Wednesday, 22 May 2013

उद्गम शेष 23-5-2013

उद्गम शेष

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Author: 
विमल भाई
Source: 
माटू जनसंगठन
अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ताजी अधिसूचना के अनुसार गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथीगंगा के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे 4179.59 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र को भागीरथीगंगा के पर्यावरणीय प्रवाह और परिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में खासकर उत्तरकाशी के इस क्षेत्र में फिर से धरने प्रर्दशन चालू हो गए।

पूर्व के जी.डी. अग्रवाल और वर्तमान में स्वामी सानंद के उपवास से आस्था के नाम पर बांध रोकने के प्रयासों पर यह पक्की मोहर है। उत्तराखंड सरकार ने नवंबर 2008 पाला-मनेरी व केन्द्र सरकार ने 2010 में लोहारीनाग-पाला बांध रोका था। यह जानते हुए भी कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और राज्य की बीजेपी सरकार के ही द्वारा यह बांध रुके हैं। स्थानीय स्तर पर बांध समर्थन में आंदोलन करके वोट बटोरने की खूब कोशिशें चली हैं। राजनीतिक दलों ने चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी पिछले लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों में इसका भरपूर राजनीतिक फायदा उठाया। नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) ने आज की तारीख में भी लोहारीनाग-पाला जलविद्युत परियोजना ज.वि.प. को उसी दशा में छोड़ा हुआ है अभी तक ना तो उसकी निर्माण समान हटाई गई और ना ही बांध के लिए बनाई गई सुरंग को भरने की कोई कोशिश की गई। उनके पांच विभिन्न प्रबंधक अभी भी बांध क्षेत्र में बैठे तनख्वाह पाते रहे हैं। इस तरह बंद पड़ी परियोजना की भी लागत बढ़ती गई है। एनटीपीसी को व स्थानीय राजनेताओं को इस अधिसूचना से करारा झटका लगा है। अब एनटीपीसी का बोरिया बिस्तर समेटना तय हो गया। साथ में इन परियोजनाओं की बनने या ना बनने की रस्साकशी पर भी विराम लगा।

स्वामी सानन्द जी के साथ निश्चय ही वे साथी, तमाम संगठन व व्यक्ति धन्यवाद के पात्र है जिन्होंने इस संपूर्ण नकारात्मक स्थिति में भी ऐसी अधिसूचना लाने के लिए प्रयास किए। इस अधिसूचना की खबर जैसी ही क्षेत्र में पहुंची तमाम तरह की प्रतिक्रिया उभरी और पंचायत चुनावों को मद्देनजर रखते हुए स्थानीय नेताओं ने बिना अधिसूचना को जाने समझे भ्रम की स्थिति फैलाना शुरू की और एक आन्दोलन को जन्म देने की भी कोशिश की। जो कि सफल होती नहीं दिखती।

अस्सीगंगा में बादल फटने के बादअस्सीगंगा में बादल फटने के बाद 
देखा जाए तो इस अधिसूचना में बहुत कठिन निर्णय नहीं लिए गए हैं। अधिसूचना में अभी पूरी तरह से क्षेत्र को कोई ऐसा प्रतिबंध नहीं किया है जैसा कि राजनीतिक दलों ने प्रचार किया। हां इस अधिसूचना से बड़े होटल मालिकों आदि पर प्रभाव ज़रूर पड़ेगा। तथाकथित रूप से अधिसूचना में जहां बार-बार विकास कार्य रोकने की बात कही गई है उसमें कहीं स्थानीय लोगों का जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित होने वाला नहीं है। बल्कि यह देखा जाए तो हम उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर पर्यटन, आजीविका, उर्जा की स्थाई स्रोतों के साथ स्थाई विकास की अवधारणा को विकसित कर सकते हैं। राज्य सरकार व अन्य बड़े राजनैतिक दल इस पर इस शुरूआत को आगे ला सकते हैं।

इस अधिसूचना में क्षेत्र के मानव निर्मित विरासतों सहित सांस्कृतिक, प्राकृतिक विरासतों को सहेजने की बात है। अधिसूचना में स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति पर कहीं रोक नहीं है। बशर्ते की अधिसूचना की धाराओं का स्थानीय शासन-प्रशासन गलत तरह से उपयोग करके स्थानीय निवासियों को प्रताड़ित न करे, जैसा कि चिपको आन्दोलन के बाद बने नियमों, कानूनों का इस्तेमाल करके स्थानीय लोगों को 1,000 मीटर से ऊपर पेड़ काटने की अनुमति नहीं है। दूसरी तरफ वन विभाग द्वारा और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए इस कानून का खूब उल्लंघन होता है। अधिसूचना में खनिजों का खनन और पत्थर उत्खनन, आरा मशीनों की स्थापना, प्रदूषणकारी उद्योग, मल-जल और औद्योगिक बहिस्राव, प्लास्टिक के समान ले जाने वाले थैलों का उपयोग, परिसंकटमय अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाईयां के लिए पूर्व अनुमति की जरूरत होगी। जल, वायु और मृदा प्रदुषण पर रोक और साथ ही इन पर सख्त निगरानी का नियम है। किंतु निगरानी समिति में गैर सरकारी सदस्य का न होना चिंताजनक है। चूंकि आज तक की सरकारी निगरानी समितियों की स्थिति बहुत ही दयनीय रही है। बल्कि सच कहा जाए तो कोई निगरानी ही नहीं होती। चाहे वो पर्यावरण की हो या जलविद्युत परियोजनाओं की अस्सी गंगा में बादल फटने के बाद जो हुआ उससे यह और अधिक स्पष्ट होता है।

अधिसूचना की धारा 2 में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के लिए आंचलिक महायोजना बनाने के लिए कहा गया है। जिसमें राज्य सरकार को पारिस्थितिकी संवदेनशील क्षेत्र के लिए दो वर्ष के भीतर स्थानीय जनता, विशेषकर महिलाओं, के परामर्श से एक आंचलिक महायोजना बनाकर उसे केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय, से अनुमोदित कराने का निर्देश है।

भागीरथी गंगा अपने स्वतंत्र प्रवाह में                                भागीरथी गंगा अपने स्वतंत्र प्रवाह में                                                                                                                         
अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है। यह ट्राउट मछली के लिए देशी-विदेशी शौकीनों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। 1992 के भयानक भूकंप का केन्द्र अगोड़ागांव है जहां सड़क बनाने की इजाज़त नहीं है किंतु कल्दीगाड जविप बन रही है। अगस्त 2012 में बादल फटने की घटना के बाद अस्सी गंगा ने इन बांधों को नकार दिया है। ज्ञातव्य है कि 24 जुलाई व 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ।

हद तो यह है कि मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड भी नहीं मिला। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए। छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। प्रकृति के इस संदेश को भी समझने की जरूरत है। निर्माण कंपनी ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम’ भी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। बीमा कंपनियों से उनका नुकसान तो पूरा होगा साथ ही भ्रष्टाचार के लिए और पैसा मिल जायेगा। प्रभावितों का पुनर्वास अभी नहीं हो पाया है। किंतु परियोजनाएं फिर चालू हो रही हैं। माटू जनसंगठन ने इस पर एक रिपोर्ट ‘आपदा में फायदा’ निकाली है। स्थानीय लोगों के साथ मांग की गई है कि अस्सीगंगा पर बांध तुरंत रोके जाएं और अस्सीगंगा को लोक आधारित पर्यटन के लिए सुरक्षित किया जाए। इसे आंचलिक महायोजना में जोड़ना चाहिए।

वास्तव में गंभीर चुनौती तो इस आंचलिक महायोजना को बनाने की होगी जिसमें हमें ध्यान रखना होगा की अधिसूचना की शाब्दिक और आत्मिक भावना सुरक्षित रहे साथ ही स्थानीय लोगों के जीवन विकास में कोई बाधा न आए। चूंकि किसी भी ओर पूरी तरह से जाना घातक होगा चाहे वो मां गंगा की अर्चना सेवा की सोच हो या स्थानीय विकास के नाम पर मात्र कुछ लोगों के विकास का हो। कुछ लोगों को छोड़कर, जिसमें जनप्रतिनिधि भी आते हैं जो पिछले कुछ वर्षों में तेजी से सम्पत्ति वाले बने हैं। आंकड़े बताते हैं कि उत्तरकाशी में अभी भी बहुत गरीबी है। अगर यदि महायोजना सही तरीके से बने और अधिसूचना की निगरानी का ईमानदार कदम रहे तो न केवल तीर्थ यात्रियों की संख्या में इज़ाफा होगा बल्कि यह क्षेत्र उत्तराखंड का सांस्कृतिक-आर्थिक रूप से समृद्ध क्षेत्र बनेगा और पलायन भी रुकेगा। एक उत्कट ईमानदार राजनीतिक इच्छा और प्रयास इन सबके लिए अपेक्षित है।

Saturday, 11 May 2013

पहले डूब अब धोखे से उजाड़ 11-5-2013

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पहले डूब अब धोखे से उजाड़

Author: 
विमल भाई
Source: 
माटू जनसंगठन
बरगी बांध से विस्थापन के बाद बड़े किसान भी अब मज़दूर बन गए हैं। अब इस परियोजना के कारण उनकी स्थिति और भी खराब होने वाली है। यह परियोजना ना केवल तीन गाँवों के जीवन-मरण का प्रश्न है। वरन् प्रस्तावित परियोजना के 30 किलोमीटर के दायरे आने वाले सभी गाँवों के इंसानों-जीव-जतुंओं और पर्यावरण के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। प्रश्न सामने है कि जबलपुर के रहने वाले 22 लाख लोग जब विकिरण युक्त पानी पिएंगे तब क्या होगा? तो क्या मध्य प्रदेश राज्य में पंजाब की तरह कैंसर ट्रेन चलेगी? अभी भोपाल गैस कांड से पीड़ितों की संख्या काबू में नहीं आ रहा है तो क्या जबलपुर को दूसरा भोपाल बनाने की तैयारी है।
पहले डूब अब धोखे से उजाड़ आज लगभग 13 साल हुए जब चुटका गांव बरगी बांध में डूबा था। 69 मीटर ऊंचा और 5.4 किलोमीटर लंबा बांध यह मध्य प्रदेश में नर्मदा पर बने 5 विशालकाय बांधों में से एक है जिसमें घोषणा से ज्यादा 60 गांव डूबे थे। बैठे-बैठे लोगों के जल-जंगल-ज़मीन, गांव, खेत डूब गए। बाद में सरकार से लड़-लड़ कर थोड़ी ज़मीन मिली। ज्यादातर लोगों ने जंगल और दूसरी सरकारी जमीनों पर कब्ज़े किए जिस पर बहुत समय बाद जमीनों के पट्टे मिल पाए। बड़े-बड़े किसान आज मज़दूर बने हैं। चुटका भी उन्हीं गाँवों में से एक है जिसे लोगों ने अपनी ताकत से खड़ा किया है, वरना 4000 रु. प्रति एकड़ मिले मुआवज़े में कौन सा घर बना पाते? कौन सी ज़मीन ख़रीद पाते?

आज इन्हीं चुटका निवासियों पर फिर “चुटका मध्य प्रदेश परमाणु विद्युत परियोजना” के रूप में एक विस्थापन का नया खतरा सामने है। इस परियोजना से मुख्य रूप से तीन गाँव विस्थापित होंगे। बीजाडांडी, नारायण गंज (मंडला) तथा घंसौर (सिवनी) विकासखंड के लगभग 54 गाँव विकिरण से प्रभावित होंगे। 1400 मेगावाट बिजली बनाने हेतु बरगी जलाशय से पानी लिया जाएगा एवं पुनः उस पानी को जलाशय में छोड़ा जाएगा जिससे पानी प्रदूषित होंगा और मनुष्यों सहित इस पर आश्रित सभी जैविक घटकों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। बरगी बाँध में बहुत सारा जंगल डूबने के बावजूद इस आदिवासी क्षेत्र में अभी भी पर्याप्त वन क्षेत्र है। इस परियोजना के आने से वन क्षेत्र के दोहन सहित आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को भी बाहरी खतरा उत्पन्न होगा।

बरगी बांध में सिंचाई और कुछ पेयजल और उद्योगों को पानी देने के उद्देश्य समाहित थे किंतु परमाणु संयंत्र जैसी बड़ी परियोजनाओं को पानी देने का कोई उद्देश्य नहीं था। बरगी बांध से उजड़ी देवकी बाई आंखों में लगभग आँसू लिए बोलती है हम पास में गोरखपुर में रहते हैं जहां झाबुआ थर्मल पावर प्लांट है पिछले दिनों वहां चार साल की एक बच्ची को बलात्कार के बाद मार दिया। तब से हम कोई औरतें गर्मी में भी बाहर नहीं सो रही हैं, कई-कई दिन पानी नहीं आता। इस बरगी बांध ने हमको डुबाया पर हमको ही पानी नहीं दिया। मगर हम इन चुटका वालों का दुबारा विस्थापन नहीं होने देंगे। बरगी बांध विस्थापित संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री राजकुमार कहते हैं कि बांध से ज़मीन भी इतनी देर में खुलती है की फसल बोने का समय निकल जाता है। लोगों के पास सिवाय मजदूरी के कोई चारा नहीं। पूरा गांव का गांव एक समय सिर्फ बुड्ढों से भरा होता है सारे युवा दूर-दराज के क्षेत्रों में काम करने चले जाते हैं।

इस परियोजना पर 24 मई 2013 को पर्यावरणीय जनसुनवाई रखी गई है। जिसके लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन रिर्पोट और पर्यावरण प्रबंध योजना की मसौदा रिर्पोट अंग्रेजी में यथा स्थान रख दी गई है। परियोजना की मसौदा रिर्पोट 724 व 431 पन्नों और नक्शों वाला दस्तावेज़ 954 पन्नों का है। इतने सबको 65 पन्नों के कार्यकारी सारांश में बहुत ही कठिन हिन्दी जिसमें अंग्रेजी के भी बहुत सारे शब्द, रासायनिक सूत्रों सहित समेट कर दे दिया गया है। इसे पढ़ना और समझना असंभव है। यह अपने आप में ही साबित करता है कि सच्चाई को छुपाया जा रहा है।

इस क्षेत्र में कोई अखबार नही पहुँचता है। यहां के निवासियों की शैक्षिक योग्यता बहुत कम है। एक व्यवहारिक सी बात है कि जो लोग हिन्दी भी नहीं जानते वो अंग्रेजी की इतनी दुरुहु भाषा को कैसे समझ पायेंगे।

चुटका गाँव में गोंडवाना जनतंत्र पार्टी, नागरिक मंच, बरगी बांध विस्थापित संघ, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समंवय, भाकपा माले व अन्य साथियों के साथ प्रभावितों की बैठक 
चुटका गाँव में गोंडवाना जनतंत्र पार्टी, नागरिक मंच, बरगी बांध विस्थापित संघ, जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समंवय, भाकपा माले व अन्य साथियों के साथ प्रभावितों की बैठक 
बिना परियोजना स्वीकृति के 9 मई को मंडला जिलाधिकारी परियोजना की पुनर्वास संबंधी समस्याओं पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई थी। लोगो ने बैठक स्थल के बाहर प्रर्दशन करके इसका कड़ा विरोध किया। बैठक में काफी लोग अंदर घुस गए मीराबाई ने जिलाधिकारी को पूछा की जिस रिपोर्ट को नीरी जैसी संस्था ने 2 साल में बनाया वो एक महीने पढ़कर आपत्ति भी दे दे? जिलाधिकारी ने एक हफ्ते में मसौदा रिर्पोट हिन्दी में देने का वादा किया। किंतु कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि गांव के अतिसाधारण गरीब किसान-मज़दूर इन दस्तावेज़ों को समझ लेंगे? लोगों ने कहा कि हम अपने विरोध के बावजूद पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट व पर्यावरण प्रबंध योजना का सामना करने को तैयार हैं और किंतु ये दोनों ही कागज़ात क्षेत्र की जनता के सामने अंग्रेजी दिए गए हैं जो लोगों की समझ से परे है। इन सब परिस्थितियों में प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो स्थानीय जनता के हित में प्रस्तावित चुटका मध्य प्रदेश परमाणु विद्युत परियोजना (1400 मेवा) 24 मई को होने वाली जनसुनवाई तत्काल प्रभाव से रद्द करे। अपने ज्ञापन में उन्होंने कहा की पूरी पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिर्पोट व पर्यावरण प्रबंध योजना हर प्रभावित गांव में हिन्दी में दी जाए व समझ में आने वाली भाषा में समझाई जाए। ताकि परियोजना प्रभावों की संपूर्ण जानकारी लोगो के सामने आए। इसके बाद ही कोई प्रक्रिया चलनी चाहिये।

चुटका और टाटीघाट की ग्राम सभा में यह प्रस्ताव 6 मई को ही पारित हो गया था। दूसरे विस्थापन को भी ग्रामीणों ने अस्वीकार किया है। गोंडवाना जनतंत्र पार्टी ने इस परियोजना का पूरा विरोध किया है। परमाणु विद्युत परियोजना के निर्माण और उत्पादन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को आज संसार भर में देखा जा सकता है। अमेरिका में थ्रीमाईल द्वीप, रुस में चेरनोबिल, जापान में फुकुशिमा, झारखंड में जादूगोड़ा की स्थिति, कोटा के रावतभाटा के आसपास बढ़ती कैंसर रोगियों की संख्या। नर्मदा घाटी में बांधों, पर्यटन और दूसरी परियोजनाओं के कारण भी हो चुका विस्थापन सामने है।

बरगी बांध से विस्थापन के बाद बड़े किसान भी अब मज़दूर बन गए हैं। अब इस परियोजना के कारण उनकी स्थिति और भी खराब होने वाली है। यह परियोजना ना केवल तीन गाँवों के जीवन-मरण का प्रश्न है। वरन् प्रस्तावित परियोजना के 30 किलोमीटर के दायरे आने वाले सभी गाँवों के इंसानों-जीव-जतुंओं और पर्यावरण के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। प्रश्न सामने है कि जबलपुर के रहने वाले 22 लाख लोग जब विकिरण युक्त पानी पिएंगे तब क्या होगा? तो क्या मध्य प्रदेश राज्य में पंजाब की तरह कैंसर ट्रेन चलेगी? अभी भोपाल गैस कांड से पीड़ितों की संख्या काबू में नहीं आ रहा है तो क्या जबलपुर को दूसरा भोपाल बनाने की तैयारी है। इस क्षेत्र के सांसद जी ने राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर अपने क्षेत्र में परियोजना लाने की दरख्वास दी थी और उस चिट्ठी में दावा किया कि यह सुदूर क्षेत्र है यहां बरगी बांध से जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भूमि भी उपलब्ध है। सांसद महोदय श्री बसोरीसिंह बार-बार इस बात का श्रेय लेते रहे हैं कि वे इस परियोजना को ला रहे हैं। मगर क्या वे कभी इस क्षेत्र में रहेंगे या उनके बच्चे इस क्षेत्र में जहां न कोई स्कूल है और न स्वास्थ्य केन्द्र है, जबलपुर से 70 कि.मी. दूर इस विराने में कोई यातायात का साधन भी नहीं है। सांसद महोदय को इसीलिए यह क्षेत्र उपयुक्त लगा मगर वह यह भूल गये कि यहां उनको वोट देने वाले रहते हैं। एन पी सी आई एल की के निर्देशों के अनुसार परमाणु विद्युत परियोजनाओं को भूकंप वाले क्षेत्र में स्थापित नहीं किया जा सकता किंतु इस महत्वपूर्ण बिंदु को नज़रअंदाज़ करते हुए उच्च खतरे वाले क्षेत्र में ये परियोजना स्थापित की जा रही है।