हिन्दी प्रैस नोट नीचे दिया है।
Environment violations are continued by Jaypee Company in Vishnuprayag Hydro Electric project on River Alaknanda in Uttarakhand. It is a well known truth that on 16th-17th June, 2013 the gates of the Vishnuprayag Hydro Electric Project was not opened by the JAYPEE Company due to which a lot of muck got accumulated in the dam reservoir and a lake was formed which broke gates and created lot of destruction in the villages at the dam downstream. This also caused huge destruction to the environment. There is no plan yet to compensate this damage.
Environment violations are continued by Jaypee Company in Vishnuprayag Hydro Electric project on River Alaknanda in Uttarakhand. It is a well known truth that on 16th-17th June, 2013 the gates of the Vishnuprayag Hydro Electric Project was not opened by the JAYPEE Company due to which a lot of muck got accumulated in the dam reservoir and a lake was formed which broke gates and created lot of destruction in the villages at the dam downstream. This also caused huge destruction to the environment. There is no plan yet to compensate this damage.
Even after continued
agitations and reminder to government officials by affected people,
the JAYPEE Company has not started following environmental safeguards
of the region affected by the debris of the dam project while
clearing the dam reservoir. No attention is being paid for the future
protection of the areas downstream of the dam.
“Vishnuprayag
Bandh Aapda Prabhavit Sangh” wrote a letter to Chief
Conservator of Forests, Uttarakhand and District Forest Officer Mr.
Rajeev Dhimanji about this continuing violation demanding “necessary
steps to stop this, otherwise we will be left with no other choice
but to stop this wrong doing on our own.” This letter was signed by
Kishor Panwar, Navin Chowhan, Nikhil Panwar, Govind Panwar and
others.
They wrote in the
letter that this violation has been published in various newspapers
and TV channels many times. On 29th November, 2013 the
District Forest Officer went to examine the site. He told us that in
October the forest department fined the JAYPEE Company Rs. 1 lakh. He
also said that, District Forest Officer is responsible to decide the
amount of the fine.
There has been no
change in the condition of the above specified area from October till
now. Instead, the JAYPEE Company is violating the environmental
standards and depositing the debris everywhere, including the river
Alaknanda. It seems, as if they have bought the license of violating
environmental standards by paying the Rs. 1 lakh fine. From 29th
November till today no move has been made by the District Forest
Officer Rajeev Dhiman to stop this.
The Central
Environmental and the Forest Ministry and the Government
administration of Uttarakhand is not taking any action against this
which is quite surprising to us. Matu Jansagthan also filed a case in
National Green Tribunal on environment violation done by the project
proponent of Vishnupryag HEP. The interim order in the last hearing
on 20 November, the National Green Tribunal says -
“Despite service,
nobody is present on behalf of Ministry of Environment and Forests
(for short ‘MoEF’). It is strange phenomenon that despite oral
directions, letters written to the MoEF and the matter being
mentioned in the Meeting where Joint Secretary, Mr. Surjit Singh was
present, nobody is appearing on behalf of the MoEF in the case.
Presence of MoEF in this matter, which is of very serious
consequences in relation to dumping of muck in the river Alaknanda,
is essential before the Tribunal. It may be noticed that despite
service and information, Counsel are not appearing in number of
cases. Let Joint Secretary, Mr. Surjit Singh, who is dealing with the
affairs of National Green Tribunal, be personally present in this
case on the next date of hearing and shall produce the records in the
case.”
And JAYPEE Co. has
not yet filed their reply in this case. They are taking more time. It
shows that they are playing their tactics to delay the matter. This
is a major question which is related directly to the future of the
affected areas.
On the international
day for Human Rights we declare we will fight from ground to court
for justice.
Vimalbhai, Dinesh Panwar
जेपी
कंपनी अलकनंदा की हत्या बंद
करों:
लोग
स्वंय कदम उठायेंगे
हरित
प्राधिकरण का आदेश अगली सुनवाई
में पर्यावरण मंत्रालय के
सह-सचिव
स्ंवय आये
जेपी
कंपनी द्वारा उत्तराखंड में
अलकनंदा नदी पर विष्णुगाड
बांध परियोजना में पर्यावरण
मानको का उल्लघन जारी है। यह
स्ािापित सदस्य है कि अलकनंदा
नदी पर कार्यरत विष्णुगाड
बांध परियोजना में 16-17
जून,
2013 में
परियोजना प्रायोक्ता जेपी
कंपनी के द्वारा बांध के गेट
ना खोले जाने के कारण बांध
जलाशय में पत्थर और मिट्टी
आदि भर गये थे और फिर लगभग 1.5
किलोमीटर
लम्बी झील बनी और फिर टूटी
जिसके कारण बाध्ंा के नीचे
के गांवों में बहुत क्षति हुई
थी। साथ ही इसमें बहुत बड़े
स्तर पर पर्यावरणीय क्षति भी
हुई। जिसकी भरपाई की भी कोई
योजना नही है।
लोगों
द्वारा लगातार धरना प्रदर्शन
और सरकार को बताने के बाद भी
जेपी कंपनी के द्वारा बांध
खाली करने की जल्दी में मलबे
को आस-पास
के क्षेत्र बिना किसी भी तरह
के पर्यावरण मानकों का ध्यान
रखे डाला जा रहा है। बांध के
नीचे के क्षेत्र की भविष्य
के लिये सुरक्षा को भी नही
देखा जा रहा है।
विष्णुप्रयाग
बांध आपदा प्रभावित संघ ने
इस बारे में मुख्य वन संरक्षक,
उत्तराखंड
और चमोली जिला वन अधिकारी श्री
राजीव धीमान जी को पर्यावरण
मानको के उल्लघंनों पर पत्र
लिखा है। जिसमें यह मांग की
गई है कि ‘‘तुरंत कार्यवाही
के तहत कदम उठाने की मांग करते
है वरना हमें मजबूर होकर स्वंय
यह गलत काम रोकना होगा।‘‘ पत्र
पर नवीन चौहान,
किशोर
पंवार,
गोविंद
पंवार,
अखिल
पंवार व अन्य के हस्ताक्षर
है।
उन्होने
पत्र में लिखा है कि यह उल्लघंन
कई बार विभिन्न दैनिक अखबारों
और टी.
वी.
चैनलों
पर भी दिखाये जा चुके है। 29
नवंबर,
2013 को
जिला वन अधिकारी श्री राजीव
धीमान जी स्वंय मौके पर गये।
बातचीत में उन्हांेने बताया
की अक्तूबर में वन विभाग ने
जेपी कंपनी पर एक लाख रुपये
का जुर्माना लगाया था। जुर्माने
का आधार स्वंय जिला वन अधिकारी
पर निर्भर करता है ऐसा उन्होने
बताया।
किन्तु
अक्तूबर से आज तक परिस्थिति
में कोई अंतर नही आया हैै।
बल्कि जेपी कंपनी तेजी से
पर्यावरण मानकों का उल्लंघन
करते हुये मलबे को नदी समेत
सब जगह फेंक रही है। ऐसा लगता
है कि एक लाख रुपये देकर उन्होने
पर्यावरण मानकों के उल्लंघन
का लाईसेंस ले लिया हो। 29
नंवबर
से आज तक जिला वन अधिकारी श्री
राजीव धीमान की ओर से इस पूर्णरुप
से गलत कार्य को रोकने की कोई
कार्यवाही नही हुई है।
केंद्रीय
पर्यावरण एंव वन मंत्रालय और
उत्तराखंड शासन-प्रशासन
का इस पर कोई कार्यवाही ना
करना बडे़ आर्श्चय विषय है।
माटू जनसंगठन ने राष्ट्रीय
हरित प्राधिकरण में जेपी कंपनी
द्वारा किये जा रहे पर्यावरण
मानकों के उल्लंघन पर केस दायर
किया है। 20
नवंबर
को सुनवाई के बाद अपने अंतरिम
आदेश में न्यायाधीश स्वतंत्र
कुमार जी की अध्यक्षता वाली
पीठ ने कहा की अलकनंदा नदी में
मलबा डालने जैसे गंभीर विषय
पर भी पर्यावरण एंव वन मंत्रालय
की ओर से किसी वकील के ना आना
आश्चर्य है। अगली तारिख पर
उन्होंने मंत्रालय के राष्ट्रीय
हरित प्राधिकरण संबधी सह-सचिव
श्री सुरजीत सिंह को इस केस
से संबधित रिकार्ड के साथ
हाजिर रहने का आदेश दिया।
जेपी
कंपनी ने भी इस केस में कोई
जवाब दाखिल नही किया वो जवाब
में जानबूझ कर देरी कर रहे है।
दूसरी तरफ झील खाली करने का
काम तेजी से चालू है। यह प्रश्न
लोगो व क्षेत्र के भविष्य से
सीधा जुड़ा है। हम न्याय मिलने
तक जमीन से लेकर न्यायालय तक
लड़ेगे।
विमलभाई
दिनेश पंवार
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