Sunday, 11 December 2016

PN-MOEFCC is not serious about the National River Ganga


 MOEFCC committee asking people about their issues
 Sudersahn Sah & Rajendra Negi with others  talking to the MOEFCC committee

 Rajendra Negi ji speaking to committee
 
 
 
 
 
 
 
MOEFCC is not serious about the National River Ganga
Matu Jansangathan and Local People of Devpryag Condemn the Non-Serious Committee Assessment and argued for free Ganga
On 10th December, a committee consisting of 5 members reached Devpryag without prior information to the local People. Whereas the local people were unaware about the arrival of the committee, local contractors were present there. People were waiting at Devpryag, where Bhagirathi and Alaknanda meets and made National River Ganga. The Committee members asked people their grievances about the Dams. Rajendra Negi and Sudershan Sah of Matu Jansangthan strongly kept their points like why big dams should not be built and  the impact of already constructed dams. A representation addressed to the secretary of MOEF&CC was given by them to the said committee. A group of Srinagar people also argued against big dams on Ganga. Although the group of local contractors, who were well informed by the Dam companies fought with all the people who were putting their objections.
Matu petition narrated why big dam projects should not come up on the National River Ganga. They also gave three books describes about religious places in and around Devpryag and about the disaster made by the Dams. “One Sarsard ji form the committee asked them to bring the people who have signed the petition, and refused to take the books provided by Matu Jan Sangathan members and the local people saying “We will not take these books, can keep them personally”.
People raised objections, doubts and suggestions in the petition, as summaries here: -
Only through a Hindi newspaper on 9th December people came to know that a committee from MOEF&CC coming to  Devpryag. Other than this, no information to the local people, no information about committee’s subject and work area, no information about the time period the committee will assess the projects, no information about to whom this committee is going to meet, work area of the committee, awareness about the assessment field of the committee………………….Devprayag Known to be the origin place of the National River Ganga where Alaknanda Ganga and Bhagirathi Ganga confluence. The religious and cultural belief of Ganga ji cannot assesed by this kind of confusion. ………………….Uttarakhand is maternal home of Ganga ji and Ganga ji neglected Dam projects during the 2013 calamity. Due to Dams over on the tributaries of The Ganga the disaster level in 2013 disaster have been  increased.
1. Because of Srinagar dam, residence of Bhaktiyana area have seen the flood all over.
2. Because of the broken Vishnuprayag Dam downstream 7 villages had to face heavy calamity. It causes damage of two bridges on River Alaknanda, one for the Badrinathji and second for the Hemkund Sahib.
3. Because of the emerging dams in Mandakini valley, Mahamaheshwar River and Kali River, the whole Valley is facing problem of landslides due to which the local people have to suffer.
4. The same situation arises in Bhagirathi valley. The surrounding areas of the Bhagirathi valley faces huge destruction.
The condition of all the tributary River of Ganga makes bad impact on Devprayag. Here the question is not of our religious beliefs only but of our future securities also.

In recent years many people have been flown with the unannounced  water released from the Tehri dam, the record of these people is also not available. In 2016 one Sadhu Gopal Maniji was organized Gau- Ganga katha at Triveni Ghat in Rishikesh. The sudden release of the Dam water left them almost dead, somehow the local administration saved their life.
We are living in an insecure region. There are frequent landslides adjacent to Kotli Bhel 1A, even NHPC’s office was also damaged. Kotli Bhel Projects around Devprayag will destroy/ruin the morality of the Existence, Security and culture and belief of Devpryag.
It seems that MOEF&CC is not taking the dam impacts on National River Ganga seriously which is very much clear through this Non-Serious Committee Assessment efforts. This is to be reminded that Kotli Bhel 1A project was one of the 24 hydro-power Projects stopped by the Supreme Court and the environment clearance of Kotli Bhel 1B project was cancelled by National Environment Appellate Authority, the body before NGT. Kotli Bhel 1B and Kotli Bhel-2 did not get forest clearance form Ministry of Environment, Forest and climate change.
If this committee visited to assess the socio-cultural effect related to minimum water flow in the Ganga and its tributaries, then how come they do it in a haphazard way? In two days only? Where long way to drive.  How come local contractors were well informed? Who all were in the committee, was not clear to the people. People came to know about the committee and there members by newspapers on next day. MOEF&CC is to save the environment but it can’t be seen anywhere.
If any committee inquires local people without prior information, it comes under harassment. This kind of non-serious efforts of MOEF&CC should not be accepted and we will oppose big dams on National River Ganga.
We demand the complete ban on all three Kotli Bhel projects and also cancellation of all 24 Hydro Power Projects Stopped by the Supreme Court. These Projects must be stopped, there is no need of rethinking over this issue.
                
Vimalbhai, Rajendra Negi and Sudershan Sah

Thursday, 25 August 2016

Press Note 25-8-2016
















जून 2013 की त्रासदी के लिये जिम्मेदार जी0वी0के0 बांध कंपनी पर नौ करोड़ का मुआवज़ा व जुर्माना
प्रभावितो ने जीत मनाई/ एन जी टी को धन्यवाद दिया / सरकार से कार्यवाही की अपेक्षा की 

उत्तराखंड में जी0वी0के0 कंपनी के अलकनंदा नदी पर बने श्रीगर बांध के कारण तबाह हुयी संपत्ति के मुआवजें के लिये ‘‘श्रीनगर  बाँध  आपदा  संघर्ष  समिति‘‘  और ‘‘माटू जनसंगठन‘‘ ने अगस्त 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में एक याचिका दायर की थी। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने लगभग 18 बार सुनवाई के बाद 19 अगस्त 2016 को उत्तराखंड के लिये ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने इस फैसले में माननीय न्यायाधीश यू0 डी0 साल्वी व माननीय विशेषज्ञ सदस्य ए0 आर0 यूसुफ ने जी0वी0के0 कंपनी को जून 2013 आपदा में श्रीनगर में तबाही के लिये जिम्मेदार ठहराते हुये प्रभावितों को 9]26]42]795 करोड़ रुपये का मुआवजा देने व प्रत्येक वादी को एक लाख रुपये देने का आदेश दिया है। 

ज्ञातव्य है कि जी0वी0के0 कंपनी के बांध के कारण  श्रीनगर शहर के शक्तिबिहार] लोअर भक्तियाना] चौहान मौहल्ला] गैस गोदाम] खाद्यान्न गोदाम] एस0एस0बी0] आई0टी0आई0] रेशम फार्म] रोडवेज बस अड्डा] नर्सरी रोड] अलकेश्वर मंदिर] ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती] श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई थी।

‘‘श्रीनगर  बाँध  आपदा  संघर्ष  समिति‘‘  और ‘‘माटू जनसंगठन‘‘ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के इस जनपक्षीय आदेश का स्वागत करते है। इस आदेश ने सिद्ध किया है कि जून 2013 की त्रासदी में बांधों की बड़ी भूमिका थी। माटू जनसंगठन ने जून 2013 की आपदा में बांधों की भूमिका का मुद्दा हर स्तर पर उठाया था। विधायकांे, सांसदों हर बड़े राजनैतिक दलों को पत्र भेजा था, मिले थे। अफसोस कि सभी इस सवाल पर मौन ही रहे। अब इस आदेश के बाद सरकारें जागेंगी और नदी व लोगो के अधिकारों का हनन करने वाली बांध कंपनियों पर लगाम लगायेंगी। यह आदेश ना केवल उत्तराखंड वरन् देशभर में बांधों के संदर्भ में अपनी तरह का पहला आदेश है। देशभर के बांध प्रभावित क्षेत्रों के लिये यह नया रास्ता दे रहा है। कही भी बांधों के कारण होने वाले नुकसानों के लिये यह आदेश एक नजीर होगा।

प्राधिकरण का आदेशः-

1. प्रतिवादी संख्या 1- अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड इस आदेश की तिथि के 30 दिन की अवधि के अंदर सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम] 1991 की धारा 7 (ए) के तहत स्थापित पर्यावरण राहत कोष प्राधिकरण के माध्यम से श्रीनगर शहर में जून] 2013 के बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा के तौर पर 9]26]42]795 करोड़ रुपये की राशि जमा करेगी.

2. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (अभ्यास और प्रक्रिया) नियम, 2011 के नियम 12 के तहत, जमा किए जाने वाले मुआवजे की राशि से 1 प्रतिशत राशि कटौती करके कोर्ट फीस के तौर पर रजिस्ट्रार, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंप दिया जाएगा. 

3. प्रतिवादी संख्यां 3 - उत्तराखंड राज्य सरकार, व्यक्तियों के दावे के समर्थन में आवश्यक सबूत के साथ अनुलग्नक ए-5 में संलग्न सूची के अनुसार उनके दावों की सूची की निगरानी के लिए कोई वरिष्ठ उप संभागीय मजिस्ट्रेट को तैनात करने के लिए पौड़ी जिले के जिलाधिकारी को आवश्यक निर्देश जारी करेगी। इसके लिए नियुक्त एसडीएम पेश किए जाने वाले सबूतों के आधार पर दावों को सत्यापित करेगा और दावे की प्रात्रता के आधार पर अनुलग्नक ए-5 की सूची के अनुसार देय कोर्ट फीस की राशि के तौर पर 1 प्रतिशत कटौती करके उस व्यक्ति को सौंपेगा। दावे आमंत्रित करने की घोषणा जिलाधिकारी कार्यालय, श्रीनगर नगरपालिका कार्यालय एवं उत्तराखंड राज्य के वेबसाइट में एक नोटिस प्रकाशित करके की जाएगी। इस नोटिस के प्रकाशन के 90 दिनों के बाद जिलाधिकारी द्वारा नो-क्लेाम (कोई दावा शेष नहीं) दायर किया जाएगा। इस तरह उपरोक्त राशि के वितरण के बाद शेष राशि बाढ़ द्वारा प्रभावित सार्वजनिक संपत्ति की बहाली के उपाय के तौर पर पर्यावरण राहत कोष में उपयोग किया जाएगा.

4. प्रतिवादी संख्या 1 लागत की रकम के रुप में आवेदकों और प्रतिवादी संख्या 4 सहित प्रत्येक को एक-एक लाख रुपए की राशि का भुगतान करेगा।  

5. इस प्रकार 2014 के मूल आवेदन संख्या 3 का निपटारा हो गया है।

प्राधिकरण ने अपने 42 पन्नों के आदेश में बहुत विस्तृत रुप से लिखा है कि जी0वी0के0 कंपनी ने लगातार पर्यावरणीय शर्ताे का उलंघन किया जिसके कारण बाढ़ में बांध की मक तबाही का कारण बनी। विभिन्न रिर्पोटे बताती है कि जहंा मक डाली जाती है वहाँ सुरक्षा दीवार व मक पर पेड़ लगाना, जाली लगाना किया जाना चाहिए। मगर बरसों से नदी किनारे मक रखी गई पर फिर भी उस पर पेड़ नही लगाए गये। प्राधिकरण ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर बनी रवि चोपड़ा समिति की रिर्पोट को भी देखा जिसने मौके पर मुआयना किया था। प्राधिकरण ने बांध कंपनी की इन दलीलो को मानने से इंकार किया कि यह क्षेत्र बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आता है, यह ईश्वरीय  कारणांे से हुआ।  

मालूम हो की अभी तक राज्य सरकार ने बाढ़ क्षेत्र को परिभाषित नही किया है। 

उत्तराखंड  सरकार  के  वकील  ने  अपना पक्ष रखते हुये पहले  तो  यह  सिद्ध  करने  की  कोशिश  की कि यह  मुक़दमा  सुनने  लायक  ही  नही  क्यूंकी यह  ईश्वरीय  कारणांे  से  हुआ है और  इसमंे जी0वी0के0 कंपनी का कोई  दोष  नही  है। किन्तु प्राधिकरण ने अपने आदेश के पैरा 19 में कहा है कि राज्य सरकार वादियों के, जी0वी0के0 कंपनी को दोषी ठहराने के, कियी तर्क का खंडन नही कर पायी है। 

हम विशेष आभारी है लीगल ‘‘इनीशियेटिव फॅार फॅारेस्ट एण्ंड एन्वायरंमैंट‘‘ के वकील रित्विक दत्ता व वकील राहुल चौधरी जिन्होने बिना फीस लिये इस याचिका पर बहस की। सुनवाई के दौरान दखल  याचिकाकर्ता डॉ. भरत झुनझुनवाला के भी हम आभारी है जिन्होने प्राधिकरण के सामने जी0वी0के0 कंपनी  द्वारा किये गये पर्यावरण शर्तो के उलंघन संबधी सभी तथ्य रखे।

हमारी मांगे 
उत्तराखंड सरकार प्राधिकरण के आदेशानुसार तुरंत पौड़ी के जिलाधिकारी को आवश्यक निर्देश दे। इस तथ्य पर ध्यान दिया जाये कि मुआवजा वितरण की प्रक्रिया बिना भ्रष्टाचार के पूरी हो।

जब यह सिद्ध हो गया है कि श्रीनगर के एक हिस्से में बाढ़ के लिये जी0वी0के0 कंपनी जिम्मेदार है। तो शासन-प्रशासन को तुरंत जी0वी0के0 कंपनी पर आपराधिक कार्यवाही की प्रक्रिया शुरु करनी चाहिये। उसे जानबूझ कर की गई लापरवाहियों के लिये दण्डित किया जाये।  ताकि भविष्य के लिये वे सावधान रहे।

न्यायपालिका ने अपना कार्य पूरा किया है अब शासन-प्रशासन को अपनी भूमिका अदा करते हुये न्याय को लोगो तक पंहुचाना है।

लड़े है! जीते है!!

प्रेम वल्लभ काला]             विजयलक्ष्मी रतूड़ी]  चंद्रमोहन भट्ट]               निर्मला नौटियाल]       विमलभाई

GVK Company held responsible for June 2013 Disaster, fine rupees 9 crore.
Affected people Happy / Gave thanks to NGT/ Hope Government take action accordingly 


On 19th august National Green Tribunal (NGT) after 18 hearings gave a historic verdict on the petition filed in august 2013 by Srinagar Bandh Aapda Sangharsh Samiti and Matu Jansangathan for the compensation against the destruction and damage caused during 2013 disaster because of srinagar dam constructed over Alaknanda river by GVK company Uttrakhand. Hon’ble Justice U.D Salvi, judicial member and Hon’ble Prof. A.R. Yousuf , expert member held GVK company responsible for 2013 disaster and ordered to compensate the affected people with rupees 9,26,42,795 Rs. and 1 lakh per petitionor. 

Srinagar Bandh Aapda Sangharsh Samiti and Matu Jansangathan welcomes NGT’s pro people order. This verdict proved that rapid dam construction is the major reason for 2013 disaster. Matu Jansangathan raised voice on the role of dams  in 2013 disaster at every level including parliament, legislation and famous politicians but unfortunately nobody uttered a word. Now after NGT’s order political parties will control such dam companies who abuses people’s right. This is ever first order by NGT  in the Hydro Power Projects. It will give a new way to the Hydro Power Project affected people.  

Oprative part of NGT’s order  :-

1. Respondent no.1- Alaknanda Hydro Power Co. Ltd. shall deposit an amount of Rs 26,42,795/- by way of compensation to the victims of the June, 2013 floods in city of Srinagar with the Environmental Relief Fund Authority established under Section 7 (a) of Public Liability Insurance Act, 1991 within a period of 30 days from the date of this order.

2. Amount of Court fee payable i.e. 1% of the amount of compensation awarded shall be deducted from the said deposited amount and remitted to the Registrar, National Green Tribunal as per Rule 12 of the National Green Tribunal (Practise and Procedure) Rules, 2011.

3. The respondent no. 3- State of Uttarakhand shall issue necessary directions to the District Magistrate of District Pauri to depute any senior Sub-Divisional Magistrate to call for the claims from the persons as per list annexed as annexure A-5 with necessary proof in support of their claims. The SDM so deputed shall verify the claims made in light of the proofs produced and remit the amount due to such person/s after deduction therefrom the proportionate 1% amount of Court fees payable as per list annexure A-5 on finding the claim to be meritorious. Claims shall be called by publishing a notice, therefor in the office of the District Collector, Srinagar Municipal Corporation and on the website of the State of Uttarakhand. No Claim filed after 90 days of publication of such notice shall be entertained by the District Magistrate. Balance amount remaining in environment relief fund after disbursement of the amount as aforesaid shall be utilised for taking such measures for restoration of the public property affected by the floods.

4. Respondent no.1 shall pay an amount of Rs. 1 lakh each to the applicants as well as the respondent no. 4 as and by way of cost.

5. Original Application no. 3 of 2014 thus stands disposed of. 

The tribunal in its 42 pages order has briefly explained that GVK company has regularly violated the environmental norms which has resulted in flood and devastation of muck. Various reports have also pointed out that walls protecting muck should be built , also plantation and wire fencing should be done around the muck. The muck though put around the river way back but still no plantation has been carried out yet. Tribunal also went through the Ravi Chopra Committee’s report which was constituted by MOEFCC under the dircetion of  Hon’ble Supreme Court of india , the committee has also inspected the area. The tribunal also denied to accept the arguments put forwarded by Dam company that the area comes under flood affected area. Since the State Government has not defined a flood area, therefore what happened in the area was a natural calamity.

Putting forward his argument, the Uttarakhand State public prosecutor first tried to prove that the matter should not be taken into cognizance of court because what happened was a "Act of God" and not negligence on the part of state government or GVK company. The tribunal in its para 19 of the order has said that state government has not been able to deny the argument which held responsible the GVK company for disaster.

We are highly obliged to our advocates, Ritwik Dutta and Rahul Chaudhary who took up this case without charging any fee. We are also grateful to Dr. Bharat Jhunjhunwala , the plaintiff who provided all facts pertaining to environmental conditions violated by GVK company to the tribunal.

Thus we demands:

---According to order issued by NGT,  Uttrakhand state government authority to instruct District Magistrate of Pouri district that the issue of allocation of compensation should be done without corruption.

---When it was proved that GVK Company is responsible for the flood in a particular area of Srinagar then the administration should also take appropriate action and initiate criminal proceedings against it. The GVK Company should be penalized for the offenses committed knowingly to make them alert in the future.

As the judiciary performed its duty likewise the state administration should also take the same route to ensure justice to the people affected.

WE FOUGHT, WE WON!!

Prem Ballabh Kala,          Vijaylaxmi Ratudi,             Chandramohan Bhatt,               Nirmala Noutiyal,          Vimal Bhai.

Wednesday, 15 June 2016

प्रैस विज्ञप्ति 16 जून, 2016 जून, 2013 की आपदा में बांधो से हुई तबाही पर सरकार कदम उठाये!!!



जून, 2013 की आपदा में बांधो से हुई तबाही पर सरकार कदम उठाये!!!

उत्तराख्ंाड आपदा के तीन वर्षो के बाद इस समय चल रही पांच धाम यात्रा के यात्रियों को धन्यवाद व सरकार व प्रशासन को भी हमारी बधाई। आज के दिन हम याद करते है, केदारघाटी में स्थित दीपगांव-फॉटा के 22 वर्षीय बुद्धिभट्ट को, जिन्होंने आपदा के समय तीर्थयात्रियों को सोनगंगा पार कराते समय अपना जीवन दे दिया था। तथा 25 जून, 2013 को गौरीकुंड में राहत कार्य में लगे हैलिकॅाप्टर के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण शहीद हुये जवानों को नमन करते है। आपदा पीड़ितों के मुआवज़ो का निपटारा भी होना चाहिये। भविष्य में इन आपदाओं से बचने के उपाय और राज्य की आपदा प्रंबधन को मजबूत करना चाहिये।
यात्रा की व्यवस्था में जरुर कुछ कमियंा भी है जिसके लिये हम मार्च से चली राजनैतिक उठापटक को भी जिम्मेदार मानते है। भविष्य में ये कमियंा दूर करनी होगी ताकि यात्रा हमेशा सुचारु रुप से चले और उत्तराख्ंाड की आर्थिकी को मजबूत करें।
हमें नही भूलना चाहिये कि 2013 की आपदा मंे उत्तराखंड के बांधों की बड़ी भूमिका रही है। { बांधों के कारण जून, 2013 की आपदा में हुई बढ़ौत्तरी पर तथ्य परक जानकारी का नोट संलग्न है} उच्चतम् न्यायालय के आदेश पर पर्यावरण, वन एंवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने रवि चोपड़ा समिति बनाई जिसने साफ तौर पर बड़े बांधों को भी आपदा के कारणों में गिनाया है। उत्तराखंड में जून 2016 की आपदा को 3 वर्ष बीतने के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकारों ने इस विषय पर कोई पहल नही की है।
हमने अगस्त-सितंबर 2012 की बाढ़ के बाद उत्तरकाशी के निकट भागीरथी की सहायक अस्सीगंगा के टूटे बंाधों के बाद अध्ययन पूर्वक कहा है कि ये बांध असमय के बम साबित हुए है। टाईम बम का तो समय निश्चित होता है। किन्तु इन बांधों तबाही लाने के लिए का कोई समय नहीं होता । 2010 से लगातार उत्तराखंड में नदियंा ये संदेश दे रही है।
माटू जनसंगठन ने 2013 में बांधों की भूमिका के विषय को भी सरकार के साथ लगातार उठाया है। नवम्बर 2013 में हमने राज्य के सभी विधायकों व सांसदों को तथ्यवार सूचना दी। जिला प्रशासन को भी आगाह किया किन्तु सब तरफ एक मौन ही है।
जून 2013 की आपदा में जीवीके बंाध कंपनी के श्रीनगर बांध से श्रीनगर शहर के निवासियों का नुकसान हुआ उसको माटू जनसंगठन ने श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति के साथ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में उठाया हैै। प्राधिकरण ने अभी निणर्य सुरक्षित किया हुआ है। यहंा यह खासकरके कहना होगा की सरकार ने इस विषय में प्राधिकरण में जीवीके बांध कंपनी का ही पक्ष लिया हैै।
विष्णुप्रयाग बांध के कारण हुई अलकनंदानदी की तबाही पर भी माटू जनसंगठन ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal) में अक्तूबर 2013 में केस दायर किया जिसके कारण प्रशासन की नींद खुली। जिला प्रशासन व जेपी बांध कंपनी को योजनाबद्ध रुप मलबा हटाना पड़ा। यद्यपि चमोली प्रशासन की निगरानी ना होने के कारण इस योजना पर पूरी तरह से अमल नही हो पाया।
बांधों के बारें में बोलने पर सबसे पहले यह देखने की कोशिश होती है कि कही इस कदम के उठाने पर बांध बंद तो नही हो जायेगा? बांध कंपनियंा लगातार जनहकों को दरकिनार करते हुये बांधो में पर्यावरणीय मानको की अनदेखी करती है। जिसका परिणाम है कि जून 2013 की आपदा में बांधों के कारण नुकसान की मात्रा बड़ी। केंन्द्र व राज्य सरकारें भविष्य में यह गलती ना दोहराये और बांध कंपनियों को उनके दोषों की सजा मिले तभी उत्तराखंड का पर्यावरण और लोग सुरक्षित रह पायेंगे।
सरकार भविष्य में उत्तराखंड की सुरक्षा के लिये बांधों की निर्माता कंपनियों पर जलविद्युत परियोजनाओं (जविप) में पर्यावरण मानको के उलघंन के कारण हुई उपरोक्त तबाही के लिये आपराधिक मुकद्दमें कायम करे।

हम मानते है कि बांध के सर्मथन और विरोध से ज्यादा प्रश्न उत्तराखंड के लोगो की सुरक्षा और यहंा के पर्यावरण के स्थायी संरक्षण का है।

विमलभाई     पूरण सिंह राणा     दिनेश पंवार     प्रेमवल्लभ काला    बलवंत आगरी


बांधों के कारण जून, 2013 की आपदा में हुई बढ़ौत्तरी पर कुछ तथ्य परक जानकारीः


1.    जून 16-17 की रात को बद्रीनाथ जी के नीचे अलकनंदागंगा पर बने जेपी कंपनी के विष्णुप्रयाग बांध (400 मेवा) के दरवाज़े ना खोलने के कारण लगभग दो किलोमीटर की झील बनी और फिर पानी के दवाब से एक दरवाजा टूटा। झील के कारण पानी का वेग बहुत तेजी से बढ़ा और बांध के नीचे लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बह गये। इस नुकसान का मुख्य कारण था, समय रहते जेपी कंपनी द्वारा विष्णुप्रयाग बांध के दरवाजे ना खोलना। ज्ञातव्य है कि विष्णुप्रयाग बांध से कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के बाजार की दुकानें बह गई थी। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नही दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के उपर चांई व थैंग गांव 2007 में धंस गये जिसके लगभग 30 परिवार आज भी बिना समुचित पुनर्वास के लिये भटक रहे हैं।

2.    विष्णुप्रयाग बांध के उपर जी.एम.आर. कंपनी का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई तक हस्तांतरित नहीं किया था किन्तु वन कटान का काम द्रुतगति से पहले ही चालू हो गया था। जिससे वो पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। इसने भी नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी भूमिका अदा की।

3.  भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. उपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकति को सुधारे या उसमें बदलवायें 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की उंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई थी। 16-17 जून 2013 में उपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युृत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी0 वी0 के0 के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाब बड़ने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिये जी0 वी0 के0 कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिये बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी0 वी0 के0 कम्पनी  द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई।

4.    अलकनंदागंगा की सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यो पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नही हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा हैं इस मलबें ने पानी की विनाशकारी शक्ति को बढ़ाया है।

विष्णुप्रयाग और श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बबार्दी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। धरने प्रदशनों के बाद जे.पी. ने अपने बांध की सफाई के कारण लामबगड़ गांव के लोगो से एक समझौता किया। यह समझौता पढ़ने के बाद समझ में आ जाता है कि मुख्य उद्देश्य बांध की झील की सफाई को ध्यान में रखते हुये लोगो को फंसाया गया है। थोड़े से ठेके बांटने का काम भी हुआ। इस सफाई का मलबा भी वापिस अलकनंदागंगा में डाला जा रहा है।

5.    जून आपदा, 2013 के मात्र 10 महीने पहले अस्सीगंगा घाटी और  केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महिने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सीगंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से तेजी से पानी आया तो उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। जिसके बाद में बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गया। मनेरी भाली चरण दो के जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिये बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारे, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारांे को बनवाने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था। और अगस्त 2013 की दुर्घटना के बाद नई दिवारंे बननी शरु हुई थी कि जून 2013 में फिर मानसून आ गया। और वर्ष 2013 की वर्षा में जोशियाड़ा का सैकड़ो मीटर लम्बा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है। टिहरी बांध झील में अस्सीगंगा के टूटे बांधों का और उनके कारण हुये भूस्खलन का सारा मलबा जमा हुआ।

6.    यह बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ रूकी जो पूर्वतयाः बांधों से हुए नुकसान को ढापने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिये 15 से 18 जून की तेज वर्षा में झील में पानी टी0एच0डी0सी0 बांध कंपनी ने अपने फायदे के लिये भरा। 

7.    सितंबर 13, 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहंा एशियाई विकास बैंक यानि एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनायें बन रही है। इन परियोजनाओं के निमार्ण कार्य और मलबे के कारण ही अनेक गांवो की स्थिति खराब हुई है।

Some Information-June, 2013  calamity increased due to Hydro Power Projects

  1. On the night of 16-17 June the dam built by Jaypee on Alaknanda river caused tremendous destruction in the lower areas because its doors were not opened. The reason for destruction caused to houses, forest and land in Lambagad, Vinayak Chatti, Pandukeshwar, Govindghat, Pinola ghat areas was that the doors of the Vishnuprayag dam built by JP company were not opened in time. No water was ever released from the Vishnuprayag dam for the needs of villagers. In the monsoon of 2012 the destruction caused by this project flooded the shops of Lambagad village and no compensation was paid by JP company. Chai and Thaing villages situated above the Vishnuprayag dam tunnel had sunk in 2007 because of which 30 families from these villages are still not rehabilitated.

  1. Just above this dam another dam by GMR of 300 megawatts is proposed for which the forest land was not transferred but felling of trees had started at a high speed and all such trees and machinery flowed in Alaknanda which played a major role in causing destruction in the lower areas.

  1. On same river Alaknanda at Srinagar where an almost complete Srinagar Project (330 Megawatt) caused tremendous damage. GVK group is the builder of this dam. The capacity of Srinagar project was increased from 200 megawatts to 330 megawatts and its height was increased from 65 meters to 95 meters without any proper environmental clearances.
Taking advantage of increase in water level of the reservoir which was caused by water coming from above, management of GVK hatched the criminal conspiracy of lifting Dhari Devi temple which was proposed for August 2013. During this time, the gates of the dam which were half open were all closed which caused an increase in the water level of dam’s lake. When the pressure on the dam increased because of excess water, GVK co. without warning the residents on the bank of the river opened the gates after which water in the reservoir flowed down with all force and flooded the muck dumped by GVK co. on three banks of the river. This enhanced the destructive capacity of the river by many degrees.


  1. It is to be noted that only 10 months back, immense destruction was caused in two main streams of Ganga, Assi Ganga ravine of Bhagirathi and Kedar ravine of Alaknanda. Because of the cloud burst in Assi Ganga river, the under construction Assiganga phase I and II hydro power project caused destruction and similar destruction was caused by phase II of Maneri bhali hydro power project in Bhagirathi Ganga. Villages in Assi Ganga were badly affected as many small roads and ways were destroyed and the environment was damaged so badly that recovery may take decades. Many laborers killed in such destruction for which there exists no record. Reservoir of Maneri bhali phase II was already full and when water came with force from behind, it led to collapse of the bridge which connected Joshiyara and Gyansu. After this when dam gates were suddenly opened, thousands of cusec of water flooded many foot bridges. The walls built on the left and the right of were also damaged badly. It must be noted that these so called walls were constructed after the reservoir was completely full and even then it was constructed only after a long and hard struggle by the local people. This year a huge area of Joshiara flooded away in Bhagirathi Ganga. It may be argued that the cause of such flooding is primarily the full reservoir of Maneri Bhali phase-2 HEP.

  1. On 13 September 2012, cloud bursts caused immense destruction in the 4 KM area of Ukhimath Tehsil headquarters. At this place Asian Development Bank sponsored Kaliganga Phase 1 & 2 and Madhyamaheshwar HEP are being constructed. Conditions in many villages have deteriorated because of these constructions. All the debris from the broken dams of Assi Ganga is stored in the lake of Tehri dam.

  1. It is being projected to cover up the destruction caused by dams that flood stopped because of Tehri dam. In reality to fill the lake of the dam, rain water from 15 to 18 June was stopped.

Thursday, 19 May 2016

Press Note: 19-5-2016 बंड क्षेत्र की महिलाओं ने दिया हड़ताल को समर्थन: बांध काम बंद कराया


Press Note:19-5-2016  
                                                     
  

Police pressure



Labour on strike
                

Security person on strike


बंड क्षेत्र की महिलाओं ने दिया हड़ताल को समर्थन:

 बांध काम बंद कराया

English after Hindi

( विश्व बैंक द्वारा पोषित विष्णुगाड पीपलकोटी बाँध, अलकनंदा नदी, जिला चमोली,उत्तराखंड, निर्माणकर्ता बांध कंपनी टीएचडीसी)

दूरस्थ गांवो से आई महिलाओं ने बांध श्रमिकों की हड़ताल को समर्थन दिया और बांध कंपनी द्वारा जबरन कराये जा रहे काम को रोक दिया। उनका कहना था कि पहले बांध हमारे उपर लादा फिर जो कुछ काम भी मिला उसमें भी समस्यायें हो रही है। 
विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना पीपलकोटी (444 मेगावाट) में बांध निर्माता कंपनी टी0 0 डी0 सी0 के अर्न्तगत कार्य करने वाली हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कम्पनी (एच.सी.सी.) के श्रमिकों की हड़ताल 18/04/2016 से जारी है। ये श्रमिक हडताल पर हैं। वहीं कम्पनी में कार्यरत सुरक्षाकर्मी भी 17/05/2016 से हड़ताल पर बैठ गये हैं। एक ओर श्रमिक/सुरक्षा कर्मियों की हड़ताल दूसरी तरफ अब कम्पनी में कार्य कर रहे, पेटी ठेकेदार सप्लायर भी हड़ताल पर जाने का मन बना चुके हैं। कम्पनी चौतरफा हड़तालों से घिरी हुई है।
श्रमिकों की मांगे है - झूठे मुकद्दमें हटाये कर्मचारियों को वापिस लेना, किसी भी अन्य कारणों से बांध काम बंद होने पर श्रमिकों को वेतन काटना अनैतिक है, वेतन हर महिने की 10 तारिख तक दे दिया जाये, कंपनी द्वारा बनाई यूनियन मंजूर नही इसलिये उसके लिये पैसा ना काटा जाये, नई यूनियन लिये एक दफ्तर की सुविधा दी जाये।
श्रमिकों का कहना है कि कम्पनी की फेडरेशन यूनियन श्रमिकों का शोषण कर रही है। फेडरेशन के पदाधिकारी चुपचाप उनके मेहनत का पैसा डकार रहे है। श्रमिक इसके खिलाफ मुखर हुए तो उनको झूठे मुकदमों नौकरी से हटाने का नोटिस थमा दिया गया आज 100 से ज्यादा श्रमिकों पर मुकद्दमे लगे हुये है।
सुरक्षा कर्मियों का कहना है कि हमें 3-4 महीने से वेतन नहीं मिला है और कम्पनी ने हमारा पी0एफ0 खाता नहीं खोला है। हमारे मांगने पर भी हमें पी0एफ0 नम्बर नहीं दिया जा रहा है।
ठेकेदारों का भी भुगतान समय पर पूरा भुगतान होने के कारण ठेकेदार ने कम्पनी की कार्य शैली से सन्तुष्ट नहीं है। सबसे ज्यादा नुकसान सप्लायरों का हो रहा है। सप्लायरों का करोड़ों रूपये कम्पनी के पास फंसे हुए है। प्रश्न है कि क्या स्वंय कम्पनी की आर्थिक स्थिति अत्यधिक खराब है? सूत्रों का माने तो कम्पनी के खुद के स्टाफ का वेतन भी लगभग 3 महीने से नही मिला है। ऐसे में लोगों को चिन्ता सता रही हैं कि कम्पनी कहीं यहां से भाग जाय। कर्मचारियों ठेकेदारों के मन में संशय बना हुआ है। उन्हें अपना पैसा डूबने की चिंता सता रही है।
टी.एच.डी.सी. विश्व बैंक इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए है। इनकी चुप्पी भी कई प्रश्न खडे़ कर रही है। एच0सी0सी0 कम्पनी की तानाशाही नीति पर सब मौन है। एच0सी0सी0 कंपनी के फोन पर प्रशासन धरना स्थल पर पुलिस फोर्स मुस्तैद कर देती है लेकिन श्रमिकों की सुनने वाला कोई नहीं है।
विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषिक परियोजना में श्रमिकों कार्य कर रहे बेरोजगारों की खराब स्थिति विश्व बैक की कार्यप्रणाली पर सवाल खडे हुए है। श्रमिकों के हकों अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। विश्व बैंक सिर्फ लोन का पैंसा देने उस पर लोन पर ब्याज वसूलने तक सीमित रह गया है। ये श्रमिक भी भारत देश के ही है इन्ही के मेहनत के पैंसो से यह ब्याज लोन चुकाया जाना है। विस्थापितों/प्रभावितों के काम रोकने पर तो बांध कंपनी करोड़ो का नुकसान होने का हल्ला मचा देती है और विस्थापितों/प्रभावितों को तुरंत नोटिस थमा दिया जाता है। आज लगभग 100 विस्थापितों/प्रभावितों को अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे है। मगर अपने ही कर्मचारियों/श्रमिकों के साथ भी अन्यायपूर्ण व्यवहार उनकी भी जायज मांगों को नकाराना ये ही बताता है कि पुनर्वास पर्यावरण मानको के उलंघन के साथ टी.एच.डी.सी. विश्व बैंक को बांध निर्माण में लगे श्रमिकों की भी चिंता नही है। उनके अधिकारों को भी छीना जा रहा है।
ये श्रमिक भी भारत देश के ही है इन्ही की मेहनत के पैंसो से विश्व बैंक का ब्याज कर्जा चुकाया जाना है। बांध कार्य में देरी की तोहमत बांध विरोधी आंदोलन पर लगाई जाती है। पर इस हड़ताल के कारण हो रही देरी की भरपाई कहां से होगी? कौन करेगा? देश का पैसा एक कम्पनी हाथों से इस तरह से बर्बाद किया जा रहा है इसका जिम्मेदार कौन रहेगा? टी.एच.डी.सी. विश्व बैंक इस तरह गैरजिम्मेदाराना व्यवहार पर एच0सी0सी0 कंपनी पर क्यों नही कोई कार्यवाही करता? प्रशासन क्यों विस्थापितों/प्रभावितों श्रमिकों के सामने विश्व बैंक टी.एच.डी.सी. और उसकी सहायक कंपनियों के साथ खड़ा दिखता हैै?
इन प्रश्नों का हल समय पर होना ही चाहिये। सरकार समय रहते एच0सी0सी0 कम्पनी पर कडी कार्यवाही करें अन्यथा इसका परिणाम और भयावह होता जायेगा।
विमलभाई  और राजेंद्र हटवाल

Women of Band area extend their support for the strike
and stop the dam work
(World Bank funded Vishnugad-peepalkoti Dam, Alaknanda River, District Chamoli, Uttarakhand, project proponent THDC India LTD.)
Women from distant villages came in huge numbers to extend their support to the Dam labourers strike and stopped the construction of the dam by the companies. According to them, firstly, the dam destroyed their shelter hindering their lives and now it is creating problems on the livelihood and occupation they have.
The labourers of Hindustan Construction company, the constructors of the Vishnughat Hydroelectricity Project Peepalkoti (444 MW) started the strike on the 18th of april 2016 and has been going on since then. It is a labour stirke. The employed security persons of the companies have also taken part in the strike since the 17th of May of 2016. On one side the labourers and the security persons have led the strike and now the employees of the company have decided to take part in the strike. The company has now been surrounded by strike.
The demands of the labourers are – False cases and the employees who have been dismissed on false allegations should be brought back; even if the construction of the dam stops or reduces, the salaries of the labourers should not be cut down; the salaries should be given by the 10th of every month; and to stop the cut from the salaries for the Union which has been made by the company; an office area should be given to the new union.
The labourers feel that the company's federation is exploiting the labourers. The federation is taking away the hard earned money of them. When the labourers went against the same the labourers were dismissed on the basis of false allegations and now over 100 have been dismissed till this date.
The security persons say that the companies have not promised them anything since 3- 4 months and even after demands the Provident Fund accounts have not yet been opened for them.
As a result of lack of payments to the suppliers/contractors, they are not satisfied with the company. The suppliers have the maximum loss in the same. The suppliers are still to be paid crores of rupees by the companies. They are concerned if the companies have enough money to pay them back? According to sources the employees of the company are also yet to be paid 3 months of salary. The employees as well as the suppliers are scared if the company would elope due to the lack of funds and their money wont be paid back.
THDC and World bank are hidden in this incident. The lack of answers and inactivity from the company and the World Bank has led to tension among employees and suppliers. People have been silent over the HCC's dictatory policies. The complaints of the HCC are heard by the police even on the phones but the voices of the people are still unheard.
The employees in the project funded by the World Bank and the silence of the World Bank over the issues concerning the poor and the unemployed has raised questions on its role in the welfare of the people. The rights of the labourers should be guarded and ensured. The role of the World Bank has been limited to giving out loans and taking back the money with interests. Even these labourers are part of the motherland and deserve rights over their hard earned money through which loans are fulfilled. Whenever protests are organised by the displaced families they are accussed of causing loss amounting to crores and are issued notices immediately. Even today almost 100 displaced families are still knocking the doors of the courts. The rights of their own employees and labourers are taken away and the companies don't bother about their welfare which shows that the companies and the World Bank funded dams constructed for development do not care about their about employees.
The companies and the government accuse the protesters (labourers/employees/displaced people) or the people against dams for the hault and delay to the construction works of the dams. Who will take the losses caused due to the strike? How will it be done? The companies are destroying the money of the country who will take responsibility for the same?Why doesn't the world bank and the THDC question the HCC over irresponsibilities in the project. Why does the government stand with companies and the world bank infront of the displaced people and the labourers?
These questions should be answered at the right time. The government should investigate about the functioning of the HCC company or else the seriousness of the issue would increase drastically.
Vimalbhai and Rajendra Hatwal