जनसुनवाई रद्द, लोग चाहते है जंगल पर अधिकार
उत्तरकाशी
जिला प्रशासन को 12
जून
को आहूत जखोल साकरी परियोजना
की जनसुनवाई रद्द करनी पड़ी।
सैकड़ों ग्रामीणों ने 3
घंटे
तक जनसुनवाई मंच के सामने
"जनसुनवाई
रद्द करो ,
बांध
कंपनी वापस जाओ"
आदि
नारे देते रहे। आक्रोशित
युवा महिलाओं ने लगातार डटे
रहकर बाद कंपनी व प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड की चालाकियों
को नाकाम किया। प्रशासन की
ओर से कोशिशें की गई कि लोग या
तो शांति से बैठे या चले जाएं।
जिलाधीश
महोदय ने एक बार मंच से बिना
माइक के जनसुनवाई रद्द करने
की घोषणा भी की किंतु लोग जानते
थे कि जब जनसुनवाई की अध्यक्षता
अतिरिक्त जिलाधीश कर रहे
हैं तो उन्हें ही घोषणा करनी
होगी कंपनी के लोगों को वहां
से हटना चाहिए ,
मंच
को हटाना चाहिए ।
जिलाधिकारी
महोदय को "
पर्यावरण
आकलन अधिसूचना 14
सितंबर
2006"
की
प्रति दी गई और इस बात की कानूनी
जरूरत बताई गई की ऐ डी एम श्री
शाह मंच से घोषणा करें कि
जनसुनवाई रद्द की गई तब ही
जनसुनवाई रद्द मानी जायेगी।
जिलाधीश महोदय को यह भी बताया
गया कि 18
अक्टूबर
2006 को
विष्णुगाड पीपलकोटी बांध की
जनसुनवाई की अध्यक्ष निधि
यादव जी,
SDM चमोली
ने,
लोगों
को जानकारी ना होने की आधार
पर जनसुनवाई रद्द की थी । 21
जुलाई
2010 में
भी देवसारी बांध की जनसुनवाई
के अध्यक्ष ने लोगों के विरोध
के चलते जनसुनवाई रद्द की थी।
प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी
व बांध कंपनी सतलुज जल विद्युत
निगम के अधिकारी जिलाधीश श्री
आशीष चौहान को यह बताते रहे
कि हमने सभी कानूनी जरूरतें
पूरी की है किंतु संगठन ने
उनको बताया कि ऐसा नहीं हुआ
है और कानूनी व व्यवहारिक सभी
तरह की कमियों की सूचना हमने
बोर्ड को भी दी थी। बोर्ड के
सदस्य सचिव ने बहुत कड़ा रुख
लेकर अपनी जिम्मेदारी से को
मात्र कागजी कार्रवाई तक सीमित
रखा।
इस
पूरी बात के बाद एडीएम श्री
शाह ने जनसुनवाई समाप्ति की
रद्द होने की घोषणा की और बांध
कंपनी के लोग व बोर्ड के अधिकारी
मंच से हटे।
जखोल,
धारा,
सुनकुंडी,
पांव
तल्ला,
पाव
मल्ला आदि प्रभावित गांवों
के लोग इन अधिकारियों के पंडाल
से जाने और जनसुनवाई का सामान
समेटे जाने तक पंडाल में ही
डटे रहे । जनसुनवाई के लिए किए
गए भोजन की व्यवस्था को भी
ग्रामीणों ने अस्वीकार किया।
जनसुनवाई
पांव मल्ला के स्कूल में की
गई थी। उस स्कूल के लिए जिन्होंने
अपनी जमीन दान दी थी वह 2
दिन
से वहां पहले ही धरने पर बैठे
थे । गांवो से लोगो को लाने के
लिए बांध कंपनी ने वहां की कोई
व्यवस्था नही की थी। लोग लंबे
रास्ते पैदल ही चल कर आये।
जनसुनवाई स्थल पर पुलिस का
बहुत सारा इंतजाम किया गया
था। जनसुनवाई पंडाल में जाने
से पहले लोहे के दरवाजे पर
ग्रामीणों से नारे की तख्तियां
भी लोगों से छीन ली गई थी।
किन्तु
आखिर में जनता ने न्याय हासिल
किया। ग्रामीणों ने जिला
प्रशासन को धन्यवाद दिया।
न्यायोचित निर्णय के लिए
जिलाधिकारी डॉ0
आशीष
चौहान का आभार प्रकट किया।
यमुना
घाटी की सहयोगिनी टोंस नदी
से मिलने वाली सुपिन एक छोटी
नदी है जिस पर बांध प्रस्तावित
है यह पूरा क्षेत्र गोविंद
पशु विहार में आता है। कई दशकों
से यहां के गांववालो को हॉर्न
बजाने तक की पाबंदी है। उच्च
कोटि के पर्यटन की संभावनाओं
वाले क्षेत्र में सड़क,
जंगल
के अधिकारों से वंचित लोग अपनी
पारंपरिक संस्कृति के साथ
जीते हैं।
आश्चर्य
का विषय है की लगभग 8
किलोमीटर
लंबी सुरंग बनाने की अनुमति
कैसे हो गई?
इसी
बांध के नीचे नैटवार मोरी बांध
के प्रभावित अपनी समस्याओं
को लेकर परेशान हैं। इसी बांध
क्षेत्र में रहने वाले गुर्जरों
को विस्थापन झेलना पड़ रहा
है किंतु कोई मुआवजा या पुनर्वास
की बात नहीं और वही बांध कंपनी
जखोल-साकरी
बांध बनाने के लिए आगे आ रही
है।
जिस
घाटी में 42%
साक्षरता
है वहां 650
पन्नों
के अंग्रेजी वाले कागजात
पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट,
पर्यावरण
प्रबंध योजना व समाजिक आकलन
रिपोर्ट दिए गए। जिनमें किसकी
कितनी जमीन जा रही है इतना भी
जिक्र नहीं है,
सुरंग
से बर्बाद होने वाले गांवों
की तो कोई बात ही नहीं। यह सब
तरीके बताते हैं कि बांध कंपनी
के लोग देश का,
राज्य
का,
गांव
का विकास जैसी बातें करके
प्रभावित गांवों से कंपनी
सामाजिक दायित्व (सीएसआर)
के
पैसे से कुछ सामान बांट कर
बांध के लिए झूठी अनापत्ति
लेते रहे हैं। जखोल
गांव की जमीन भले ही कम जा रही
हो किन्तु सुरंग से बर्बादी
का आकलन असंभव है।और जिन
गांवो की जमीन ज्यादा जा
रही है उनको भी मात्र
जमीन के दाम पर भ्रमित करके
और आश्वासन देकर चुप करने की
कोशिश की गई है। वन अधिकार
कानून 2006
के
अंतर्गत बिना कोई अधिकार दिए
और यह भ्रम फैलाकर की कानून
मात्र आदिवासियों के हक की
बात करता है,
लोगों
से व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर
कराए गए हैं।
पंचेश्वर
व रुपालीगाड बांध की जनसुनवाईयो
में भी यही किया गया है माटू
जन संगठन ने इस पर भी आपत्ति
उठाई थी और प्रशासन को जनसुनवाई
से पहले ही मिलकर पूरे झूठ से
अवगत कराया था किंतु पुरजोर
विरोध के बावजूद बंद कमरों
में जनसुनवाई की गई। स्थानीय
संगठन भी बाहर धरना देते रहे
नारेबाजी करते रहे किंतु
प्रशासन और बांध कंपनी जनसुनवाई
की नाटक पूरा किया।
घाटी
के लोगो ने पर्यावरण को बचाने
के लिए बांध को नकारा हैं ।
सरकार को चाहिए कि क्षेत्र
के विकास के लिए वन अधिकार
कानून 2006
लागू
करें। लोगों को जंगल पर अधिकार
दें,
जीने
की मूलभूत सुविधाएं मुहैया
कराए।
राजपाल
रावत ,
गुलाब
सिंह,
सूरज
रावत,
रामबीर
सिंह,
ज्ञान
सिंह,
बलवीर
सिंह,
भगवान
सिंह,
प्रह्लाद
सिंह पंवार, केशर
सिंह,
विमल
भाई
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