(English translation is after Hindi)
पंचेश्वर बांध परियोजनाः हिमालय में नये खतरे की शुरुआत
नेपाल ने 15.95 करोड़ रुपये पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत व्यवस्था के लिये दिये है। अगले एक साल में इस बांध की सारी बाधायें दूर करके शुरुआत कर दी जायेगी ऐसा नेपाल सरकार का कहना है। नेपाल स्थित कंचनपुर के पहले कार्यालय में 6 भारतीय व 6 नेपाली अधिकारी होंगे। क्षतिग्रस्त और नाजुक परिस्थिति वाले हिमालय में यह एक नये खतरे की शुरुआत है।
नेपाल ने यह हिम्मत जुटाई है हमारे प्रधानमंत्री जी कि पहली नेपाल यात्रा के बाद। अपनी पहली नेपाल यात्रा में प्रधानमंत्री जी ने पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत का तोहफा नेपाल को दिया। याद रखना चाहिये की माओंवादी सरकार बनने के बाद जब नेपाल के तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री प्रचण्ड दहल भारत आये थे तो टिहरी बाँध देखकर बहुत खुश हुए थे और नेपाल में बड़ें बांधों की हिमायत कर बैठे थे। उन्होनंे सिर्फ टिहरी बांध देखा था वे उसमें डूबे शहर और गांवों के लोगों से ना तो मिले, ना ही उनकी समस्याओं से परिचित हुये थेे। इस बार हिमालय के सुंदर देश नेपाल में जब हमारे नये चुने गये प्रधानमंत्रीजी गए तो उन्हंे बड़े बांध बना कर बिजली बेचने की सलाह के साथ, पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत की घोषणा भी कर आये है।
किसी छोटे देश में बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष का जाना कोई बड़ी परियोजना की सौगात देना जरुरी जैसा माना जाता है। 1986 में जब रूस के राष्ट्राध्यक्ष र्गोबाचोव जब भारत आये थे तो टिहरी बाँध में उनके देश द्वारा तकनीकी और आर्थिकीय दोनो सहयोग की बात की गई। उत्तराखंड के निवासी, विस्थापितों का पुनर्वास सभंव नही हो पाया है। पर्यावरण की तो अपूर्णीय क्षति हाल में 2013 की आपदा में हम देख ही चुके है।
टिहरी बांध परियोजना के सन्दर्भों में ही इस परियोजना को अगर समझें तो 280 मीटर ऊँची यह बाँध परियोजना मध्य हिमालय का बड़ा हिस्सा डुबाएगी। यहाँ कुछ प्रश्न विचारणीय हैं। टिहरी बाँध जैसी विस्थापन की अनुत्तरित समस्याएं और पर्यावरण का कभी सही नहीं होने वाला विनाश जिसमें हजारों, लाखों पेड़ काटेंगे और डूबेंगे यहंा भी होगा। इसके बारे में प्रकृति को समझने वाले वैज्ञानिक और पर्यावरणविद्ों सहित लोग आंदोंलनकारी करते भी रहे है।
यहाँ विस्थापन और पर्यावरण की उपजने वाली समस्याओं की लम्बी सूची दोहराने की कोई जरुरत नहीं लगती है न जाने कितने टन विस्फोटकों का उपयोग होगा जिससे हिमालय का यह हिस्सा और कमजोर होने वाला है। हमारी समझ यह क्यों नहीं समेट पाती कि एक वर्ष पहले उत्तराखंड में जो त्रासदी हुई उसमे बांधों का बड़ा योगदान रहा है। जहाँ आज भी अलकनंदा पर बने विष्णुप्रयाग बाँध की सुरक्षा दीवारें बहती जा रहीं हैं। जिसमे गुणवत्ता का प्रश्न तो है ही किन्तु किसी न किसी तरह बाँध को पूरा करना और उससे बिजली उत्पादन की जिद्द भी है।
हम सब जानते है कि हिमालय नया पर्वत है इसके पहाड़-पहाड़ियां कच्चें हैं। पंचेश्वर बांध परियोजना भी भूकम्पीय क्षेत्र के अंतर्गत है जो कि खतरे से भरपूर है। बड़े बांधो की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट बहुत कमजोर बनाई जाती है। नियमों कानूनों की अवहेलना कर मात्र किसी तरह बांध को आगे बढाना की उनका प्रमुख सोच हैं। परियोजना वाले चाहे कोई भी कम्पनी/निगम हो वो जानकारी छुपाते है और परियोजनाओं को विकास के लिये, नये शहरों की बिजली की जरुरतों जबरन लादा जा रहा हेै।
पंचेश्वर बांध परियोजना जिसमें 280 मीटर ऊँचा बाँध प्रस्तावित है क्या-क्या समस्याएं पैदा होंगी उनकी गिनती टिहरी बाँध की समस्याओं का उदाहरण देखकर की जा सकती है। जुलाई 2006 में टिहरी बाँध का उद्घाटन हुआ किन्तु सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के कारण आज भी टिहरी बाँध पूरी तरह नहीं भरा सका है। टिहरी बाँध के जलाशय के सब ओर के गांव धसक रहे हैं। जिनका भू-गर्भीय परीक्षण कभी ईमानदारी से पूरा नहीं किया गया था। यदि पंचेश्वर बाँध में ऐसा सबकुछ ईमानदारी से किया भी जाने वाला है तो यह बाँध अपने में एक बहुत बड़ा अकल्पनीय समस्याआंे का जनक रहेगा। क्यों इस तथ्य को भूला दिया जा रहा है कि पंचेश्वर बाँध जिस महाकाली नदी पर प्रस्तावित है उसकी प्रमुख सहायक धौली गंगा पर पिछले वर्ष जून 2013 में एनएचपीसी का बाँध बनने के बाद भी आज बर्बाद पड़ा है। साथ ही ऐला तोक जैसे ना जाने कितने रिहायशी इलाकों को भी बर्बाद कर चुका है। सरकारें या नेता बदलने के बाद बातें भी बदल जाती है। टिहरी बांध की समस्याओं को देखते हुये ये तत्तकालीन सरकार ने ये कहा की अब हम टिहरी जैसा बांध और नही बनायेंगे। माटू जनसंगठन ने तब भी यह बात उठाई थी की क्या वे पंचेश्वर बांध परियोजना, यमुना पर किसाउ आदि परियोजना को हमेशा के लिये छोड़ देने की बात कर रहे है? पर इन शब्दों की गारंटी क्या होती है मालूम पड़ गई।
हम क्यों भूल जाते हैं कि प्रकृति सन्देश बार बार देती है और फिर उसके बाद भीषण तबाही लाती है।
हमारे देश का जल संसाधन मंत्रालय बखूबी जानता है कि आजतक किसी भी बाँध में जब प्राकृर्तिक और ंमनुष्य जनित समस्याआंे का समाधान नहीं हुआ तो फिर नए बाँध में कैसे संभव होगा? फिर चूंकि पंचेश्वर बाँध इसी मध्य हिमालय में स्थापित है। इसलिये टिहरी और धौलीगंगा जलविद्युत परियोजनाओं के उदाहरणों को सामने रखना होगा।
हमें नही भूलना चाहियें कि हिमालय में ‘‘विस्थापनहीन-पर्यावरण संरक्षण वाला विकास‘‘ सही व स्थायी विकास मंत्र सिद्ध होगा।
विमलभाई, पूरण सिंह राणा आलोक पंवार
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पंचेश्वर बांध परियोजनाः हिमालय में नये खतरे की शुरुआत
नेपाल ने 15.95 करोड़ रुपये पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत व्यवस्था के लिये दिये है। अगले एक साल में इस बांध की सारी बाधायें दूर करके शुरुआत कर दी जायेगी ऐसा नेपाल सरकार का कहना है। नेपाल स्थित कंचनपुर के पहले कार्यालय में 6 भारतीय व 6 नेपाली अधिकारी होंगे। क्षतिग्रस्त और नाजुक परिस्थिति वाले हिमालय में यह एक नये खतरे की शुरुआत है।
नेपाल ने यह हिम्मत जुटाई है हमारे प्रधानमंत्री जी कि पहली नेपाल यात्रा के बाद। अपनी पहली नेपाल यात्रा में प्रधानमंत्री जी ने पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत का तोहफा नेपाल को दिया। याद रखना चाहिये की माओंवादी सरकार बनने के बाद जब नेपाल के तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री प्रचण्ड दहल भारत आये थे तो टिहरी बाँध देखकर बहुत खुश हुए थे और नेपाल में बड़ें बांधों की हिमायत कर बैठे थे। उन्होनंे सिर्फ टिहरी बांध देखा था वे उसमें डूबे शहर और गांवों के लोगों से ना तो मिले, ना ही उनकी समस्याओं से परिचित हुये थेे। इस बार हिमालय के सुंदर देश नेपाल में जब हमारे नये चुने गये प्रधानमंत्रीजी गए तो उन्हंे बड़े बांध बना कर बिजली बेचने की सलाह के साथ, पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत की घोषणा भी कर आये है।
किसी छोटे देश में बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष का जाना कोई बड़ी परियोजना की सौगात देना जरुरी जैसा माना जाता है। 1986 में जब रूस के राष्ट्राध्यक्ष र्गोबाचोव जब भारत आये थे तो टिहरी बाँध में उनके देश द्वारा तकनीकी और आर्थिकीय दोनो सहयोग की बात की गई। उत्तराखंड के निवासी, विस्थापितों का पुनर्वास सभंव नही हो पाया है। पर्यावरण की तो अपूर्णीय क्षति हाल में 2013 की आपदा में हम देख ही चुके है।
टिहरी बांध परियोजना के सन्दर्भों में ही इस परियोजना को अगर समझें तो 280 मीटर ऊँची यह बाँध परियोजना मध्य हिमालय का बड़ा हिस्सा डुबाएगी। यहाँ कुछ प्रश्न विचारणीय हैं। टिहरी बाँध जैसी विस्थापन की अनुत्तरित समस्याएं और पर्यावरण का कभी सही नहीं होने वाला विनाश जिसमें हजारों, लाखों पेड़ काटेंगे और डूबेंगे यहंा भी होगा। इसके बारे में प्रकृति को समझने वाले वैज्ञानिक और पर्यावरणविद्ों सहित लोग आंदोंलनकारी करते भी रहे है।
यहाँ विस्थापन और पर्यावरण की उपजने वाली समस्याओं की लम्बी सूची दोहराने की कोई जरुरत नहीं लगती है न जाने कितने टन विस्फोटकों का उपयोग होगा जिससे हिमालय का यह हिस्सा और कमजोर होने वाला है। हमारी समझ यह क्यों नहीं समेट पाती कि एक वर्ष पहले उत्तराखंड में जो त्रासदी हुई उसमे बांधों का बड़ा योगदान रहा है। जहाँ आज भी अलकनंदा पर बने विष्णुप्रयाग बाँध की सुरक्षा दीवारें बहती जा रहीं हैं। जिसमे गुणवत्ता का प्रश्न तो है ही किन्तु किसी न किसी तरह बाँध को पूरा करना और उससे बिजली उत्पादन की जिद्द भी है।
हम सब जानते है कि हिमालय नया पर्वत है इसके पहाड़-पहाड़ियां कच्चें हैं। पंचेश्वर बांध परियोजना भी भूकम्पीय क्षेत्र के अंतर्गत है जो कि खतरे से भरपूर है। बड़े बांधो की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट बहुत कमजोर बनाई जाती है। नियमों कानूनों की अवहेलना कर मात्र किसी तरह बांध को आगे बढाना की उनका प्रमुख सोच हैं। परियोजना वाले चाहे कोई भी कम्पनी/निगम हो वो जानकारी छुपाते है और परियोजनाओं को विकास के लिये, नये शहरों की बिजली की जरुरतों जबरन लादा जा रहा हेै।
पंचेश्वर बांध परियोजना जिसमें 280 मीटर ऊँचा बाँध प्रस्तावित है क्या-क्या समस्याएं पैदा होंगी उनकी गिनती टिहरी बाँध की समस्याओं का उदाहरण देखकर की जा सकती है। जुलाई 2006 में टिहरी बाँध का उद्घाटन हुआ किन्तु सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के कारण आज भी टिहरी बाँध पूरी तरह नहीं भरा सका है। टिहरी बाँध के जलाशय के सब ओर के गांव धसक रहे हैं। जिनका भू-गर्भीय परीक्षण कभी ईमानदारी से पूरा नहीं किया गया था। यदि पंचेश्वर बाँध में ऐसा सबकुछ ईमानदारी से किया भी जाने वाला है तो यह बाँध अपने में एक बहुत बड़ा अकल्पनीय समस्याआंे का जनक रहेगा। क्यों इस तथ्य को भूला दिया जा रहा है कि पंचेश्वर बाँध जिस महाकाली नदी पर प्रस्तावित है उसकी प्रमुख सहायक धौली गंगा पर पिछले वर्ष जून 2013 में एनएचपीसी का बाँध बनने के बाद भी आज बर्बाद पड़ा है। साथ ही ऐला तोक जैसे ना जाने कितने रिहायशी इलाकों को भी बर्बाद कर चुका है। सरकारें या नेता बदलने के बाद बातें भी बदल जाती है। टिहरी बांध की समस्याओं को देखते हुये ये तत्तकालीन सरकार ने ये कहा की अब हम टिहरी जैसा बांध और नही बनायेंगे। माटू जनसंगठन ने तब भी यह बात उठाई थी की क्या वे पंचेश्वर बांध परियोजना, यमुना पर किसाउ आदि परियोजना को हमेशा के लिये छोड़ देने की बात कर रहे है? पर इन शब्दों की गारंटी क्या होती है मालूम पड़ गई।
हम क्यों भूल जाते हैं कि प्रकृति सन्देश बार बार देती है और फिर उसके बाद भीषण तबाही लाती है।
हमारे देश का जल संसाधन मंत्रालय बखूबी जानता है कि आजतक किसी भी बाँध में जब प्राकृर्तिक और ंमनुष्य जनित समस्याआंे का समाधान नहीं हुआ तो फिर नए बाँध में कैसे संभव होगा? फिर चूंकि पंचेश्वर बाँध इसी मध्य हिमालय में स्थापित है। इसलिये टिहरी और धौलीगंगा जलविद्युत परियोजनाओं के उदाहरणों को सामने रखना होगा।
हमें नही भूलना चाहियें कि हिमालय में ‘‘विस्थापनहीन-पर्यावरण संरक्षण वाला विकास‘‘ सही व स्थायी विकास मंत्र सिद्ध होगा।
विमलभाई, पूरण सिंह राणा आलोक पंवार
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Pancheshwar
dam project:
Nepal
has granted an amount of 15.95 crore for starting the Pancheshwar dam
project and seeks to commission the project with all the defects
removed. Initially there will be 6 Indians and 6 Nepali officials in
the office. Office will be in Kanchanpur Nepal. This is nothing but
the start of a new danger in an already dilapidated and precarious
Himalayas.
Nepal
has been able muster this courage only after the visit of our Prime
Minister where he gifted this project to Nepal. It must be
remembered that after the Maoist government came to power in Nepal,
the then Prime minister visited India and having got impressed by the
Tihri dam, he advocated construction of such dams in Nepal as well.
The Nepali prime minister, only saw the dam never met the effected
people or the drowned villages. Recently when Indian prime minister
visited Nepal he advised building of such dams and sale of
electricity and announced the Pancheshwar dam project.
Whenever
the head of government of a big country visits a smaller country,
announcement of big projects is almost customary. Similar
announcement with respect to technical and economic support for Tehri
dam was also announced by Gorbachev from Russia when he visited in
1986. People from Uttarakhand and other displaced people have not yet
been rehabilitated and environment has been damaged beyond repair the
effects of which were already seen in 2013 disaster.
If
the this new project is understood in relation to the Tehri dam
project itself then this 280 meter high project will drown a big area
of central Himalaya. Here some questions must be deliberated.
Unanswered problems of displaced people and irreparable damage to the
environment because of large scale felling of trees will happen here
as well. In this regard environmentalists and other scientists have
been constantly protesting.
It
is not necessary to repeat the long list of damages which may be
caused to the Himalayas and the displaced people due to large scale
use of explosives which will weaken the said area of Himalaya. It is
baffling to see that why we cannot understand that dams had a huge
role to play in the disaster of 2013 in Uttarakhand where the
security walls at Alakhnanda river are flowing away even today where
apart from qualitative issues in the construction of such walls, the
insistence on construction of dams at the earliest and production of
electricity is also there.
We
all know that Himalaya is a new mountain and its rocks are not that
strong. Pancheshwar dam project is also located in the earthquake
prone area which further multiplies the risk. The environment impact
assessment report of such big dams project is also weakly drawn up
and rules are regularly flouted to constructed such dams. Whichever
company is awarded the contract, they hide the information to develop
the project and needs of electricity in towns is given as an excuse
for commissioning of such projects.
What
all problems may arise from the Pancheshwar dam project can be seen
from the damages inflicted by Tehri dam itself. Tehri dam was
inaugurated in July 2006 but because of the directives of the Hon’ble
Supreme Court of India, it has not yet filled to its capacity. All
villages around the reservoirs of Tehri dams are sinking. No
geological examination of these effects were never carried out. Even
if such assessments are examinations are made in the Pancheshwar dam
project, it will still be the cause of several monumental problems in
the region. Why is the fact that NHPC dam constructed in June 2013 on
the major tributary of Mahakali river (on which the project is
proposed) Dhauli Ganga is still lying unused, being ignored. Also it
has already devastated many residential areas like Ela Tok.
After
having seen the problems of Tehri dam, the state government said that
it will not be constructing such dams anymore. Matu Jansangathan had
even then raised the question that whether this should be taken to
mean that Pancheshwar dam project and other similar project will be
shelved forever. But the value of such words is now apparent.
Why
do we forget that fact that nature first gives signals and then
wreaks devastation?
Our
water ministry only knows it too well that if the environmental and
other related problems caused by previous dam project were not solved
then there is no reason to believe that the same will be done with
respect to Pancheshwar dam projects. Therefore since the Pancheshwar
dam project is situated in central Himalayas we will have to present
the examples of Tehri and Dhauliganga projects.
We must not forget
that in Himalayas only such developmental project will be appropriate
and correct which is not accompanied with displacement and
environmental damage.
Vimalbhai, Puransingh Rana, Alok Panwar
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