हमारी गंगाघाटी में हमारी छाती के ऊपर ही बांध...... लोगो पर झूठे मुक़द्दमें........
हम ही अपने जल-जंगल-जमीन से अधिकार खो बैठे......
छोटीकाशी में वृक्षारोपण किया
पीपल के इस पेड़ की भांति हमारी भी जड़े यहंा है।
ना पुनर्वास ना पर्यावरण संरक्षण
( विश्व बैंक द्वारा पोषित विष्णुगाड पीपलकोटी बाँध, अलकनंदा नदी, जिला चमोली,उत्तराखंड, निर्माणकर्ता बांध कंपनी टीएचडीसी)
पेड़ हमारी समृद्धि का प्रतीक है, पेड़ हमारी एकता का प्रतीक है, पेड़ हमारे संघर्ष का प्रतीक है, पीपल के इस पेड़ की भांति हमारी भी जड़े यहंा है। लड़ेगे जीतेगे के नारे के साथ विभिन्न गांव से आये ग्रामीणों ने पीपल का पेड़ रोपा और गंगाजल के साथ नदी दिवस, 14 मार्च को इकट्ठी की गई मिट्टी पेड़ के साथ डाली गई। आज 21 अप्रैल 2016 को विष्णुगाड पीपलकोटी बाँध से प्रभावित हाट हरसारी दुर्गापुर और अन्य गाँव के लोगो ने हरसारी के पास छोटीकाशी में वृक्षारोपण किया। ये पेड़ इस बात का प्रतीक कि पेड़ की तरह हम नदी को बचाके रखेंगे।
‘‘बाँध बनाएंगे व अलकनंदा नदी को भी नुकसान नहीं होगा और सारे पर्यावरण मापदंडों का पालन करेंगे।‘‘ टीएचडीसी व विश्व बैंक के सारे शब्द खोखले साबित हुए। क्यूंकि नदी के आगे से सियासेण गंाव के आगे जो सड़क बन रही है उसका पूरा मलबा सीधे नदी में डाला जा रही है। बांध कपंनी कई जगह दिखने में आया है कि पहले मलबा नदी में डाल देती है फिर उसके बाद सुरक्षा दिवार बनाती है।
सुरंग के उपर वाले गांवों को तो पूरी तरह अनदेखा किया जा रहा है। गंावों में जलस़्त्रोत सूख रहे है, धूल के गुब्बार, विस्फोटों से लोगो की समस्यायें बढ़ी है। कई गांवों में चारे का जो पैसा देना था वो भी लटका कर रखा गया है।
देखने की बात ये भी है की पुनर्वास का काम सही रूप से तो शुरु ही नहीं हुआ। लोगो को धोखेे में रखा गया है। उदाहरण के लिये हाट के लोगों को तो जिस तरह नदी के दूसरी तरफ भेजा गया और इस तरह के भरम में फंसाया गया की लोगो को 10 लाख के पैकेज को सही माना जब की उन्होंने अपनी ज़मीन के ऊपर ही मकान बनाया और आज वे लोग ठगे से महसूस कर रहे है अपने आप को क्यूंकि 10 लाख में मकान भी पूरा नही बन पाया और कोई सामुदायिक सुविधाएं देने की योजना ही नहीं है। विश्व बैंक इस पुनर्वास नीति को बहुत अच्छी कहकर कर अपनी वेबसाईट पर प्रचार कर रहा है और टीएचडीसी भी।
ये वही टीएचडीसी है जिसके बनाये पहले टिहरी बाँध विस्थापित लोग आज भी पुनर्वास प्राप्त नहीं कर पाए है। आज भी टिहरी बाँध में पानी पूरा भरने की इजाज़त नहीं हो पाई है क्यूंकि पुनर्वास पूरा नहीं हुआ। पर्यावरण की शर्तों को तो पूरी तरह दरकिनार ही किया है। जो भागीरथी की दशा थी वही आज अलकनंदा की स्थिति हो रही है।
मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन हो रहा है। जहाँ पर भी लोग अपनी संस्कृति, अपने गॉव को बचाने के लिए खड़े होते है या उनके विस्फोटों की वजह से उनके मकानों में दरारें आ रही है और लोग मांग करते है कि विस्फोट मत कीजिये, फिर जब ठेकेदार नहीं मानते है तो लोग काम रोकते है, तो उन पर मुक़दमे ठोके जाते है। आज पूरी घाटी में लगभग 100 लोगो के ज्यादा लोगो पर झूठे मुक़द्दमें है।
लोगो पर मुकद्दमें करना एक रणनीति के तहत है क्योंकि मुक़दमे में लोग अदालतों के चक्कर काटेंगे और अदालतों के आदेश आते है की आप काम नहीं रोक सकते है। चंूकि ये तो देश के हित में है हम पूछना चाहते है की देश का हित कौन सा है? क्या हम इस देश के निवासी नहीं है? हमारी गंगाघाटी में हमारी छाती के ऊपर ही बांध बनाया गया। हमको यह कहकर की आपका विकास होगा और आज हमको इस परिस्थिति में डाला गया कि हमारे क्षेत्र में हम ही अपने जल-जंगल-जमीन से अधिकार खो बैठे है। यह पूरी तरह से साबित हो गया की बाँध विकास नहीं विनाश का ही प्रतीक है ना केवल उन लोगो के लिए जो सीधे जमीन से विस्थापित हो रहे है बल्कि उन लोगो के लिए भी जो बांध निमार्ण के दूसरे कारणों से प्रभावित है। लाभ किसको मिलेगा यह सामने दिखता है। मगर हम इस पूरी पोल को खोलके रहेंगे।
हम संघर्ष करेंगे और जीतेंगे!!!
ज़िंदाबाद
नरेंद्र पोखरियाल, धनेरी देवी, मंडी लाल, राजू हटवाल
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No Rehabilitation, No
Environment Conservation
(World Bank funded Vishnugad-peepalkoti Dam, Alaknanda River, District Chamoli, Uttarakhand, project proponent THDC India LTD.)
Tree is sign of prosperity, our
unity, our struggle, our roots. People with the slogans of “Ladenge –Jeetenge”
and planted ‘Banyan’ trees at the Ganga Basin symbolizing our roots here and
put the mud which was collected on the occasion of 14th March, River
day. Today on 21st April, 2016
Vishnugad-peepalkoti dam affected people of Haat Harsari, Durgapur and other
villages planted trees in Chhotikashi. This tree is sign of our promise to save
our river.
“ We will construct dam without
any damage to and will follow all the environment measures” – These words of
THDC (Tehri Hydro Development Corporation Ltd) and World Bank went into air. Debris
of the road construction from Siyasen village is going straight into the river.
At many places it was observed that the company dumped the debris in the river before
constructing protection wall.
Villages above the tunnels are
being completely ignored. Water source
in the village are drying up; blasts and the dust in the air have added to
people’s problems in the area. In many villages, the money to be given for
animal fodder has also not been provided.
It also has to be observed that
the rehabilitation work has not begun in effect. People have been betrayed. People from the Hatt village went to the
other side of the river; they were promised a package of Rs 10 lakhs but
eventually they had to build houses on their own lands and today neither they
have been able to construct their own houses fully nor have they been provided
any community facilities. On the other hand, THDC and World Bank have praised
this package and have even publicized it on their websites.
This is the same THDC which
constructed the first Tehri Dam and which hasn’t been able to rehabilitate the
people their till today. To this date, the dam has not been permitted to fill
to its capacity because of the lack of full implementation of
Rehabilitation. The environmental
conditions have been completely bypassed.
The plight of Alaknanda river is becoming like that of Bhagirathi.
There is large-scale violation of
Human rights. Wherever people stand up asserting their culture and identity and
to save their village, they are being detained. When people’s request to stop
the blasts, which create cracks in their houses, fall on contractor’s deaf ears,
they force the company to stop work. The people are then intimidated by false
complaints and are booked in cases. Till
this date, more than a hundred people in this valley have been booked in cases
wrongfully. These false cases are a part of the strategy to continue the work
as the people will then be forced to attend to the court proceedings.
It is said that these Dams are
built for the good of the nation; we want to ask what is the good of the
nation? Are we not the residents of this country? In our valley, these dams
were constructed on top of us and we were told that development will come here.
Today the situation is such that we are being alienated from rights over our
own water, lands and forests.
It has been proved beyond doubt
that dams are a symbol of destruction and not development, not only for those
displaced by it but also those affected by its construction in many ways. It is clear whom this benefits and we will
bring this out in the open.
We will FIGHT and WIN !!!
Zindabad
Narender Pokhriyal, Dhaneri Devi, Mangari Lal, Raju Hatwal