पंचेश्वर बांध की जनसुनवाईयां छल-बल व राजनैतिक दवाब में पूरी की गई
प्रभावित जनता के साथ धोखा रही!
उत्तराखंड के कुंमाऊ क्षेत्र में 311 मीटर ऊँचे पंचेश्वर बांध की 9, 11 व 17 अगस्त को चम्पावत, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा जिलो में हुई जनसुनवाईयां छल-बल व राजनैतिक दवाब में पूरी की गई है। सत्ताधारी दल के लोगो ने पूरी तरह से मंचों पर कब्जा रखा। जनसुनवाई की स्वतंत्र प्रक्रिया को हर जगह बाधित किया। प्रषासन भी पूरी तरह दवाब में रहा।
हम तीनों जिलों के जिलाधिकारियों, श्री रविशंकर जी, पिथौरागढ़ 24-7-2017 को; श्री इकबाल अहमद जी, चम्पावत को 25-7-2017 व श्रीमति आशीष जी, अल्मोड़ा को 3-7-2017 को मिले थे। हमने सभी जिलाधिकारियों को 14-09-2006 की अधिसूचना के बारे में विस्तार से बताया, कानूनी व व्यवहारिक समस्याओं के बारे में भी बताया। हमने निवेदन किया था कि वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव को भी इन परिस्थितियों से अवगत कराएंगे। अधिसूचना के अनुसार राज्य प्रदूषण बोर्ड का सचिव, जिलाधीष की सिफारिष पर जनसुनवाई की तारिख व समय स्थान बदल सकता है। किन्तु तीनों की जिलाधीषों ने जमीनी सच्चाई को पूरी तरह से नकार कर मात्र जनसुनवाईयों की कागजी प्रक्रिया पूरी की। 9-8-217 को चम्पावत, 11-8-2017 को पिथौरागढ़ व 17.8.2017 को अल्मोड़ा में हुई जनसुनवाईयों में यह बहुत साफ तरह से आया है।
हम सभी जिलो के अनेक गांवों में होकर आये है। हमने पाया की जनसुनवाई की जानकारी बस एक हवा की तरह उन्हे मिली है। कही पटवारी ने ग्राम प्रधान को फोन करके बताया है तो कही लोगो को अखबार से खबर मिली है। किसी भी प्रभावित ग्राम प्रधान को अधिकारिक रुप से एक महिना पहले ना तो जनसुनवाई की कोई जानकारी दी गई, ना ही जनसुनवाई की सूचना का पत्र गया। चम्पावत जिले में प्रभावित ग्राम प्रधानों से 30 जुलाई के बाद जिला ब्लाॅक कार्यालय में एक ही पत्र पर हस्ताक्षर लिये गये है।
अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ़ जिलो में स्थिति एक ही जैसी रही। बाँध प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं की स्थिति निम्न स्तर पर है। ऐसे में प्रभावित क्षेत्र के लोगों से आप ये कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि अंग्रेजी में लिखी गई पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टो पर कम शिक्षित या अनपढ़ लोग, जिनके पास अख़बार भी नहीं पहुँचता वे पर अपनी राय देंगे?
तेज बारिष का समय था। प्रषासन ने स्कूलो की छुट्टी का निर्देष दे रखा था। जनसुनवाई स्थल से गांव बहुत ही दूर रखे गये। प्रभावितों को कई किलोमीटर की लम्बी चढ़ाई चढ़कर सड़क पर पहुचना हुआ, फिर जीप आदि में पैसा खर्च करके वे जनसुनवाई स्थल तक कुछ ही गंावों के कुछ ही लोग पहुंच पाये।
चम्पावत व पिथौरागढ़ की जनसुनवाई के मंच पर ये नही मालूम पड़ा की जनसुनवाई का पैनल कौन सा है ? मंचों पर स्थानीय विधायक, ब्लाक प्रमुख तथा सांसद प्रतिनिधी मौजूद थे। जनसुनवाई में प्रभावितों ने पुनर्वास के बहुत सतही प्रश्न उठाये। मंचासीन लोगो ने बार-बार पुर्नवास के जुड़ी बातों को दोहराया व आश्वासन दिये जिसका जनसुनवाई से कोई मतलब नही था। एक प्रकार से यह लोगो पर एक दवाब लाने की कोशिश थी। पुर्नवास के संदर्भ में भरोसे का भ्रम पैदा करने की कोशिश थी। जनसुनवाई बन्द हाल में हुई। मंच से यह भी कहॉ गया कि जो बात दे वो बाहर जाए। बाहर टी0वी0 लगाकर लोगो को बस देखने सुनने का मौका दिया गया। किन्तु अन्दर की सारी कार्यवाही कैमरे पर नही थी।
पीएसी, स्थानीय व अन्य तरह की पुलिस के महिला व पुरुष जवान काफी संख्या में तीनों ही जनसुनवाईयों में थे। ऐसा लग रहा था की किसी बहुमूल्य वस्तु की निलामी प्रक्रिया हो रही हो। जनसुनवाई के हॉल में भी पुलिस अधिकारी मौजूद रहे। जो बोलने वालों को नियंत्रण में रख रहे थे।
सत्तापक्ष के विधायकों व उनके अन्य साथियों को बार-बार देर तक बिना किसी समय सीमा के बोलने दिया गया। जबकि जनसंगठनों के लोगो को बात रखने पर रोका- टोका और धमकाया तक गया।
अल्मोड़ा की जनसुनवाई में वरिष्ठ समाजकर्मी राजीव लोचन षाह को उपजिलाधिकारी ने सत्तापक्ष के लोगो के साथ बलपूर्वक रोका व माईक तक छीन लिया। जबकि जिलाधिकारी ने कहा था कि हम सबको सुनेंगे चाहे वो अमेरिका से ही क्यों ना आया हो। जिलाधिकारी जनसुनवाई पैनल की अध्ययक्ष थी।
जनसुनवाई क्या होती है? जनसुनवाई से पहलेे क्या होता है? इस प्रक्रिया तक का प्रभावितों को नही मालूम था। पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टो व उनके सार संक्षेप जैसे शब्द तक का प्रभावितों को नही मालूम थे। फिर गंावों में इन कागजातो के सार संक्षेप मिलने का तो प्रश्न ही नही होता। बिना सही और पूरी जानकारी प्राप्त किये, बिना ये समझे कि बांध से क्या होगा? पर्यावरण पर क्या होने वाला है? विस्थापन क्या होगा? पुर्नवास क्या होगा? सरकारों ने आज तक क्या किया है? मात्र और मात्र बड़े आकडे़ और बड़ी धनराशि और बड़े सपनों को दिखाने का और जनसुनवाई का कागजी काम पूरा किया गया।
किसी भी परियोजना की जनसुनवाई ही एक मात्र मंच होता है जहां वे सारी जानकारी प्राप्त करके इस पर अपनी राय रख सकते है। इस प्रक्रिया का पूरी तरह से उलंघन हुआ है। लोकतांत्रिक मूल्य इस नदी घाटी के लोगो व पर्यावरण के साथ धोखा सिद्व हुई।
हमारी पुनः ये मांग है कि इस सब परिस्थितियों में जनहित, पर्यावरण हित और राज्य के दीर्घकालीन हितों के लिये यह आवश्यक है कि सही प्रक्रिया का पालन करते हुये-
1. चम्पावत में 9-8-2017, पिथौरागढ़ में 11.8.2017 व अल्मोड़ा में 17.8.2017 को हुई जनसुनवाईयां की जनसुनवाई स्थगित मानी जाये।
2. पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे सरल हिंदी में प्रभावितों को समझायी जाए जिसके लिए पर्यावरण सामजिक क्षेत्र में काम करने वाली निष्पक्ष संस्था को जिम्मेदारी दी जाए।
3. अगली जन सुनवाईयों के स्थल बाँध प्रभावित क्षेत्रों में ही रखी जाएँ।
4. जनसुनवाईयंो का समय मानसून के बाद का ही होना चाहिए।
5. जनसुनवाईयों में पुलिस का प्रयोग ना हो व पैनल पर सिर्फ पैनल के ही लोग बैठे।
6. चम्पावत की जनसुनवाई में दुर्वयव्हार करने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही हो।
7. निष्पक्ष व स्वतंत्र रुप से जनसुनवाई हो सके यह सुनिष्चित किया जाये।
विमलभाई सुमित महर
माटू जन संगठन हिम धारा पर्यावरण समूह
No comments:
Post a Comment