अब दूसरी तबाही की
तैयारी रोको
उत्तराखंड में मानसून
के आरंभ में ही जो नुकसान हुआ है उसमें बांधों की बड़ी भूमिका है। राजय सरकार ने
लगातार बांधो में हो रहे पर्यावरणीय मानको की अनदेखी की है। जिसका परिणाम है कि इस
आपदा में बांधों के कारण नुकसान की मात्रा काफी बड़ी। राज्य सरकार भविष्य में यह
गलती ना दोहराये और बांध कंपनियों को उनके दोषों की सजा मिले तभी उत्तराखंड का पर्यावरण और लोग
सुरक्षित रह पायेंगे। हाल की बाढ़ में ये बांध असमय के बम साबित हुए है। टाईम बम का
तो समय निश्चित होता है। किन्तु इन बांधों का कोई समय नहीं होता तबाही लाने के लिए।
16-17 जून
की रात को बद्रीनाथ जी के नीचे अलकनंदागंगा पर बना जेपी कंपनी का बांध, दरवाज़े ना खोलने के कारण टूटा फिर नदी ने बांध के नीचे के क्षेत्र
में भयंकर तबाही मचाई। लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बहने से जो नुकसान हुआ उसका मुख्य कारण
था समय रहते जयप्रकाश कम्पनी द्वारा विष्णुप्रयाग बांध के दरवाजे ना खोलना।
विष्णुप्रयाग बांध से
कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के
बाजार की दुकाने बह गई थी। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नही दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के उपर चांई व
थैंग गांव 2007 में धंस गये जिसके
लगभग 30 परिवार आज भी बिना पुर्नवास के भटक रहे हैं।
इसी बांध के उपर जी.एम.आर. का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके
लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई
तक हस्तांतरित नहीं किया था किन्तु वन कटान का काम द्रुतगति से चालू हो गया था। वो
पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। जिसने नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी
भूमिका अदा की।
इसी नदी में
विष्णुप्रयाग बांध से लगभग 200 कि.मी. नीचे, भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. उपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से
बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकति को सुधारे या
उसमें बदलवायें 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की उंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई। 1985 में 65 मी. बांध के साथ 200 मेगावाट की बांध स्वीकृति मे तमाम खामियंा थी। अनेकों मुकद्दमें
उच्चन्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण
में इन्ही विषयों चालू है। इन सब जगह उठाई गई आशंकायें पूरी तरह से सिद्व हुई जब
इस बांध का पांच लाख टन मलबा जिसे बांध के ठीक नीचे बिना सुरक्षा दीवार बनाये डाला
गया था, पानी के साथ बह कर 70 घरों
आदि में घुस गई। 16-17 जून 2013 में उपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का
फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युृत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी0 वी0 के0 के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का
अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था।
इस दौरान बांध के गेेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि
बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाब बड़ने लगा तो बांध को
टूटने से बचाने के लिये जी0 वी0 के0 कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिये बांध के
गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी
प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी0 वी0 के0 कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही।
इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर के शक्तिबिहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मौहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस0एस0बी0, आई0टी0आई0, रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र
टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई।
अलकनंदागंगा की
सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल
हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग
और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की
तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यो पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का
गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नही हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा हैं इस मलबें ने पानी की विनाशकारी
शक्ति को बढ़ाया है।
विष्णुप्रयाग और
श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बबार्दी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में
एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी
कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। सरकारी अधिकारियों का भी यही
रवैया था। यहंा प्रभावित याचक और सरकार दानी बनी।
ज्ञातव्य है कि मात्र
10
महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनो मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की
अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महिने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त
2012
को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व
अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में
मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से
प्रभावित हुये, छोटे-छोटे
रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी
भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला।
मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से तेजी से पानी आया तो
उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। बाद में
अचानक से बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों
क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गये। मनेरी भाली चरण दो के
जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिये
बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारे, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारांे को बनवाने के लिए
लोगों ने काफी संघर्ष किया था। दिवारे पूरी नही बन पाई थी। इस वर्ष की वर्षा में
जोशियाड़ा का सैकड़ो मीटर लम्बा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया
जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है।
13 सितंबर 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों
पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहंा एशियाई विकास बैंक यानि
एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और
मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाये बन रही है। इन परियोजनाओं के निमार्ण कार्य के
कारण ही अनेक गांवो की स्थिति खराब हुई है।
टिहरी बांध झील में
अस्सीगंगा के टूटे बांधों, सारा मलबा जमा है। यह
बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ रूकी जो पूर्वतयाः बांधों से हुए नुकसान को
ढापने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिये 15 से 18 जून की तेज वर्षा से
अब तक लगातार झील में पानी रोका गया। केेंद्रिय जल आयोग के नियमों का पालन न करते
हुये, बांधों को सही सिद्ध ठहराने के लिये की गई इस
कोशिश का नतीज़ा यह है कि आज टिहरी बांध की झील मंे लगातार बढ़ता पानी देवप्रयाग-हरिद्वार-ऋषिकेश और अन्य
मैदानी क्षेत्र में बाढ़ काला रहा है और बड़ी बाढ़ का कारण बनने वाला है।
जो बांध टूटे है उन
बांध कपंनियों की चिंता है कि कैसे भी बांधों की मरम्मत का काम शुरू किया जाये। वे
भी सरकार से आपदा के तहत सैकड़ो करोड़ो रुपयों की मांग कर रही है। जबकि बांध
कंपनियों ने सुरक्षा प्रबंधों को की पूर्ण अनदेखी की है। बांधों के खिलाफ लगातार
आंदोलन चले है। किन्तु हरबार विकास विरोधी का तगमा देकर और कुछ लोगो को रोजगार
देकर विरोध को छल-बल से दबा दिया जाता
रहा। आज वहां की बबार्दी पर ये सब ‘‘विकास‘‘ के समर्थक मौन हैं।
हमारी मांग है किः-
अलकनंदा नदी पर बनी 1). विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट), 2). श्रीनगर जलविद्युत
परियोजना (330 मेगावाट), अस्सी गंगा पर निमार्णाधीन 3). कल्दीगाड
जलविद्युत परियोजना व 4). अस्सी गंगा चरण एक 5). अस्सी गंगा चरण दो जलविद्युत परियोजनाओं, भागीरथीगंगा
पर बनी 6). मनेरी भाली चरण दो जलविद्युत परियोजनाओं, कालीगंगा पर 7). कालीगंगा चरण प्रथम, 8). कालीगंगा चरण द्वितीय और मद्महेश्वर नदी पर 9). मद्महेश्वर जलविद्युत
परियोजनाओ मंदाकिनी नदी पर 10). फाटा ब्योंग
जलविद्युत परियोजना 11). सिंगोली भटवाड़ी
जलविद्युत परियोजनां की निर्माता कंपनियों पर उपरोक्त तबाही के लिये राज्य सरकार
द्वारा आपराधिक मुकद्दमें कायम किये जाये।
विमलभाई पूरण सिंह राणा हरीश
चौहान प्रेमवल्लभ