Saturday, 14 December 2019

PN- 14-12-2019 प्रभावितों को सामाजिक-आर्थिक व कानूनी सुरक्षा की दरकार

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                
(English translation after Hindi)
प्रभावितों को सामाजिक-आर्थिक व कानूनी सुरक्षा की दरकार

विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना 444 मेगावाट, अलकनंदा नदी, जिला चमोली, उत्तराखंड


हम माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश का (टीएचडीसी बनाम उत्तराखंड सरकार रिट पिटिशन (क्रिमिनल) नंबर 2122/ 2019 में 5 दिसंबर 2019) स्वागत करते हैं।

बांध प्रभावितों के मुद्दे सुलझाने की बजाय टीएचडीसी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक आपराधिक प्रकरण दायर किया। किंतु अदालत ने उसे स्वीकार करने से साफ मना किया और टीएचडीसी को अन्य प्रभावी सिविल अदालत में जाने को कहा। साथ ही अदालत ने कहा कि जिलाधिकारी चमोली दोनों पक्षों को बुलाकर मुद्दे का मैत्रीपूर्ण समाधान करें। हम जिलाधिकारी से अपेक्षा करते हैं कि वह वर्षों से चली आ रही समस्याओं का निदान करेंगे

विश्व बैंक एक तरफ दावा कर रहा है कि विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना  में अलकनंदा नदी को जिस सुरंग में डाला जाना है। उस सुरंग का काम बहुत तेजी से चालू है।

पर्यावरण और पुनर्वास की अपनी ही बनाई नीतियों को दरकिनार करते हुए बांध काम आगे बढ़ाए जाने की रिपोर्ट तैयार करना हो रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का विनिवेश करने की घोषणा की है। इस परिस्थिति में ठंडे मौसम की शुरुआत के साथ जब उत्तराखंड में बर्फबारी की भी शुरुआत हो गई है लोग 25 नवंबर से बांध का काम रोक कर धरने पर बैठे हैं।

बर्फबारी के बीच आज 19वें दिन लोग  विश्व बैंक वापस जाओ, विश्व बैंक और टीएसडीसी ने गंगा को बर्बाद किया जैसे नारे लगा रहे हैं। ज्ञातव्य है की हॉट गांव के नीचे विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का विद्दयुत गृह बन रहा है।

प्रभावितों ने संदर्भ में अधिकारियों को 17 साल से लगातार पत्र भेजे है। किन्तु कोई नतीजा नही निकला उनका जीवन दूभर हो गया है। न तो हाट गांव का पुनर्वास स्थल सही बन पाया। आसपास के पर्यावरण व संस्कृति पर कभी ना ठीक होने वाला असर पड़ रहा है। जिसमें शिवनगरी छोटी काशी नगरी व मठ मंदिर भी आते है। हाट गांव के हरसारी तोक के बाशिंदों की समस्याएं भी वैसी ही है। प्रभावितों ने परेशान होकर 25 नवंबर से विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम रोककर धरने पर बैठे है। जिसकी सूचना उन्होने 21 नवंबर 2019 को विष्णुगाड.पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के प्रयोक्ता टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के महाप्रबंधक को भेजी थी।

ज्ञातव्य है कि हाट गांव के पुनर्वास के लिये टीएचडीसी ने जो विकल्प सुझाये थे उसमें से एक लाख प्रति नाली भूमि का मुआवजा और दस लाख रुपये 3 किस्तों में पुर्नवास सहायता के रुप में मंजूर कराया गया। परिस्थितियंा ही ऐसी थी की ग्रामीणों ने  स्वंय हाट गांव के सामने नदी पार की अपनी खेतीवाली जमीन पर ही बिना किसी योजना के मकान बनाये। बेहतर होता कि लोगो को योजनाबद्ध रुप से बसाया जाता। एक ऐसी रिहायशी बस्ती बनाई जाती जिसमें पानी, बिजली, स्कूल, मंदिर, अस्पताल, डाकघर, बैंक व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध होती। पुनर्वास नीति में लिखा है कि विस्थापन, विस्थापितों के जीवन स्तर को उंचा उठायेगा। किन्तु ऐसा हाट गांव के विस्थापन में नही हुआ। लोग अपनी खेतीहर भूमि पर जगह-जगह बिखरकर रह गये है। इन सुविधाओं के अभाव के कारण लोगो का जीवन स्तर उपर नही उठा। पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधायें जो सहज ही उपलब्ध थी उनके लिये भी प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा पहुंची है। शारीरिक श्रम तो बड़ा है हीे। विश्व बैंक द्वारा लोगो के बनाये मकानों को ष्ष्सुन्दर पुनर्वासष्ष् के रुप में प्रचारित किया गया है। जबकि असलियत यह है कि ज्यादातर मकान कर्जा लेकर बनाये गये है। कुछ अभी अधूरे भी है।

प्रभावितों को शुरु से कहना है कि तत्कालीन हाट ग्राम प्रधान व उनके साथ 9 अन्य लोगों ने 26.6.2009 पूरे गांव के विस्थापन का निर्णय बिना गांव की आम सहमति के निर्णय ले लिया था।

हाट गांव से अलग हरसारी तोक में रहने वाले लोगो को कहना है कि यहां एचसीसी कंपनी के अधिकारी व कर्मचारी और उनके ठेकेदार के लोग अलग-अलग तरह से आते है। जिससे हमारे गांव की बहनों के मान सम्मान का खतरा बराबर बना रहता है। वे हमकों अलग.अलग तरह से धमकाते है। जिससे हमारे जान व महिलाओं के सम्मान का खतरा बराबर होता है। हम यहां डर के साए में जीते है। कंपनी के लोग हम पर झूठे और गलत मुकदमें लगाने की कोशिश करते है उन्होनें हम को धमकी दी है कि अदालत से एक मुकदमा खारिज हुआ है। हम तुम पर ढेर सारे मुकदमें लगा कर तम्हारा जीना हराम कर देंगे।

27.3.2019
को जिला चमोली न्यायालय ने टीएचडीसी कंपनी द्वारा  डाले गए एक मुकदमें को खारिज किया है। न्यायालय का आदेश बताता है कि किस तरह कंपनी लोगो की उचित मांगों को दबाने के लिए हर अन्याय पूर्ण तरीका इस्तेमाल कर रही है।

जब से उक्त बांध की शुरूआत हुई है। तब से हरसारी तोक की खेती, पानी, शांत जीवन खराब हो गया है। अत्यधिक ब्लास्ंिटग के कारण तो सोना भी मुश्किल हो चुका है। भविष्य में मकान व आजीविका भी कैसे बचेंगे?

जब कही सुनवाई नही हुई तो फिर बांध का कार्य रोकना लोगों के पास आखिरी तरीका बचा।

प्रभावितों की मांग है किः-

हाट गांव व हरसारी  तोक के लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का हक मिले।
गैर कानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जल स्त्रोतों व खेती आदि पर कोई नुकसान न हो।
हमेें आज तक किये हुऐ नुकसानों का मुआवजा फसल मुआवजा सूखें जलस्त्रोतो और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाय।
हमें इस बात की गारंटी दी जाये कि परियोजना से हमारे जीवन व आजिविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल विस्फोटकों से कंपन जल स्त्रोतो का सूखना जैसे असर नही पडेगे।
विस्थापित हाट गांव में रहने वालों के लिये पानीए बिजलीए स्कूलए मंदिरए अस्पतालए डाकघरए बैंकए पहुंच मार्ग व अन्य जरुरत की सुविधायें उपलब्ध करायी जायें।
हमें प्रति परिवार योग्यता अनुसार रोजगार उपलब्ध करायें जाये।
विस्थापित हाट गांव में आयवृद्धि व कृषि सुधार कार्यक्रम चलाये जाये।
विस्थापित हाट गांव में बाल व युवा खेलकूद के लिये एक छोटा स्टेडियम बनाया जाये। कंप्यूटर सेंटर व पुस्तकालय बनाया जाये।
इस बात की लिखित में गारंटी पर जिलाधीश महोदय अपनी मुहर लगाऐं इस पूरे समझौते के पालन के लिऐ एक निगरानी समिति बने जिसमें ग्रामीणों जिलाधिकारी जी या उनके प्रतिनिधि  और टीएचडीसी के प्रतिनिधि हो।
कंपनी द्वारा भविष्य में किये जाने वाले झूठे मुकदमों की स्थिति में हमें अदालत कानूनी सुरक्षा प्रदान करें।


राजेंद्र हटवाल, पंकज हटवाल, नरेंद्र पोखरियाल, तारेन्द्र जोशी, आनंद लाल, पीतांबरी देवी, नर्मदा देवी हटवाल, गुप्ता प्रसाद पंत व विमलभाई




The affected locals need socio-economic and legal protection.

World Bank funded Vishnugad-Pipalkoti Hydroelectric Project 444 MW, Alaknanda River, District Chamoli, Uttarakhand

We welcome the order dated 5-12-2019  given by high court Nainital in the matter of THDC vs Govt of Uttarakhand.  Instead of solving the problem of Dam affected, THDC had filed a criminal writ petition in the court. But Court dispose of the matter without entertaining and asked THDC to go to competent civil court and  district magistrate Chamoli should at least e dea our to reconcile the difference between parties. We hope district magistrate Chamoli will and the the long waiting problems of them affected people.

On one hand, The World Bank is claims that the tunnel in which the Alaknanda River is to be dumped in the Vishnugad-Peepalkoti hydropower project is under construction and the work is well within time.
Reports are being prepared to take forward the dam work, bypassing its own policies of environment and rehabilitation. Recently the Central Government announced that it THDC India Limited would be sale. In this situation, with the onset of cold weather, when snowfall has already begun in Uttarakhand, people have been sitting on Dharna since November 25, stopping the work of the dam.
In the midst of snowfall, on the 19th day of the protest, people are raising slogans like - “World Bank go back”, “World Bank and THDC have ruined the Ganga”. It is known that Power House for the Vishnugad-Peepalkoti hydro power project has been constructing under Haat village.
People affected have sent letters to the authorities continuously for 17 years. However, there was no resolution and people continue to suffer. The rehabilitation site of Haat village was found to be inadequate. Moreover, nearby environment and culture are being affected in a way from which it is impossible to recover. Shiv Nagri Chhoti Kashi and Math Mandi are prime examples of this. The problems of the residents of Harsari Tok of Haat village are the same. The affected people have been sitting on a sit-in strike since November 25, stopping the work of Vishnugad-Peepalkoti hydro power project. THDC India Limited was notified about this series of events. The affected people sent them a letter on the 21st of November.
The locals also mentioned that of all the alternatives that THDC had suggested for the rehabilitation of Haat village, they were made to approve the compensation of Rs. 1,00,000 per nali of land (around 200 Sq. Meter) and Rs.10,00,000 in 3 installments {3 $ 3 $ 4 = 10,00,000}. The situation was such that they had to build houses on their own agricultural land cross the river Alaknanda in front of Haat Village without any plan. They claim that it would have been better had they been resettled as planned in an adequate residential settlement – a settlement where water, electricity, schools, temples, hospitals, post offices, banks and other facilities would be available. They say that it is written in the rehabilitation policy that the displacement will raise the standard of living of the displaced. Instead, their standard of living has sharply deteriorated. They are left scattered on their cultivated land. They also lack all the above facilities. As mentioned above, their standard of living was not raised, neither were the basic facilities of water etc. made readily available to them as promised. They have to struggle every day and it has caused them a lot of mental pain. The amount of manual labor is a lot. Their houses are promoted by World Bank as successful rehabilitation. Whereas the reality is that most of the houses are built by taking loans while some are still incomplete.
The affected have maintained from the very beginning that the then Haat village head and 9 others along with him had taken the decision to displace the entire village on the 26th of June, 2009 without the consensus of the village.
Residents of Harsari Tok claim that the officers and employees of HCC Company and their contractors come in ways which threaten the integrity and the honour of the women in their village. The officers harass them and the residents feel their lives are threatened. They live there under the shadow of fear. The people of the company try to file false cases against them, and tell them that only one case has been dismissed by the court and that they will destroy their lives by filing countless other false cases against the residents.
On 27.3.2019, the District Chamoli Court dismissed a suit filed by THDC Company. The court order describes how the company is using unjustified methods to suppress the residents’ reasonable demands.
Since the very beginning of the construction of this dam, the residents’ farming, their water and their quiet life has deteriorated. Even sleep has become difficult due to excessive blasting. They don’t know how they will sustain their households in the future. They are in a lot of trouble and bondage. These men and women wish to be given freedom. Stopping the work of the executive organization was the last resort. They say, this step had to be taken when there was no hearing.

Peoples’ demands:-
·        The people of Haat village and Harsari Tok should have the right to live respectfully.
·        The excessive and illegal blasting should be stopped so that there is no harm to their houses and water resources and fields etc.
·        Compensation for the losses they have incurred till date, crop compensation, replenishing of dried water sources and repairing of cracks incurred by the houses due to excessive blasting. This should be done immediately by THDC.
·        They should be guaranteed that the project will not have any effect on their lives and livelihoods, such as the drying of water sources.
·        Water, electricity, schools, temples, hospitals, post offices, bank access routes and other facilities should be made available to the residents of the displaced Haat village.
·        They should be provided employment according to eligibility, per family.
·        In the displaced Haat village, a program of augmentation and agricultural improvement should be carried out.
·        A small stadium for the children and youth should be constructed in the displaced Haat village. Computer center and library should be built.
·        The District Magistrate should put his seal on the guarantee in writing, to follow this whole agreement, a monitoring committee should be formed, comprising the villagers, the District Magistrate or her/his representative and THDC representative.
·        They should be provided with court, legal protection in the event of false lawsuits filed by the company in the future.
Rajendra Hatwal, Pankaj Hatwal, Naredra Pokhriyal, Tarendra Joshi, Anand Lal, Pitambari Devi, Narmada Devi Hatwal, Gupta Prasad Pant and Vimalbhai

Thursday, 6 June 2019

प्रेस नोट: 7 जून, 2019


{English translation of this Press Note is after Hindi }
 श्रीनगर बांध परियोजना कि खुली नहर से खतरा
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने सरकार को रिपोर्ट मांगी

Lecage in power Channel of Srinagar HEP, Distt. Tehri Garwal, Uttarakhand


याचिका में कहा गया कि उत्तराखंड में अलकनंदा के किनारे बनी श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का पावर चैनल (खुली नहर) 4 किलोमीटर लंबा है। जो अलकनंदा का पानी पावर हाउस तक बिजली बनाने के लिए ले जाता है। 2015 में इसमें बहुत बुरी तरह रिसाव हुआ था। जिससे टिहरी गढ़वाल में इस परियोजना से प्रभावित मंगसू, सुरासु व नोर थापली गांवो की फसलें और मकानो पर नुकसान आया।

इसके बाद जांच हुई और फिर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ने 30 दिसंबर 2015 को  अपनी रिपोर्ट दाखिल की।  जिसमें सिफारिश की गई की पावर चैनल को पुनः मजबूती दी जाए और ढांचागत डिजाइन की जांच हो। अपेक्षित कार्य ना होने के कारण दिसंबर, 2018  में फिर से बुरी स्थिति पैदा हुई।
 इस संदर्भ में जिलाधिकारी टिहरी गढ़वाल और उत्तराखंड सरकार को जो पत्र भेजे गए उनका कोई जवाब नहीं मिला। माननीय प्राधिकरण ने अगली सुनवाई से पहले उत्तराखंड सरकार के ऊर्जा विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा जिलाधिकारी टिहरी गढ़वाल से 1 महीने में ई-मेल पर इस संदर्भ में रिपोर्ट मांगी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस काम के समन्वयन और अनुपालन की जिम्मेदारी भी दी गई है।


प्राधिकरण की ओर से तीनों को ही ई-मेल से आदेश भेजा गया है ताकि वे उसका तुरंत अनुपालन करें। साथ ही तीनों को याचिका की प्रतिलिपि वादियों द्वारा एक हफ्ते में पहुंचाने की भी आदेश है। हमने तीनों ही जगह स्वयं कागजात पहुंचाएं हैं।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में उत्तम सिंह भंडारी और विमल भाई ने दिल्ली की लाइफ संस्था के वकील राहुल चौधरी व वकील मीरा गोपाल के माध्यम से याचिका दायर की है।

ज्ञातव्य है कि श्रीनगर बांध परियोजना के पावर चैनल से 2015 से लगातार मानसून में हानी होती है। पावर चैनल और नदी के  बीच ढलान पर बसे इन गांवों को हमेशा खतरे का सामना करना पड़ता हैं। क्षेत्र के निवासियों ने इसके बारे में जिला प्रशासन सरकार व कंपनी को पत्रों द्वारा व उनसे मिलकर भी मुद्दा उठाया है। स्थानीय विधायक के माध्यम से भी इस विषय को उठाया गया है। मीडिया में भी  खबरें लगातार आई हैं। किंतु आज तक किसी तरह के सकारात्मक परिणाम नहीं निकले। बांध कंपनी ने तत्कालीन रूप में रिसाव रोकने की कोशिश की। किंतु आवश्यकता के अनुरूप कुछ नही किया गया। इस दौरान हुए नुकसान के लिए गांव वालों को कोई मुआवजा तक नही दिया गया है।

वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून स्थित एक सम्मानित संस्था है। जिसको 2015 में तत्कालीन विधायक ने अध्ययन करने के लिए कहा था। मगर बाद में उसकी दी गई रिपोर्ट पर सरकार ने कोई संज्ञान लेकर कंपनी से अनुपालन नही करवाया जो कि करवाना चाहिए था। क्योंकि नीचे के गांव के लोग हमेशा खतरे की स्थिति में जी रहे हैं। 3 वर्ष से ज्यादा समय बीता किंतु सरकार ने जब कोई संज्ञान नहीं लिया तब मजबूरन हमें माननीय राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का दरवाजा खटखटाना पड़ा।


वाडिया इंस्टीट्यूट की सिफारिशें:--


1--पावर चैनल के लगभग 200 मीटर विस्तृत क्षेत्र (प्रभावित रिसाव साइट) को वाडिया संस्थान देहरादून के संरचनात्मक भूवैज्ञानिकों के साथ परामर्श के द्वारा पुनः सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए।
2--इसके अलावा पावर चैनल के ढ़ाचे के डिजाइन की विस्तृत जांच करने की जरूरत है। जो निम्न तरह की संस्थाओं द्वारा किया जाये जैसे कि- सिंचाई डिजाइन संगठन, रुड़की। इस अभ्यास के दौरान वाडिया संस्थान देहरादून के संरचनात्मक भूवैज्ञानिकों के साथ परामर्श किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में हमारा निवेदन:-


हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि यह मुकदमा श्रीनगर बांध से जुड़े किसी भी तरह के जमीन या फसलों के मुआवजे या जीवीके कंपनी के अन्य किसी भी दायित्व के संबंध में नहीं है। नाही इसका किसी अन्य मुकद्दमे से कोई ताल्लुक है। हमने मुकदमे में निम्नलिखित निवेदन किया है:--

1--परियोजना प्रयोक्ता को निर्देश दिया जाए कि वह पावर चैनल की मरम्मत कराए और सभी रिसाबो को व्यवस्थित अध्ययन के बाद नियंत्रित करे।

2--परियोजना प्रयोक्ता को निर्देश दिया जाए कि वह वाडिया इंस्टिट्यूट की 30-12-2015 की रिपोर्ट में थी गई सिफारिशो  को अमल में लाये।

3--परियोजना प्रयोक्ता पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाए क्योंकि उन्होंने रिसाव रोकने की व्यवस्थित तरीकों में ढिलाई दिखाई तथा प्राधिकारियों ने टिहरी गढ़वाल जिला, उत्तराखंड के मंगसू, सुरासु व नोर थापली गांवो कि निवासियों की जीवन सुरक्षा अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में कोताही बरती जो कि इस रिसाव के कारण परेशान हैं।

हमें उम्मीद है कि जल्दी ही प्रभावित गांवों को पॉवर चैनल के खतरे से मुक्ति मिलेगी।

याचिकाकर्ता

उत्तम सिंह भंडारी व विमल भाई



NGT sought report : Threat from the power channel of the Srinagar Dam project


The National Green Tribunal (NGT) has asked the Uttarakhand Government for a report on the leakage in the power channel and the resulting problems. The tribunal has sought this report on a petition filed by Uttam Singh Bhandari and Vimal Bhai.
In the petition, it is stated that the power channel (open canal) of the Srinagar Hydro-electric project, which is on the bank of river Alaknanda in Uttarakhand, is 4 kilometers long. This channel takes Alaknanda's water to the powerhouse to generate electricity. In 2015, there was a serious breach in the canal, and this resulted in damage to crops and houses in Mangsu, Surasu and Naur Thaapli villages in Tehri Garhwal district.
After this, an inquiry was done by the Wadia Institute in Dehradun, which submitted its report on 30th December 2015. The report recommended re-strengthening of the power channel and an investigation into the structural design. However, due to lack of requisite action, there was another breach in December 2018.
In this context, letters were sent to the District Magistrate, Tehri Garhwal and the Uttarakhand Government, but no response was received. The Hon’ble Tribunal has sought a report within one month via email from the Department of Energy of the Government of Uttarakhand, the Uttarakhand State Pollution Control Board and the District Magistrate, Tehri Garhwal, before the next hearing. The State Pollution Control Board has also been given the responsibility for coordination and compliance.
The order has been sent to the three agencies via email so that they can immediately follow it. In addition, the applicants have been asked to furnish a copy of the petition to the three agencies. We have delivered the papers ourselves to all three places.
Uttam Singh Bhandari and Vimal Bhai filed the petition in the National Green Tribunal through the lawyers of Life Society, Delhi, namely lawyers Rahul Chaudhry and Meera Gopal.
It is known that the power channel of the Srinagar dam has been continuously causing losses every monsoon since 2015. These villages, on the slopes between the power channel and the river, are always facing dangers. Residents of the area have raised these issues in their letters to the district administration and the company as well as in person. The issue has also been raised through the Local MLA. There has also been coverage of the issue regularly in the media. However, there have been no positive results yet. The dam company tried to repair the leakage then, but requisite action was not taken. The villagers were also not paid any compensation for their losses they suffered during this period.
Wadia Institute is a reputable institute located in Dehradun, which was asked to study the situation in 2015 by the then-MLA. However, the government took not cognition of the report upon submission and did not ensure that the company complied with the recommendations. This should have been done since the people in the three villages below are living in constant danger. Since the government took no cognizance of the matter even after three years, we had to approach the Hon’ble National Green Tribunal.

The recommendations of the Wadia Institute:
About 200 wide zone (across the affected leakage site of the power Channel must be re-strengthened by consulting with the structural Geologist from Wadia Institute of Himalayan Geology, Dehradun.
Further detailed investigation of the structural design of the Power Channel is needed by the agency like the irrigation Design organisation, Roorkee. During this exercise the consultation should be done with the structural geologist of Wadia Institute  of Himalayan Geology, Dehradun.

Our prayers to the National Green Tribunal:
1-Direct the Project Proponent to repair the power channel and plug all leakages, after conducting proper study of the power channel.
2-Direct the Project Proponent to implement the recommendations of the Wadia Institute vide its report dated 30.12.2015.
3- Impose environmental compensation on the project proponent, i.e. the Respondent No. 4 for the negligence in not taking proper measures to plug the leakage from the power channel and on the Authorities for not complying with their statutory duties in ensuring the safety of the lives of the residents of Villages Mangsu, Surasu, Naur Thaapli in Tehri Garhwal District, Uttarakhand who have suffered due to the said leakage.

We hope that soon the affected villages will be rid of the dangers of the power channel.
Petitioners
Uttam Singh Bhandari and Vimal Bhai

Sunday, 26 May 2019

प्रेस नोट 21 मई, 2019



टीएचडीसी के वादे झूठे दावे कमजोर


टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (टीएचडीसी) के महा प्रबंधक ने हाल ही में जो ब्यान दिए हैं। उन्हीं के संदर्भ में माटूजन संगठन उनसे पूछना चाहता है कि यादें टिहरी व कोटेश्वर बांध से प्रभावितों को आज भी पुनर्वास के लिए ऐसा क्यों नही दे रही। जबकि  2001 के ऑफिस मेमोरेंडम के तहत टीएचडीसी को यह निर्देश था कि पुनर्वास के लिए जब भी जरूरत होगी वह पैसा देगी। जो टिहरी व कोटेश्वर बांध के प्रभावितों के लिए नहीं कर रहे वैसे ही बातें अब विष्णुगाड-पीपलकोटी के संदर्भ में बांध प्रभावितों के लिए किए जा रहे हैं।

टीएचडीसी एक ही कंपनी है जो टिहरी बांध व कोटेश्वर बांध बना चुकी और अभी विष्णुगढ़ पीपलकोटी बांध विश्व बैंक के पैसे से बना रही है। राज्य को जिस 12% मुफ्त बिजली देने की वह बात कर रहे हैं, 1% बिजली विस्थापितों को और 100 यूनिट बिजली प्रतिमाह प्रभावितों को देने की बात है हम प्रमाणित कर सकते हैं कि यह बातें आज तक जमीन पर नहीं उतरी हैं बांध प्रभावितों को इनके कोई लाभ नहीं पहुंचे।मात्र अपनी तथाकथित छवि सुधारने के लिए वे ऐसा कह रही है।

ज्ञातव्य है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की सन 2006 और 2008 की नीतियों के अनुसार राज्य को 12% बिजली पर्यावरण और पुनर्वास की समस्याओं को दूर करने के लिए दी जाती है। टिहरी  बांध के उद्घाटन के समय तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील शिंदे जी ने 1% लाभ अलग से और 100 यूनिट बिजली प्रभावितों को देंने की घोषणा की थी।

बाद में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने नीति बनाई। जिसमें राज्य भी अपने हिस्से की ओर से 1% लाभ जोड़ते हुए स्थानीय क्षेत्र विकास कोष बनायेगा, जिसमें प्रभावितों की आजीविका वृद्धि के लिए काम हो सके। 100 यूनिट बिजली प्रत्येक प्रभावित परिवार को 10 वर्षों तक दी जाएगी या उसका पैसा उसके बराबर पैसा या दोनों ही दिए जाएंगे।

ऊपर लिखी नीतियों में से एक भी जमीन पर नहीं उतर पाई। टिहरी व कोटेश्वर बांध से प्रभावित इनमें से किसी भी नीति से आज तक लाभ नहीं ले पाए हैं। टिहरी बांध प्रभावितों के थोड़े थोड़े से छोटे छोटे से काम भी पैसे की कमी के चलते रुके पड़े हैं। बांध बनने के 13 साल बाद भी भागीरथी व भिलंगना नदी में डूबे 10 पुलों के बदले बनने वाले पुल नहीं बन पाए। टिहरी बांध का जलाशय भरने के बाद जो गांव पहले आंशिक रूप में माने गये थे। बाद में वहां धसान, भूस्खलन, मकानों में दरारें आदि आ रही है। उनके लिए राज्य सरकार ने एक सम्पाशर्विक नीति बनाई। मगर टीएचडीसी ने उसको उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। नतीजा है कि झील किनारे के इन लगभग 40 गांवों में धसान भूस्खलन जारी है। मगर उनका नीति ना होने की वजह से मुआवजा और पुनर्वास नहीं हो रहा है। दोनों ही बांधों से प्रभावित विस्थापितों की पुरानी समस्याएं तो हल नहीं हो पाई बल्कि नई-नई समस्याएं और खड़ी हो गई हैं। ग्रामीण पुनर्वास स्थलों में पेयजल, स्कूल, स्वास्थ्य, परिवहन आदि समस्या है नहीं हो पाई है।

विष्णुगाड- पीपलकोटी बांध में ही टीएचडीसी ने और उसकी ठेकेदार कंपनियों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 80 लोगों पर विभिन्न तरह के मुकदमे किये हुए हैं। हरसारी व गांव के लोगों लोगों पर से न्यायालय ने यह मुकदमा खारिज किए हैं 2010 से बांध का काम शुरू करने वालीटीएचडीसी जब से इस क्षेत्र में आई लोगों ने अपनी समस्याओं के लिए बात उठाई। उन्होंने धरने किए, प्रदर्शन किए, आवेदन किए। पर जब बात नहीं सुनी गई तब लोगो ने बांध का काम रोका। जिसका सहारा लेकर उन पर तुरंत मुकदमे थोपे गए। यानी लोगों पर नई मुसीबत डाली गई। इससे लोगों की आर्थिकी और कमजोर हुई।
आज भी कमजोर कथा बिना भूमि देने वाली पुनर्वास नीति और उसके लागू ना होने के कारण हॉट गांव के सभी लोग विस्थापित नहीं हो पाए हैं।
हरसारी तोक के लोग 14 साल से पहले यह मांगे करते आए हैं:-
-गैरकानूनी रूप से हो रही अत्यधिक मात्रा की ब्लास्टिंग रोकी जाए ताकि हमारे घरों, जलस्रोतों, खेती आदि पर कोई नुकसान न हो।
- हमें आज तक किए हुए नुकसानों का मुआवजा, फसल मुआवजा, सूखे जल स्रोतों और मकानों की दरारों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा तुरंत की जाए।
- हमें इस बात की गारंटी दी जाए कि परियोजना से हमारे जीवन व आजीविका पर किसी भी तरह जैसे कि धूल, विस्फोटकों से कंपन, जल स्त्रोतों का सुखना जैसे असर नहीं पड़ेंगे

यह बात भी दीगर है कि टीएचडीसी बांध कॉलोनी और दफ्तर सियासैन गांव में जहां बहुत व्यवस्थित तरीके से बनाए गए हैं। दूसरी तरफ हॉट गांव के विस्थापित प्रभावितों को मजबूरन उनकी अपनी ही जमीन पर स्थापित होने को मजबूर किया गया। जहां किसी तरह का कोई योजनाबद्ध कार्य नहीं किया गया है। लोग पानी, सड़क, बिजली की समस्याओं के साथ वर्षा ऋतु में जलभराव की समस्याएं झेलते हैं।

टीएचडीसी ने पर्यावरण शर्तों का भी उल्लंघन ने किया है।
सियासैन गांव के पास बांध कंपनी में सुरंग से निकलने वाले मलबे यानी मक को सीधा ट्रकों से नदी में डालना शुरू किया इस पर जो मुकदमा विमल भाई बनाम भारत सरकार दायर हुआ उसमे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने टीएचडीसी पर 50 लाख का जुर्माना किया हुआ है और नदी में मक ना डालने तथा अन्य पर्यावरणीय संरक्षण संबंधी निर्देश जारी किए हैं। 50 लाख के जुर्माने को लेकर अभी टीएचडीसी
सर्वोच्च न्यायालय गई है। मगर यह तो जाहिर हो ही गया कि विश्व बैंक से समर्थित इस परियोजना में पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन भी हो रहा है।

बेहतर होगा कि टीएचडीसी लोगों से झूठे वादे ना करें बल्कि पहले टिहरी बांध कोटेश्वर बांध में अपने वादे वादे पूरे करें।
हरसारी तोक के लोगों की मांगों को तुरंत पूरा करें।


विमल भाई,  नरेंद्र पोखरियाल, बृहर्षराज तड़ियाल

प्रेस नोट 17 मई, 2019

प्रेस नोट       17 मई, 2019

        बांध का काम रोका: समस्याओं का निदान नही



13 मई 2019 से नैटवाड़-मोरी बांध परियोजना (60 मेगावाट), टॉन्स नदी, ज़िला उत्तरकाशी, उत्तराखंड से प्रभावित नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगों ने अपनी बरसो से लंबित मांगों की पूर्ति ना होने के कारण बांध का काम रोका हुआ है उनकी मांगें वही है जो कि उनसे जनसुनवाई तथा उसके बाद अलग-अलग समय पर वादे किए गए और जिन्हें पूरा नहीं किया गया है।


अफसोस की बात यह है कि प्रशासन ने अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। स्थिति खराब है।
-नैटवाड़ में एक मकान गिरा है।
-नैटवाड़ और बनोल के वह सभी मकानों में दरारें आई है। भविष्य में इन मकानों की गिरने का पूरा खतरा है।
-लोगों से जो  वादे किये गए थे वे पूरे नहीं किये गए है। जिसमें मुख्यता प्रत्येक परियोजना प्रभावित परिवार को रोजगार, गांव में ढांचागत विकास कार्य, पुनर्वास नीति में किये गए वादे आदि हैं।
-लोगों की खास मांग है कि परियोजना प्रमुख राजेश कुमार जगोरा को वहां से हटाया जाए।
-बड़े-बड़े डंपर चलने की वजह से उड़ती धूल से स्थानीय बाजार और लोगों को अलग तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं जिस पर कंपनी ध्यान नहीं देती।
नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगो ने  बांध परियोजना का विरोध नहीं किया था। परियोजना के बारे में जैसा बताया गया, जो उनसे वादे किये गए उसको ही लोगो ने सच माना था। बांध की जनसुनवाई से पहले उनको पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंध योजना हिंदी में, आसान भाषा में मुहैया नहीं कराई गई थी।  इसके सबूत हमारे पास मौजूद है। हमने तभी कहा था कि भविष्य में समस्याएं आएंगी और लोग उसका निवारण नहीं करवा पाएंगे क्योंकि प्रशासन की भूमिका जन सुनवाई के बाद मात्र बांध निर्माण में आने वाली समस्याओं को दूर करने की रह जाती है। आज लोग बांध का समर्थन करके भी भयानक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

जखोल-साकरी बांध परियोजना की जनसुनवाई प्रक्रिया भी गांव वासियों को बिना पूरी जानकारी दिए, जबरदस्ती के साथ  पूरी की गई है। हमें खतरा है कि वहां का भविष्य भी इसी तरह का होगा।

नैटवाड़ और बनोल के संदर्भ में हमारी प्रशासन से मांग है कि:-

1-तुरंत लोगों की इन गंभीर समस्याओं को देखते हुए एक त्रिपक्षीय वार्ता बुलाये जिसमें SJVNLl के उच्च अधिकारी, जिलाधीश स्वयं आप और प्रभावित लोग हो।

2-समझौते की कार्यवाही तीनों पक्षो के सामने सुनाई जाए और तब उस पर हस्ताक्षर हो।

2-समझौते में जो भी हो तय किया जाए उसको समयबद्ध पूरा किया जाए।

लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए। वास्तव में यह संविधान की धारा 21 के अंतर्गत उनकी जिंदा रहने की अधिकार पर हमला है। उनकी समस्याओं के निदान की ओर कार्य होना कि उनके ही खिलाफ कोई कार्यवाही करके उनकी आवाज दबाने का प्रयास हो। देश के तमाम लोगो की नज़र इस छोटी परियोजना पर है। सब ये देख रहे हैं कि किस तरह मात्र दो गांवों के प्रभावितो की बात की भी अनसुनी की जा रही है।

रामबीर, राजपाल सिंह रावत, विमल भाई, विजय सिंह

प्रेस नोट 1 मार्च, 2019


प्रेस नोट 1 मार्च, 2019

  जन सुनवाई में जनता से खतरा क्यों?


उत्तराखंड शासन प्रशासन ने दिखा दिया कि बांध कंपनियां लोगों के अधिकारों और पर्यावरण से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
यमुना घाटी में टॉन्स नदी की सहायक नदी सुपिन पर प्रस्तावित
जखोल साकरी बांध परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई  प्रभावित क्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक में कथित रूप से पूरी कर दी गई। 1 मार्च को जन सुनवाई का समय 11:00 बजे से शुरू हुआ किंतु उसमें खास जखोल गांव के लोगों को रोका गया। जखोल गांव इस बांध के लिए प्रस्तावित 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के ऊपर आता है और जहां सुरंग के दुष्परिणाम संभावित हैं।
प्रशासन ने चुनकर जखोल गांव के अलावा अन्य प्रभावित गांवों पांव तल्ला, मल्ला, सुनकुंडी और धारा के सैकड़ो लोगों को भी जनसुनवाई में जाने से मोरी जखोल मोटर मार्ग पर बैरिकेड लगा कर रोक दिया। जखोलगाँव के प्रधान सूरज रावत के नेतृत्व में लोगो ने ब्लॉक के दरवाजे पर धरना किया और लगातार तीखे नारे देकर बैठे रहे। कोट गांव के प्रधान सूरज दास, डगोली गांव की महिला प्रधान के साथ ग्राम प्रधान हडवाड़ी के मुंशीराम ने भी धरना दिया।


मोरी बाजार की तरफ माटू जनसंगठन के साथी विमल भाई, रामलाल भाई, गुलाब सिंह रावत व राजपाल रावत को पुलिस ने यह कहकर रोका कि आपको लेने एस डी एम पूरणसिंह राणा आएंगे।



लगातार निवेदन करने पर भी जबर सिंह असवाल कानूनगो और पटवारी अनिल असवाल ने नहीं जाने दिया।
दोनों ही तरफ़ लोग लोगो को बाहर रोक कर अंदर जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई।
जब सभी अधिकारी बाहर सड़क पर आए तो लोगों ने उनको वहां रोकने की कोशिश की। जिला अधिकारी आशीष चौहान जी सहित सभी अधिकारी तेज रफ्तार गाड़ियों से 1 किलोमीटर दूरी पी डब्लू डी के गेस्ट हाउस पहुंचे, जहां लोग भी दौड़ते हुए पहुचे और सड़क पर चक्का जाम किया।


बाद में जिला अधिकारी ने गेस्ट हाउस से बाहर आकर मामला सुलझाने की कोशिश की। विमल भाई ने लोगो की ओर से उनसे एक ही प्रश्न पूछा कि लोगों को अंदर आने से क्यो रोका गया? यह हमारी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह जनसुनवाई पूरी तरह प्रायोजित कार्यक्रम की तरह पूरी की गई है।



गुलाब सिंह रावत ने कहा कि हम अपनी मांग जो पहले हमने कही थी उसी को दोहराना चाहते थे। जब तक हमें पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक समाघात योजना हिदी में नहीं मिल जाते हम बांध पर अपनी बात कैसे रखेंगे?  सुनकुंडी गांव के जयवीर ने कहा कि मुझे सुबह पुलिस ने पहले ही उठा दिया था। हम 2011 से इस बांध का विरोध कर रहे हैं हमारी बात तक नहीं सुनी गई।



रामलाल जी ने कहा लोगों को डराने के लिए जखोल के 21 लोगों पर झूठे मुकदमे कायम किये गए हैं।
साथी प्रदीप ने आरोप लगाए की जनसुनवाई में किन्ही आंगनबाड़ी की व आशा कार्यकर्ताओं को तथा अन्य सरकारी कर्मचारियों को बिठाया गया।

धारा गांव के प्रह्लादसिंह पवार बहुत मुश्किल से जनसुनवाई में जाकर अपनी बात कह पाए। उनका कहना है कि जब पर्यटन के लिए और लोगों के स्थाई रोज़गार के लिए आवश्यक हर कि दून मोटर मार्ग को गोविंद वन्य जीव बिहार के कारण स्वीकृति नहीं दी जा रही है तो बांध की 9 किलोमीटर लंबी सुरंग के लिए कैसे स्वीकृति की बात है? जब भूकंप नीचे से आता है तो सुरंगों के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक इस्तमाल करने से ऊपर क्या स्थिति होगी?
राजपाल रावत के कहा कि सुरंग परियोजनाओं के असरों को पूरी तरह नकार कर जखोल गांव को प्रभावित तक की श्रेणी में नहीं रखा जा रहा?
शासन प्रशासन और बाध कंपनी ने 12 जून की जनसुनवाई स्थगित होने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। इसीलिए आज हर हालत में जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी करने के लिए भारी संख्या में लाठी और बंदूक के साथ पुलिस बल के साए में जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की गई । जनता से दूर यह जनसुनवाई पूरी तरह से असंवैधानिक और शासन-प्रशासन की चालाकी का नमूना है।
हम इसको पूरी तरह नकारते हैं। प्रशासन ने इस बात को मद्देनजर नहीं रखा कि आज के अधिकारी हमेशा रहने वाले नहीं है, किंतु गांव, नदी और पर्यावरण स्थाई है। इस बिना जानकारी दिए आयोजित जन सुनवाई के असर लोक और पर्यावरण हमेशा झेलेंगे।
हम यह कहना चाहेंगे कि हमारे लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं वरन लोगों के अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा का है।  आंदोलन अपने तमाम संवैधानिक अधिकारों का उपयोग जन और पर्यावरण हक के लिए करेंगा।

रामबीर राणा।  भगवान सिंह रावत


प्रेस नोट 4 मई, 2019

प्रेस नोट                4 मई, 2019

194 दिन के बाद आत्मबोधानंद जी के अनशन को विराम



युवा संत आत्मबोधानंद जी ने आज अपने 194 दिन के लंबे अनशन को विराम दिया। गंगा की अविरलता निर्मलता के लिए मातृ सदन के युवा सन्यासी का संकल्प एक मुकाम पर पहुँचा।

आज 4 मई, 2019 को  राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन  की डायरेक्टर जनरल श्री राजीव रंजन मिश्रा जी का पत्र  मातृ सदन में प्राप्त हुआ ।

स्वामी शिवानंद जी को  लिखे पत्र की पहली पंक्ति है ---
Kindly recall the discussion during my visit to Matri Sadan on 26/4/2019.
इस पंक्ति को मुख्य मानते हुए यानी कि 25 अप्रैल को जब पहली बार राजीव रंजन जी मातृसदन आए थे और उनकी स्वामी शिवानंद जी से और आत्मबोधानंद जी से बात हुई थी उस पूरी बात का आधार इस एक पंक्ति में आ जाता है। इसी पंक्ति को मद्देनजर रखते हुए और पूरे पत्र की शाब्दिक से अधिक आत्मिक भावना के साथ आज युवा संत आत्मबोधानंद जी के 194 दिनों के उपवास को विराम देने का निर्णय लिया।


इस महती अवसर पर इस पत्र को  लेकर स्वयं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के कार्यकारी निदेशक श्री रोज़ी अग्रवाल जी के साथ देहरादून में मिशन यूनिट के श्री प्रभात राज जी पहुंचे।
साथ ही हरिद्वार की उप जिलाधिकारी महोदय सुश्री कुसुम चौहान जी, सर्किल अधिकारी विजेंद्र दत्त जी तथा अन्य पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे ।
साथ ही पास के गांव से जल्दी ही खबर मिलकर कुछ साथी पहुंच पाए।
इस अत्यंत सादगी, पूर्ण छोटे से कार्यक्रम में 26 वर्षीय युवा संत आत्मबोधानंद जी के साथ फलाहार पर बैठे श्री पुण्यानंदजी का भी फलाहार समाप्त हुआ।
आश्रम ने तय किया था कि आत्मबोधानंद जी के बाद इस संकल्प को आगे बढ़ाएंगे।

गंगा की लड़ाई बड़ी है आश्वासनों के साथ उसको जमीन पर उतारने के लिए गंगा के मायके से लेकर गंगा के तिरोहण, गंगासागर तक वह अपनी तरह बहती रहे। इसके लिए देश के तमाम साथियों को काम करना ही होगा।

स्वामी शिवानंद जी तथा स्वयं आत्मबोधानंद जी ने कहा कि 194 दिन के उपवास के बीच देशभर से तमाम साथियों ने जो धरने, प्रदर्शन, रेलिया आदि की व सरकार को पत्र भेजे, उन सबका मातृ सदन की ओर से हम आभार मानते हैं।

गंगा को अविरल रहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो।
गंगा को गंगा रहने दो।

विमल भाई
माटू जनसंगठन