प्रैस विज्ञप्ति 24-6-2013
15 जून के लगभग उत्तराखण्ड में मानसून के आगमन से पहले ही बर्बादी आई। तीन दिन लगातार बारिश होती रही, नदियां, नाले भयंकर रूप से उफने, पहाड़ सरके, जहां पर कभी मैदान था, जहां पर कभी हरियाली थी, वहां पर अचानक से नये स्त्रोत फूटें, और इन सब के बीच में उत्तराखण्ड में चल रही चार धाम की यात्रा की जोर-शोर की रौनक अचानक एकाएक रूक गयी। हजारों यात्री जगह-जगह फंसें। उनको लाने का काम भी उतनी तेजी से नहीं हो सकता था क्योंकि रास्ता बुरी तरह टूटे थे। किन्तु जितनी तेजी से हो भी सकता था वो नही हुआ। हैलीकॉप्टर ही एक साधन बनता है। किन्तु हर समय देहरादून में हैलिकॉपटरों के लिये तेल की उपलब्धता भी नही रही। 19 से 23 तक का जो सांस लेने का समय सरकार को मिला था उसका पूरा इस्तेमाल नही हो पाया है। अब वर्षा फिर शुरु हो गई है।
सैटेलाईट फोन, तापोलिन यानि प्लास्टिक के हल्की बड़ी चादरें आदि जंहा रास्ते टूटे है वहंा 19 से 23 तक पंहुचाने चाहिये थे जो नही पंहुचाये गये। मोबाईल टॉवरों को बिजली ना होने की दशा में प्रचुर मात्रा में डीजल तक का प्रबंध सरकार ने नही किया हुआ था। लोगो को इस परिस्थिति में कैसे व्यवहार करना चाहिये ऐसी घोषणा-ब्यान तक सरकार लोगो को पर्चा, टी0वी0 आदि के माध्यम से नही पंहुचा पाई। जो कि राज्य और केन्द्र सरकार की आपदा प्रबंधन योजना की पूरी पोल खोल कर रख देता है।
प्राकृतिक आपदा को तो नही रोका जा सकता था। किन्तु यदि बांध ना होते और नदी का रास्ता हमने खाली छोड़ा होता तो आपदा के बाद हो रही तबाही को काफी कम किया जा सकता था। इस सारे प्रकरण से हमे प्रकृति के संकेत और अपनी गलतियों को समझना होगा। यह समय है हमें पूरी ईमानदारी से गलतियों को समझ कर आगे की योजना बनाने का। यह भी समझना चाहिये की आज जो नुकसान हुआ है उसकी तैयारी सरकार ने ही की थी।
नदी किनारों पर राज्य सरकार की कोई निगरानी नही है। होटलों से लेकर तमाम तरह के मकान आदि बनाने के लिये किसी तरह के किसी नियम का पालन नही किया गया मालूम पड़ता है। 4 से 5 भूकंप जोन वाले क्षेत्र में, नदी के किनारों पर मकान/होटल बनाने की इजाजत किसने दी?
आपदा की पूरी परिस्थिति में राज्य सरकार पंगु और अपने ही राज्य के नागरिको के सामने शर्मसार नजर आई है। ‘सरकार/प्रशासन नही नजर आया‘ यह वाक्य राज्य में आये तीर्थ यात्रियों से लेकर राज्य राज्य हर नागरिक की जबान पर आया है। सरकार जिस आपदा प्रबंधन पर सेमिनार-विदेश यात्रायें करती रही है उसके लिये जमीनी स्तर पर कुछ नही दिखा है। किसी तीर्थ स्थल पर कोई आपात्तकालिन परिस्थिति के मुकाबले गांवों में कोई ट्रेनिंग या बचाव के साधन नही उपलब्ध है। जिससे संपत्ति नुकसान कॉफी हुआ है। ऐसा कोई तंत्र भी विकसित नही किया गया। जबकि तीर्थयात्रियों की सख्ंया प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।
मैदानी क्षेत्र जैसा ही ढांचागत विकास पहाड़ गलत साबित हुआ है। छोटे राज्य में सत्ता की धरपकड़, आत्मप्रचार और बांध से लेकर कोका कोला कंपनियों की तरफदारी से ही राजनेताओं को फुर्सत नही हो पा रही है कि वे राज्य के सही विकास की ओर ध्यान दें। वे विकास को बड़े ढ़ांचे बनाने तक ही सीमित मानते है।
राज्य के वन विभाग पर भी बड़ा प्रश्न है। बांधों के बनने के समय जलसंग्रहण क्षेत्र में होने वाले वनीकरण, चकबांध आदि का ना होना। भागीरथीगंगा व अलकनंदागंगा अधिक गाद वाली नदी के रुप में जानी जाती है।
चारों की तीर्थ बहुत संवेदनशील इलाको में है। वहंा जिस तरह से निर्माण हुआ है वो केदारनाथ में खतरनाक सिद्ध हुआ है। गंगोत्री-यमुनोत्री के रास्ते टूट गये हैं। हजारों लोग वहंा फंसे थे।
अभी गंगोत्री और बद्रीनाथ से यात्रियों को निकाला जा रहा है। भागीरथीगंगा में उत्तरकाशी शहर में खाने के लंगर लगे है। और उपर रास्ते में स्थानीय लोगो ने व भटवाड़ी से नीचे माटू जनसंगठन के साथियों ने भी यात्रियों को स्थानीय संसाधनों से खाद्य सामग्री मुहैया कराई।
दरअसल चारधाम की तीर्थयात्रा को यात्रा को धर्म के नाम पर पर्यटन में बदल दिया गया है। साधु संत वहंा कथाओं का आयोजन करते है। गंगोत्री में वही कथा सुनने वाले ज्यादा संख्या में फंसे थे। पिछले कुछ वर्षो में चारधाम तीर्थ यात्रा और हेमकुण्ड साहिब की यात्रा को बढ़ावा खूब दिया गया है, जो लोगो की आमदनी का कुछ साधन भी बनी। किन्तु पर्यटन से आय के नाम पर जो अनियोजित निर्माण, सड़के बनी है उसके कारण यह नुकसान बहुत ज्यादा हुआ है। निर्माण स्वीकृति देने में हुये आर्थिक भ्रष्टाचार को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है। कुछ के फायदे के कारण आज हजारों की जान गई है, हजारों यात्री फंसे पड़े है। स्थानीय लोगो का भविष्य भी बहुत बिगड़ा है। पहले की पैदल यात्रा के स्थान पर हर तीर्थ पर सड़के ले जाना और भयंकर गति से निर्माण ने स्थिति को और बिगाड़ा है।
हिमालय की पारिस्थितिकी बहुत ही नाजुक है। भविष्यवाणी करना असंभव होता है। वैसे भी सरकार के पास इसकी कोई व्यवस्था तक नही है। इस दुर्घटना में यह निकल कर आया है। जो कि खतरनाक सिद्ध हुआ है। 2010 से लगातार उत्तराखंड में बादल फटना, भूस्खलन और बाढ़ आ रही है। किन्तु प्रकृति के इस संदेश को ना समझने की भूल का नतीजा आज सामने है। अभी भी समझना होगा।
विकास (जो कि वास्तव में कुछ ही लोगो का होता है) के नाम पर हम उत्तराखंड के निवासियों की जान और पर्यावरण को कब तक खतरें में डालेगें? और देखे कि लोकसभा के चुनाव का खर्चा इस आपदा में नही निकलना चाहिये।
विमलभाई पूरणसिंह राणा
समंवयक
संलग्नः-उत्तराखंड में 14 से 18 तक तेज वर्षा और बादल फटने पर रिपोर्ट
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तबाही की दांस्ता----
भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा और उनकी सहायक नदियों प्रमुख रुप से अस्सीगंगा, भिलंगना, बिरहीगंगा, मंदाकिनी, पिडंरगंगा नदियों के किनारे के होटल, दुकानें, घर आदि गिरे, पहाड़ दरके, सड़के टूटी जिससे हजारों की संख्या में वाहन बह गये, कई स्थानों पर नदी में तेजी से गाद की मात्रा आई जो बाढ़ के साथ बस्तियों में घुसी, अनियंत्रित तरह से बनी पहाड़ी बस्तियंा बही।
(चूंकि केदारघाटी की चर्चा बहुत आ रही है। इसलिये वहंा के बारे में यहंा नही लिखा है।)
अलकनंदागंगा से--
बद्रीनाथ के लगभग 55 किलोमीटर नीचे जोशीमठ से अलकनंदा में एक के बाद एक तमाम होटल बह गये, कारें बह गयी गैस सिलैण्डर, टायर टयूब, गाड़ियां नदी में ऐसे बह रही थी जैसे की कागज के खिलौने। इस तरह जोशीमठ के पास में बहुत सारे होटल बह गये। कई-कई मंजिलों के होटल नदी में टूटकर बहते हुए नजर आये।
बांध कम्पनियों के कारण भी काफी ज्यादा नुकसान हुआ। जैसे की जे0 पी0 की विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना (जविप) के जलाशय के पानी के बहने के कारण लामबगड़ गांव का बाज़ार बह गया।
अपुष्ट समाचार तो यह भी है कि तपोवन विष्णुगाड जविप की निर्माणाधीन सुरंग में कार्यरत काफी मजदूर भी मारे गये है।
इसके बाद नीचे विष्णुगाड पीपलकोटी जविप में जो टेस्टिंग सुरंग बनायी गयी थी, उसका समान पूरी तरह से बह गया और सुरंग के अंदर ढेर सारा पत्थर, मलबा रूक गया। इस तरह से सुरंग लगभग बंद हो गयी। हरसारी गांव के लोग जोकि इस सुरंग के उपर रहते हैं महीनों से इस बात को कह रहे थे कि इस ओर विस्फोट की आवाजें आती है, हमारा रहना दूभर हो गया हैं।
रोज एस0 डी0 एम0 को, डी0 एम0 को बांध कम्पनी को चिटठ्ी फोन होते थे, विश्व बैंक के अधिकारी और बांध कंपनी के अधिकारी को कितनी बार आ चुके थें। मगर कोई नतीजा नहीं निकला। अब गंगा ने नतीजा निकाल दिया।
रुद्रप्रयाग से लेकर केदारनाथ धाम तक पूरी केदार घाटी बादल फटने से भयानक तरह से बर्बाद हुई। जिसका आकलन करना और भरपाई करना मुश्किल है। और सरकार के अब तक आपदा प्रंबधन और लोगो के पुनर्वास के इतिहास को देखते हुये तो असंभव ही लगता है। नदी किनारे बसे अगस्तमुनि, चंद्रापुरी जैसे छोटे पहाड़ी बाजार और शहर समाप्त प्रायः हो गये। मंदाकिनी नदी पर फाटा-ब्योंग और सिंगोली भटवाड़ी जविप को काफी नुकसान हुआ है। केदारघाटी में अन्य जल-विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान पहंुचा है।
पिंडरगंगा घाटी में 8 पैदल पुल बह गये है। चेपड़ो गांव में दलित बस्तियों में नुकसान सहित 12 के लगभग मकान/दुकान बह गये। थराली तहसील से लेकर थराली बजार तक सड़क खत्म हो गई है। थराली पुल के पास की 10 दुकाने समाप्त हो गई और अन्य 25 से 30 दुकानंे काम लायक नही बची है। थराली का मोटर पुल पैदल यात्रा के लायक भी नही बचा है। ज्ञातव्य है कि पिंडरगंगा में थराली प्रमुख बाजार है। पूरी पिडंरगंगा की सड़क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।
अलकनंदागंगा पर बनी श्रीनगर जविप के मलबे ने श्रीनगर शहर में कहर ढाया है। पर्यावरण व वन मंत्रालय ने इस मलबे पर कोई कदम नही उठाया था। सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में मामला है पर निणर्य सुरक्षित है। बांध बन गया किन्तु नगर जरुर असुरक्षित हो गया। इस बारिश में 70 मकानों समेत सीमा सुरक्षा बल और अनेक अन्य इमारतों में मलबा जम गया है।
देवप्रयाग में निचले हिस्से में कुछ इमारते बही है।
भागीरथीगंगा घाटी से--
भागीरथीगंगा में गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के रास्ते पहले टूटे हुये थे अब और भी खत्म हो गये है। भटवाड़ीगांव पहले भूस्खलन की चपेट में आ चुका था। वहंा का पूरा बाजार समाप्त हो गया था। उनका पुनर्वास आजतक नही हो पाया है।
गंगोत्री से हर्षिल तक पैदल रास्ता बचा है, वहां से लोंगो को हैलिकोप्टर से चिन्यिाली सौड़ तक हैलिकोप्टर और उसके बाद सड़क मार्ग से नीचे रास्ता खुला है। हर्षिल से ऊपर जालन्ध्री गाड और तपोड़ा गाड में बहुत तेजी से पानी आया जिससे वहंा लक्ष्मी नारायण मंदिर के पीछे 30 मिनट की झील बनी और फिर पानी बहा जिससे हर्षिल में दो चार मकान बह गए।
झाला गाँव के पास पानी बहुत तेजी से बड़ा जसपुर व पुरोला की सड़क वह गयी सुक्की गाँव से पहले की सड़क कई किलोमीटर ध्वस्त हो गई। डबराणी से गंगनानी, सुनगर, भटवाड़ी रोड पूरी तरह ध्वस्त हो गया, चडे़ती बाजार में दुकाने व् भटवाड़ीगांव के निचे का हिस्सा बह गया। मल्ला, लता, सेज, गाँव के रास्ते पूरी तरह ध्वस्त हुये है। सेज गाँव के निचे नदी किनारे ‘दिल्ली वालों की धर्मशाला‘ बह गयी। नालोड़ा और डीडसारी का पुल बह गया।
उतरकाशी में राशन की कमी है क्योई कि बहुत सारी दुकाने वह गई लोंगो ने भविष्य की आशंका को देखते हुये राशन कुछ राशन ज्यादा खरीद लिया
उत्तरकाशी के बांई तरफ स्थित जोशियाड़ा क्षेत्र में लगभग 400 मीटर से ज्यादा सड़क से नदी के बीच की सभी इमारतंे भागीरथीगंगा में प्रवाहित हो गई। शेष बचे क्षेत्र में लोगो को मकान खाली करके भागना पड़ा है। जोशियाड़ा क्षेत्र की तबाही की ज्यादा जिम्मेदारी मनेरी-भाली चरण दो जविप की है। जिसके जलाशय के किनारों पर समय रहते कोई सुरक्षा दिवार नही बनाई गई थी। (3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा में आई बाढ़ के कारण हुये नुकसानों के संदर्भ में भी माटू जनसंगठन ने जो रिपोर्ट ‘आपदा में फायदा‘ निकाली थी उसमें यह चेतावनी दी थी कि अगले मानसून में उत्तरकाशी में फिर नुकसान हो सकता है, जिसकी जिम्मेदार उत्तराखंड जलविद्युत निगम होगी। किन्तु सरकार ने कोई कार्यवाही नही की। अब यह नुकसान हो गया।)
धरासू तक का सारा मलबा टिहरी बांध की झील में समा गया है जिसका जलाशय स्तर 18 जून को 740 मीटर तक पंहुच गया था। पूर्ण जलाशय स्तर 835 मीटर है। मुख्यमंत्री ने टिहरी बांध से बाढ़ रोकने की खुशी प्रकट की। वे यह भूल गये की अभी 3 महीने मानसून और है तथा 2010 में सितंबर में बाढ़ आई थी तब टिहरी बांध का जलाशय केंद्रिय जल आयोग के मापदंडो को दरकिनार करके पूरा भरा हुआ था। कोटेश्वर बांध निर्माण का मलबा जरुर इस बाढ़ ने बहा दिया।
पूरी गंगा घाटी और यमुना घाटी में तेज वर्षा के कारण किसानों के काफी खेत बहे है। यह मौसम धान की रोपाई का था। धान की रोपाई के लिये तैयार किया जाने वाला बीज भी कहीं-कहीं बह गया है। और कहीं-कहीं खेतों में साल भर से इक्टठी की गई गोबर की खाद बह गई है। जिससे उनकी साल भर के लिये चावल की फसल समाप्त हो गई है।
यमुना घाटी की खबरें ज्यादा नही आ पाई है। नुकसान भले की गंगाघाटी के मुकाबले बहुत कम हुआ है। किन्तु काफी लोग वहंा भी बेघर हुये है।
प्रस्तावित लखवार बांध के क्षेत्र में उफनती यमुना को मिलने वाली अगलाड़ नदी मंे तीन दिन की वर्षा ने पैदल पुल को बहा दिया है।
भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा व यमुनाघाटी से............................ ....
पूरण सिंह राणा, प्रकाश रावत, सीताराम बहुगुणा, बस्सीलाल, बृहषराज तड़ियाल, रमेश, बलवंत आगरी, सुदर्शनसाह असवाल और विमलभाई ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------
आपको इसके बाद अपडेट माटू जनसंगठन के ब्लाग <matuganga.blogspot.in>भ ी मिलते रहेंगे। -विमलभाई
प्रस्तावित लखवार बांध के क्षेत्र में उफनती यमुना
पहले ही था बर्बादी को निमंत्रण
15 जून के लगभग उत्तराखण्ड में मानसून के आगमन से पहले ही बर्बादी आई। तीन दिन लगातार बारिश होती रही, नदियां, नाले भयंकर रूप से उफने, पहाड़ सरके, जहां पर कभी मैदान था, जहां पर कभी हरियाली थी, वहां पर अचानक से नये स्त्रोत फूटें, और इन सब के बीच में उत्तराखण्ड में चल रही चार धाम की यात्रा की जोर-शोर की रौनक अचानक एकाएक रूक गयी। हजारों यात्री जगह-जगह फंसें। उनको लाने का काम भी उतनी तेजी से नहीं हो सकता था क्योंकि रास्ता बुरी तरह टूटे थे। किन्तु जितनी तेजी से हो भी सकता था वो नही हुआ। हैलीकॉप्टर ही एक साधन बनता है। किन्तु हर समय देहरादून में हैलिकॉपटरों के लिये तेल की उपलब्धता भी नही रही। 19 से 23 तक का जो सांस लेने का समय सरकार को मिला था उसका पूरा इस्तेमाल नही हो पाया है। अब वर्षा फिर शुरु हो गई है।
सैटेलाईट फोन, तापोलिन यानि प्लास्टिक के हल्की बड़ी चादरें आदि जंहा रास्ते टूटे है वहंा 19 से 23 तक पंहुचाने चाहिये थे जो नही पंहुचाये गये। मोबाईल टॉवरों को बिजली ना होने की दशा में प्रचुर मात्रा में डीजल तक का प्रबंध सरकार ने नही किया हुआ था। लोगो को इस परिस्थिति में कैसे व्यवहार करना चाहिये ऐसी घोषणा-ब्यान तक सरकार लोगो को पर्चा, टी0वी0 आदि के माध्यम से नही पंहुचा पाई। जो कि राज्य और केन्द्र सरकार की आपदा प्रबंधन योजना की पूरी पोल खोल कर रख देता है।
प्राकृतिक आपदा को तो नही रोका जा सकता था। किन्तु यदि बांध ना होते और नदी का रास्ता हमने खाली छोड़ा होता तो आपदा के बाद हो रही तबाही को काफी कम किया जा सकता था। इस सारे प्रकरण से हमे प्रकृति के संकेत और अपनी गलतियों को समझना होगा। यह समय है हमें पूरी ईमानदारी से गलतियों को समझ कर आगे की योजना बनाने का। यह भी समझना चाहिये की आज जो नुकसान हुआ है उसकी तैयारी सरकार ने ही की थी।
नदी किनारों पर राज्य सरकार की कोई निगरानी नही है। होटलों से लेकर तमाम तरह के मकान आदि बनाने के लिये किसी तरह के किसी नियम का पालन नही किया गया मालूम पड़ता है। 4 से 5 भूकंप जोन वाले क्षेत्र में, नदी के किनारों पर मकान/होटल बनाने की इजाजत किसने दी?
आपदा की पूरी परिस्थिति में राज्य सरकार पंगु और अपने ही राज्य के नागरिको के सामने शर्मसार नजर आई है। ‘सरकार/प्रशासन नही नजर आया‘ यह वाक्य राज्य में आये तीर्थ यात्रियों से लेकर राज्य राज्य हर नागरिक की जबान पर आया है। सरकार जिस आपदा प्रबंधन पर सेमिनार-विदेश यात्रायें करती रही है उसके लिये जमीनी स्तर पर कुछ नही दिखा है। किसी तीर्थ स्थल पर कोई आपात्तकालिन परिस्थिति के मुकाबले गांवों में कोई ट्रेनिंग या बचाव के साधन नही उपलब्ध है। जिससे संपत्ति नुकसान कॉफी हुआ है। ऐसा कोई तंत्र भी विकसित नही किया गया। जबकि तीर्थयात्रियों की सख्ंया प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है।
मैदानी क्षेत्र जैसा ही ढांचागत विकास पहाड़ गलत साबित हुआ है। छोटे राज्य में सत्ता की धरपकड़, आत्मप्रचार और बांध से लेकर कोका कोला कंपनियों की तरफदारी से ही राजनेताओं को फुर्सत नही हो पा रही है कि वे राज्य के सही विकास की ओर ध्यान दें। वे विकास को बड़े ढ़ांचे बनाने तक ही सीमित मानते है।
राज्य के वन विभाग पर भी बड़ा प्रश्न है। बांधों के बनने के समय जलसंग्रहण क्षेत्र में होने वाले वनीकरण, चकबांध आदि का ना होना। भागीरथीगंगा व अलकनंदागंगा अधिक गाद वाली नदी के रुप में जानी जाती है।
चारों की तीर्थ बहुत संवेदनशील इलाको में है। वहंा जिस तरह से निर्माण हुआ है वो केदारनाथ में खतरनाक सिद्ध हुआ है। गंगोत्री-यमुनोत्री के रास्ते टूट गये हैं। हजारों लोग वहंा फंसे थे।
अभी गंगोत्री और बद्रीनाथ से यात्रियों को निकाला जा रहा है। भागीरथीगंगा में उत्तरकाशी शहर में खाने के लंगर लगे है। और उपर रास्ते में स्थानीय लोगो ने व भटवाड़ी से नीचे माटू जनसंगठन के साथियों ने भी यात्रियों को स्थानीय संसाधनों से खाद्य सामग्री मुहैया कराई।
दरअसल चारधाम की तीर्थयात्रा को यात्रा को धर्म के नाम पर पर्यटन में बदल दिया गया है। साधु संत वहंा कथाओं का आयोजन करते है। गंगोत्री में वही कथा सुनने वाले ज्यादा संख्या में फंसे थे। पिछले कुछ वर्षो में चारधाम तीर्थ यात्रा और हेमकुण्ड साहिब की यात्रा को बढ़ावा खूब दिया गया है, जो लोगो की आमदनी का कुछ साधन भी बनी। किन्तु पर्यटन से आय के नाम पर जो अनियोजित निर्माण, सड़के बनी है उसके कारण यह नुकसान बहुत ज्यादा हुआ है। निर्माण स्वीकृति देने में हुये आर्थिक भ्रष्टाचार को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है। कुछ के फायदे के कारण आज हजारों की जान गई है, हजारों यात्री फंसे पड़े है। स्थानीय लोगो का भविष्य भी बहुत बिगड़ा है। पहले की पैदल यात्रा के स्थान पर हर तीर्थ पर सड़के ले जाना और भयंकर गति से निर्माण ने स्थिति को और बिगाड़ा है।
हिमालय की पारिस्थितिकी बहुत ही नाजुक है। भविष्यवाणी करना असंभव होता है। वैसे भी सरकार के पास इसकी कोई व्यवस्था तक नही है। इस दुर्घटना में यह निकल कर आया है। जो कि खतरनाक सिद्ध हुआ है। 2010 से लगातार उत्तराखंड में बादल फटना, भूस्खलन और बाढ़ आ रही है। किन्तु प्रकृति के इस संदेश को ना समझने की भूल का नतीजा आज सामने है। अभी भी समझना होगा।
विकास (जो कि वास्तव में कुछ ही लोगो का होता है) के नाम पर हम उत्तराखंड के निवासियों की जान और पर्यावरण को कब तक खतरें में डालेगें? और देखे कि लोकसभा के चुनाव का खर्चा इस आपदा में नही निकलना चाहिये।
विमलभाई
समंवयक
संलग्नः-उत्तराखंड में 14 से 18 तक तेज वर्षा और बादल फटने पर रिपोर्ट
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तबाही की दांस्ता----
भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा और उनकी सहायक नदियों प्रमुख रुप से अस्सीगंगा, भिलंगना, बिरहीगंगा,
(चूंकि केदारघाटी की चर्चा बहुत आ रही है। इसलिये वहंा के बारे में यहंा नही लिखा है।)
अलकनंदागंगा से--
बद्रीनाथ के लगभग 55 किलोमीटर नीचे जोशीमठ से अलकनंदा में एक के बाद एक तमाम होटल बह गये, कारें बह गयी गैस सिलैण्डर, टायर टयूब, गाड़ियां नदी में ऐसे बह रही थी जैसे की कागज के खिलौने। इस तरह जोशीमठ के पास में बहुत सारे होटल बह गये। कई-कई मंजिलों के होटल नदी में टूटकर बहते हुए नजर आये।
बांध कम्पनियों के कारण भी काफी ज्यादा नुकसान हुआ। जैसे की जे0 पी0 की विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना (जविप) के जलाशय के पानी के बहने के कारण लामबगड़ गांव का बाज़ार बह गया।
अपुष्ट समाचार तो यह भी है कि तपोवन विष्णुगाड जविप की निर्माणाधीन सुरंग में कार्यरत काफी मजदूर भी मारे गये है।
इसके बाद नीचे विष्णुगाड पीपलकोटी जविप में जो टेस्टिंग सुरंग बनायी गयी थी, उसका समान पूरी तरह से बह गया और सुरंग के अंदर ढेर सारा पत्थर, मलबा रूक गया। इस तरह से सुरंग लगभग बंद हो गयी। हरसारी गांव के लोग जोकि इस सुरंग के उपर रहते हैं महीनों से इस बात को कह रहे थे कि इस ओर विस्फोट की आवाजें आती है, हमारा रहना दूभर हो गया हैं।
रोज एस0 डी0 एम0 को, डी0 एम0 को बांध कम्पनी को चिटठ्ी फोन होते थे, विश्व बैंक के अधिकारी और बांध कंपनी के अधिकारी को कितनी बार आ चुके थें। मगर कोई नतीजा नहीं निकला। अब गंगा ने नतीजा निकाल दिया।
रुद्रप्रयाग से लेकर केदारनाथ धाम तक पूरी केदार घाटी बादल फटने से भयानक तरह से बर्बाद हुई। जिसका आकलन करना और भरपाई करना मुश्किल है। और सरकार के अब तक आपदा प्रंबधन और लोगो के पुनर्वास के इतिहास को देखते हुये तो असंभव ही लगता है। नदी किनारे बसे अगस्तमुनि, चंद्रापुरी जैसे छोटे पहाड़ी बाजार और शहर समाप्त प्रायः हो गये। मंदाकिनी नदी पर फाटा-ब्योंग और सिंगोली भटवाड़ी जविप को काफी नुकसान हुआ है। केदारघाटी में अन्य जल-विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान पहंुचा है।
पिंडरगंगा घाटी में 8 पैदल पुल बह गये है। चेपड़ो गांव में दलित बस्तियों में नुकसान सहित 12 के लगभग मकान/दुकान बह गये। थराली तहसील से लेकर थराली बजार तक सड़क खत्म हो गई है। थराली पुल के पास की 10 दुकाने समाप्त हो गई और अन्य 25 से 30 दुकानंे काम लायक नही बची है। थराली का मोटर पुल पैदल यात्रा के लायक भी नही बचा है। ज्ञातव्य है कि पिंडरगंगा में थराली प्रमुख बाजार है। पूरी पिडंरगंगा की सड़क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।
अलकनंदागंगा पर बनी श्रीनगर जविप के मलबे ने श्रीनगर शहर में कहर ढाया है। पर्यावरण व वन मंत्रालय ने इस मलबे पर कोई कदम नही उठाया था। सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में मामला है पर निणर्य सुरक्षित है। बांध बन गया किन्तु नगर जरुर असुरक्षित हो गया। इस बारिश में 70 मकानों समेत सीमा सुरक्षा बल और अनेक अन्य इमारतों में मलबा जम गया है।
देवप्रयाग में निचले हिस्से में कुछ इमारते बही है।
भागीरथीगंगा घाटी से--
भागीरथीगंगा में गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के रास्ते पहले टूटे हुये थे अब और भी खत्म हो गये है। भटवाड़ीगांव पहले भूस्खलन की चपेट में आ चुका था। वहंा का पूरा बाजार समाप्त हो गया था। उनका पुनर्वास आजतक नही हो पाया है।
गंगोत्री से हर्षिल तक पैदल रास्ता बचा है, वहां से लोंगो को हैलिकोप्टर से चिन्यिाली सौड़ तक हैलिकोप्टर और उसके बाद सड़क मार्ग से नीचे रास्ता खुला है। हर्षिल से ऊपर जालन्ध्री गाड और तपोड़ा गाड में बहुत तेजी से पानी आया जिससे वहंा लक्ष्मी नारायण मंदिर के पीछे 30 मिनट की झील बनी और फिर पानी बहा जिससे हर्षिल में दो चार मकान बह गए।
झाला गाँव के पास पानी बहुत तेजी से बड़ा जसपुर व पुरोला की सड़क वह गयी सुक्की गाँव से पहले की सड़क कई किलोमीटर ध्वस्त हो गई। डबराणी से गंगनानी, सुनगर, भटवाड़ी रोड पूरी तरह ध्वस्त हो गया, चडे़ती बाजार में दुकाने व् भटवाड़ीगांव के निचे का हिस्सा बह गया। मल्ला, लता, सेज, गाँव के रास्ते पूरी तरह ध्वस्त हुये है। सेज गाँव के निचे नदी किनारे ‘दिल्ली वालों की धर्मशाला‘ बह गयी। नालोड़ा और डीडसारी का पुल बह गया।
उतरकाशी में राशन की कमी है क्योई कि बहुत सारी दुकाने वह गई लोंगो ने भविष्य की आशंका को देखते हुये राशन कुछ राशन ज्यादा खरीद लिया
उत्तरकाशी के बांई तरफ स्थित जोशियाड़ा क्षेत्र में लगभग 400 मीटर से ज्यादा सड़क से नदी के बीच की सभी इमारतंे भागीरथीगंगा में प्रवाहित हो गई। शेष बचे क्षेत्र में लोगो को मकान खाली करके भागना पड़ा है। जोशियाड़ा क्षेत्र की तबाही की ज्यादा जिम्मेदारी मनेरी-भाली चरण दो जविप की है। जिसके जलाशय के किनारों पर समय रहते कोई सुरक्षा दिवार नही बनाई गई थी। (3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा में आई बाढ़ के कारण हुये नुकसानों के संदर्भ में भी माटू जनसंगठन ने जो रिपोर्ट ‘आपदा में फायदा‘ निकाली थी उसमें यह चेतावनी दी थी कि अगले मानसून में उत्तरकाशी में फिर नुकसान हो सकता है, जिसकी जिम्मेदार उत्तराखंड जलविद्युत निगम होगी। किन्तु सरकार ने कोई कार्यवाही नही की। अब यह नुकसान हो गया।)
धरासू तक का सारा मलबा टिहरी बांध की झील में समा गया है जिसका जलाशय स्तर 18 जून को 740 मीटर तक पंहुच गया था। पूर्ण जलाशय स्तर 835 मीटर है। मुख्यमंत्री ने टिहरी बांध से बाढ़ रोकने की खुशी प्रकट की। वे यह भूल गये की अभी 3 महीने मानसून और है तथा 2010 में सितंबर में बाढ़ आई थी तब टिहरी बांध का जलाशय केंद्रिय जल आयोग के मापदंडो को दरकिनार करके पूरा भरा हुआ था। कोटेश्वर बांध निर्माण का मलबा जरुर इस बाढ़ ने बहा दिया।
पूरी गंगा घाटी और यमुना घाटी में तेज वर्षा के कारण किसानों के काफी खेत बहे है। यह मौसम धान की रोपाई का था। धान की रोपाई के लिये तैयार किया जाने वाला बीज भी कहीं-कहीं बह गया है। और कहीं-कहीं खेतों में साल भर से इक्टठी की गई गोबर की खाद बह गई है। जिससे उनकी साल भर के लिये चावल की फसल समाप्त हो गई है।
यमुना घाटी की खबरें ज्यादा नही आ पाई है। नुकसान भले की गंगाघाटी के मुकाबले बहुत कम हुआ है। किन्तु काफी लोग वहंा भी बेघर हुये है।
प्रस्तावित लखवार बांध के क्षेत्र में उफनती यमुना को मिलने वाली अगलाड़ नदी मंे तीन दिन की वर्षा ने पैदल पुल को बहा दिया है।
भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा व यमुनाघाटी से............................
पूरण सिंह राणा, प्रकाश रावत, सीताराम बहुगुणा, बस्सीलाल, बृहषराज तड़ियाल, रमेश, बलवंत आगरी, सुदर्शनसाह असवाल और विमलभाई
आपको इसके बाद अपडेट माटू जनसंगठन के ब्लाग <matuganga.blogspot.in>भ
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