श्रीनगर जलविद्युत परियोजना पर 2013 की तबाही के दो सालों बाद की रिपोर्ट मई 2015--
उत्तराखंड में अलकनंदा नदी पर 330 मेगावाट
की श्रीनगर जलविद्युत परियोजना बनाने वाली जी0वी0के0 बांध कम्पनी द्वारा
लापरवाही से श्रीनगर बांध की मिट्टी डंप नहीं कि गई होती तो जून 2013 में
नदी का पानी केवल घरों एंव अन्य जगहों पर आता किन्तु मलबा नहीं आता। लोग
अभी तक दो सालों के बाद भी मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से परेशान एवं
अस्त-व्यस्त ना होते।
वैसे श्रीनगर बांध निर्माण में पूर्व से ही
काफी कमियां रही हैं तथा इसके पर्यावरणीय पहलुओं पर लोग इलेक्ट्रोनिक व
प्रिंट मीडिया के माध्यम से कहते रहे हैं। जी0वी0के0 कम्पनी पर मुकदमें भी
हुये, जिनमें से कुछ अभी भी चल रहे हैं। जी0वी0के0 कम्पनी की लापरवाही
मीडिया व कई व्यक्तियों द्वारा प्रश्न उठाये गये जो लगातार सच साबित हुये
हैं। आज स्थिति यह है कि बांध के खिलाफ केस भी चालू है और बांध कंपनी ने
विद्युत उत्पादन भी करना आरंभ कर दिया है।
2013 में श्रीनगर शहर के एक हिस्से में
बांध कंपनी द्वारा गलत तरीके से रखा गया मलबा तबाही का कारण बना।
प्रभावितों ने मांग की कि शक्तिबिहार, लोअर भक्तियाना, चैहान मौहल्ला,
फतेहपुररेती क्षेत्र की सड़कें, गलियंा, एंव मकानों का पूरा मलबा हटाया
जाये। सरकारी एंव गैरसरकारी स्थानों के मलबे की भी सफाई की जाये। आवासीय
भवनों को रहने लायक बनाया जाये। जिन स्थानों से विस्थापन आवश्यक है उनका
तत्काल पुनर्वास किया जाये। जब तक आवासीय भवन रहने लायक नही बन जाते तब तक
प्रत्येक परिवार को वास्तवित मकान किराया भुगतान किया जाये। जी0वी0के0
कम्पनी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के निवासियों को मानसिक पीड़ा पहुंचाई गई
है। शासन द्वारा दी गई एक लाख की धनराशि इसकी भरपाई नही कर सकती है।
क्षेत्र की सुरक्षा हेतु नदी पर आरसीसी की सुरक्षा दिवार श्रीकोट से लेकर
मालडइया तक बनाई जाये। जो बांध पूर्ण होने से पहले की जाये। तब तक बांध के
गेट भी खुले रखे जाये। परियोजना के समीप शेष बची मक/मलबा ;उनबाद्ध को दिवार
बनाकर कटाव रोका जाये तथा तत्काल में रेत के कट्टे लगाकर मिटटी के कटाव को
रोका जाये। शासन तथा परियोजना प्रबंध द्वारा इस बात की गारंटी दी जाये की
भविष्य में ऐसी कोई घटना नही होगी। पूर्ण क्षति का आकलन करके जी0वी0के0
कम्पनी से पूर्ण क्षतिपूर्ति कराई जाये। आज दो सालों के बाद 2015 मई में उस
क्षेत्र की स्थिति यह है कि प्रभावित क्षेत्र में आई0 टी0 आई0 में भी पूरी
तरह से मलबा भर गया था। सरकार ने दो लाख रुपये का खर्चा करके उसे नही
हटाया किन्तु उसी के मैदान में भरे मलबे पर नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ
टैक्नोलाॅजी की 10 लाख से ज्यादा की प्री-फेब्रिकेट इमारत बना दी गई है।
एनआईटी की स्थायी इमारत इसी जिले में बन रही है। हंा आई0 टी0 आई0 के
छात्रों को पास में ही कही बिना किसी उपकरणों के पढ़ाया जा रहा है।
एनआईटी की इस प्री-फेब्रिकेट इमारत के
सामने का हिस्सा नीचे हो गया है। लोगो को आशंका है कि यदि कभी पास के नाले
से पानी पीछे आता है तो बस्ती में पानी फिर भर जायेगा। विश्व बैंक से आपदा
के समय जो कर्जा लिया गया है उसमें आई0टी0आई0 को भी सही करना शामिल है।
नवम्बर/दिसंबर 2014 में विश्व बैंक ने तथाकथित जनसुनवाई की। मात्र 4
प्रभावित लोगांे को खबर हो पाई। उन्होंने विश्व बैंक से कहा की हमारा भाग्य
बदला है पर अब हम अपना पता नही बदलेंगे। अपने पते में हम निकट आई0टी0आई0
ही लिखेंगे। इसलिये इसे साफ किया जाये और चालू किया जाये।
किन्तु आज दो साल बाद की स्थिति यह है कि सुरक्षा दिवार की उंचाई कम और
गुणवत्ता खराब है। पिछले दिनों स्थानीय छात्रों ने इसी कारण दिवार का काम
रोक दिया था। बांध के पावर स्टेशन के सामने नदी किनारे के पूर्व निर्मित
सुरक्षा ब्लॅाक नदी में गिर चुकें है। तो इस बात की क्या गारंटी है कि नई
बन रही दिवार नही गिरेगी?
सुरक्षा दिवार के काम की गति धीमी होने के
कारण इस बरसात से पहले कार्य पूरा होना संभव नही है। निमार्ण की गति बढ़ाई
जानी अति आवश्यक है। श्रीनगर बांध के पावर हाउस के बाहर नदी के दायीं तरफ
बिना सुरक्षा दिवार बनाये मलबा डाला गया था वो भी पानी में धीरे-धीरे बह
रहा है। और बरसात में तेजी से बहने का खतरा है। कटाव को रोकने के लिये
तत्काल में रेत के कट्टे तक भी नही लगाये गये। नगर के सामने चैरास स्थित
विश्वविद्यालय का हिस्सा भी बांध के कारण नदी की भेट चढ़ रहा है।
प्रभावित लोगो ने स्वंय ही पैसा खर्च
करके घर साफ किये। किन्तु सरकारी इमारतों की स्थिति वैसी ही है। गलियों में
मलबा पड़ा हुआ है। ऐसा लगता है कि कोई शहर खुदाई में से निकला है।
2013 जून में उत्तराखंड में आई आपदा जिसमें
श्रीनगर बांध परियोजना के कारण श्रीनगर शहर के बड़े क्षेत्र में मक भर गई
थी। इस संबंध में मुआवजे के लिये एक याचिका राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में
‘श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति‘ व ‘माटू जनसंगठन‘ द्वारा डाली गई थी। बाद
में श्री भरत झुनझुनवाला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित रवि चोपड़ा
समिति का आधार लेकर इसमें शामिल हुये। प्राधिकरण में तारिखें तो लग रही है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के केस में अनेक
आधारहीन तथ्यों से यह सिद्ध करने का ही प्रयास हो रहा है कि श्रीनगर के एक
हिस्से को जून 2013 में बांध के मलबे से भर देने में उसकी कोई गलती नही है।
बांध कंपनी पर कोई असर नही कोई मानवीयता नही है।
अभी 10 मई को ही बिना पूर्व सूचना दिये
बांध के गेट से पानी छोड़ दिया गया। वो तो मौके पर अधिशासी अभियंता ने
चैरास मोटर पुल के निर्माण की सामग्री व मजदूरों को हटा दिया। तो लोग व
सामान बच गया। एक स्थानीय अखबार ने इस पर बांध कंपनी के प्रंबधन से पूछा
मगर बांध कंपनी के प्रंबधन ने इस पर कोई जानकारी नही दी। स्थानीय लोग को
कभी कंपनी के सायरन आदि नही सुनाई दिये। कंपनी भले ही दावा करे की वो सायरन
बजाती है।
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