जून, 2013 की आपदा में बांधो से हुई तबाही पर सरकार कदम उठाये!!!
उत्तराख्ंाड आपदा के तीन वर्षो के बाद इस समय चल रही पांच धाम यात्रा के यात्रियों को धन्यवाद व सरकार व प्रशासन को भी हमारी बधाई। आज के दिन हम याद करते है, केदारघाटी में स्थित दीपगांव-फॉटा के 22 वर्षीय बुद्धिभट्ट को, जिन्होंने आपदा के समय तीर्थयात्रियों को सोनगंगा पार कराते समय अपना जीवन दे दिया था। तथा 25 जून, 2013 को गौरीकुंड में राहत कार्य में लगे हैलिकॅाप्टर के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण शहीद हुये जवानों को नमन करते है। आपदा पीड़ितों के मुआवज़ो का निपटारा भी होना चाहिये। भविष्य में इन आपदाओं से बचने के उपाय और राज्य की आपदा प्रंबधन को मजबूत करना चाहिये।
यात्रा की व्यवस्था में जरुर कुछ कमियंा भी है जिसके लिये हम मार्च से चली राजनैतिक उठापटक को भी जिम्मेदार मानते है। भविष्य में ये कमियंा दूर करनी होगी ताकि यात्रा हमेशा सुचारु रुप से चले और उत्तराख्ंाड की आर्थिकी को मजबूत करें।
हमें नही भूलना चाहिये कि 2013 की आपदा मंे उत्तराखंड के बांधों की बड़ी भूमिका रही है। { बांधों के कारण जून, 2013 की आपदा में हुई बढ़ौत्तरी पर तथ्य परक जानकारी का नोट संलग्न है} उच्चतम् न्यायालय के आदेश पर पर्यावरण, वन एंवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने रवि चोपड़ा समिति बनाई जिसने साफ तौर पर बड़े बांधों को भी आपदा के कारणों में गिनाया है। उत्तराखंड में जून 2016 की आपदा को 3 वर्ष बीतने के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकारों ने इस विषय पर कोई पहल नही की है।
हमने अगस्त-सितंबर 2012 की बाढ़ के बाद उत्तरकाशी के निकट भागीरथी की सहायक अस्सीगंगा के टूटे बंाधों के बाद अध्ययन पूर्वक कहा है कि ये बांध असमय के बम साबित हुए है। टाईम बम का तो समय निश्चित होता है। किन्तु इन बांधों तबाही लाने के लिए का कोई समय नहीं होता । 2010 से लगातार उत्तराखंड में नदियंा ये संदेश दे रही है।
माटू जनसंगठन ने 2013 में बांधों की भूमिका के विषय को भी सरकार के साथ लगातार उठाया है। नवम्बर 2013 में हमने राज्य के सभी विधायकों व सांसदों को तथ्यवार सूचना दी। जिला प्रशासन को भी आगाह किया किन्तु सब तरफ एक मौन ही है।
जून 2013 की आपदा में जीवीके बंाध कंपनी के श्रीनगर बांध से श्रीनगर शहर के निवासियों का नुकसान हुआ उसको माटू जनसंगठन ने श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति के साथ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में उठाया हैै। प्राधिकरण ने अभी निणर्य सुरक्षित किया हुआ है। यहंा यह खासकरके कहना होगा की सरकार ने इस विषय में प्राधिकरण में जीवीके बांध कंपनी का ही पक्ष लिया हैै।
विष्णुप्रयाग बांध के कारण हुई अलकनंदानदी की तबाही पर भी माटू जनसंगठन ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal) में अक्तूबर 2013 में केस दायर किया जिसके कारण प्रशासन की नींद खुली। जिला प्रशासन व जेपी बांध कंपनी को योजनाबद्ध रुप मलबा हटाना पड़ा। यद्यपि चमोली प्रशासन की निगरानी ना होने के कारण इस योजना पर पूरी तरह से अमल नही हो पाया।
बांधों के बारें में बोलने पर सबसे पहले यह देखने की कोशिश होती है कि कही इस कदम के उठाने पर बांध बंद तो नही हो जायेगा? बांध कंपनियंा लगातार जनहकों को दरकिनार करते हुये बांधो में पर्यावरणीय मानको की अनदेखी करती है। जिसका परिणाम है कि जून 2013 की आपदा में बांधों के कारण नुकसान की मात्रा बड़ी। केंन्द्र व राज्य सरकारें भविष्य में यह गलती ना दोहराये और बांध कंपनियों को उनके दोषों की सजा मिले तभी उत्तराखंड का पर्यावरण और लोग सुरक्षित रह पायेंगे।
सरकार भविष्य में उत्तराखंड की सुरक्षा के लिये बांधों की निर्माता कंपनियों पर जलविद्युत परियोजनाओं (जविप) में पर्यावरण मानको के उलघंन के कारण हुई उपरोक्त तबाही के लिये आपराधिक मुकद्दमें कायम करे।
हम मानते है कि बांध के सर्मथन और विरोध से ज्यादा प्रश्न उत्तराखंड के लोगो की सुरक्षा और यहंा के पर्यावरण के स्थायी संरक्षण का है।
विमलभाई पूरण सिंह राणा दिनेश पंवार प्रेमवल्लभ काला बलवंत आगरी
बांधों के कारण जून, 2013 की आपदा में हुई बढ़ौत्तरी पर कुछ तथ्य परक जानकारीः
1. जून 16-17 की रात को बद्रीनाथ जी के नीचे अलकनंदागंगा पर बने जेपी कंपनी के विष्णुप्रयाग बांध (400 मेवा) के दरवाज़े ना खोलने के कारण लगभग दो किलोमीटर की झील बनी और फिर पानी के दवाब से एक दरवाजा टूटा। झील के कारण पानी का वेग बहुत तेजी से बढ़ा और बांध के नीचे लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बह गये। इस नुकसान का मुख्य कारण था, समय रहते जेपी कंपनी द्वारा विष्णुप्रयाग बांध के दरवाजे ना खोलना। ज्ञातव्य है कि विष्णुप्रयाग बांध से कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के बाजार की दुकानें बह गई थी। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नही दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के उपर चांई व थैंग गांव 2007 में धंस गये जिसके लगभग 30 परिवार आज भी बिना समुचित पुनर्वास के लिये भटक रहे हैं।
2. विष्णुप्रयाग बांध के उपर जी.एम.आर. कंपनी का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई तक हस्तांतरित नहीं किया था किन्तु वन कटान का काम द्रुतगति से पहले ही चालू हो गया था। जिससे वो पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। इसने भी नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी भूमिका अदा की।
3. भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. उपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकति को सुधारे या उसमें बदलवायें 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की उंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई थी। 16-17 जून 2013 में उपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युृत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी0 वी0 के0 के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाब बड़ने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिये जी0 वी0 के0 कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिये बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी0 वी0 के0 कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई।
4. अलकनंदागंगा की सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यो पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नही हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा हैं इस मलबें ने पानी की विनाशकारी शक्ति को बढ़ाया है।
विष्णुप्रयाग और श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बबार्दी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। धरने प्रदशनों के बाद जे.पी. ने अपने बांध की सफाई के कारण लामबगड़ गांव के लोगो से एक समझौता किया। यह समझौता पढ़ने के बाद समझ में आ जाता है कि मुख्य उद्देश्य बांध की झील की सफाई को ध्यान में रखते हुये लोगो को फंसाया गया है। थोड़े से ठेके बांटने का काम भी हुआ। इस सफाई का मलबा भी वापिस अलकनंदागंगा में डाला जा रहा है।
5. जून आपदा, 2013 के मात्र 10 महीने पहले अस्सीगंगा घाटी और केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महिने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सीगंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से तेजी से पानी आया तो उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। जिसके बाद में बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गया। मनेरी भाली चरण दो के जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिये बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारे, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारांे को बनवाने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था। और अगस्त 2013 की दुर्घटना के बाद नई दिवारंे बननी शरु हुई थी कि जून 2013 में फिर मानसून आ गया। और वर्ष 2013 की वर्षा में जोशियाड़ा का सैकड़ो मीटर लम्बा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है। टिहरी बांध झील में अस्सीगंगा के टूटे बांधों का और उनके कारण हुये भूस्खलन का सारा मलबा जमा हुआ।
6. यह बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ रूकी जो पूर्वतयाः बांधों से हुए नुकसान को ढापने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिये 15 से 18 जून की तेज वर्षा में झील में पानी टी0एच0डी0सी0 बांध कंपनी ने अपने फायदे के लिये भरा।
7. सितंबर 13, 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहंा एशियाई विकास बैंक यानि एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनायें बन रही है। इन परियोजनाओं के निमार्ण कार्य और मलबे के कारण ही अनेक गांवो की स्थिति खराब हुई है।
Some Information-June, 2013
calamity increased due to Hydro Power
Projects
- On the night of 16-17 June the dam built by Jaypee on Alaknanda river caused tremendous destruction in the lower areas because its doors were not opened. The reason for destruction caused to houses, forest and land in Lambagad, Vinayak Chatti, Pandukeshwar, Govindghat, Pinola ghat areas was that the doors of the Vishnuprayag dam built by JP company were not opened in time. No water was ever released from the Vishnuprayag dam for the needs of villagers. In the monsoon of 2012 the destruction caused by this project flooded the shops of Lambagad village and no compensation was paid by JP company. Chai and Thaing villages situated above the Vishnuprayag dam tunnel had sunk in 2007 because of which 30 families from these villages are still not rehabilitated.
- Just above this dam another dam by GMR of 300 megawatts is proposed for which the forest land was not transferred but felling of trees had started at a high speed and all such trees and machinery flowed in Alaknanda which played a major role in causing destruction in the lower areas.
- On same river Alaknanda at Srinagar where an almost complete Srinagar Project (330 Megawatt) caused tremendous damage. GVK group is the builder of this dam. The capacity of Srinagar project was increased from 200 megawatts to 330 megawatts and its height was increased from 65 meters to 95 meters without any proper environmental clearances.
Taking
advantage of increase in water level of the reservoir which was caused by water
coming from above, management of GVK hatched the criminal conspiracy of lifting
Dhari Devi temple which was proposed for August 2013. During this time, the
gates of the dam which were half open were all closed which caused an increase
in the water level of dam’s lake. When the pressure on the dam increased because
of excess water, GVK co. without warning the residents on the bank of the river
opened the gates after which water in the reservoir flowed down with all force
and flooded the muck dumped by GVK co. on three banks of the river. This
enhanced the destructive capacity of the river by many degrees.
- It is to be noted that only 10 months back, immense destruction was caused in two main streams of Ganga, Assi Ganga ravine of Bhagirathi and Kedar ravine of Alaknanda. Because of the cloud burst in Assi Ganga river, the under construction Assiganga phase I and II hydro power project caused destruction and similar destruction was caused by phase II of Maneri bhali hydro power project in Bhagirathi Ganga. Villages in Assi Ganga were badly affected as many small roads and ways were destroyed and the environment was damaged so badly that recovery may take decades. Many laborers killed in such destruction for which there exists no record. Reservoir of Maneri bhali phase II was already full and when water came with force from behind, it led to collapse of the bridge which connected Joshiyara and Gyansu. After this when dam gates were suddenly opened, thousands of cusec of water flooded many foot bridges. The walls built on the left and the right of were also damaged badly. It must be noted that these so called walls were constructed after the reservoir was completely full and even then it was constructed only after a long and hard struggle by the local people. This year a huge area of Joshiara flooded away in Bhagirathi Ganga. It may be argued that the cause of such flooding is primarily the full reservoir of Maneri Bhali phase-2 HEP.
- On 13 September 2012, cloud bursts caused immense destruction in the 4 KM area of Ukhimath Tehsil headquarters. At this place Asian Development Bank sponsored Kaliganga Phase 1 & 2 and Madhyamaheshwar HEP are being constructed. Conditions in many villages have deteriorated because of these constructions. All the debris from the broken dams of Assi Ganga is stored in the lake of Tehri dam.
- It is being projected to cover up the destruction caused by dams that flood stopped because of Tehri dam. In reality to fill the lake of the dam, rain water from 15 to 18 June was stopped.