जन संगठनों ने पर्यावरण मंत्रालय को घेरा
पंचेश्वर बहुद्देश्यीय परियोजना की प्रक्रियाओं पर उठाये गंभीर प्रश्न
प्रैस विज्ञप्ति:24 अक्तूबर, 2017 | नई दिल्ली: मात्र 6-7 दिन
के नोटिस पर पर्यावरण आंकलन समिति ने भारत नेपाल के साझे में उत्तराखंड
में प्रस्तावित पंचेश्वर बहुद्देश्यीय परियोजना को अपने एजेंडे में दाखिल
किया। 31 मई 2017 से आज 24 अक्टूबर 2017 तक
केन्द्र व राज्य सरकारें व सत्तापक्ष के लोग युद्ध स्तर पर प्रभावित
गाँवों से लेकर केंद्रीय मंत्रालयों तक मात्र कागज़ी कार्यवाही पूरी करने
में लगे हैं। भ्रमित आंकड़े, भ्रमित राजनैतिक वादे, मात्र और मात्र पंचेश्वर बांध से विकास की नयी ईमारत लिखने की कवायद की जा रही है।
आज़ादी के बाद से “बाँध आया बाँध आया’’ के शोर में सड़क, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सुविधाओं से महाकाली घाटी के नदी किनारे के गाँवो को वंचित रखा गया है। अब जब कुछ नयी सड़कें, टनकपुर
रेलमार्ग आने की उम्मीद जगी तो मोदी साहब का सपना बताकर पंचेश्वर
बहुद्देश्यीय परियोजना को तेजी से बढ़ाने की बात तय कर दी गयी।
उत्तराखंड में ही बन चुके टिहरी बाँध से लेकर विष्णुप्रयाग, विष्णुगाड-पीपलको टी, मनेरीभाली, अस्सी-गंगा जैसी तमाम परियोजनाओं के प्रभावित आज भी भूमि आधारित पुनर्वास और मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, भटक
रहे हैं। किन्तु उत्तराखंड सरकार के महकमे अब बोरिया बिस्तर समेट कर
पंचेश्वर बाँध की बस में बैठने की तयारी में हैं। अब पुराने बाँध
प्रभावितों की समस्याओं पर कोई गंभीर प्रयास नहीं दिखाई दे रहे।
धरने
पर आये उत्तराखंड एकता मंच के हर्षित नौटियाल ने पंचेश्वर बाँध को हिमालय
की अस्मिता और अस्तित्व पर हमला बताया। हिमालय को युवा पर्वत मानने के
बावजूद इतनी बर्बादी क्यो? हम इसे नही सहेंगे। डी.एस.जी के संजीव कुमार ने कहा की पर्यावरण मंत्रालय के गलत निर्णयों पर आगे बढ़ा आन्दोलन होगा।
माटू जनसंगठन के विमल भाई ने कहा की हमने जुलाई के दुसरे हफ्ते से लगातार तीनो प्रभावित जिलों पिथोरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा के जिलाधीशों व सम्बंधित मंत्रालयों को पत्र भेजे, व्यक्तिगत मिले लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। वनाधिकार कानून 2006, उत्तराखंड में अभी तक किसी को नहीं मिला!किन्तु
मज़े की बात है की चम्पावत जिले में जहाँ दोनों परियोजनाएं प्रस्तावित हैं
वहां लोगों से इसके तहत अनाप्त्ति ले ली गयी। पर्यावरणीय जनसुनवाई के लिए
न्यूनतम नियम कानूनों का कभी पालन नहीं किया गया। पूरा सरकारी महकमा व
सत्तापक्ष के राजनेता सिर्फ बाँध के लाभ बताने में व्यस्त है। बाँध की सही
जानकारी देने पर या बड़े बांधो की राजनीती का विरोध करने वाले संगठनो को
माओवादी का ठप्पा लगाने की तैयारी है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र रावत
जी तक इस ओर इशारा कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्रालयों में परियोजना में आने
वाली तमाम अड़चनों को दूर करके किसी तरह लोगों से अनापत्ति के कागजातों पर
हस्ताक्षर लेने के निर्देश दिए गए हैं। धर्म वाली सरकार ने 90 मंदिरों को डूबाने का तो फैसला लिया है साथ बांध के लिये गीता के साम, दाम, दंड, भेद की नीतियाँ को भी अख्तियार किया है।
यह बहुद्देश्यय नहीं बल्कि बहुधोकीय परियोजना के रूप में दिखती है क्यूंकि 315 मी. उंचे पंचेश्वर बाँध व 95 मी. उंचे रुपलिगढ़ बाँध, दोनों
को एक ही परियोजनाओ को तहत मात्र काम आगे बढाया जा रहा है। उन्होंने
चेतावनी देते हुए कहा की सत्तापक्ष को आज नहीं तो कल इन सभी सवालों के जवाब
देश को देने ही पड़ेंगे।‘‘
मंत्रालय
के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ की किसी नदी घाटी परियोजना पर पर्यावरण
आंकलन समिति की बैठक के समय लोगो ने प्रदर्शन किया हो। यह मंत्रालय की
हठधर्मिता है की मात्र बाँध कंपनियों को ही अपना पक्ष रखने का मौका दिया
जाता है और लोगों की आवाज़ को दबाया जाता है।
हमने
समिति को पत्र लिखकर सभी बाते विस्तार पूर्वक बताई थी हमारी आज अपेक्षा थी
की पर्यावरण आंकलन समिति हमको बात रखने का मौका देगी इसीलिए पर्यावरण
मंत्रालय के बहार प्रतीकात्मक रूप में माटू जनसंगठन के साथ, उत्तराखंड एकता मंच के साथी, जनांदोलनो का राष्ट्रीय समन्वय, दिल्ली समर्थक समूह (डी.एस.जी) और पंचेश्वर बाँध से प्रभावितों ने धरना दिया। किन्तु समिति ने मिलने का समय नहीं दिया।
मात्र 45 मिनट में 40 हजार करोड़ की, उत्तराखंड के 3 जिलो की 12 हजार हेक्टेयर भूमि को डूबोने वाली, लगभग 40 हजार परिवारों को प्रभावित करने वाली, 90 मंदिरों को डूबोने वाली इस बांध परियोजना का पर्यावरण आंकलन समिति ने आकलन कर लिया। यह आश्चर्य की बात है।
पर्यावरण आंकलन समिति के किसी भी गलत निर्णयों को हम आगे चुनौती देंगे।
हिमशी सिंह, हरेन्द्र अवस्थी