहुंची है। शारीरिक श्रम तो बड़ा है हीे। विश्व बैंक द्वारा लोगो के बनाये मकानों को ष्ष्सुन्दर पुनर्वासष्ष् के रुप में प्रचारित किया गया है। जबकि असलियत यह है कि ज्यादातर मकान कर्जा लेकर बनाये गये है। कुछ अभी अधूरे भी है।
प्रभावितों को शुरु से कहना है कि तत्कालीन हाट ग्राम प्रधान व उनके साथ 9 अन्य लोगों ने 26.6.2009 पूरे गांव के विस्थापन का निर्णय बिना गांव की आम सहमति के निर्णय ले लिया था।
हाट गांव से अलग हरसारी तोक में रहने वाले लोगो को कहना है कि यहां एचसीसी कंपनी के अधिकारी व कर्मचारी और उनके ठेकेदार के लोग अलग-अलग तरह से आते है। जिससे हमारे गांव की बहनों के मान सम्मान का खतरा बराबर बना रहता है। वे हमकों अलग.अलग तरह से धमकाते है। जिससे हमारे जान व महिलाओं के सम्मान का खतरा बराबर होता है। हम यहां डर के साए में जीते है। कंपनी के लोग हम पर झूठे और गलत मुकदमें लगाने की कोशिश करते है उन्होनें हम को धमकी दी है कि अदालत से एक मुकदमा खारिज हुआ है। हम तुम पर ढेर सारे मुकदमें लगा कर तम्हारा जीना हराम कर देंगे।
27.3.2019 को जिला चमोली न्यायालय ने टीएचडीसी कंपनी द्वारा डाले गए एक मुकदमें को खारिज किया है। न्यायालय का आदेश बताता है कि किस तरह कंपनी लोगो की उचित मांगों को दबाने के लिए हर अन्याय पूर्ण तरीका इस्तेमाल कर रही है।
जब से उक्त बांध की शुरूआत हुई है। तब से हरसारी तोक की खेती, पानी, शांत जीवन खराब हो गया है। अत्यधिक ब्लास्ंिटग के कारण तो सोना भी मुश्किल हो चुका है। भविष्य में मकान व आजीविका भी कैसे बचेंगे?
जब कही सुनवाई नही हुई तो फिर बांध का कार्य रोकना लोगों के पास आखिरी तरीका बचा।
प्रभावितों की मांग है किः-
ऽ हाट गांव व हरसारी तोक के लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का हक मिले।
ऽ गैर कानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जल स्त्रोतों व खेती आदि पर कोई नुकसान न हो।
ऽ हमेें आज तक किये हुऐ नुकसानों का मुआवजा फसल मुआवजा सूखें जलस्त्रोतो और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाय।
ऽ हमें इस बात की गारंटी दी जाये कि परियोजना से हमारे जीवन व आजिविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल विस्फोटकों से कंपन जल स्त्रोतो का सूखना जैसे असर नही पडेगे।
ऽ विस्थापित हाट गांव में रहने वालों के लिये पानीए बिजलीए स्कूलए मंदिरए अस्पतालए डाकघरए बैंकए पहुंच मार्ग व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध करायी जायें।
ऽ हमें प्रति परिवार योग्यता अनुसार रोजगार उपलब्ध करायें जाये।
ऽ विस्थापित हाट गांव में आयवृद्धि व कृषि सुधार कार्यक्रम चलाये जाये।
ऽ विस्थापित हाट गांव में बाल व युवा खेलकूद के लिये एक छोटा स्टेडियम बनाया जाये। कंप्यूटर सेंटर व पुस्तकालय बनाया जाये।
ऽ इस बात की लिखित में गारंटी पर जिलाधीश महोदय अपनी मुहर लगाऐं इस पूरे समझौते के पालन के लिऐ एक निगरानी समिति बने जिसमें ग्रामीणों जिलाधिकारी जी या उनके प्रतिनिधि और टीएचडीसी के प्रतिनिधि हो।
ऽ कंपनी द्वारा भविष्य में किये जाने वाले झूठे मुकदमों की स्थिति में हमें अदालत कानूनी सुरक्षा प्रदान करें।
राजेंद्र हटवाल, पंकज हटवाल, नरेंद्र पोखरियाल, तारेन्द्र जोशी, आनंद लाल, पीतांबरी देवी, नर्मदा देवी हटवाल, गुप्ता प्रसाद पंत व विमलभाई
बांध प्रभावितों के मुद्दे सुलझाने की बजाय टीएचडीसी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक आपराधिक प्रकरण दायर किया। किंतु अदालत ने उसे स्वीकार करने से साफ मना किया और टीएचडीसी को अन्य प्रभावी सिविल अदालत में जाने को कहा। साथ ही अदालत ने कहा कि जिलाधिकारी चमोली दोनों पक्षों को बुलाकर मुद्दे का मैत्रीपूर्ण समाधान करें। हम जिलाधिकारी से अपेक्षा करते हैं कि वह वर्षों से चली आ रही समस्याओं का निदान करेंगे
विश्व बैंक एक तरफ दावा कर रहा है कि विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना में अलकनंदा नदी को जिस सुरंग में डाला जाना है। उस सुरंग का काम बहुत तेजी से चालू है।
पर्यावरण और पुनर्वास की अपनी ही बनाई नीतियों को दरकिनार करते हुए बांध काम आगे बढ़ाए जाने की रिपोर्ट तैयार करना हो रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का विनिवेश करने की घोषणा की है। इस परिस्थिति में ठंडे मौसम की शुरुआत के साथ जब उत्तराखंड में बर्फबारी की भी शुरुआत हो गई है लोग 25 नवंबर से बांध का काम रोक कर धरने पर बैठे हैं।
बर्फबारी के बीच आज 19वें दिन लोग विश्व बैंक वापस जाओ, विश्व बैंक और टीएसडीसी ने गंगा को बर्बाद किया जैसे नारे लगा रहे हैं। ज्ञातव्य है की हॉट गांव के नीचे विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का विद्दयुत गृह बन रहा है।
प्रभावितों ने संदर्भ में अधिकारियों को 17 साल से लगातार पत्र भेजे है। किन्तु कोई नतीजा नही निकला उनका जीवन दूभर हो गया है। न तो हाट गांव का पुनर्वास स्थल सही बन पाया। आसपास के पर्यावरण व संस्कृति पर कभी ना ठीक होने वाला असर पड़ रहा है। जिसमें शिवनगरी छोटी काशी नगरी व मठ मंदिर भी आते है। हाट गांव के हरसारी तोक के बाशिंदों की समस्याएं भी वैसी ही है। प्रभावितों ने परेशान होकर 25 नवंबर से विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम रोककर धरने पर बैठे है। जिसकी सूचना उन्होने 21 नवंबर 2019 को विष्णुगाड.पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के प्रयोक्ता टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के महाप्रबंधक को भेजी थी।
ज्ञातव्य है कि हाट गांव के पुनर्वास के लिये टीएचडीसी ने जो विकल्प सुझाये थे उसमें से एक लाख प्रति नाली भूमि का मुआवजा और दस लाख रुपये 3 किस्तों में पुर्नवास सहायता के रुप में मंजूर कराया गया। परिस्थितियंा ही ऐसी थी की ग्रामीणों ने स्वंय हाट गांव के सामने नदी पार की अपनी खेतीवाली जमीन पर ही बिना किसी योजना के मकान बनाये। बेहतर होता कि लोगो को योजनाबद्ध रुप से बसाया जाता। एक ऐसी रिहायशी बस्ती बनाई जाती जिसमें पानी, बिजली, स्कूल, मंदिर, अस्पताल, डाकघर, बैंक व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध होती। पुनर्वास नीति में लिखा है कि विस्थापन, विस्थापितों के जीवन स्तर को उंचा उठायेगा। किन्तु ऐसा हाट गांव के विस्थापन में नही हुआ। लोग अपनी खेतीहर भूमि पर जगह-जगह बिखरकर रह गये है। इन सुविधाओं के अभाव के कारण लोगो का जीवन स्तर उपर नही उठा। पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधायें जो सहज ही उपलब्ध थी उनके लिये भी प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा पहुंची है। शारीरिक श्रम तो बड़ा है हीे। विश्व बैंक द्वारा लोगो के बनाये मकानों को ष्ष्सुन्दर पुनर्वासष्ष् के रुप में प्रचारित किया गया है। जबकि असलियत यह है कि ज्यादातर मकान कर्जा लेकर बनाये गये है। कुछ अभी अधूरे भी है।
प्रभावितों को शुरु से कहना है कि तत्कालीन हाट ग्राम प्रधान व उनके साथ 9 अन्य लोगों ने 26.6.2009 पूरे गांव के विस्थापन का निर्णय बिना गांव की आम सहमति के निर्णय ले लिया था।
हाट गांव से अलग हरसारी तोक में रहने वाले लोगो को कहना है कि यहां एचसीसी कंपनी के अधिकारी व कर्मचारी और उनके ठेकेदार के लोग अलग-अलग तरह से आते है। जिससे हमारे गांव की बहनों के मान सम्मान का खतरा बराबर बना रहता है। वे हमकों अलग.अलग तरह से धमकाते है। जिससे हमारे जान व महिलाओं के सम्मान का खतरा बराबर होता है। हम यहां डर के साए में जीते है। कंपनी के लोग हम पर झूठे और गलत मुकदमें लगाने की कोशिश करते है उन्होनें हम को धमकी दी है कि अदालत से एक मुकदमा खारिज हुआ है। हम तुम पर ढेर सारे मुकदमें लगा कर तम्हारा जीना हराम कर देंगे।
27.3.2019 को जिला चमोली न्यायालय ने टीएचडीसी कंपनी द्वारा डाले गए एक मुकदमें को खारिज किया है। न्यायालय का आदेश बताता है कि किस तरह कंपनी लोगो की उचित मांगों को दबाने के लिए हर अन्याय पूर्ण तरीका इस्तेमाल कर रही है।
जब से उक्त बांध की शुरूआत हुई है। तब से हरसारी तोक की खेती, पानी, शांत जीवन खराब हो गया है। अत्यधिक ब्लास्ंिटग के कारण तो सोना भी मुश्किल हो चुका है। भविष्य में मकान व आजीविका भी कैसे बचेंगे?
जब कही सुनवाई नही हुई तो फिर बांध का कार्य रोकना लोगों के पास आखिरी तरीका बचा।
प्रभावितों की मांग है किः-
ऽ हाट गांव व हरसारी तोक के लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का हक मिले।
ऽ गैर कानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जल स्त्रोतों व खेती आदि पर कोई नुकसान न हो।
ऽ हमेें आज तक किये हुऐ नुकसानों का मुआवजा फसल मुआवजा सूखें जलस्त्रोतो और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाय।
ऽ हमें इस बात की गारंटी दी जाये कि परियोजना से हमारे जीवन व आजिविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल विस्फोटकों से कंपन जल स्त्रोतो का सूखना जैसे असर नही पडेगे।
ऽ विस्थापित हाट गांव में रहने वालों के लिये पानीए बिजलीए स्कूलए मंदिरए अस्पतालए डाकघरए बैंकए पहुंच मार्ग व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध करायी जायें।
ऽ हमें प्रति परिवार योग्यता अनुसार रोजगार उपलब्ध करायें जाये।
ऽ विस्थापित हाट गांव में आयवृद्धि व कृषि सुधार कार्यक्रम चलाये जाये।
ऽ विस्थापित हाट गांव में बाल व युवा खेलकूद के लिये एक छोटा स्टेडियम बनाया जाये। कंप्यूटर सेंटर व पुस्तकालय बनाया जाये।
ऽ इस बात की लिखित में गारंटी पर जिलाधीश महोदय अपनी मुहर लगाऐं इस पूरे समझौते के पालन के लिऐ एक निगरानी समिति बने जिसमें ग्रामीणों जिलाधिकारी जी या उनके प्रतिनिधि और टीएचडीसी के प्रतिनिधि हो।
ऽ कंपनी द्वारा भविष्य में किये जाने वाले झूठे मुकदमों की स्थिति में हमें अदालत कानूनी सुरक्षा प्रदान करें।
राजेंद्र हटवाल, पंकज हटवाल, नरेंद्र पोखरियाल, तारेन्द्र जोशी, आनंद लाल, पीतांबरी देवी, नर्मदा देवी हटवाल, गुप्ता प्रसाद पंत व विमलभाई
The affected locals
need socio-economic and legal protection.
World Bank funded Vishnugad-Pipalkoti
Hydroelectric Project 444 MW, Alaknanda River, District Chamoli, Uttarakhand
We welcome the order dated 5-12-2019 given by high court Nainital in the matter of THDC vs Govt of Uttarakhand. Instead of solving the problem of Dam affected, THDC had filed a criminal writ petition in the court. But Court dispose of the matter without entertaining and asked THDC to go to competent civil court and district magistrate Chamoli should at least e dea our to reconcile the difference between parties. We hope district magistrate Chamoli will and the the long waiting problems of them affected people.
On
one hand, The World Bank is claims that the tunnel in which the Alaknanda River
is to be dumped in the Vishnugad-Peepalkoti hydropower project is under
construction and the work is well within time.
Reports
are being prepared to take forward the dam work, bypassing its own policies of
environment and rehabilitation. Recently the Central Government announced that
it THDC India Limited would be sale. In this situation, with the onset of cold
weather, when snowfall has already begun in Uttarakhand, people have been
sitting on Dharna since November 25, stopping the work of the dam.
In
the midst of snowfall, on the 19th day of the protest, people are raising
slogans like - “World Bank go back”, “World Bank and THDC have ruined the
Ganga”. It is known that Power House for the Vishnugad-Peepalkoti hydro power
project has been constructing under Haat village.
People
affected have sent letters to the authorities continuously for 17 years.
However, there was no resolution and people continue to suffer. The
rehabilitation site of Haat village was found to be inadequate. Moreover,
nearby environment and culture are being affected in a way from which it is
impossible to recover. Shiv Nagri Chhoti Kashi and Math Mandi are prime examples
of this. The problems of the residents of Harsari Tok of Haat village are the
same. The affected people have been sitting on a sit-in strike since November
25, stopping the work of Vishnugad-Peepalkoti hydro power project. THDC India
Limited was notified about this series of events. The affected people sent them
a letter on the 21st of November.
The
locals also mentioned that of all the alternatives that THDC had suggested for
the rehabilitation of Haat village, they were made to approve the compensation
of Rs. 1,00,000 per nali of land (around 200 Sq. Meter) and Rs.10,00,000 in 3 installments
{3 $ 3 $ 4 = 10,00,000}. The situation was such that they had to build houses
on their own agricultural land cross the river Alaknanda in front of Haat
Village without any plan. They claim that it would have been better had they
been resettled as planned in an adequate residential settlement – a settlement
where water, electricity, schools, temples, hospitals, post offices, banks and
other facilities would be available. They say that it is written in the
rehabilitation policy that the displacement will raise the standard of living
of the displaced. Instead, their standard of living has sharply deteriorated. They
are left scattered on their cultivated land. They also lack all the above
facilities. As mentioned above, their standard of living was not raised,
neither were the basic facilities of water etc. made readily available to them
as promised. They have to struggle every day and it has caused them a lot of
mental pain. The amount of manual labor is a lot. Their houses are promoted by
World Bank as successful rehabilitation. Whereas the reality is that most of
the houses are built by taking loans while some are still incomplete.
The
affected have maintained from the very beginning that the then Haat village
head and 9 others along with him had taken the decision to displace the entire
village on the 26th of June, 2009 without the consensus of the village.
Residents
of Harsari Tok claim that the officers and employees of HCC Company and their
contractors come in ways which threaten the integrity and the honour of the
women in their village. The officers harass them and the residents feel their
lives are threatened. They live there under the shadow of fear. The people of
the company try to file false cases against them, and tell them that only one
case has been dismissed by the court and that they will destroy their lives by
filing countless other false cases against the residents.
On
27.3.2019, the District Chamoli Court dismissed a suit filed by THDC Company.
The court order describes how the company is using unjustified methods to
suppress the residents’ reasonable demands.
Since the very
beginning of the construction of this dam, the residents’ farming, their water
and their quiet life has deteriorated. Even sleep has become difficult due to
excessive blasting. They don’t know how they will sustain their households in
the future. They are in a lot of trouble and bondage. These men and women wish
to be given freedom. Stopping the work of the executive organization was the
last resort. They say, this step had to be taken when there was no hearing.
Peoples’
demands:-
·
The
people of Haat village and Harsari Tok should have the right to live
respectfully.
·
The
excessive and illegal blasting should be stopped so that there is no harm to their
houses and water resources and fields etc.
·
Compensation
for the losses they have incurred till date, crop compensation, replenishing of
dried water sources and repairing of cracks incurred by the houses due to
excessive blasting. This should be done immediately by THDC.
·
They
should be guaranteed that the project will not have any effect on their lives
and livelihoods, such as the drying of water sources.
·
Water,
electricity, schools, temples, hospitals, post offices, bank access routes and
other facilities should be made available to the residents of the displaced
Haat village.
·
They
should be provided employment according to
eligibility, per
family.
·
In the
displaced Haat village, a program of augmentation and agricultural improvement
should be carried out.
·
A
small stadium for the children and youth should be constructed in the displaced
Haat village. Computer center and library should be built.
·
The
District Magistrate should put his seal on the guarantee in writing, to follow
this whole agreement, a monitoring committee should be formed, comprising the
villagers, the District Magistrate or her/his representative and THDC
representative.
·
They
should be provided with court, legal protection in the event of false lawsuits
filed by the company in the future.
Rajendra Hatwal, Pankaj Hatwal, Naredra Pokhriyal, Tarendra Joshi, Anand Lal, Pitambari Devi, Narmada Devi Hatwal, Gupta Prasad Pant and Vimalbhai